फिलिस्तीन को इजराइली प्रौद्योगिकी ने बेपानी बनाया है

फिलिस्तीनी क्षेत्रों में पड़ा सूखा (source -flicker india waterportal)
फिलिस्तीनी क्षेत्रों में पड़ा सूखा (source -flicker india waterportal)

बहुत सीधी-सरल, बड़े दिल वाली फिलिस्तीनी बहिन आइदा शिबली और साड़ दागेर मेरे अद्भुत दोस्त बन गए हैं। यहां मेवों से भरे-पूरे बड़ी-बड़ी जेबों वाले, बड़े-बूढ़े महिला-पुरुष गजब के हैं। बहुत ही सुन्दर पोशाकों में पुरानी रीति-रिवाजों को मानने वाले फिलिस्तीनी भाई-बहिनों ने मेरा मन मोह लिया। घर खाली, पर दिल भरा हुआ, रेगिस्तानी गाजा क्षेत्र के घर में जाकर उनकी बकरी, भेड़, ऊंट सभी की मिश्रित सुगन्ध मेरे जैसे किसानी करने वाले वैद्य को मोह लेती है। मेरी पढ़ाई के दिनों में भेषज कार्यशाला जैसी औषधि सुगंध से भरा घर है, मेरा विद्यार्थी जीवन का मुझे यहां स्मरण आ गया।

सादा आचार-विचार, सरल आहार-विहार, अपनी ऊंट, बकरी सभी कुछ सीमित जलसंकट से अब फिलिस्तीनी उजड़ कर बाहर जाने के लिए तरस रहे हैं।मिट्टी से जुड़े होने के बावजूद, जल नहीं होना, इन्हें अपनी जमीन और जमीर से अलग कर रहा है। अब ये किसी तरह फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, यूके. आदि देशों के शहरों में जाते हैं, तो वहां भी ‘जलवायु परिवर्तन शरणार्थी’ कहलाकर अपमानित होते ही रहते हैं।

इन्हें लगभग एक सौ वर्षों में बहुत अपमानित होना पड़ा है। अपमान के कारण टूटने पर भी इनका दिल छोटा नहीं हुआ। अभी पुरानी खेती और बीज कुछ भी जलसंकट के कारण बचा ही नहीं है। इनके पढ़े लिखे लोगों ने आधुनिकता का रास्ता दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आधुनिकता जहां सीखी वहां पर्याप्त जल था। फिलिस्तीन को उसी प्रौद्योगिकीय आधुनिकता ने बेपानी बनाकर उजाड़ने हेतु मजबूर कर दिया।

इन्हें अपना ही जल इजराइल से बहुत महंगा खरीदकर जीना बहुत कठिन हुआ है। तभी यह शरणार्थी बनकर यूरोप में घुसे हैं। यूरोप भी मांसाहारी है। यूरोप जाना इन्हें अच्छा नहीं लगा था। इनकी मजबूरी बना था। यूरोप जाना इनकी जीविका की मजबूरी है।

यूरोप इन्हें अब बहुत बड़ा बोझ मान रहा है। बोझ मानकर ही इनके साथ जी रहा है। फिलिस्तीन के साथ इजराइल का अनैतिक व्यवहार होने से बहुत अपमान और अन्याय इस देश ने भुगता है। आखिर इस देश में कंपनियों की व्यापारिक आधुनिक खेती ने ही इन्हें उजड़ने हेतु मजबूर किया है। क्योंकि इनके जल पर इजराइल बहुत ही मंहगे दामों पर इन्हें जल बेचता है। वह इनकी खेती से पूगता (मिलता) नहीं है।

इनकी पुरानी खेती तो कम जल में अधिक पोषक तत्व इन्हें प्रदान करती ही थी। किन्तु अब करार खेती ने इन्हें उजाड़ दिया है। मूल कारण इजराइल की मंहगी प्रौद्योगिकी से उपचारित जल-मूल्य आधारित खरीद है। इस देश में इजराइल द्वारा की गई गोलाबारी, लड़ाई-झगड़े ही है। ऊपर से वहीं के बीज, खाद, दवाई, जल प्रौद्योगिकी, सभी में लूटकर ये लाचार-बेकार और बीमार बन गए हैं।

