पवित्र नदी पम्पा की सफाई

हम नदियों के प्रदूषण को हटाने के लिये युद्धस्तर पर कार्य करने को तत्पर हैं। लाखों रूपये अब तक उनकी सफाई में लग चुके हैं और आज तक कुछ नहीं हो पाया है। सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। हमें साथ ही आना पड़ेगा। मैं सरकारों, उद्योगों और नागरिक संगठनों को आमंत्रित करता हूँ कि वे इसे आपात स्थिति मानें।16 मार्च, 2010 को गुरूजी ने कहा था, ‘‘हम सदा ही पवित्र नदियां जैसे गंगा और यमुना के जल को अपने आप को शुद्ध करने के लिये प्रयोग करते रहे हैं, लेकिन आज हम उस बिन्दु पर पहुँच गये हैं, जहाँ पर हमें नदियों को साफ करना आवश्यक हो गया है। हम नदियों के प्रदूषण को हटाने के लिये युद्धस्तर पर कार्य करने को तत्पर हैं। लाखों रूपये अब तक उनकी सफाई में लग चुके हैं और आज तक कुछ नहीं हो पाया है। सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। हमें साथ ही आना पड़ेगा। मैं सरकारों, उद्योगों और नागरिक संगठनों को आमंत्रित करता हूँ कि वे इसे आपात स्थिति मानें।’’

भारत में, नदी एक देवी होने के साथ ही, शौच का स्थान और नहाने का स्थान भी है। यह कहते हुए दुख हो रहा है कि आज नदियों में प्रदूषण की यह स्थिति है कि हम वहाँ पर अपने पाप नहीं धो सकते बल्कि हम वहाँ जा कर और रोगी हो जाते हैं।

ऐसी ही एक नदी है, पम्पा। यह नदी केरल की तीसरी सबसे लंबी नदी है और मध्य त्रावणकोर, केरल का प्रमुख स्रोत है। 50 से अधिक पीने योग्य जल के वितरण परियोजनाएं इसी पर चल रही हैं और केरल के पथनंथित्त और अलेपुझा जिले के 30 लाख लोग इसी नदी के जल पर आश्रित हैं। इसके अलावा इसी नदी का पानी 37,900 हेक्टेयर भूमि पर कृषि के लिये प्रयोग किया जाता हैं। इस नदी को दक्षिण की गंगा कहा जाता है और यह पवित्र शबरीमाला मंदिर के किनारे से गुजरती है। शबरीमाला मंदिर में हर वर्ष 5 लाख तीर्थयात्री इस नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं।

हाल ही में, यह नदी कई कारणों से प्रदूषित हो रही है, जैसे गैर कानूनी रूप से मिट्टी का दोहन, तीर्थयात्रियों द्वारा लाया एवं फैलाया गया कचरा, कस्बे के नाले का इसमें खुलना और अन्य प्रकार के जल प्रदूषण।

इन सबसे निजात पाने के लिये ‘आर्ट आँफ लिविंग’ ने इसे साफ करने की परियोजना अप्रैल 2014 में आरंभ किया। हमने केरल के 14 जिलों में अपनी टीम का गठन कर इस को साफ करने के लिये स्वच्छता अभियान में लगा दिया। लगभग 1500 स्वंसेवकों ने इसमें भाग लिया और 120 टन से अधिक कचरा इस में से निकाल लिया है। जबकि हर व्यक्ति यही चाहता है कि नदी साफ हो, हमें वहां के स्थानीय ठेकेदारों , सरकारी संस्थाओं और यहां तक कि त्रावणाकोर देवस्वं बोर्ड जो कि मंदिरों से मिलने वाले चंदों पर मंदिरों को चलाता है, का भी सहयोग मिला। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि यहां आने वाले 5.5 करोड़ तीर्थयात्री जबकि केरल की जनसंख्या खुद ही 3.5 करोड़ है, ने यहां अत्यधिक प्रदूषण फैलाया है और इस से ग्रस्त रहे हैं।

वर्तमान में काम कर रहा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जिसकी क्षमता 15 लाख लीटर प्रतिदिन है, वह भी पम्पा से उत्पन्न होने वाले सीवेज के लिये पर्याप्त नहीं है। इसलिये अधिकतम सिवेज बिना ट्रीटमेंट के ही पम्पा में पहुँचता है। शबरीमाला उत्सव के दौरान पम्पा नदी के 100 मि.ली. जल में कॉलीफार्म बैक्टिरिया की संख्या 3 लाख से अधिक होती है, साथ में अत्यधिक सिवेज प्रदूषण भी।

कुछ तीर्थयात्रियों द्वारा नदी में कपड़े भी छोड़ दिये जाते हैं, जो नदी में बहुत समस्या उत्पन्न करते हैं। ये कपड़े नदी के तट पर जम कर नदी के प्रवाह में बाधक बनते हैं। तीर्थयात्री के द्वारा लाये गये प्लास्टिक के थैले और बोतलें भी इसी में छोड़ दिये जाते हैं।

इसके अतिरिक्त यहा पर आयोजित ईसाइयों का मारामॉन दीक्षांत समारोह भी प्रदूषण का स्रोत है जिसमें 7 से 10 दिनों तक हर दिन 1.5 लाख लोगों के लिये अस्थायी शौचालय व्यवस्था से कोझेनचेरी में प्रदूषण फैलता है।

