फास्‍ट : फूड ना बाबा ना


फास्ट फूड और उसका सेवन


Fig-1तेजी से बढ़ते शहरीकरण, व्यस्त जीवन-शैली और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रही प्रगति ने विकासशील देश में लोगों के जीवन-यापन के तरीके को बदल कर रख दिया है। इन बदलावों के नतीजे के तौर पर लोगों ने घर पर खाना पकाने और खाने की आदत में भी परिवर्तन किया है। खासकर शहरों में रहने वाले लोग ‘रेडी टू ईट मील’ और ‘फास्ट फूड’ पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं।

फास्‍ट फूड बढ़ती मांग


फास्ट फूड का चलन 1950 के दशक में सबसे पहले अमेरिका में शुरू हुआ और बीसवीं सदी के अंत तक एशियाई देशों से होता हुआ भारत में पहुँचा। इन खाद्य पदार्थों में संतुलित आहार की संकल्पना को पूरी तरह ध्यान में नहीं रखा जाता और ज्यादातर वसा, कार्बोहाइड्रेट, नमक और जायका बढ़ाने वाले मसालों और रसायनों पर जोर रहता है। इसके अलावा इन फास्ट फूड में मोनो-सोडियम ग्लुकामेट, सोडियम नाइट्रेट और सोडियम नाइट्राइट जैसे मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक रसायनों को केवल स्वाद में इजाफे के लिये मिलाया जाता है। फास्ट फूड रेस्टोरेंट में बेचे जाते हैं और लोग इन्हें वहीं बैठकर तुरन्त खा भी सकते हैं और पैक कराकर घर भी ले जा सकते हैं।

फास्ट फूड के आने से पहले घर की महिलाओं को भोजन या पकवान बनाने के लिये बाजार से मसाले, सब्जी, राशन आदि अनेक प्रकार की सामग्रियाँ इकट्ठा करना, उन्हें पकाना फिर परोसना होता था। इस पूरी प्रक्रिया में अधिक समय और श्रम लगता है, परन्तु असंख्य भारतीय परिवार खाना पकाने और खाने-खिलाने की इसी परम्परागत प्रक्रिया को आज भी अपनाते हैं। आधुनिक जीवन की व्यस्तता और समय की कमी के चलते अनेक लोग घर पर खाना पकाने की जगह फास्ट फूड को वरीयता देते हैं। कई अध्ययन और सर्वेक्षण के बाद यह निष्कर्ष पाया गया है कि लोग फास्ट फूड को मुख्य रूप से इन छ: कारणों से अपना रहे हैं- बढ़ता शहरीकरण, लंबे समय तक काम करना, घर पर खाना बनाने में समय अधिक लगना, आकर्षक विज्ञापन, व्यावसायिक भवनों की उपलब्धता और आय में वृद्धि।

फास्‍ट फूड का इतिहास


अधिकांशत: विदेशी यात्रियों को भोजन की सुविधा प्रदान करने के लिये मानव सभ्यता के अनेक स्वरूपों में रेस्टोरेंट जैसी दुकानों का अस्तित्व रहा है। प्राचीन रोम और ग्रीस में बाहर से आये लोगों के आवास और भोजन के लिये सराय और धर्मशाला हुआ करते थे। पश्चिमी समाज में सत्रहवीं सदी से मनोरंजन के लिये घर से बाहर जाकर चायखाना और कॉफी हाउस में चाय-कॉफी और स्नैक्स खाने-पीने का चलन शुरू हो गया था। हालाँकि व्यवस्थित तरीके से रेस्टोरेन्ट बनाकर ग्राहकों को चाय-कॉफी, स्नैक्स और फास्ट फूड बेचने की पहली औपचारिक पहल का श्रेय मैकडोनाल्ड कम्पनी को जाता है। फास्ट फूड चेन शुरू करने का श्रेय कुछ लोग वाईट केसल को देते हैं। शुरुआत के दिनों में बर्गर एक प्रचलित फास्ट फूड था और इसे मेलों, सर्कस में और घूमकर ठेलों पर बेचे जाते थे। प्रारंभ में लोगों ने शिकायत किया कि हैमबर्गर में सड़े हुए माँस का प्रयोग होता है। लोगों के मन के इस संदेह को मिटाने के लिये व्यावसायिक भवनों में आकर्षक रेस्टोरेंट खोले गए और वहाँ पर फास्ट फूड बनने की पूरी प्रक्रिया लोगों को दिखाई जाती थी। मैकडोनाल्ड, वाईट कैसल के बाद समय के साथ बर्गर किंग, टाको बेल, वेंडिज और केएफसी जैसे फास्ट फूड ब्रैंड दुनिया में उभरकर आये। वर्तमान में मैकडोनाल्ड दुनिया का सबसे बड़ा फास्ट फूड चेन है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार “फास्ट फूड वे खाद्य पदार्थ होते हैं जो पहले से बने होते हैं या मिनटों के अंदर तैयार किये जाते हैं, जैसे कि नूडल, बर्गर, फ्राइड फिश, मिल्क शेक, चिप्स, सलाद, पिज्जा, सैंडविच आदि। फास्ट फूड का संग्रहरण, हैंडलिंग और सूक्ष्म-जैविक संक्रमण इससे जुड़े मुख्य मुद्दे होते हैं। इन खाद्य पदार्थों में कैलोरी मान भी जरूरत से काफी ज्यादा होता है इसलिये इनके सेवन से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है।”

