रंगला पंजाब शब्द एक बहुमुखी सांस्कृतिक विरासत का परिचायक है, जिसके मूल में कृषि और पशुपालन पर आधारित एक ऐसी संस्कृति है जो बड़े लम्बे समय से एक बहुत बड़े भूभाग में पनपी है। जिसकी बातें किस्से खानपान, व्यवहार, खेल कूद, नाच गाने सव में एक खुशी और उल्लास की तरंग पूरी दुनिया में मशहूर है। प्रथम विश्व युद्द के समय से ही ब्रिटिश लोगों ने अनाज राशन और जवान पंजाब की धरती से लिए और फिर दूसरे विश्व युद्ध और देश का बंटवारा जब हुआ तो देश ने अनाज की मांग के लिए पंजाब की ओर ही देखा। जब देश में हरित क्रान्ति की बात उठी तो पंजाब ही एकमात्र ऐसा प्रांत था जो तकनीकी रूप से तैयार था जहां एकीकृत प्रयासों से कम समय में हरित क्रान्ति लायी जा सकती थी।
सन साठ के दशक से शुरू हुई हरित क्रान्ति सन नब्बे का दौर आते आते अपने दुष्परिणाम भी सामने ले आई। पंजाब में कृषि आदानों में जहर के बेहिसाब प्रयोग ने खेत खलिहान पशु पक्षी और समूचे पर्यावरण को जहर में डुबो दिया जिसकी वजह से कैंसर, मानसिक रोग, चमड़ी के रोग आदि घर-घर में दिखाई देने लगे। पशुपक्षियों की भी अनेकों प्रजातियाँ खतरे में आ गयी। पानी के ज्यादा इस्तेमाल से पंजाब के कई इलाके डार्क जोन में चले गए।
खेती अब पूरी तरह से घाटे का सौदा बन गयी और किसानों ने कर्मों में दव कर आत्महत्याएं करनी शुरू कर दी। पंजाब में एक भयंकर निराशा और नकारात्मकता से भरा एक दौर शुरू हो गया जिसकी काली छाया से पंजाब की संस्कृति और मनोबल दोनों प्रभावित होने लगे। नब्बे के दशक के आखिरी सालों में पंजाब के कुछ युवा जो दिल्ली में काम कर रहे थे और उन्होंने जब प्रांत कृषि और पशुपालन पर आधारित संस्कृति का यह हाल देखा तो उन्होंने फरीदकोट जिले में जैतों नामक स्थान पर आ कर पंजाब में जैविक कृषि पर बात करनी शुरू की। इन युवाओं में एक नाम था उमेन्द्र दत्त। इस तेजस्वी युवा में मेरी मुलाकात साल 2004 में श्री गुरुनानक देव विश्विधालय अमृतसर में एक वर्कशॉप के दौरान हुई जहां पंजाब में इकोलॉजी में हो रहे चिंताजनक परिवर्तनों पर बातें हुई और जिसमें जैविक खेती पर भी चिंतन हुआ।मैं उमेन्द्र जी के जोरा और उनकी संगठन क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ और शायद पंजाब के खेतीबाड़ी के हालत जानने का मेरे लिए यह पहला अवसर भी था। उससे पहले तो पंजाब की एक फिल्मी सी इमेज मेरे मन में थी जिसमें बहुत खुशहाल खेती के सपने थे। जहर में डूबे कैंसर से ग्रसित पंजाब जो रेगिस्तान बनने की ओर आगे बढ़ रहा था से रूबरू होकर मेरे रींगटे खड़े हो गए थे।
वो जमाना इन्टरनेट का जमाना नहीं था सबकुछ अभी शुरू हो ही रहा था सोशल मीडिया था ही नहीं तो कभी कभी ही एक दूसरे के बारे में मालूम चलता था। कुछ सालों के बाद मुझे मालूम चला कि उमेद्र दत्त जी ने पंजाब में खेती विरासत मिशन नामक संस्था की शुरुआत की है। मेरे कालेज के जमाने के मित्र खुशहाल लाली जी जो आजकल बी.बी. सी. पंजाबी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं उनके माध्यम से मुझे खेती विरासत मिशन के बारे में पता चलता रहता था। उन्होंने ने ही मुझे बताया था कि खेती विरासत मिशन का उद्देश्य पंजाब में खेती और पशुपालन आधारित संस्कृति को दोबारा जीवित करके उसके यश और कीर्ति को पुनः स्थापित करना है। खेती विरासत मिशन ने पंजाब में प्राकृतिक खेती की बात शुरू को जो उस दौर में बिलकुल असंभव सी नजर आती थी क्यूंकि एक पूरी पीढ़ी जहर से खेती करके नए मानक मूल्य सेट कर चुकी थी। कृषि विश्वविधालय हो या कृषि विभाग उसमें प्राकृतिक खेती और जैविक खेती की लिए कोई जगह नहीं थी। हर जगह से बस विरोध विरोध के स्वर हो सुनाई देते थे।