इसके साथ साथ, यहाँ पर मिट्टी की खदानों से इस 176 किमी लंबी नदी की मृत्यु हो रही है। पिछले चार दशकों में इस नदी ने जल संग्रहण की क्षमता लगभग खो दी है। इस नदी की गहराई 4.5 मीटर से 10 मीटर तक अलग- अलग स्थानों पर कम हो चुकी है। कहीं पर तो औसत समुद्र तल से यह तीन मीटर ही यह गई है। इस से भूमिगत जल में कमी आयी है।

मनुष्य ही नहीं, कहीं पर तो प्राकृतिक रूप से भी इस नदी को हानि पहुँची है। कैबोम्बा केरोलिनीयाना घास जो कि उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका से आई है ने भी इस नदी के प्रवाह को रोक रखा है और मिट्टी के जमाव को बढ़ा रहे हैं।

इन सब समस्याओं के निराकरण के लिये आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा अप्रैल 2014 में पम्पा सफाई समिति का गठन किया गया और इसे साफ करने का कार्य 12 अप्रैल 2014 से आरंभ किया गया है।

परिणाम आशा के अनुरूप निकले। के बाबु, देवस्वं बॉर्ड के विशेष आयुक्त जिन्हें केरल हाई कोर्ट ने नियुक्त किया था, ने कहा,‘‘आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा शबरीमाला में पम्पा नदी के प्रदूषण में 80 प्रतिशत कमी आयी है।’’ 120 टन एसडब्ल्युएम जैसे कि प्लास्टिक, कपड़े और अन्य कचरा नदी में से निकाला गया है। 25000 से अधिक तीर्थयात्रियों को कचरे के खतरे से परिचय कराया गया। तीर्थयात्रियों को इस मुहिम से जोडऩे के लिये प्रेरित किया गया। लगभग 30000 से अधिक तीर्थयात्रियों को इस हेतु पर्चे बांर्ट गये जो कि तेलुगु, तमिल, मलयालम और इंग्लिश भाषा में थे।

दूसरा चरण नवंबर से आंरभ हो कर संक्रांति (15 जनवरी 2015) तक चलेगा। यह बहुत महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि मकर संक्रति के दिन लाखों श्रद्धालु मकर विलकु (पर्वत की चोटी पर प्रकाश) देखने और इस नदी में स्नान करने आते हैं। एसएस आरवीएम के पूरे केरल से हजारों विद्यार्थी इस स्वच्छता अभियान से जुडऩे के लिये के लिये 9 जनवरी को पहुँचेंगे।

त्रावणकोर देवस्वं बोर्ड (टीडीबी) को इस हेतु अनुमति के लिये एक आवेदन किया जा चुका है ताकि यह स्वच्छता अभियान इस उत्सव में भी जारी रहे। चूंकि हर दिन अनेक स्वयंसेवक केरल के विभिन्न जिलों से 50 किमी की यात्रा तय कर के आते हैं, उनके लिये पम्पा और सन्निधनम में अस्थायी निवास की व्यवस्था के लिये आवेदन किया जा चुके हैं। ये सभी आवेदन टीडीबी द्वारा अस्वीकृत की जा चुकी है, जिसे इस अभियान का सबसे अधिक लाभ होने वाला था।

लेकिन जहाँ पर गुरूजी हैं, वहाँ पर समाधान भी हैं। एओएल ने उच्च न्यायालय में इसके लिये एक याचिका दायर की और हमारे अभियान के समर्थन के लिये टीडीबी से सहयोग माँगा। उच्च न्यायालय ने टीडीबी को निवास की व्यवस्था के लिये निर्देश दिया।

टीडीबी आर्ट ऑफ लिविंग के इस अभियान के विरूद्ध क्यों है? शुक्कूर, एक ठेकेदार जो शबरीमाला में एक व्यवसायी है, (जिसके व्यापार में पम्पा नदी के कचरे और कपड़े को पुनर्चक्रण (रिसायकल) करने का काम प्रमुख हैं) ने कहा, ‘‘मैं आर्ट ऑफ लिविंग से निवेदन करता हूँ कि वे अपने इस सजगता अभियान को रोकें, इस से मेरा व्यापार प्रभावित हो रहा है।’’

अनेक लोग एओएल के इस कार्य के विरूद्ध हैं क्योंकि वे नदी से अच्छे कपड़े निकाल कर बाजार में बेचते हैं। ठेकेदार एओएल को पसंद नहीं करते थे क्योंकि एओएल सभी प्रकार के कपड़ों के कचरे को साफ कर रहा हैं, चाहे वे नये ही क्यों न हों।

शुक्कूर ठेकेदार पिछले 15 सालों से कचरा साफ करने का ठेका उठा रहा है और इस वर्ष तो टीडीबी ने उसे यह ठेका 55 लाख रूपये में दिया है।

हमारे प्रयास तो बहुत हैं, लेकिन टीडीबी में व्याप्त भ्रष्टाचार से पूरी तरह से फलीभूत नहीें तो पा रहे हैं। हम यह सुझाव देते हैं कि शबरीमाला मंदिर का प्रशासन दूरदर्शी व्यक्तियों के हाथ में दे देना चाहिये। पर्यावरणविद् और आध्यात्मिक गुरुजन इस स्थान को देखें और इन स्रोतों का जनहित में प्रयोग करें।

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