क्‍या हमें फास्‍ट फूड से पोषक तत्‍व मिलते हैं ?


आधुनिक जीवन-शैली के दबाव में फास्ट फूड भले ही सुविधाजनक, अनुकूल और सस्ते हों, मगर इन खाद्य पदार्थों से हमारी सेहत को अनेक नुकसान भी हैं। इन खाद्य सामग्रियों में अधिक मात्रा में वसा, संतृप्त वसा और नमक मिलाये जाते हैं जिनके सेवन से हमें जरूरत से बहुत ज्यादा कैलोरी मिल जाती है। इनके फलस्वरूप हृदय रोग, मधुमेह, दाँतों में संक्रमण और मोटापे जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ जन्म ले रही हैं। शोध नतीजों में ये भी सामने आया है कि फास्ट फूड में एडिटिव और प्रोसेसिंग तकनीकों के प्रयोग से खाद्य सामग्रियों के मूल स्वरूप में बदलाव आ जाता है और इस कारण उनकी पौष्टिकता घट जाती है।

आज महिलाएँ अधिक संख्या में काम करने के लिये घर से बाहर जा रही हैं और परिवार भी एकाकी हो चले हैं। इसलिये खासकर शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों के द्वारा फास्ट फूड का उपभोग बढ़ा है। दूध, माँस, मछली, ताजे फल और सब्जियों जैसे जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को परिरक्षित करने के लिये खाद्य प्रसंस्करण यानी फूड प्रोसेसिंग एक आवश्यक प्रक्रिया के रूप में इजाद हुई है।

फूड प्रोसेसिंग की वजह से आज लंबी दूरियों और लंबे समय तक खाद्य पदार्थों के परिवहन और वितरण किया जाना संभव हुआ है। प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को आमतौर पर परिष्कृत किया जाता है और उनमें से अधिकांश में वसा और नमक-शर्करा की अधिक मात्रा पायी जाती है। इसके फलस्वरूप, इनमें अधिक कैलोरी मौजूद होते हैं। इन खाद्य पदार्थों में आहार संबंधी रेशे और सूक्ष्म पोषक तत्व बिल्कुल भी नहीं पाए जाते हैं। इन कारणों से यदि हमारे भोजन का एक बड़ा हिस्सा ये फास्ट फूड हैं तो इनके सेवन को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए। इडली, डोसा, उपमा जैसे परम्परागत नाश्तों में भरपूर मात्रा में पोषक पदार्थ मौजूद होते हैं। चिप्स, कैंडी, चॉकलेट बच्चों में बेहद लोकप्रिय खाद्य पदार्थ केवल रिक्त कैलोरी प्रदान करते हैं और इनमें कृत्रिम रंजक और अन्य मिलावटी पदार्थ होते हैं, इसलिये इन्हें स्वास्थ्य के लिये सर्वथा हानिकारक माना जाता है। बच्चों को इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

फास्‍ट फूड के सामान्‍य घटक


फास्‍ट फूड में सामान्‍यतौर पर पाए जाने वाले घटक होते हैं :

