खेतों में पुआल फैलाना कुछ लोगों को उतना महत्वपूर्ण नहीं लग सकता, लेकिन मेरे तरीके से चावल और जाड़े के अनाज की खेती का वह बुनियादी तत्व है। उसका संबंध हर चीज-उर्वरता, अंकुरण, खरपतवार, परिंदों से बचाव तथा जल-प्रबंधान के साथ है। व्यावहारिक प्रयोगों तथा सिद्धांततः भी खेतों में पुआल का उपयोग बहुत ही निर्णायक मुद्दा है। यह ऐसी चीज भी है जिसे लगता है, मैं लोगों को समझा नहीं पा रहा हूं।
ओकायामा - परीक्षण केंद्र पर उसके अस्सी प्रतिशत परीक्षण खेतों में सीधे चावल बोकर फसल लेने की विधि आजमाई जा रही है। जब मैंने उन्हें पुआल को बिना काटे फैला देने का सुझाव दिया तो, स्पष्टतः उन्हें लगा कि यह ठीक नहीं हो सकता, और उन्होंने उसे यांत्रिक थ्रेशर से काट कर फिर खेतों में फैलाने का प्रयोग किया। जब कुछ वर्ष पूर्व मैं उनके यहां इस प्रयोग को देखने गया तो वहां मैंने खेतों को तीन हिस्सों में विभाजित किया हुआ देखा - बिना पुआल बिछे खेत, पुआल बिछे खेत तथा बिना कटा पुआल बिछे खेत। मैंने भी यही तरीका बरसों तक अपनाया था और चूंकि बिना कटा पुआल सबसे अच्छा ठहरा, इसलिए अब मैं उसे ही खेतों में फैलाता हूं।
शीमाने प्रांत के यासूकी कृषि हाईस्कूल के अध्यापक श्री फुजीआई की इच्छा सीधे बुआई करने की हुई, और वे मेरे फार्म पर पधारे। मैने उन्हें सुझाव दिया कि वे खेतों में बिना कटा पुआल फैलाएं। अगले साल वापस लौटकर उन्होंने मुझे बतलाया कि वह परीक्षण असफल रहा। उनके ब्यौरे को ध्यान से सुनने के बाद मुझे पता चला कि उन्होंने पुआल खेतों में सीधे, बड़े करीने के साथ, कुछ इस ढंग से बिछाया, जैसा जापानी अपने पिछवाड़े के आंगन में घास-पलवार सजाते हैं। यदि आप ऐसा करेंगे तो बीज कभी अच्छी तरह से अंकुरित नहीं होंगे। जौ और राई के पलवार के मामले में भी, यदि उसे बहुत ही करीने से बिछाया गया तो चावल के अंकुरों को बाहर निकलने में बड़ी कठिनाई होगी। सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि पुआल को इधर-उधर बस यों ही उछाल दिया जाना चाहिए, जैसे कि वे ठूंठ अपने आप वहां आकर गिरे हों।
जिस तरह धान का पुआल जाड़े के अनाज के लिए सबसे अच्छा पलवार होता है, वैसे ही जाड़े की फसल का पुआल चावल के लिए बढ़िया होता है। मैं चाहता हूं कि लोग इस बात को अच्छी तरह समझ लें। यदि खेतों में ताजा पुआल बिछाया गया हो तो चावल की ऐसी कई बीमारियां हैं, जो फसल को लग जाएंगी। चावल की ये बीमारियां, मगर जाड़े के अनाज की फसल को संक्रमित नहीं करेंगी और यदि चावल का पुआल पतझड़ के मौसम में फैलाया गया तो अगले वसंत में जब चावल अंकुरित होगा तब तक वह पूरी तरह सड़ चुका होगा। ताजा चावल का पुआल अन्य अनाजों के लिए अच्छा होता है। ऐसा ही कुटकी का पुआल भी होता है। इस तरह चावल और कुटकी के लिए अन्य अनाजों के पुआल का उपयोग किया जा सकता है। मोटे तौर पर जाड़े के गेहूं, राई, जौ जैसे अनाजों के लिए जाड़े की फसलों के ताजा पुआल का उपयोग, जाड़े की ही अन्य फसलों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इससे उन्हें बीमारियाँ लग सकती हैं।
