प्रकृति का उपहार

प्राकृति का उपहार
प्राकृति का उपहार

पृथ्वी का अमृतः जल

पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों के जल में माना जाता है। जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। तब से ही जल पृथ्वी पर जीवन का प्रतीक है। महासागरों, नदियों, झरनों, तालाबों, झीलों, पोखरों, भू-जल आदि जल स्रोतों में उपलब्ध जल जीवन के विविध रूपों को पनाह देता है। ये जल स्रोत विभिन्न गतिविधियों के लिए जल उपलब्ध कराने के साथ पर्यावरण पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। पृथ्वी पर जीवन के स्थायित्व के लिए जल की अहम् भूमिका है। पृथ्वी पर जल करोड़ों वर्षों तक चली क्रियाओं का परिणाम है।

पृथ्वी के जन्म के समय यानी करीब साढ़े चार अरब वर्ष पहले यहां न तो जल था और न ही जीवन । आरंभिक समय में तो पृथ्वी का तापमान इतना अधिक था कि बारिश का पानी तुरंत ही भाप बन जाता था। जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान कम होता गया, वायुमंडल में फैली हुई नमी जल में बदल कर अनवरत वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिरने लगी। इस प्रकार से वर्षा का जल पृथ्वी के विशाल गढ्ढों में इकट्ठा होने लगा । इस प्रक्रिया के अनेक वर्षों तक जारी रहने के उपरांत महासागरों का जन्म हुआ। इस प्रकार हमारी पृथ्वी का लगभग एक तिहाई भाग पानी से घिर गया और  शेष भाग ऊंचाई पर स्थित होने के कारण द्वीपों के रूप में अस्तित्व में आया।

हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। महासागरों में पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशत जल समाया है । महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे। मुख्यतया पृथ्वी पर पाँच महासागर हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, अटलांटिक महासागर, उत्तरी ध्रुव महासागर और दक्षिणी ध्रुव महासागर।  

महासागरों के नीचे भी धरती है, अतः जिस प्रकार धरती पर पर्वत एवं खाईयाँ हैं, वैसी ही महासागरों में विभिन्न स्थलाकृतियाँ हैं। समुद्र का तल अनेक प्रकार का होता है। उसमें पहाड़ियाँ, द्वीप, समतल मैदान, सागर की उठान, निमग्न द्वीप या गयोट शामिल होते हैं। महासागरों के तल को मुख्य रूप से तीन भागों महाद्वीपीय शेल्फ, महाद्वीपीय ढाल और वितल में बाँटा जाता है। महाद्वीपीय शेल्फ तट से लगा क्षेत्र होता है जिस पर भूमि का प्रभाव पड़ता है। नदियों के जल के साथ आने वाले तत्वों से यह क्षेत्र पौष्टिक तत्वों से समृद्ध रहता है। सूर्य के प्रकाश और पौष्टिक तत्वों की पर्याप्तता के कारण इस क्षेत्र में जीवों और वनस्पतियों की प्रचुरता होती है ।

अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व आसपास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रो को पनाह देते हैं जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव व वनस्पतियाँ पनपती हैं। समुद्र में प्रवाल भित्ति क्षेत्र ऐसे ही एक पारितंत्र का उदाहरण है जो असीम जैवविविधता का प्रतीक है। इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मैन्ग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं ।

हम जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति और उनके स्थायित्व में जल महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहा करता है । जल एक ऐसा मिश्रण है जिसमें जीवन बनाए रखने के गुण है। तरलता, विलेयता और विशिष्ट ऊष्माधारिता जल के मुख्य गुण हैं जो धरा पर जीवन को पोषित किए हुए है। जल की विभिन्न तत्वों को अपने में विलेय करने की असीम क्षमता जीवों, वनस्पतियों के लिए विशेष महत्व रखती है। इसी प्रकार जल की विशिष्ट ऊष्माधारिता के कारण विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है या यूँ कहें कि जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है।

पृथ्वी की समस्त ऊष्मा में जल की ऊष्मा का विशेष महत्व है। जितनी ऊष्मा एक ग्राम जल के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करेगी, उससे एक ग्राम लोहे का तापमान दस डिग्री बढ़ाया जा सकता है। अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण जल दिन में सूर्य की ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग अपने में समा लेता है। इस प्रकार अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्र ऊष्मा का भण्डारक बन जाता है। जिसके कारण विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है। पृथ्वी पर ऊर्जा के वितरण में जल का महत्वपूर्ण योगदान है । यह तो हम जानते ही है कि वाष्प के रूप में जल सामान्य जल की तुलना में अधिक गतिशील होता है। सूर्य की ऊष्मा से सतही जल वाष्प बन कर उड़ता रहता है। इस प्रकार जो ऊष्मा एक स्थान पर जल में समा जाती है वह वायु के वेग से दूर-दूर के स्थानों तक पहुंच जाती है। इस प्रकार धरती पर जीवन के लिए आवश्यक ऊष्मा का संतुलन बना रहता है।