उमेन्द्र दत्त जी ने अपने सीमित संसाधनों के उपयोग से पंजाब के सभी कोनों में मीटिंग सेमीनार वर्कशॉप आदि का एक लम्बा सिलसिला चलाया जिसके फलस्वरूप ऐसे किसान जी जहर के खेल को समझ चुके थे वो अब उमेन्द्र जी के साथ जुटने लगे और पंजाब में एक विर्मश शुरू हुआ। पंजाब के शहरों की जनता के साथ भी उमेन्द्र जी ने संवाद शुरू किया और अब पंजाब के शहरों से भी लोग खेती विरासत मिशन के समागमों और कार्यशालाओं में आने लगे। जब इतना शोर शराबा और रुला रप्पा हुआ तो यह बात सबकी समझ में आने लगी कि पंजाब एक मरती हुई सभ्यता में तब्दील होता जा रहा है और सभ्यता संकट में है। इस विचार के उधृत होने के बाद पंजाव में खेती विरासत मिशन के साथ उत्पादक, उपभोक्ता, कृषि वैज्ञानिक भी साथ आने लगे और सभी मिलकर प्राकृतिक खेती और परम्परागत बीज संरक्षण और संवर्धन के प्रयास करने लगे।
उमेन्द्र दत्त जी की जबरदस्त संगठन क्षमता का लाभ प्राकृतिक खेती अभियान से जुड़े सभी हित धारकों को हुआ। उमेन्द्र जी पूरे देश से प्राकृतिक खेती से जुड़े बड़े व्यक्तियों को पंजाब में लेकर आये और पंजाब के किसानों को भी देश भर में ऐसी जगहों पर भेजना शुरू किया जहां से प्राकृतिक खेती सम्बधित ज्ञान मिल सकता था। धीरे धीरे पंजाब के अन्वेषी किसानों ने अपने खेतों पर प्राकृतिक खेती के प्रयोगों को करना शुरू किया और जो भी उसके नतीजे आये उन्हें आपस में एक दूसरे के साथ बांटना शुरू किया।
साल 2010 के बाद जब स्मार्टफोन और सोशल मीडिया अवतरित हुआ तो खेती विरासत मिशन से जुड़े सभी नवोन्मेषी किसान, कृषि वैज्ञानिक, उपभोक्ता और कार्यकर्ता सभी आपसे में बुड़ने लगे और वैचारिक आदानप्रदान की दर बढ़ने से यह आन्दोलन तेजी से आगे बढ़ने लगा।खेती विरासत मिशन ने अपने उद्देश्यों में कृषि, पशुपालन, पर्यावरण, देसी बीज संरक्षण एवं संवर्धन, संस्कृति, लोक व्यवहार, लोक ज्ञान, लोक कलाएं और जंगलों को शामिल किया और इन सब पर काम करना शुरू किया। उदहारण के तौर पर पंजाव में कपास की खेती आदि काल से होती आई है और पिछले कुछ सालों से किसानों ने बी टी कपास का बीज बाजार से खरीद कर लगाना शुरू किया और उनके हाथों से कपास का बीज पूरी तरह से चला गया। खेती विरासत मिशन के प्रयासों से कपास का देसी बीज ढूंढ कर लाया गया और इच्छुक किसानों को दिया गया। किसानों ने कपास की जैविक खेती शुरू की और जब उत्पादन आया तो सभी का मन यह था कि इस उत्पादन को बाजार में उपलब्ध जहर में डूबी कपास में मिलाने का कोई अर्थ नहीं है।
जैविक कपास से जैविक वस्त्र का उत्पादन भी हमें करना चाहिए और फिर उसे बाजार में बेचने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। काफी चर्चा के बाद खेती विरासत मिशन में शिंजन नामक एक उपक्रम की शुरुआत की। प्रिंजन शब्द पंजाब की लोकसंस्कृति से जुड़ा एक बेहद पुराना शब्द है जो शाम को महिलाओं के एक जगह पर एकत्रित होकर चरखा चलाने और गीत गाकर खुशी मनाने से जुडा है। इस तरह खेती विरासत मिशन ने एक लुप्तप्राय शब्द के सहारे मरती हुई लोककला और उसके साथ जुड़े सांस्कृतिक और आर्थिक पहलू को उभारा और पंजाब की जड़ों को मजबूत किया। खेती विरासत मिशन ने विभित्र आयामों की शुरुआत की है जैसे: कुदरती खेती अभियान, प्रिंजन, महिला सशक्तिकरण, मार्केटिंग, जैविक सर्टिफिकेशन, उत्सव, शिक्षा, अभियान कुदरती खेती अभियान के अंतर्गत खेती विरासत मिशन पंजाब में जैविक खेती, किचन गार्डनिंग, शहरी खेती और बीज संरक्षण जैसे कार्यक्रम चलाता है जिसके अंतर्गत समय समय पर ट्रेनिंग कार्यक्रम, कार्यशालाएं आदि आयोजित किये जाते हैं। जैविक खेती से जुड़े सभी घटक जैसे देसी बीज किट और उन्हें उगाने का तरीका आदि बताये समझाते हैं।