1. ट्रांस फैट
2. सोडियम
3. मोनोसोडियम ग्लुकामेट
4. शुगर
5. जायका बढ़ाने वाले रसायन

इन सभी का संबंध केवल स्वाद में वृद्धि करना है और फास्ट फूड को बनाने में स्वास्थ्य को लेकर समझौते किये जाते हैं। मसलन इन खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइट्रेट, वसा, मसालों और नमक का जरूरत से अधिक प्रयोग किया जाता है। संतुलित आहार की अवधारणा का ध्यान नहीं रखा जाता। रेशे इनमें बिल्कुल नहीं मिलाये जाते हैं जोकि हमारे भोजन की पाचन क्रिया में बेहद सहायक होते हैं।

क्या फास्ट फूड का हमारी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है?


जैसा कि पहले चर्चा हो चुकी है कि फास्ट फूड में अधिक मात्रा में वसा पाई जाती है और शोध नतीजों में फास्ट फूड के सेवन और हमारे ‘बॉडी मास इंडेक्स’ अर्थात मोटापे के बीच सकारात्मक संबंध पाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि जो लोग ज्यादातर फास्ट फूड और साफ्ट ड्रिंक लेते हैं, उनमें हृदयरोग, कैंसर, आस्टियोपोरोसिस, दाँत से जुड़े रोग, मधुमेह और मोटापा जैसे रोग पाए जाते हैं।

Fig-2फास्ट फूड की अतिरिक्त शर्करा से हमें कोई पोषण नहीं मिलता अलबत्ता इससे मिले अतिरिक्त कैलोरी गैर-जरूरी होते हैं और इनसे शरीर का वजन बढ़ने के अलावा हृदय रोग भी हो जाता है। ज्यादातर फास्ट फूड में ट्रांस-फैट होता है जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाता है। यह बैड कोलेस्ट्रॉल होता है। ट्रांस-फैट एचडीएल यानी कि गुड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। हमारे शरीर में इस तरह के बदलावों के कारण टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। फास्ट फूड में नमक यानी सोडियम क्लोराइड के अधिक प्रयोग के कारण उच्च रक्तदाब और हृदय पेशियों के बड़े होने का खतरा बढ़ जाता है। बच्चों में फास्ट फूड के अधिक सेवन से उनमें भी उच्च रक्तदाब की समस्या उत्पन्न हो रही है। शरीर में सोडियम की अधिकता के कारण बड़ों सहित बच्चों में भी आजकल पथरी और पेट के कैंसर जैसी बीमारियाँ होने लगी हैं।

एक अध्ययन में पाया गया है कि नमक, नाइट्रेट और मोनोसोडियम ग्लुकामेट के मिलाये जाने से पिज्जा, हैमबर्गर और हाट डाग्स जैसे फास्ट फूड खाने वालों को डिप्रेशन का खतरा बना रहता है। फास्ट फूड खाने वाले लोगों में डिप्रेशन होने की सम्भावना ऐसे खाद्य पदार्थ नहीं खाने वालों की तुलना में 51 प्रतिशत अधिक बनी रहती है। फास्ट फूड में उच्च मात्रा में मौजूद कार्बोहाइड्रेट रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि करता है और इससे त्वचा के मुँहासे बनते हैं। जो बच्चे अधिकतर फास्ट फूड खाते हैं, उन्हें एक्जिमा होने का जोखिम रहता है। इस बीमारी में त्वचा पर धब्बे बन जाते हैं जिसमें जलन होती है।

जब हम कार्बोहाइड्रेट और शर्करा की अधिकता वाले फास्ट फूड का ज्यादा सेवन करते हैं तो हमारे मुँह में रहने वाले जीवाणु अम्ल उत्पन्न करते हैं जो हमारे दाँतों के इनामेल को क्षति पहुँचाने लगते हैं जिससे डेंटल केविटी बनती है। फास्ट फूड से हमारे शरीर में पहुँचने वाली सोडियम की अधिक मात्रा से आस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। इस बीमारी में हड्डियाँ पतली और कमजोर हो जाती है।