पिछली फसल का पुआल तथा गहाई के बाद बाकी रही कुट्टी को भी खेतों में वापस बिछाया जाना चाहिए।
पुआल फैलाने से मिट्टी की गठन सुधरती है और धरती की जो उर्वरता बढ़ती है उससे तैयार किए गए उर्वरकों की जरूरत नहीं रह जाती। मगर, बेशक इसका उपयोग बिना-जुताई वाली खेती में ही फलदायी होगा। केवल मेरे खेत ही सारे जापान में ऐसे हैं, जिनमें बीस साल से भी ज्यादा समय से हल-बखर नहीं चलाया गया है, और हर मौसम के साथ उनकी गुणवत्ता में सुधार आया है। मेरा अनुमान है कि इन बीस बरसों में धरती की ऊपरी सतह, कोई चार इंच की गहराई तक, खाद-मिट्टी से समृद्ध हो गई है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि इन खेतों में जो कुछ उगा वह अनाज को छोड़कर, सब-का-सब, खेतों को ही लौटा दिया गया।
खाद बनाने की कोई जरूरत नहीं होती। मैं यह नहीं कहता हूं कि खाद की जरूरत नहीं है। मेरा कहना है कि उसे तैयार करने के लिए खूब मेहनत करना जरूरी नहीं है। यदि पुआल या ठूंठों को वसंत या पतझड़ के मौसम में खेत की सतह पर ही पड़ा रहने दिया जाए और उस पर कुक्कट खाद या बत्तखों की बीट की एक पतली परत बिछा दी जाए तो वह छह महीनों मे सड़कर खुद-ब-खुद खाद बन जाता है।
परम्परागत ढंग से खाद बनाने के लिए किसान, कड़ी धूप में चारा-पुआल काटता है, उसमें पानी और चूना मिलाता है, उसका ढेर लगाता है और फिर उसे उठा कर खेतों तक ले जाता है। यह सारी जहमत वह यह सोचकर उठाता हैं कि यही तरीका ‘बेहतर’ है। इसके बदले मैं चाहूंगा कि लोग सिर्फ पुआल, कुट्टी या लकड़ी की छिलपियां खेतों में फैला दें।
पश्चिम जापान में तोकाइदो रेलमार्ग के किनारे-किनारे यात्रा करते हुए मैंने देखा है कि अब पुआल को, मेरे कहने के बाद से, कि पुआल को बिना काटे फैला देना चाहिए, ज्यादा मोटा काटा जाने लगा है। इसका श्रेय मैं किसानों को देना चाहूंगा, लेकिन आजकल के विशेषज्ञ अब भी यही कहते जा रहे हैं कि प्रति चौथाई एकड़ इतने सौ क्विंटल पुआल बिछाना चाहिए? रेल की खिड़की में से आपको नजर आता है कि किसानों ने लगभग आधा पुआल को काटकर खेतों में बिखेर दिया है, और बाकी को एक तरफ रख कर वर्षा में सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। यदि जापान के सारे किसान मिलकर सारा पुआल वापस खेतों में डालना शुरू कर दें तो उसका नतीजा यह होगा कि धरती को खाद की भारी मात्रा वापस मिलने लगेगी।
सैकड़ों सालों से किसान लोग चावल के अच्छे, स्वस्थ और मजबूत पौधे उगाने के लिए बीज-क्यारियां तैयार करने के लिए बड़ी मेहनत कर रहे हैं। छोटी-छोटी क्यारियों की सफाई वे अपने घरों की पूजा वेदियों की तरह करते हैं। धरती को जोतकर, रेत तथा चावल के डंठलों की राख चारों ओर फैलायी जाती है, और इसके बाद ईश्वर से प्रार्थनाएं की जाती हैं कि अंकुर खूब बढ़िया पनपे। इस हालत में यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि जब मुझे मेरे आसपास के किसानों ने जाड़े की फसल तथा सड़ते पुआल व खरपतवार के बीच की चावल के बीज बिखेरते देखा तो उन्हें लगा कि मेरा दिमाग चल गया है।
