संसार के कस्बों और शहरों के सामने प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले बेकार पानी से निपटने की समस्या एक प्रमुख समस्या है। इस बेकार पानी का या तो अत्यधिक लागत वाली पारंपरिक जल उपचार प्रक्रियाओं से उपचार किया जाता है या फिर इसे उपचारित किए बिना नदियों अथवा दूसरी जलीय इकाईयों में बहने दिया जाता है। ताजे पानी की सीमित उपलब्धता और चिरस्थायी बढती हुई मांग के कारण वेकार पानी का उपचार किया जाना अब अनिवार्य हो गया है। हमारे पास बेकार पानी की कम लागत वाली कुशल पारिस्थितिकीय उपचार योजनाओं के ऐसे बहुत कम विकल्प हैं जो अन्य उत्पादकीय उपयोगों के लिए जल को पुन:चक्रित कर सकें। पूर्वी कोलकता नम भूमि प्रणाली इनमें से एक ऐसी ही योजना है।
दुनिया में कोलकता ही एक ऐसा महानगर है जहां राज्य सरकार ने नम भूमि के संरक्षण हेतु विकास नियंत्रण का सूत्रपात किया है जो पुन:चक्रण प्रक्रिया के द्वारा बेकार पानी के उपचार को दोगुणा कर देता है। नमकीन दलदल, सीवेज फर्म, सेटलिंग तालाब, ऑक्सीडेशन बेसिन जैसे उल्लेखनीय बेकार पानी उपचार के क्षेत्रों वाली व्यापक तौर पर मानवनिर्मित पूर्वी कोलकता की यह नम भूमि जिसमें अंत: ज्वारभटीय दलदल शामिल है,पर्यावरण संरक्षण और विकास प्रबंधन का एक दुर्लभ उदाहरण है । इस योजना के अंतर्गत संसाधन को निकालने वाली गतिविधियों को संपन्न करते हुए स्थानीय किसानों ने इस जटिल पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं को अपना लिया है। संसार में यह एक ही ऐसा स्थान है जहां पर सबसे बड़ा सीवेज पोषित मत्स्य जलाशय बनाया गया है। नमभूमि को नवंबर 2002 में रामसर का नाम दे दिया गया है।
कोलकता नगर निगम क्षेत्र प्रतिदिन लगभग 600 मिलियन लीटर सीवेज और बेकार पानी तथा 2,500 मीट्रिक टन कूड़ा-करकट सृजित करता है। यह बेकार पानी भूमिगत सीवरों के माध्यम से शहर के पूर्वी क्षेत्रों (फ्रिन्ज) में स्थित पंपिंग स्टेशनों में चला जाता है और उसके बाद खुले चैनलों में पंप किया जाता है। इसके बाद, सीवेज और बेकार पानी को पूर्वी कोलकता नमभूमि के मतस्य पालन केंद्रों के मालिकों द्वारा ले लिया जाता है। यहां कुछ दिनों के बाद सीवेज तथा वेकार पानी के जैविक पदार्थों का जैविक अपघटन होता है। चैनलों के एक नेटवर्क का उपयोग उपचारहीन सीवेज की आपूर्ति तथा खर्च किए पानी (दूसरे जल स्रोत) को खाली करने के लिए किया जाता है।
सीवेज के बेकार पानी की बीओडी समेकित कार्यकुशलता 80 प्रतिशत से अधिक है और औसत रूप से कॉलीफार्म बेक्टीरिया के लिए 99.99 प्रतिशत है। प्रतिदिन सौर विकिरण लगभग 250 लैंगलीज है जो प्रकाश संश्लेषण के लिए पर्याप्त है। वास्तव में सीवेज पोषित मतस्य जलाश्य सौर रिएक्टर के रूप में कार्य करते हैं। सौर ऊर्जा छोटे छोटे जतुओं द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। मछलियां इन छोटे छोटे जंतुओं का भक्षण करती हैं1 हालांकि जैविक पदार्थों के अपघटन में इन जंतुओं की उल्लेखनीय भूमिका होती है फिर भी जलाश्य प्रबंधन के लिए इनकी अत्यधिक वृद्धि एक समस्या बन जाती है। पारिस्थितिकीय प्रक्रिया का यह वह समय होता है जब इन जंतुओं पर अपना निर्वाह करने वाली मछली अहम भूमिका निभाती है। मछलियों द्वारा निभाई जाने वाली दोहरी भूमिका वास्तव में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है - वे जलाश्य में इन जंतुओं की जनसंख्या में उचित संतुलन बनाए रखती हैं और बेकार पानी में उपलब्ध पोषक तत्वों को मानव द्वारा तत्काल उपभोग करने योग्य पदार्थ (मछली) में बदलती भी हैं। पूवी कोलकता के मछुआरे अर्थात मछली की खेती करने वाले किसानों ने संसाधन रिकवरी की इन गतिविधियों की एक ऐसी योजना विकसित की है कि वे देश के ताजा पानी के किसी भी दूसरे मतस्य जलाश्यों की तुलना में कम से कम लागत पर मछलियों की उपज पैदा कर रहे हैं। इसके बावजूद, इस नम भूमि के सामने आज कई समयाएं आ रही है जैसे बढता हुआ शहरी विकास, जलीय इकाईयों की सतह पर अवसादों का तीव्र जमघट आदि। अब तत्काल एक ऐसी प्रबंधन योजना की जरूरत है जो इस प्रणाली की संपूर्ण जटिलता एवं इसमें संलिप्त लोगों की रोजी रोटी का समुचित लेखा जोखा रख सके।
वर्णित समस्याओं के बावजूद, पूर्वी कोलकता मानव-प्रकृति के बीच परस्पर चर्चा का एक उत्कृष्ट और शानदार उदाहरण है। कोलकता शहर बिना किसी खर्च के प्रतिदिन उपचार किए गए सीवेज की बड़ी मात्रा प्राप्त करता है और इसके अतिरिक्त ताजे पानी की उच्च स्तरीय भक्षण की जाने वाली मछलियों की पर्याप्त दैनिक आपूर्ति ग्रहण करता है। वास्तव में यह शहर अपनी दैनिक जरूरत की एक तिहाई मछलियां सीवेज पोषित मत्स्य केंद्रों से ही प्राप्त करता है (एक वर्ष में लगभग 11,000 मीट्रिक टन)। यहां सीखी गई जानकारी कहीं अन्यत्र भी शहरी अधिकारियों के हितों में हो सकती है।
अधिक जानकारी के लिए देखें
1.WWF site: http://www.wwfindia.org/about_wwf/what_we_do/freshwater_wetlands/our_work/ramsar_sites/east_calcutta_wetlands_.cfm
2.East Kolkota Wetland Management Authority: http://www.keip.in/east_kolkata_wetland.htm http://enviswb.gov.in/ENV/env_drupal/?q=node/19
3.Govt.of.West Bengal, The role of East Kolkota Wetlands: http://wbenvironment.nic.in/html/wetland_files/wet_therolloff.htm
/articles/pauuravai-kalakataa-raamasara