बच्चों में मोटापा का एक बड़ा कारण है फास्ट फूड


बच्चों में मोटापा वर्तमान समय का एक अहम समाजिक सरोकार बन गया है। मोटापा इसलिये बुरा है क्योंकि इसकी वजह से अनेक असाध्य रोगों का संबंध होता है। फास्ट फूड की मार्केंटिंग और विज्ञापन में भी बच्चों को लक्ष्य कर उन्हें आकर्षित किया जाता है। आम धारणा है कि वयस्क इन विज्ञापनों को लेकर तर्कसंगत ढंग से सोचते हैं और फास्ट फूड के फायदे-नुकसान को जानते-समझते हैं। मगर बच्चे तो अबोध होते हैं और फास्ट फूड से स्वास्थ्य को होने वाले दूरगामी नुकसान से बेखबर होते हैं।

मोटापे की मूल वजह है खाने या पीने से ग्रहण की गई ऊर्जा और मेटाबोलिज्म और शारीरिक गतिविधियाँ के द्वारा खर्च ऊर्जा के बीच असंतुलन। शोध नतीजे बताते हैं कि फास्ट फूड का सेवन अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्ति को बढ़ावा देते हैं जिसके फलस्वरूप वजन बढ़ने और मोटापे का खतरा बढ़ता है। मगर आजकल जिस प्रकार बड़े और बच्चे दोनों ही घर के खाने की बजाय रेस्टोरेंट में फास्ट फूड खाना अधिक पसंद कर रहे हैं, उससे स्वास्थ्य को व्यापक खतरा बढ़ा है।

4 से 19 वर्ष के बीच की उम्र के बच्चों में आमतौर पर हफ्ते में दो या दो से अधिक बार फास्ट फूड खाने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। बच्चों के शरीर में फास्ट फूड के जरिये जो यह अतिरिक्त कैलोरी पहुँच रही है, वह उनकी शारीरिक गतिविधि से पूरी तरह खर्च नहीं होती है और इस कारण वे मोटापे के आसान शिकार बन रहे हैं। मोटापे के कारण बच्चों में सांस की तकलीफ और मधुमेह जैसी कई दूसरी बीमारियाँ भी होने लगी हैं।

बच्चों को फास्ट फूड से दूर करने में अभिभावकों की भूमिका


बच्चों के आहार में स्वास्थ्यवर्धक तत्वों को शामिल किये जाने की दिशा में अभिभावकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आपने अक्सर देखा होगा कि जो माँ-बाप फल और सब्जियों को नियमित रूप से खाते हैं, उनके बच्चों में भी इन्हें जीवनपर्यंत खाने की आदत पड़ जाती है। उसी तरह जो माँ-बाप अधिकतर फास्ट फूड खाते हैं, उनके बच्चों को भी इनकी आदत लग जाती है। बच्चे अपने बचपन में विभिन्न प्रभावों के अंतर्गत जो आदत विकसित कर लेते हैं, वे आदत उनके साथ जीवन भर बने रहते हैं। इसलिये बचपन से ही माँ-बाप के हस्तक्षेप के माध्यम से बच्चों में स्वास्थ्यवर्द्धक खान-पान की आदत का विकास किया जा सकता है और उन्हें फास्ट फूड के ज्यादा सेवन से रोका जा सकता है।

स्वास्थ्यवर्द्धक भारतीय खाद्य पदार्थ और व्यायाम की उपादेयता


भारतीय आहार स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उत्तम हैं। पूर्वांचल का सत्तू, दाल-बाटी हो या दक्षिण भारत के इडली सांभर, इडली, बड़ा, डोसा, उपमा - इन सभी में आवश्यक पोषक तत्व मौजूद होते हैं और इनमें मसालों, नमक और अनावश्यक घी-तेल का भी कोई स्थान नहीं होता। अगर संतुलित और संयमित आहार लिया जाए, तली-भुनी मसालेदार खाद्य पदार्थों से दूरी बनाकर रखा जाए और नियमित रूप से व्यायाम किया जाए तो हम अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रख सकते हैं। व्यायाम का अर्थ यह नहीं है कि 2-3 घंटे कसरत में हर रोज लग जाना। आप अगर हफ्ते में 4-5 दिन सुबह या शाम को 30-40 मिनट ब्रिस्क वॉकिंग (तेज टहलना) कर लें तो यह एक बेहतर व्यायाम के समान है।

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