बेशक, अच्छे जुते हुए खेत में सीधे बीज बोने से वे अच्छे अंकुरित होते हैं, मगर यदि बारिश हो जाती है और खेतों में कीचड़ हो जाए तो उसमें आप चल-फिर नहीं सकते, और आपको बुआई स्थगित करनी पड़ती है। इस मामले में बिना-जुताई वाली खेती अधिक सुरक्षित होती है, लेकिन दूसरी तरफ इसमें दीमक, झींगुर तथा चूहों जैसे छोटे प्राणियों से परेशानी होती है। क्योंकि ये बीजों को खा जाते हैं। इस समस्या को बीजों को मिट्टी की गोलियों में रखकर फिर बोने से हल किया जाता है।
जाड़े के अनाज को बोने का प्रचलित तरीका यह है कि पहले बीज बो कर फिर उन्हें मिट्टी से ढंक दिया जाता है। यदि बीज गहरे चले गए तो सड़ जाते हैं। पहले मैं बीजों को जमीन पर बने छोटे-छोटे छिद्रों में डालता था या फिर हलों की लीक में और उन्हें मिट्टी से ढंकता नहीं था, लेकिन इन दोनों तरीकों में ही मुझे कई तरह की असफलताएं ही हाथ लगीं। इधर कुछ समय से मैं कुछ सुस्त हो गया हूं। अब मैं खेत में लीके बनाने या छेद खोदने की बजाए, बीजों को मिट्टी की गोलियों में बंद कर सीधे खेत में बिखेर देता हूं। सतह पर अंकुरण ज्यादा अच्छा होता है। क्योंकि वहां बीजों को ऑक्सीजन मिलती है। मैंने पाया कि जहां इन गोलियों को पुआल से ढंका गया, बीजों का अंकुरण अच्छा हुआ और वे ज्यादा बारिश होने पर भी सड़े नहीं।
आदर्श परिस्थितियों में एक चैथाई एकड़ के खेत से जौ का कोई 400 किलो पुआल प्राप्त होगा। यदि यह सारा का सारा वापस खेत में डाल दिया जाए तो पूरा खेत उससे ढंक जाएगा। इससे सबसे खतरनाक खरपतवार ‘क्रैब घास’ जो ‘सीधी बुआई -बिना जुताई वाली खेती में सबसे कठिन समस्या है, को भी नियंत्रित किया जा सकता है। चिड़ियां भी मेरे लिए काफी बड़ा सिरदर्द साबित हुई हैं। सीधे बीज बोने की विधि तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि पक्षियों से उन्हें बचाने का कोई कारगर तरीका नहीं ढूंढ लिया जाए। कई इलाकों में इसके धीमे प्रसार का यही कारण रहा है। आप में से कईयों के सामने चिड़ियों की यही समस्या रही है। इसलिए आप समझ जाएंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं।
मुझे याद है कि कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि ये पक्षी मेरे पीछे-पीछे उड़ते रहे, और खेत के दूसरी तरफ मैं बुआई का काम निपटाऊं, इसके पहले ही वे सारे बीजों को चुग गए। मैंने उन्हें दूर रखने के लिए लकड़ी के कंकाल बनाए, कनस्तरों का शोर मचाया, जाल डाले, लेकिन कोई तरकीब काम नहीं आई। कभी इनमें से कोई तरकीब थोड़ी बहुत काम आयी भी तो एक-आध् साल के लिए ही। मैंने अपने अनुभवों से यह साबित कर दिया कि पिछली फसल खड़ी रहते हुए बीज बो दिए जाएं ताकि वे घास और मेथी में छुपे रहें और पकी फसल को काटते ही उन्हें चावल, जौ या राई के पुआल से ढंक दिया जाए तो चिड़ियों की समस्या से काफी प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