इजराइल की अतिक्रमण नीति ने इसे सुरक्षा प्रौद्योगिकी वाला देश भी बना दिया। उससे भी फिलिस्तीन भयभीत हैं। क्योंकि इसकी सुरक्षा के नाम पर भी इस देश ने भारत की भी अब लूट शुरू की है। फिलिस्तीन तो अपने पड़ोसी की अनैतिकता और अन्याय से त्रस्त (दुखी) है। भारत इजराइल से दोस्ती का हाथ बढ़ाने हेतु उसकी सुरक्षा और जल प्रौद्योगिकी खरीद रहा है।

पड़ोसी का अन्याय अनैतिकता तो भय-अतिक्रमण शोषण करके उजाड़ती ही है। वही फिलिस्तीन के साथ हुआ है। यह शोषित राष्ट्र है। शोषणकर्ता पड़ोसी ही है। इजराइल ने इसे जल, अन्न, दवाई, पढ़ाई, सभी को चोरी-छिपे बेचकर लूट लिया और कंगाल बना दिया है। अब इसे पूर्णतः कब्जा करने वाली चाल चल रहा है।

पड़ोसी ने बेपानी बनाकर फिलिस्तीन को उजाड़ दिया है। अब यह विस्थापन का शिकार बन गया है। विस्थापन ही अब तीसरे विश्वयुद्ध का आगाज है। मैं इस देश में इजराइल के बाद गया था। यहां मेरे साथियों ने अपना संकट सुनाया। इजराइल के सताये फिलिस्तीनियों में अब बहुत गुस्सा है। लाचारी-बेकारी-बीमारी इन्हें कुछ भी नहीं करने देती है। यह देश तीसरे विश्वयुद्ध का शिकार होगा। इजराइल की प्रौद्योगिकी अभी तो इनकी शिकारी है। इन्हें शिकार मानकर खा रही है। लेकिन इनका अंदर का गुस्सा कभी इजराइल की प्रौद्योगिकी लूट को रोकने वाला बनेगा।

साथी साड़ दागेर यहां की पुरानी मूल की कम जल खर्च वाली खेती करते हैं। यही फिलिस्तीनियों को सिखा भी रहे हैं। यह मूल फिलिस्तीनियों को जोड़कर कम खर्च वाली खेती द्वारा इजराइल की लूट कम करने में जुटा है। यह फिलिस्तीनी है। यह भी आधुनिक पढ़ाई का डॉक्टरेट है। लेकिन मूल फिलिस्तीनी संस्कृति पोषक होने के कारण जल व खेती बचाने के काम में लगा है।

फिलिस्तीन भी अब इजराइलियों जैसा ही बनना चाहते हैं। इसलिए इसके चमन में अब पुराना त्याग नहीं बचा है। जिसके बलबूते पर यह ऊपर उठा है, उसे भूल गया है। फिलिस्तीन ने अपने घर के दरवाजे जिनके लिए खोले थे; उन्हीं “इजराइलियों' ने फिलिस्तीनियों के घर पर ही कब्जा कर लिया है, इन्हें बेघर बना दिया है। साड़ कहता है कि, मैं ऐसे घर में पैदा हुआ, जिसने दूसरों को खिलाकर खाया था। अब वही मार कर, ख़ाने वाला मालिक ही बन गया है। इसीलिए हम बेघर, बे-पानी हो गये हैं।

हमारी दूसरी साथी आइदा शिबली फिलिस्तीनी शरणार्थियों को शरण दिलाने का काम कर रही हैं। इसका सम्पूर्ण लक्ष्य शरणार्थी मुक्त दुनिया बनाना है। जब कोई भी अपना साध्य (लक्ष्य) बड़ा बनाता है, तब काम कम होता है। काम सेवा-राहत से शुरू होकर बड़े साध्य को सफलता दिला देता है। आइदा शिबली ने कहा कि हम कौन हैं? हम कैसे एकता बना सकते हैं? हम कैसे एक हो सकते हैं? इस प्लेनैट पर बहुत लोग अलग-अलग प्रयोजन पर काम कर रहे हैं।

