टिहरी गढ़वाल में भिलंगना नदी पर आंध्रप्रदेश की स्वास्ति कंपनी द्वारा बनाई जा रही 22.5 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में न्यायालय ने अब अपना रुख कड़ा कर लिया है। प्रदेश सरकार और केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ना-नुकुर को देखते हुए अब न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति यू.सी. ध्यानी की खंडपीठ ने केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण सचिव को 3 नवम्बर को व्यक्तिगत रूप से अदालत में मौजूद रहने का आदेश दिया है।
उत्तराखंड में बनने वाली 500 से अधिक जल विद्युत परियोजनाओं में अधिकांश को लेकर स्थानीय जनता में नाराजगी है। कई जगह जबर्दस्त प्रतिरोध चल रहे हैं। मंदाकिनी घाटी में लार्सन एंड टूब्रो कम्पनी द्वारा रुद्रप्रयाग प्रशासन की मदद से किये जा रहे अमानवीय दमन के बावजूद वहाँ जमीनी संघर्ष बहुत तेज है। जनवरी-फरवरी में दो आन्दोलनकारियों, सुशीला भंडारी और जगमोहन झिंक्वाण को एक महीने तक जेल में रखने के बावजूद आन्दोलनकारियों का हौसला टूटा नहीं है। अब तो देश भर के आन्दोलनकारियों की नजर भी मंदाकिनी घाटी में चल रहे आन्दोलन पर है। इससे पूर्व बागेश्वर जनपद में कपकोट के सौंग नामक स्थान में सरयू नदी पर ‘उत्तर भारत पावर कॉर्पोरेशन’ द्वारा बनाई जा रही परियोजना को लेकर ग्रामीणों ने महीनों तक आन्दोलन किया और बावजूद इसके कि सरकार और जन प्रतिनिधि परियोजना के पक्ष में थे, आगे का काम रुकवा दिया। किन्तु जल विद्युत परियोजना को लेकर सबसे पहला उल्लेखनीय प्रतिरोध फलेंडा में ही हुआ, जहाँ चेतना आन्दोलन के त्रेपन सिंह चौहान के साथ ग्रामीणों ने जबर्दस्त संघर्ष किया और जबर्दस्त दमन भी झेला। इस संघर्ष से अन्यत्र भी लोगों को जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध करने का हौसला मिला। हालाँकि फलेंडा जल विद्युत परियोजना का काम आगे चलता रहा, लेकिन उत्तराखंड महिला मंच और पी.यू.सी.एल. की एक जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय में सुनवाई भी होती रही। इसी वर्ष 26 फरवरी को न्यायालय ने केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंचालय से पूछा था कि उसने कैसे 11 मेगावाट की परियोजना को बगैर पूरी कार्रवाही किये बगैर बढ़ा कर 22.5 मेगावाट की करने की अनुमति दे दी, इस पर तीन माह के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं दी, अतः रुष्ट होकर न्यायालय ने अब मंत्रालय के सचिव को तलब किया है।
वस्तुतः प्रदेश में बनने वाली अधिकांश परियोजनायें कांग्रेस या भाजपा सरकारों द्वारा अपने पार्टी फंड के लिये चन्दा जुटाने के लिये बनाई जा रही है, उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिये नहीं। इस दुरभिसंधि में प्रदेश सरकार के साथ केन्द्र सरकार की भी सहमति रहती है।
उत्तराखंड में बनने वाली 500 से अधिक जल विद्युत परियोजनाओं में अधिकांश को लेकर स्थानीय जनता में नाराजगी है। कई जगह जबर्दस्त प्रतिरोध चल रहे हैं। मंदाकिनी घाटी में लार्सन एंड टूब्रो कम्पनी द्वारा रुद्रप्रयाग प्रशासन की मदद से किये जा रहे अमानवीय दमन के बावजूद वहाँ जमीनी संघर्ष बहुत तेज है। जनवरी-फरवरी में दो आन्दोलनकारियों, सुशीला भंडारी और जगमोहन झिंक्वाण को एक महीने तक जेल में रखने के बावजूद आन्दोलनकारियों का हौसला टूटा नहीं है। अब तो देश भर के आन्दोलनकारियों की नजर भी मंदाकिनी घाटी में चल रहे आन्दोलन पर है। इससे पूर्व बागेश्वर जनपद में कपकोट के सौंग नामक स्थान में सरयू नदी पर ‘उत्तर भारत पावर कॉर्पोरेशन’ द्वारा बनाई जा रही परियोजना को लेकर ग्रामीणों ने महीनों तक आन्दोलन किया और बावजूद इसके कि सरकार और जन प्रतिनिधि परियोजना के पक्ष में थे, आगे का काम रुकवा दिया। किन्तु जल विद्युत परियोजना को लेकर सबसे पहला उल्लेखनीय प्रतिरोध फलेंडा में ही हुआ, जहाँ चेतना आन्दोलन के त्रेपन सिंह चौहान के साथ ग्रामीणों ने जबर्दस्त संघर्ष किया और जबर्दस्त दमन भी झेला। इस संघर्ष से अन्यत्र भी लोगों को जल विद्युत परियोजनाओं का विरोध करने का हौसला मिला। हालाँकि फलेंडा जल विद्युत परियोजना का काम आगे चलता रहा, लेकिन उत्तराखंड महिला मंच और पी.यू.सी.एल. की एक जनहित याचिका पर उच्च न्यायालय में सुनवाई भी होती रही। इसी वर्ष 26 फरवरी को न्यायालय ने केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंचालय से पूछा था कि उसने कैसे 11 मेगावाट की परियोजना को बगैर पूरी कार्रवाही किये बगैर बढ़ा कर 22.5 मेगावाट की करने की अनुमति दे दी, इस पर तीन माह के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं दी, अतः रुष्ट होकर न्यायालय ने अब मंत्रालय के सचिव को तलब किया है।
वस्तुतः प्रदेश में बनने वाली अधिकांश परियोजनायें कांग्रेस या भाजपा सरकारों द्वारा अपने पार्टी फंड के लिये चन्दा जुटाने के लिये बनाई जा रही है, उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिये नहीं। इस दुरभिसंधि में प्रदेश सरकार के साथ केन्द्र सरकार की भी सहमति रहती है।
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