मिट्टी

पृथ्वी पर जीवन के लिए मिट्टी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मिट्टी की नमी धारण करने की क्षमता और वनस्पतियों को जकड़े रखने के कारण जीवन के लिए मिट्टी की उपयोगिता महत्वपूर्ण है। मिट्टी या मृदा को धरती की जीवित त्वचा कहा जा सकता है। एक ग्राम मिट्टी में लाखों-करोड़ों सूक्ष्मजीव निवास करते हैं । मिट्टी में उपस्थित ये सूक्ष्मजीव मिट्टी में दबे विभिन्न पदार्थों का अपघटित करते रहते हैं।

कोई भी फसल, पेड़-पौधे आदि जो धरती पर उगते हैं उन्हें वृद्धि के लिये आवश्यक पोषक तत्व और पानी, मिट्टी से ही प्राप्त होते हैं। इन पौधों के लिये मिट्टी एक आधारभूत प्राकृतिक संसाधन है, जिससे पौधे अपनी सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। अलग-अलग जलवायु, पारितंत्र आदि में अलग-अलग मिट्टी पाई जाती है। मिट्टी को उसमें मौजूद कणों के आकार प्रकार, रंग, मूल स्त्रोतों आदि के द्वारा विभिन्न वर्गों में बाँटा गया है। मिट्टी अपने में खनिज तत्वों के साथ-साथ कार्बनिक तत्व या जैवांश तत्व भी छिपाए रहती है, इन तत्वों पर ही मिट्टी की उपजाऊ क्षमता निर्भर करती है।

मिट्टी का निर्माण आज से हज़ारों वर्ष पहले, मौसम, जलवायु, नदी के प्रवाह आदि के कारण चट्टानों के टूटने से हुआ था। चट्टानों से टूटकर निकले पत्थर के टुकड़े, वायु या पानी के प्रवाह से आपस में टकराकर और छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित हो गए और धीरे-धीरे यह छोटे-छोटे टुकड़े, धूल या मिट्टी के कणों में बदल गए। इन मिट्टी के कणों में गुण अपने मूल स्त्रोत यानी जिन चट्टानों के टूटने से वह बने हैं, उनके जैसे ही रहे।

वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में यह पता लगाया है कि मिट्टी की एक इंच मोटी ऊपरी परत बनाने में प्रकृति को 500 से 1000 वर्ष लगते हैं। अलग-अलग जलवायु में मिट्टी के स्वरूप और गुण अलग हैं। अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में वर्षा 300 मि.मी. से 1100 मि.मी. के बीच रहती है, जिस कारण इन क्षेत्रों में काफी मात्रा में मिट्टी के विभिन्न भौतिक रूप देखने को मिलते हैं। इसी तरह शुष्क क्षेत्रों में वर्षा 300 मि.मी. से कम होती है। इन क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता अत्यधिक होती है और उनमें खनिज तत्वों की भी भरमार होती है परन्तु जैवांश पदार्थ की मात्रा काफी कम होती है। हम यहाँ मिट्टी के प्रकार, रंग आदि पर बात न करके असल में यह कहना चाहते हैं कि प्रकृति ने जैसे हमें अलग-अलग प्रकार की मिट्टी दी है, उसी तरह इन मिट्टियों में पनपने के लिये विभिन्न वनस्पतियाँ भी दी हैं। जैसे शुष्क क्षेत्र में नागफनी कुल के पौधे तो तटीय क्षेत्रों में नारियल के पेड़, पहाड़ों पर देवदार के वृक्ष तो रेगिस्तान में खेजड़ी के पेड़ । प्रकृति ने हर क्षेत्र और जलवायु के अनुसार मिट्टी के अनुरूप वनस्पतियों का । बँटवारा भी किया है।

वायुमंडल

पृथ्वी पर वायुमंडल का पाया जाना इसे विशिष्ट ग्रह बनाए हुए है। इस ग्रह के वायुमंडल में विभिन्न गैसें जीवन के लिए आवश्यक एक निश्चित अनुपात में उपस्थित हैं। हालांकि आरंभिक समय में पृथ्वी पर गैसों का अनुपात अब से भिन्न था लेकिन धीरे-धीरे लाखों-करोड़ों वर्षों के दौरान पृथ्वी पर जीवन के विकास के लिए आवश्यक वायुमंडल अस्तित्व में आया। तब से लेकर अब तक पृथ्वी पर जीवन के विकास में महासागरों तथा भूमि सतह पर चलने वाली हवाओं का अहम योगदान रहा है ।

हवाएं समस्त पृथ्वी पर ऊष्मा का वितरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वायुमंडल पृथ्वी के लिए एक कंबल की तरह कार्य करता है जिससे हमारे ग्रह का औसत तापमान जीवन के लिए अनुकूल बना रहता है। किसी भी क्षेत्र की जलवायु निर्धारण में वायुमंडल का अहम स्थान होने के कारण यह हमारे जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है।

वन

वन जीवन के लिए अति आवश्यक है क्योंकि यह महत्वपूर्ण संसाधनों के प्रमुख स्रोत है। जल, लकड़ी, ताजी हवा, औषधीय पौधे, ऐसे असंख्य उपकार है, जो वन को जीवन के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं।

