उत्तराखण्ड मे जल मग्न क्षेत्र उधम सिंह नगर एवं हरिद्वार जिले के कुछ भागो मे पाया जाता है। इन क्षेत्रो में भूमि जल स्तर पौधों की जड़ो की गहराई के ऊपर होता है (जलमग्नता) अथवा वर्ष की कुछ अवधियों, जैसे वर्षा ऋतु में ऊपर हो जाता है, वहाँ भूमिगत हवा का अभाव हो जाता है, जिसके कारण जड़े अच्छे ढंग से पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर पाती हैं और पौधों की वृद्धि में बाधा पड़ती है। भूमि जल को निकालने तथा इस अतिरिक्त जल की सतह को पौधों की जड़ो की गहराई की सतह से नीचे बनाए रखने की क्रिया को अवपृष्ठीय जल निकास कहते हैं। भूमिगत जल-निकास (चित्र 10.1) नालियॉ बिछाकर जल की निकासी की जाती है। इन भूमिगत जल-निकास नालियों की गहराई तथा एक लाइन से दूसरी लाइन की दूरी जल निष्कासन की आवश्यकता के अनुसार रखी जाती है। इससे मूल क्षेत्र में उपयुक्त वातन बनाए रखने एवं पौधों की उचित वृद्धि होने में सहायता मिलती है। जिससे एक फसल के स्थान पर विभिन्न प्रकार की फसलो का उत्पादन सम्भव है। ये नालियॉ विभिन्न प्रकारों की होती है, उदाहरणार्थ, छोटे-छोटे मृतिका (बसंल) या कंक्रीट तथा प्लास्टिक के वृत्ताकार पाइपों की नाली (जिन्हें टाइल कहते हैं), बिल नालियाँ अथवा छिद्रित पाइप। टाइल मृत्तिका या कंक्रीट के पाइप होते हैं, जिनकी लम्बाई प्रायः 30 सेंटीमीटर तथा आन्तरिक व्यास 7.5 से 15 सेंटीमीटर होता है। प्लास्टिक पाइप से बनी करूगेटेड पाइपों की लम्बाई प्रक्षेत्र विशेष में अवपृष्ठीय जल निकास लाइन के अनुसार कम अधिक की जा सकती है। ये पाइप उचित गहराई पर खोदी गई नाली में एक के बाद एक लगभग सटाकर बिछाए जाते है। उसके बाद नाली को खोदी गई मिट्टी या अधिक पारगम्यता वाली मिट्टी से सतह तक भर देते हैं।
दरार की चौड़ाई: दो पाइपों के बीच के रिक्त स्थान को दरार की चौड़ाई ( Crack Width) कहते हैं। भूमिगत जल इसी स्थान से होकर पाइप लाइन में आता है। विभिन्न मृदाओं के लिए दरार की चौड़ाई निम्नलिखित विवरण के अनुसार रखी जाती हैः
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मृदा |
दरार की चौड़ाई |
1. |
मृतिका |
3-6 मिलीमीटर |
2. |
दुमट |
3 मिलीमीटर |
3. |
बलुई मृदा |
लगभग पूर्णतया सटाकर |
यदि टाइल के सिरों की आकृति के ठीक न होने के कारण दरार की उक्त चौड़ाई रखना सम्भव न हो, तो जोड़ को चारो ओर से बजरी अथवा दूसरे छन्नक (फिल्टर) जैसे प्लास्टिक की जाली, कृत्रिम फाइबर से ढक देना चाहिए।
स्रोत- उत्तरांखण्ड सरकार
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