पुरानी जल धाराओं को पुनरूज्जीवित करना (भाग - तीन)

पहले बताया जा चुका है कि दिल्ली क्षेत्र में यमुना के अतिरिक्त तीन अन्य नदियां स्थानीय अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से निकलकर यमुना में गिरती थीं। ये तीनों नदियां साहिबी, तिलपत धारा (इसे यह नाम मैंने दिया है) और सतपुला लोधी गार्डन के पुल के नाम पर आधारित इस क्षेत्र के भूमिगत जलस्तर को बनाए रखती थीं और क्षेत्रीय सौंदर्य, पर्यावरणीय विविधता को बढ़ाती थीं, उनमें तिलपतधारा और सतपुला निजामुद्दीन के समीप आपस में मिल जाती थीं और बारापुला पुल के नीचे से आगे चली जाती थीं। इन्हें पुनरूज्जीवित करने से उनके मार्ग का प्राकृतिक भूगर्भीय जलस्तर बढ़ेगा, पर्यावरण और क्षेत्रीय जैविक विविधता में सुधार होगा। ये नदियां पानी की कमी की दशा में सीधे ही पानी उपलब्ध कराएंगी। इन नदियों को पुनरूज्जीवित करने की प्रविधि और परियोजना निम्नानुसार हो सकती है:

(ए) नदियों के पुनरूज्जीवन के लिए प्राथमिक आवश्यक कदम

जब ये नदियां बारहो मास बहती थीं, तब जैसा वातावरण था; सबसे पहले उसे वापस पाने के लिए प्रयत्न करना पडेग़ा।

(अ) जल ग्रहण क्षेत्र का विकासः इसके लिए सबसे पहले जल ग्रहण क्षेत्र में बड़ी संख्या में वृक्षारोपण करना, दूसरे क्षेत्रीय विकास के चलते धाराओं के मार्ग में जो कृत्रिम बाधाएं उपस्थित हो गई है, उन्हें दूर करना।

(ब) चैक डैमों और जलाशयों का निर्माण करनाः-

नदियों के उद्गम की ओर इनका निर्माण किया जाए। दुर्भाग्य से बहुत से इन्जीनियर यह नहीं समझते कि चैक डैम, प्रवाह को धीमा करने के लिए है, न कि उसे रोकने के लिए होता है। जलाशय धारा मार्ग पर जल संचय करते हैं और क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण अति आवश्यक है।

(स) घने बस्ती वाले क्षेत्रो में भूमिगत सुरंग या कृत्रिम नालों के माध्यम से धारा मार्ग बनाना:

नदियों के मूल मार्ग पर जहां बहुत घनी बसावट या राज्य द्वारा कॉलोनियों के विकास के कारण बडे:

निर्माण हो गए हैं। वहां पर पर्याप्त बड़े आकार के नाले या भूमिगत सुरंगे बनाना जरूरी होगा, जिससे नदी का अधिक से अधिक संभावित प्रवाह भी आस-पास क्षेत्र को बहाए बिना निकल जाए। नदी किनारे जहां सम्भव हो वृक्षारोपण किया जाना चाहिए ।

(बी) दिल्ली की छोटी नदियों को पुनरूज्जीवित करने के लिए विशेष उपायः

(अ) तिलपत धारा- यह उपरोक्त सब पैरा 2 सी 1 में बताए गए अनुसार संकरी घाटियों से निकलती थी। वहां स्थित झील के विनाश, कॉलोनियों के निर्माण और इसकी सहायक धाराओं के मार्ग अवरूद्ध होने से यह तिलपत धारा लुप्त हो गई। इसकी एक मुख्य सहायक धारा आधुनिक लाडो-सराय से बहती थी। इन धाराओं के कुछ हिस्से अब बरसाती नालों के तौर पर बचे हैं।