बीते बरसों में मैंने कई गलतियां कीं तथा प्रयोगों के दौरान सभी प्रकार की असफलताओं का स्वाद भी चखा। कृषि फसलें उगाते हुए अचानक क्या अनसोचा घट सकता है, इसे मुझसे ज्यादा जानने वाला किसान जापान में शायद ही कोई दूसरा होगा। जब मैं बिना जुताई की विधि से पहली बार चावल तथा जाड़े की फसल उगाने में सफल हुआ तो मुझे वैसी ही खुशी हुई जैसी अमेरिका खोज लेने पर कोलंबस को हुई होगी।
पुआल बिना काटे फैलाएं
ओकायामा - परीक्षण केंद्र पर उसके अस्सी प्रतिशत परीक्षण खेतों में सीधे चावल बोकर फसल लेने की विधि आजमाई जा रही है। जब मैंने उन्हें पुआल को बिना काटे फैला देने का सुझाव दिया तो, स्पष्टतः उन्हें लगा कि यह ठीक नहीं हो सकता, और उन्होंने उसे यांत्रिक थ्रेशर से काट कर फिर खेतों में फैलाने का प्रयोग किया। जब कुछ वर्ष पूर्व मैं उनके यहां इस प्रयोग को देखने गया तो वहां मैंने खेतों को तीन हिस्सों में विभाजित किया हुआ देखा - बिना पुआल बिछे खेत, पुआल बिछे खेत तथा बिना कटा पुआल बिछे खेत। मैंने भी यही तरीका बरसों तक अपनाया था और चूंकि बिना कटा पुआल सबसे अच्छा ठहरा, इसलिए अब मैं उसे ही खेतों में फैलाता हूं।
शीमाने प्रांत के यासूकी कृषि हाईस्कूल के अध्यापक श्री फुजीआई की इच्छा सीधे बुआई करने की हुई, और वे मेरे फार्म पर पधारे। मैने उन्हें सुझाव दिया कि वे खेतों में बिना कटा पुआल फैलाएं। अगले साल वापस लौटकर उन्होंने मुझे बतलाया कि वह परीक्षण असफल रहा। उनके ब्यौरे को ध्यान से सुनने के बाद मुझे पता चला कि उन्होंने पुआल खेतों में सीधे, बड़े करीने के साथ, कुछ इस ढंग से बिछाया, जैसा जापानी अपने पिछवाड़े के आंगन में घास-पलवार सजाते हैं। यदि आप ऐसा करेंगे तो बीज कभी अच्छी तरह से अंकुरित नहीं होंगे। जौ और राई के पलवार के मामले में भी, यदि उसे बहुत ही करीने से बिछाया गया तो चावल के अंकुरों को बाहर निकलने में बड़ी कठिनाई होगी। सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि पुआल को इधर-उधर बस यों ही उछाल दिया जाना चाहिए, जैसे कि वे ठूंठ अपने आप वहां आकर गिरे हों।
जिस तरह धान का पुआल जाड़े के अनाज के लिए सबसे अच्छा पलवार होता है, वैसे ही जाड़े की फसल का पुआल चावल के लिए बढ़िया होता है। मैं चाहता हूं कि लोग इस बात को अच्छी तरह समझ लें। यदि खेतों में ताजा पुआल बिछाया गया हो तो चावल की ऐसी कई बीमारियां हैं, जो फसल को लग जाएंगी। चावल की ये बीमारियां, मगर जाड़े के अनाज की फसल को संक्रमित नहीं करेंगी और यदि चावल का पुआल पतझड़ के मौसम में फैलाया गया तो अगले वसंत में जब चावल अंकुरित होगा तब तक वह पूरी तरह सड़ चुका होगा। ताजा चावल का पुआल अन्य अनाजों के लिए अच्छा होता है। ऐसा ही कुटकी का पुआल भी होता है। इस तरह चावल और कुटकी के लिए अन्य अनाजों के पुआल का उपयोग किया जा सकता है। मोटे तौर पर जाड़े के गेहूं, राई, जौ जैसे अनाजों के लिए जाड़े की फसलों के ताजा पुआल का उपयोग, जाड़े की ही अन्य फसलों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इससे उन्हें बीमारियाँ लग सकती हैं।
