पदयात्रियों का जत्था जब जोरी गांव पहुंचा तो वहां पता चला कि वन माफियाओं द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को पैसा देकर पेड़ कटवाये जाते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों कुल्हाड़ियां पेड़ों पर पड़ती हैं, जिससे आसपास की पहाड़ियां नंगी हो चुकी हैं। जिस झारखंड में थोड़ी गर्मी होते ही बारिश होती थी, वहां के लोग पीने के पानी के लिए जूझ रहे हैं। यात्रा के दौरान पदयात्रियों ने जलस्तर बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे मेड़ बनाने, तालाब की उड़ाही करने, बहते पानी को ठहराकर उससे खेतों की सिंचाई करने के तरीके बताये।
फल्गु नदी को बचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के कार्यकर्ता कौशलेन्द्र नारायण ने शहर के बुद्धिजीवियों व आमलोगों को एकत्र कर ‘फल्गु रक्षा मंच’ का निर्माण किया। इसकी पहली बैठक में फल्गु के उद्गम स्थल से समागम स्थल की यात्रा का प्रस्ताव हुआ। इसका नाम ‘फल्गु मुक्तिदायनी यात्रा’ रखा गया। यह यात्रा 1 अगस्त को सिमरिया के पठार से शुरू होकर 17 अगस्त, 2011 को धनरूआ के पभेड़ी में जाकर समाप्त हुई। फल्गु जिसे सलिवा नदी भी कहते हैं, पहले से ही मां सीता के श्राप से शापित व दुखी थी, अब उसे कलयुगी लोगों की नजर भी लग गई। पहले जहां एक बीत्ता गहराई खोदते ही जल निकल आता था, वहां पचासों फीट खोदने पर पानी का मिलना मुश्किल हो गया है। भू-माफिया नदी के किनारे कब्जा कर घर बनवाने में लगे हैं। नदी के दोनों किनारों पर हजारों की संख्या में घर बने हैं, जिससे नदी सिकुड़ती जा रही है। राज्य सरकार के निर्देशानुसार फल्गु से बालू निकालने का टेंडर (ठेका) निकाला जाता है। यह 2011 में 9 करोड़ 55 लाख तक पहुंचा। प्रत्येक दिन 500 से 1000 ट्रेक्टर बालू निकाला जा रहा है। ये कितनी गहराई से निकाला जा रहा है, खनन विभाग को पता नहीं है। इस संबंध में पर्यावरणविदों का कहना है की 3 से 4 फीट बालू डाइसैण्ड है, जो फिल्टर का कार्य करता है। इस तरह बालू को हटा लेने से पानी बगैर फिल्टराईज हुए धरती में प्रवेश हो रहा है, जिससे पूरे शहर का पानी प्रदूषित हो रहा है।
फल्गु की यह दुर्दशा देख नदी को बचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के कार्यकर्ता कौशलेन्द्र नारायण ने शहर के बुद्धिजीवियों व आमलोगों को एकत्र कर ‘फल्गु रक्षा मंच’ का निर्माण किया। इसकी पहली बैठक में फल्गु के उद्गम स्थल से समागम स्थल की यात्रा का प्रस्ताव हुआ। इसका नाम ‘फल्गु मुक्तिदायनी यात्रा’ रखा गया। यह यात्रा 1 अगस्त को सिमरिया के पठार से शुरू होकर 17 अगस्त, 2011 को धनरूआ के पभेड़ी में जाकर समाप्त हुई। सिमरिया पठार में यात्रा का उद्धाटन स्थानीय ग्रामीणों में सज्जन व वृद्ध आदिवासी परिवार के सदस्य ने किया। सिमरिया पठार के ग्रामीणों ने बताया की पहले पठार के दोनों किनारे जंगल था। काफी संख्या में पेड़ थे, जिन्हें टंडवा गांव के लोगों ने काट डाला। मना करने पर वे झगड़ा करने पर उतारू हो जाते हैं। क्योंकि संख्या में ये लोग गांव के लोगों से पांच गुणा ज्यादा हैं, इसलिए डरकर ये इन्हें रोक नहीं पाते। यहां बारिश न होने की यही वजह है।
जंगल कटने का दर्द आम लोग भी महसूस करते हैं। पदयात्रियों का जत्था जब जोरी गांव पहुंचा तो वहां पता चला कि वन माफियाओं द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को पैसा देकर पेड़ कटवाये जाते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों कुल्हाड़ियां पेड़ों पर पड़ती हैं, जिससे आसपास की पहाड़ियां नंगी हो चुकी हैं। जिस झारखंड में थोड़ी गर्मी होते ही बारिश होती थी, वहां के लोग पीने के पानी के लिए जूझ रहे हैं। यात्रा के दौरान पदयात्रियों ने जलस्तर बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे मेड़ बनाने, तालाब की उड़ाही करने, बहते पानी को ठहराकर उससे खेतों की सिंचाई करने के तरीके बताये।
10 अगस्त, 2011 को हिन्दुओं के पावन तीर्थ गयाजी में फल्गु के देवघाट पर पंचायत का आयोजन किया गया, जिसे ‘फल्गु पंचायत’ का नाम दिया गया। इस पंचायत में उपस्थित गया वासियों से सीधे-सीधे प्रश्न किये गये व उनके जवाब लिखे गये। वहीं फल्गु रक्षा मंच द्वारा कई निर्णय लिए गए, जिसमें फल्गु को जलयुक्त करने हेतु बीयर बांध बनाने का प्रस्ताव दिया गया पर प्रारंभिक रूप में दो काम करने का निर्णय पंचायत में हुआ। एक, मंच के लोग फल्गु में न तो स्वयं कूड़ा फेंकेंगे और न किसी को फेंकने देंगे। दूसरा, फल्गु के दोनों किनारे वृक्ष लगाना व देवघाट पर पुन: महापंचायत लगाना। कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवी, गयापाल पंडे व पर्यावरणविद् मौजूद थे।
फल्गु रक्षा मंच द्वारा डीएफओ आलोक कुमार के सहयोग से फल्गु किनारे वृक्ष लगाने का निर्णय भी किया गया है। साथ ही वन विभाग द्वारा वनमहोत्सव में मंच के सदस्यों को आमंत्रित भी किया गया है। यह लड़ाई फल्गु को अतिक्रमण मुक्त बनाने, जलयुक्त बनाने तक अनवरत जारी रहेगी। इन कार्यों को सफल बनाने में अध्यक्ष शिशुपाल कुमार, उपाध्यक्ष प्रेम कुमार और डा. कृष्ण प्रसाद का योगदान रहा।
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