संकरी घाटियों की झील को पुनरूज्जीवित कर, इसकी ओर आने वाली धाराओं पर चैकडैम बनाने, उनके जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण, सैनिक फार्म के मध्य से गुजरता हुआ एक निरंतर नदी पथ बनाना, जलमल व्ययन नालों को धाराओं से दूर मोड़ देना, इसके साथ-साथ सारे मार्गों पर वृक्षारोपण आदि ऐसे उपाय हैं, जिससे यह नदी तिलपत धारा पुनरूज्जीवित की जा सकती है। इस धारा के निचले मार्ग पर लाडो-सराय से गुजरने वाली और इसकी सहायक धाराओं पर भी चेकडैम बनाना और उन पर धारा मार्ग स्थित जलाशय बनाना जलविज्ञान की दृष्टि से भी लाभकारी है। क्योंकि यह घनी आबादी वाले क्षेत्रों से गुजरती है। इससे स्थानीय पर्यटन और मनोरंजन को अवसर मिलेगा।

(ब) सतपुलाः- इस नदी की कई छोटी सहायक धाराएं वर्तमान वसंतकुंज और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर के मध्य स्थित पर्वत श्रृंखलाओं से और वसंत विहार के दक्षिणी पठार से शुरू हो कर हौजखास क्षेत्र से बहती हुई आपस में मिलती जाती थी। उत्तर-पश्चिम की ओर वाली धाराएं राष्ट्रपति भवन के पश्चिम में स्थित रायसीना पहाडियों और रिज से शुरू होकर लोधी गार्डन और वहां के सतपुला पुल के नीचे से होती हुई आधुनिक लोधी रोड के दक्षिण क्षेत्र में दक्षिण पश्चिम वाली धाराओं से मिलती जाती थी। अब यह इकट्ठा होकर पूर्व की ओर बह चलती हुई, निजामुद्दीन के पश्चिम में तिलपत धारा से मिल जाती थी और ये सभी अन्त में बारापूला पुल के नीचे से पूर्व की ओर निकल कर यमुना में मिल जाती थीं। सतपुला धारा समूह को भी उसी भांति पुनरूज्जीवित किया जा सकता है, जैसा कि तिलपत धारा के विषय में बताया गया है।

(स) साहिबीः इस नदी का एक ताजा सर्वेक्षण किया गया है। यह नदी पहले रोहिणी कहलाती थी, जिसे बाद में एक मुगल राजकुमारी के नाम पर, जो उसे बहुत पसन्द करती थी, साहिबी कहा जाने लगा। अंग्रेंजों ने पाया कि विवर्तनिक हलन-चलन के कारण इस नदी का यमुना में गिरना रूक गया था, इसके परिणाम स्वरूप दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम में झीलें बन गई थीं। उन्होंने झीलों और पानी भरे क्षेत्र से पानी निकालने के लिए इसके निचले हिस्से से कीच निकाल कर इसे नजफगढ़ नाले का नाम दिया। इसे पुन: जीवित किया जा सकता है, इसके लिए इसमें पड़ने वाले 'गंदा नाला' जैसे अनुपचारित जल-मल को डालना रोकना होगा, तब इसका पानी ककरोला रैगुलेटर तक स्वच्छ होगा। पश्चिम यमुना नहर से एक शाखा काट कर यमुना की बाढ़ का पानी भी इसकी ओर मोड़ा जा सकता है। नाला मुंडेला जलाशय का इस्तेमाल करते हुए इसे भी मोड़ा जा सकता है। खेद है कि ककरोला रैगुलेटर से नीचे भी शहर की गंदगी ढोने वाले कई नाले इस जलधारा में छोड़े जाते हैं। इस नदी के किसी भाग में स्वच्छ जल संग्रह का कोई भी उद्यम उत्तम कार्य होगा।

इस नदी को पुनरूज्जीवित करने से भूमिगत जल स्तर के सुधार के साथ-साथ पृष्ठ जल में भी लगभग 10 एमसीएम की वृद्धि होने की आशा है।

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