पिछली फसल का पुआल तथा गहाई के बाद बाकी रही कुट्टी को भी खेतों में वापस बिछाया जाना चाहिए।
पुआल धरती को उर्वर बनाता है
पुआल फैलाने से मिट्टी की गठन सुधरती है और धरती की जो उर्वरता बढ़ती है उससे तैयार किए गए उर्वरकों की जरूरत नहीं रह जाती। मगर, बेशक इसका उपयोग बिना-जुताई वाली खेती में ही फलदायी होगा। केवल मेरे खेत ही सारे जापान में ऐसे हैं, जिनमें बीस साल से भी ज्यादा समय से हल-बखर नहीं चलाया गया है, और हर मौसम के साथ उनकी गुणवत्ता में सुधार आया है। मेरा अनुमान है कि इन बीस बरसों में धरती की ऊपरी सतह, कोई चार इंच की गहराई तक, खाद-मिट्टी से समृद्ध हो गई है। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि इन खेतों में जो कुछ उगा वह अनाज को छोड़कर, सब-का-सब, खेतों को ही लौटा दिया गया।
खाद बनाने की कोई जरूरत नहीं
खाद बनाने की कोई जरूरत नहीं होती। मैं यह नहीं कहता हूं कि खाद की जरूरत नहीं है। मेरा कहना है कि उसे तैयार करने के लिए खूब मेहनत करना जरूरी नहीं है। यदि पुआल या ठूंठों को वसंत या पतझड़ के मौसम में खेत की सतह पर ही पड़ा रहने दिया जाए और उस पर कुक्कट खाद या बत्तखों की बीट की एक पतली परत बिछा दी जाए तो वह छह महीनों मे सड़कर खुद-ब-खुद खाद बन जाता है।
परम्परागत ढंग से खाद बनाने के लिए किसान, कड़ी धूप में चारा-पुआल काटता है, उसमें पानी और चूना मिलाता है, उसका ढेर लगाता है और फिर उसे उठा कर खेतों तक ले जाता है। यह सारी जहमत वह यह सोचकर उठाता हैं कि यही तरीका ‘बेहतर’ है। इसके बदले मैं चाहूंगा कि लोग सिर्फ पुआल, कुट्टी या लकड़ी की छिलपियां खेतों में फैला दें।
पश्चिम जापान में तोकाइदो रेलमार्ग के किनारे-किनारे यात्रा करते हुए मैंने देखा है कि अब पुआल को, मेरे कहने के बाद से, कि पुआल को बिना काटे फैला देना चाहिए, ज्यादा मोटा काटा जाने लगा है। इसका श्रेय मैं किसानों को देना चाहूंगा, लेकिन आजकल के विशेषज्ञ अब भी यही कहते जा रहे हैं कि प्रति चौथाई एकड़ इतने सौ क्विंटल पुआल बिछाना चाहिए? रेल की खिड़की में से आपको नजर आता है कि किसानों ने लगभग आधा पुआल को काटकर खेतों में बिखेर दिया है, और बाकी को एक तरफ रख कर वर्षा में सड़ने के लिए छोड़ दिया गया है। यदि जापान के सारे किसान मिलकर सारा पुआल वापस खेतों में डालना शुरू कर दें तो उसका नतीजा यह होगा कि धरती को खाद की भारी मात्रा वापस मिलने लगेगी।
अंकुरण
सैकड़ों सालों से किसान लोग चावल के अच्छे, स्वस्थ और मजबूत पौधे उगाने के लिए बीज-क्यारियां तैयार करने के लिए बड़ी मेहनत कर रहे हैं। छोटी-छोटी क्यारियों की सफाई वे अपने घरों की पूजा वेदियों की तरह करते हैं। धरती को जोतकर, रेत तथा चावल के डंठलों की राख चारों ओर फैलायी जाती है, और इसके बाद ईश्वर से प्रार्थनाएं की जाती हैं कि अंकुर खूब बढ़िया पनपे। इस हालत में यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि जब मुझे मेरे आसपास के किसानों ने जाड़े की फसल तथा सड़ते पुआल व खरपतवार के बीच की चावल के बीज बिखेरते देखा तो उन्हें लगा कि मेरा दिमाग चल गया है।