मध्य एशिया और अफ्रीका से उजड़कर शरणार्थी यूरोप की तरफ जीवन और जीविका के लिए जा रहे हैं। इनके उजड़ने का मुख्य कारण लाचारी, बेकारी और बीमारी है। यूरोप के पानीदार देशों में जाना इनकी मजबूरी है। यूरोप के कुछ देशों ने इनके संकट को समझकर, कुछ सहारा देना शुरू किया है। अब राजनेताओं ने इनके प्रवेश पर रोक लगा दी है। वोट का लालच नेताओं को कुछ भी बोलने हेतु मजबूर कर देता है। नेता भी झूठ-सच बोलकर अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे हुए हैं, इसीलिए दुनिया उजड़ रही है। अभी लोग उजड़ कर नई जगह ढूंढ रहे हैं। एक दिन ऐसा आयेगा, जब दुनिया में सहारा ढूंढना संभव नहीं होगा। आज का पलायन हमें यही बता रहा है। इससे बचने के लिए मानव और प्रकृति के रिश्तों को ठीक करना होगा। टूट-फूट रोकनी होगी तभी इस धरती पर फिर कोई शरणार्थी नहीं बनेगा। हमें शरणार्थी मुक्त दुनिया बनानी है।

युद्ध-मुक्त, अन्न, जल, वायु, सुरक्षा से शरणार्थी-मुक्त दुनिया बनेगी । ज्यादातर शरणार्थी जलसंकट से बनते जा रहे हैं। दुनिया में जब रोजी-रोटी, पानी, हवा की सुरक्षा मिलेगी तभी उजाड़ रुकेगा। उजाड़ना मानवीय लालच है। यही शरणार्थियों की संख्या बढ़ा रहा है। लालच मुक्त दुनिया ही शरणार्थी मुक्त होगी।

 

आइदा कहती हैं कि, जब हमारे यहां प्रौढ़ होते हैं, उनकी बड़ी जेब होती है। उनमें बच्चों के लिए खजूर, मक्का के दाने आदि रखते थे। मैं जिस संस्कृति में जन्मी वह खत्म हो चुकी है। मैं उसे बचाने के काम में लगी हुई हूं। इसलिए संविदा में जी रही हूं। मेरा डी.एन.ए. फिलिस्तीनी है और कल्चर पुर्तगाली है। मेरी कम्यूनिटी नहीं बची है। मैं अपने मूल स्थान पर नहीं जा पा रही हूं। मुझे समझ नहीं आता और मैं कभी अंतिम बिन्दु पर पहुंच नहीं पाती हूं। मेरी संवेदना, मुझे जीना स्मरण कराती रहती है।

मैं अपनी स्मृतियों में ही जीती रही हूं। मेरी स्मृतियां दर्द भी देती हैं और प्यार-दुलार व ऊर्जा भी देती हैं। इसीलिए मैं अपने अतीत को सदैव याद रखती हूं। मेरी धरती पर तो अब कब्जे हो रहे हैं, वहां से लोग उजड़ रहे हैं। मेरे पास उन्हें लाने के पैसे नहीं हैं और लोग स्वयं सुरक्षित स्थानों पर पहुंच नहीं पा रहे हैं, लेकिन मैं पहुंच गई हूं।

 

फिलिस्तीनियों का दर्द कम करना, उन्हें उनके स्थान पर बनाये रखने के काम में मेरे एक मित्र ग्रेवियल मेयर भी लगे हैं। वे अपने गीतों से दुनिया को गाकर जोड़ने का काम कर रहे हैं और भी कई साथी फिलिस्तीनियों की मदद में लगे हैं।

 

मूल समाधान तो जल-संरक्षण ही है। अभी यहां काम तेजी से करने की जरूरत है। यह काम हमारे इजराइली साथियों को जाकर शुरू करना होगा। साड़ भी इस काम में लगा है।








 

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