खेती विरासत मिशन का यह कार्यक्रम बेहद सफल है। इस कार्यक्रम के फलस्वरूप पंजाब के सभी जिलों में और पड़ोसी राज्यों में हजारों की संख्या में किसान जैविक खेती कर रहे हैं और महिलाएं गांवों में अपनी जैविक बगीचे चला रही है। खेती विरासत मिशन में प्रशिक्षण का दायित्व वहन करने वाले जगतार धालीवाल बताते हैं कि मिशन द्वारा पिछले दो दशकों में जैविक कृषि विषय पर जो बौद्धिक पूंजी संचित हुई है उसके फलस्वरूप आज अनेक नौजवान कुदरती खेती को अपना मुख्य रोजगार बना कर काम करते हुए नजर आ रहे हैं। महिला सशक्तिकरण अभियान के तहत खेती विरासत मिशन के प्रोजेक्ट समृद्धि के तहत फरीदकोट और बरनाला जिलों में लगभग 5000 महिलाएं अपने घरों में उपलब्ध थोड़ी सी जमीन पर अपने घर के लायक नहरमुका सब्जी पैदा करने का कार्य कर रहीं है। इसके तहत उन्हें प्रोत्साहन और प्रशिक्षण मिशन के कार्यकताओं ने उपलब्ध कराया है।
इस कार्यक्रम को देखने वाली रूपसी गर्ग जी बताती हैं कि बहवल खुर्द की निवासी छिन्दर कौर और उनके पति मिलकर अपने घर के पांच मरले जगह में खेती विरासत मिशन के कार्यकर्ताओं के मार्गदर्शन में एक जैविक बगीची मेंटेन करते हैं जिसमें वे मिलेटस के साथ पालक, सौंफ, धनिया लहसुन और सभी सीजनल सब्जियां पैदा करके लगभग दो हजार रुपये महीने की सीधी बचत कर लेते हैं और जहर के सेवन से परिवार को बचा लेते हैं।
इसी कड़ी में कुछ और कार्यक्रम जैसे त्रिंजन, कुदरती आहार परिवार, खानपान की संस्कृति का पुनर्जीवीकरण और पर्यावरण के बचाव हेतु महिलाओं की भागीदारी आदि शामिल हैं कुदरती किसान हाट खेती विरासत मिशन में जैविक उत्पादों के विक्रय एवं विपणन की व्यवस्था हेतु मिशन के स्वयंसेवक राजीव कोहली जी ने कुदरती किसान हाटों की स्थापना की है। यह किसान हाट कहीं साप्ताहिक और कहीं दैनिक रूप से पंजाब के कई शहरों में लगाये जा रहे हैं। इन हाटों पर नज़दीक के जैविक किसान अपने उत्पादों को लेकर आते हैं और उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाते हैं।
पी.जी. एस. जैविक सर्टिफिकेशन खेती विरासत मिशन ने कृषि मंत्रालय भारत सरकार के अंतर्गत आने वाले संस्थान राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद के साथ मिलकर रीजनल काउंसिल की जिम्मेदारी ली है जिसके तहत किसानों को पंजाब में ही उनके उत्पादों के लिए जैविक प्रमाणीकरण की सुविधा उपलब्ध कराई गयी है। इस सेवा के निर्वहन की जिम्मेदारी श्री संजीव शर्मा जी को दी गयी है। आहार से आरोग्य भी खेती विरासत मिशन का एक बहुउद्देशीय कार्यक्रम है जिसके तहत ऐसे मेले लगाये जाते है जहां शुद्ध जैविक आहार को बनाने और उससे जुड़े विज्ञान पर चर्चा करने के लिए देशभर से एक्सपर्ट्स को आमंत्रित किया जाता है।
मिलेट्स का अभियान संभालने वाले रस्मिन्द्र जी बताते हैं कि रामबाबू जी को दक्षिण भारत से पंजाब में बुलाकर उनके रसोई ज्ञान से सभी को लाभान्वित करने के कारण आज खेती विरासत मिशन को सब जगह से शाबाशी मिल रही है। राम बाबू भारत की पुरातन महाराज परम्परा के वाहक हैं वो अपने आप को कुक या शेफ से कहीं ऊपर महाराज के रूप में स्थापित करते हैं। उनके षडरस विज्ञान को रसोई के माध्यम से जनकल्याण में उपयोग करने से एक नयी जागृति समाज में आई है। उमेन्द्र दत्त जी ने अपने जीवन के तीन दशक पंजाब को जहर में से उबारने में लगा दिए हैं जिसके सकारात्मक परिणाम आज हमारे सामने आ रहे हैं। पंजाब में जब भी कृषि का इतिहास लिखा जायेगा तो खेती विरासत मिशन की कालजयी भूमिका को पंजाब को जहर से निकालने बाबत स्वर्ण अक्षरों में ही लिखा जाएगा।
स्रोत- गुड़गांव टुडे
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