फरक्का हटाओ, बिहार बचाओ


फरक्का बराज के कारण गंगा का पेट गाद से लबालब भर गया है। जिसकी वजह से बिहार को प्रतिवर्ष बाढ़ का कहर झेलना पड़ता है। वस्तुतः गंगा की बीमारी उसके पेट में है और इलाज किनारे-किनारे हो रहा है। फरक्का बराज को तोड़े बिना न तो बिहार को बाढ़ से बचाया जा सकता है और न ही गंगा का अविरल बहाव सम्भव है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंगा-बाढ़ और फरक्का बराज के खिलाफ इस माह के अंत में देश-दुनिया के विशेषज्ञों को एकत्रित करने का कार्यक्रम बनाया है। नीतीश कुमार का कहना है कि भारत सरकार फरक्का को बंद करे या वैसी व्यवस्था हो जो सिल्ट (गाद) को रोके, जिससे गंगा का बहाव बाधित न हो। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘यथावत’ को बताया कि ‘वे दो-दो बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फरक्का पर बातचीत कर चुके हैं।’ फरक्का से गंगा नदी की अविरल धारा रुक गई है। फरक्का के कारण गंगा का पेट गाद से लबालब भर गया है। बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ के आतंक को झेलना पड़ता है। इससे बचने के लिये फरक्का बाँध को समाप्त करना पड़ेगा।

गंगा हमारी माता है, जीवनदायनी है, हमारी पवित्र संस्कृति और पहचान है। क्या गंगा माँ को अविरल नहीं बहना चाहिए? कौन है जो गंगा को अपवित्र कर रहा है? यह जगजाहिर बात है कि बिहार में प्रतिवर्ष करोड़ों बिहारियों को बाढ़ से करोड़ों का नुकसान होता है? प्रत्येक वर्ष तकरीबन छह माह सरकार और बिहार वासियों को बाढ़ के प्रकोप का सामना करना पड़ता है। लाखों घर जलमग्न हो जाते हैं। लाखों लोगों को बेघर होना पड़ता है, हजारों पशुओं को बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ती है, आखिर क्यों?

इस बाबत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि फरक्का बराज बिहार के लिये प्रतिवर्ष कहर बनकर आता है। जब से मैं मुख्यमंत्री हूँ तभी से यह माँग कर रहा हूँ। गत दस वर्षों से बदस्तूर केंद्र सरकार को कह रहा हूँ। लेकिन फरक्का पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। केंद्र सरकार बराबर रिजरवायर बनाने की बातें कर रही है। बिहार के बक्सर के ऊपर उत्तर प्रदेश में रिजरवायर बनाने का प्रस्ताव है। अगर गंगा के प्रवाह को रोका गया तो गंगा के जल की गुणवत्ता और खराब हो जाएगी।

पर्यावरण को बचाने के लिये गंगा का अविरल बहाव जरूरी है। केंद्र सरकार इस बात का अध्ययन करा सकती है कि सिल्ट से गंगा की गहराई घट गई है। जिसकी वजह से बिहार में बाढ़ की कहर हर साल बढ़ती जा रही है। बिहार में 2016 में पहली बार बख्तियारपुर तक बाढ़ का कहर था। लेकिन इसे कभी बिहार के बख्तियारपुर में नहीं देखा गया।

जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि गंगा की बीमारी पेट में है और इलाज किनारे-किनारे हो रहा है। फरक्का बराज को तोड़े बिना गंगा का कल्याण एवं अविरल बहाव सम्भव नहीं है। राजेन्द्र सिंह ने भी माना कि इस सिलसिले में नीतिश कुमार का यह आंदोलन उचित है। यहाँ यह जानना लाजिमी होगा कि सम्पूर्ण भारत में गंगा एवं नदियों के अविरल बहाव के लिये जगह-जगह बाँध तोड़ा जा रहा है। अक्षधर फाउंडेशन और जन-जन जोड़ो अभियान के तहत पिछले साल 2016 में 21 नवम्बर से 1 फरवरी, 2017 तक दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान से फरक्का तक चेतना यात्रा चली। मकसद था पानी के प्राकृतिक स्रोतों को समझना। यात्रा दल का साफ मानना है कि फरक्का को तोड़े बिना गंगा का कल्याण नहीं हो सकता। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी सपना था- गंगा को अविरल बहने दो, लेकिन नमामि गंगा में उनका सपना कभी पूरा न हो सकेगा।

इसे समझने के लिये गंगा यात्रा जरूरी है। जिन्हें भी गंगा को समझना है, और फरक्का से बिहार की बर्बादी की कहानी को समझना है, उन्हें बिहार के बक्सर के चौसा से फरक्का बाँध तक की गंगा के किनारे की यात्रा करनी चाहिए। न जाने क्यों, नमामि गंगे की अभियान में बिहार की इस त्रासदी को क्यों नहीं समझा जा रहा है?

त्रासदियों के आँकड़े


2016 में बाढ़ से करीब 32 जिलों के 195 प्रखंड के 1500 पंचायत के 4900 गाँव और करीब 92 लाख लोग प्रभावित हुए। तकरीबन 5400 पशु-पक्षियों की मौत, 212 कच्चा मकान, 2900 पक्का मकान तकरीबन साढ़े तीन लाख चौसठ हजार हेक्टेयर फसल और आठ हजार नौ सौ उन्हत्तर हेक्टेयर में मौसमी फसल, आम, केला, कटहल, मखाना आदि नष्ट हुए थे। बिहार ने केंद्र सरकार को तकरीबन साढ़े बयालिस हजार करोड़ सहायता के लिये ज्ञापन सौंपा है। केंद्र सरकार इस ज्ञापन पर सर्वेक्षण करा रही है।

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