वन मानव समाज की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के साथ ही उस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वन जहां एक ओर मिट्टी के बनने-बनाने की प्रक्रिया में अहम् भूमिका निभाते हैं, वहीं दूसरी ओर मिट्टी के अपरदन को रोकने में भी सक्षम होते हैं। वन मिट्टी के क्षरण को रोकने के साथ भू-जल के स्तर को भी बनाए रखते हैं। जल संरक्षण के लिए वन स्पंज की तरह उपयोगी हैं, जो अत्यधिक पानी सोख लेते हैं और आवश्यकता अनुसार उसे छोड़ते भी रहते हैं। वन मिट्टी को उर्वरा बनाने के साथ पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाते है। वन हमें ताजी हवा देने के लिए अपने में काफी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस सोख लेते हैं । वन विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों के साथ संतुलन बनाते हुए पृथ्वी पर जीवन को बनाए हुए हैं और आगे भी वन जीवन को पनाह देते रहेंगे।

1 1 वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2009 के अनुसार भारत के कुल क्षेत्रफल का करीब 23.84 इलाका वनों से ढका है। भारत सन 2012 तक वन क्षेत्र को 33 प्रतिशत बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। सन् 1990 के बाद से देश में जंगलों की तादाद लगातार बढ़ रही है ।

ऊर्जा

पृथ्वी पर जीवन चक्र को गतिमान बनाए रखने में ऊर्जा की महत्वपर्ण भूमिका है। ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक महौल को बनाए रखने में सहायक होती है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी पर समस्त ऊर्जा का आधार सूर्य ही है। मानव को प्राचीन काल से ही सूर्य की जीवनदायी शक्ति का ज्ञान रहा है। पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर विकिरणों ने भूमंडलीय तापमान को औसत स्तर पर बनाए रखा है। इस तापमान ने जल की तरल अवस्था बनाए रखने में मदद की है। जल की तरल अवस्था के कारण पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए एक अनुकूल महौल निर्मित हुआ था। सूर्य की ऊर्जा ही वायुमंडल और जलमंडल को गतिशील बनाए रखने के साथ जल चक्र जैसी अनेक प्रक्रियाओं को गति प्रदान करती है।

ऊर्जा स्रोतों को दो वर्गों पारंपरिक और अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों में बांटा गया है। पृथ्वी पर पारंपरिक ऊर्जा स्रोत जैसे कोयला, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल आदि जीवाश्म ईंधनों की अपनी एक सीमा है, मतलब धरती में यह एक सीमित मात्रा में उपलब्ध है। जीवाश्म ईंधनों की सीमित मात्रा को देखते हुए आज विश्व का ध्यान ऊर्जा के दूसरे साधनों यानी अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की ओर आकर्षित हो रहा है। अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों यानी अक्षय ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पन ऊर्जा और जैव ईंधन ऊर्जा आदि स्रोत शामिल हैं।

भारतीय संसाधन विश्व की तुलना में

विश्व की पूरी आबादी में भारतीय आबादी की हिस्सेदारी 16.7 प्रतिशत है। जबकि संसाधनों की हिस्सेदारी देखें तो इसके हिस्से दुनिया की जमीन का 2.4 फीसदी ही आता है। स्वच्छ जल संसाधन का 3.5 फीसदी हिस्सा ही भारत के पास है। अमेरिका के वन क्षेत्र की तुलना भारतीय वन क्षेत्र मात्र एक तिहाई है। प्रति व्यक्ति प्रदूषण के माप से भारत का प्रदूषण विश्व में बेहद कम है। पिछले एक दशक के दौरान भारत का ग्रीन हाउस उत्सर्जन लगभग दो गुना है फिर भी यह अमेरिका की तुलना में 76 फीसदी कम है।

संतुलनों पर टिका जीवन

पृथ्वी पर जीवन विविध संतुलनों का परिणाम है। इस अनोखे ग्रह पर हर एक कारक के संतुलित मात्रा में होने से यहां जीवन कायम है। पृथ्वी ग्रह पर मिलने वाले हवा, जल और मिट्टी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की संतुलित मात्रा इस ग्रह पर जीवन की प्रचुरता का कारण है। हमारी धरती विभिन्न अद्भुत और जटिल संयोगों के द्वारा जीवन को पनाह दिए हुए है। अनेक संतुलनों के कारण ही यह पृथ्वी जीवनदायी ग्रह बना हुआ है और इस ग्रह के इस रूप को बरकरार रखने के लिए हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम यहां उपस्थित विभिन्न प्राकृतिक संतुलनों का सम्मान करते हुए प्रकार की छेड़छाड़ न करें अन्यथा पृथ्वी पर जीवन खतरे में पड़ सकता है।

स्रोत:- प्रदूषण और बदलती आबोहवाः पृथ्वी पर मंडराता संकट, श्री जे.एस. कम्योत्रा, सदस्य सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा प्रकाशित
मुद्रण पर्यवेक्षण और डिजाइन : श्रीमती अनामिका सागर एवं सतीश कुमार

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