इन दिनों गोवा की राजधानी पणजी के बाहरी इलाके चिंबेल के निवासी महेंद्र विनायक देसाई को समुद्री भोजन खरीदने के लिए, सुबह कुछ जल्दी ही उतना पड़ता है। 68 वर्षीय हारमोनियम वादक और प्रेरक वक्ता देसाई कहते हैं, 'मैं अपने इलाके में बर्फ में रखी मछली खरीदने के बजाय ताजी मछली के लिए 9 किलोमीटर की यात्रा करना पसंद करूंगा।'
गोवा से 2,000 किलोमीटर से अधिक दूर कोलकाता की 60 वर्षीय निवासी जुधिका बिस्वास को भी ताजा समुद्री भोजन खरीदने में कठिनाई होने लगी है। कुछ किस्म की मछलियां दुर्लभ भी होती जा रही हैं। पश्चिम बंगाल के अधिकांश हिस्से, पूर्वी तथा पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों में कुछ महीने पहले तक मछली के लिए इतनी समस्या नहीं थी, पर लू की श्रृंखला ने मुश्किलें खड़ी कर दीं। गरमी बढ़ी है, लंबे समय तक रहने लगी है और बार-बार लौटने लगी है। ऐसा लगभग पूरे देश में हुआ है और इससे कमजोर लोगों की मौत भी हुई है।
जलस्रोत का तापमान भी बढ़ रहा है
आज जंगलों में बहुत आग लग रही है और अधिकतम तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता जा रहा है। जून के शुरू होने से पहले ही करीब 80 लोगों की मौत हो गई थी। मछुआरे परेशानी में हैं, पानी के अंदर का जीवन भी नष्ट हो रहा है। बढ़ते तापमान से अंतर्देशीय जलस्रोत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान गोवा के मत्स्य वैज्ञानिक त्रिवेश महेकर के अनुसार, झीलों और तालाबों में चिंताजनक रूप से 2-5 प्रतिशत मछलियां नष्ट हो चुकी है। महेकर बताते हैं, 'गरम पानी का तापमान घुलनशील ऑक्सीजन के स्तर को घटा सकता है और हानिकारक शैवाल को भी बढ़ा सकता है।'
महेकर के मुताबिक, सामान्य तौर पर खेती, मीठे पानी या खारे पानी की मछली के पनपने के लिए आदर्श जल स्तर 1-1.5 मीटर होना चाहिए, पर इस साल जिन तालाबों का वह अध्ययन कर रहे हैं, उनमें पानी का स्तर एक मीटर से भी कम हो गया है। असहनीय तापमान के कारण जल स्तर 67- 75 सेंटीमीटर कम हो गया है, जिसके चलते जलजीवों की मौत हो रही है। अगर तापमान हर साल इसी तरह बढ़ता रहा, तो मृत्यु दर का बोझ बढ़ना भी तय है। सिर्फ तालाबों और झीलों का ही नहीं, अक्टूबर 2023 के बाद से समुद्री हॉटवेव, के कारण भी जलजीवन प्रभावित हुआ है। जलजीव आवश्यक पोषक गत्यों से वंचित होने लगे हैं।
बढ़ते तापमान से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, आजीविका और जैव विविधता, तीनों को खतरा
बढ़ते तापमान से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, आजीविका और जैव विविधता, तीनों को खतरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक चलने वाली गर्म लहरें जल निकायों में ऑक्सीजन घटा देती हैं और बीमारियों की वजह भी बनती हैं। ये दोनों प्रभाव मिलकर न सिर्फ मछलियों में मृत्यु दर बढ़ाते हैं, बल्कि प्रजनन पर भी असर डालते हैं।इस बीच, कीमत के लिहाज से भारत के मछली निर्यात में भी गिरावट आई है। सीफूड एक्सपोर्टर्स 'एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, 2023- 24 में निर्यात 2022-23 के लगभग 8 अरब डॉलर से गिरकर 7.5 अरब डॉलर हो गया है।
समुद्री और मीठे पानी की मछली की मृत्यु दर में वृद्धि भारत के लिए बहुत चिंताजनक बदलाव है। वैश्विक उत्पादन का 8 प्रतिशत हिस्सा भारत से आता है और चीन, इंडोनेशिया के बाद भारत का ही स्थान है। मत्स्य पालन क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विदेशी मुद्रा आय में प्रमुख योगदान देता है।
पानी पर जो खतरा है, उससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ सकता है। देखने की बात है कि साल 2022-23 में भारत ने 17.5 मिलियन टन समुद्री और अंतर्देशीय मछली का उत्पादन किया, जिसमें नदियों का योगदान लगभग 75 प्रतिशत था। मतलब, समुद्र ही नहीं, हमारी नदियां भी हमारी अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत आधार की तरह काम करती रही हैं।
चिंता बढ़ रही है, पिछले साल की तुलना में चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-जून में घरेलू उत्पादन कम से कम 15 प्रतिशत कम है। मत्स्य पालन विशेषज्ञ और वैज्ञानिक इस गिरावट का श्रेय दक्षिणी भारत में लंबे समय तक सूखे और भीषण गर्मी को देते हैं, जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे जल प्रदूषण की स्थिति भी और खराब हो सकती है। उन्होंने कहा कि पूर्वानुमान निराशाजनक है, उन्होंने कहा कि झीलों, तालाबों और जलाशयों में मछलियां हीटवेव के प्रति अधिक संवेदनशील है और अगर आने वाले वर्षों में तापमान बढ़ता रहा, तो उनकी मृत्यु दर और बढ़ सकती है। साल 2022 के एक अध्ययन में समरकिल (गर्म तापमान से जुड़ी मृत्यु दर), विंटरकिल के कारण दुनिया भर में साल 2100 तक मछलियों की सामूहिक मौत की आवृत्ति में छह गुना वृद्धि की भविष्यवाणी की गई है। जल से मिलने वाला भोजन जब कम होगा, तब महंगाई भी व्यापक रूप से बढ़ेगी।
स्रोत - हिन्दुस्तान, 19 जून 2024, देहरादून संस्करण
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