शंका है कि नॉनस्टिक कड़ाहियां या फ्राइंग पैन हमारे वातावरण में एक ऐसा रसायन छोड़ रही हैं जो प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होता। आम तौर पर कड़ाही को नॉनस्टिक बनाने के लिए उन पर टेफ्लॉन जैसे किसी पॉलीमर का लेप चढ़ाया जाता है। कनाडा के वैज्ञानिकों ने बताया है कि गर्म करने पर टेफ्लॉन विघटित होकर ट्राई फ्लोरो एसीटिक एसिड (टी.एफ.ए.) बनाता है। टी.एफ.ए. एक अत्यंत स्थिर यौगिक है जो पर्यावरण में बना रहता है। उनका कहना है कि राष्ट्र संघ ने जिन 12 सबसे घातक रसायनों की सूची जारी की है, टी.एफ.ए. उन सबसे ज़्यादा खतरनाक है। वैसे टेफ्लॉन का उपयोग शल्यक्रिया की सुइयों तथा इंजन में भी किया जाता है।
अब तक वैज्ञानिक गण पर्यावरण में टी.एफ.ए. की बढ़ती मात्रा का दोष हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स नामक गैसों को दिया करते थे। ये गैसें क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स के स्थान पर प्रयुक्त की जाती हैं क्योंकि क्लोरोफ्लोरो कार्बन ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचाती है। किन्तु देखा यह गया है कि बड़े शहरों की हवा में जितना टी. एफ.ए. होता है
उसकी व्याख्या मात्र हाइड्रो क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स के आधार पर नहीं की जा सकती। लिहाज़ा कनाडा के वैज्ञानिकों ने इसके वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में फ्लोरोन युक्त पॉलीमर की छानबीन शुरू की हैं । खास तौर से उन्होंने उन उपकरणों पर ध्यान केन्द्रित किया जिन्हें उपयोग के दौरान गर्म किया जाता है। अब इन चीज़ों को गर्म करके उनसे निकलने वाली गैसों को एकत्रित किया गया। देखा गया कि इनमें से एक गैस ट्रोपोस्फीयर की गैसों से क्रिया करके टी.एफ.ए. बना सकती है।
पर्यावरण मॉडलों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि फ्लोरीनयुक्त पॉलीमर दोषी हो सकते हैं। दरअसल नॉनस्टिक पैन तथा अन्य उपकरणों से जितनी टी.एफ.ए. अपेक्षित है वह टोरोन्टो की बारिश में इसकी मात्रा से मेल खाती है। वैसे अच्छी बात यह है कि टी. एफ.ए. उतना विषैला नहीं है। इन्सानों के लिए तो यह हानि रहित है।
स्रोत -स्रोत फीचर्स, दिसम्बर 2001
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