बेशक, अच्छे जुते हुए खेत में सीधे बीज बोने से वे अच्छे अंकुरित होते हैं, मगर यदि बारिश हो जाती है और खेतों में कीचड़ हो जाए तो उसमें आप चल-फिर नहीं सकते, और आपको बुआई स्थगित करनी पड़ती है। इस मामले में बिना-जुताई वाली खेती अधिक सुरक्षित होती है, लेकिन दूसरी तरफ इसमें दीमक, झींगुर तथा चूहों जैसे छोटे प्राणियों से परेशानी होती है। क्योंकि ये बीजों को खा जाते हैं। इस समस्या को बीजों को मिट्टी की गोलियों में रखकर फिर बोने से हल किया जाता है।
जाड़े के अनाज को बोने का प्रचलित तरीका यह है कि पहले बीज बो कर फिर उन्हें मिट्टी से ढंक दिया जाता है। यदि बीज गहरे चले गए तो सड़ जाते हैं। पहले मैं बीजों को जमीन पर बने छोटे-छोटे छिद्रों में डालता था या फिर हलों की लीक में और उन्हें मिट्टी से ढंकता नहीं था, लेकिन इन दोनों तरीकों में ही मुझे कई तरह की असफलताएं ही हाथ लगीं। इधर कुछ समय से मैं कुछ सुस्त हो गया हूं। अब मैं खेत में लीके बनाने या छेद खोदने की बजाए, बीजों को मिट्टी की गोलियों में बंद कर सीधे खेत में बिखेर देता हूं। सतह पर अंकुरण ज्यादा अच्छा होता है। क्योंकि वहां बीजों को ऑक्सीजन मिलती है। मैंने पाया कि जहां इन गोलियों को पुआल से ढंका गया, बीजों का अंकुरण अच्छा हुआ और वे ज्यादा बारिश होने पर भी सड़े नहीं।
पुआल, अंकुरों को खरपतवार और चिडि़यों से बचाता है
आदर्श परिस्थितियों में एक चैथाई एकड़ के खेत से जौ का कोई 400 किलो पुआल प्राप्त होगा। यदि यह सारा का सारा वापस खेत में डाल दिया जाए तो पूरा खेत उससे ढंक जाएगा। इससे सबसे खतरनाक खरपतवार ‘क्रैब घास’ जो ‘सीधी बुआई -बिना जुताई वाली खेती में सबसे कठिन समस्या है, को भी नियंत्रित किया जा सकता है। चिड़ियां भी मेरे लिए काफी बड़ा सिरदर्द साबित हुई हैं। सीधे बीज बोने की विधि तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि पक्षियों से उन्हें बचाने का कोई कारगर तरीका नहीं ढूंढ लिया जाए। कई इलाकों में इसके धीमे प्रसार का यही कारण रहा है। आप में से कईयों के सामने चिड़ियों की यही समस्या रही है। इसलिए आप समझ जाएंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं।
मुझे याद है कि कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि ये पक्षी मेरे पीछे-पीछे उड़ते रहे, और खेत के दूसरी तरफ मैं बुआई का काम निपटाऊं, इसके पहले ही वे सारे बीजों को चुग गए। मैंने उन्हें दूर रखने के लिए लकड़ी के कंकाल बनाए, कनस्तरों का शोर मचाया, जाल डाले, लेकिन कोई तरकीब काम नहीं आई। कभी इनमें से कोई तरकीब थोड़ी बहुत काम आयी भी तो एक-आध् साल के लिए ही। मैंने अपने अनुभवों से यह साबित कर दिया कि पिछली फसल खड़ी रहते हुए बीज बो दिए जाएं ताकि वे घास और मेथी में छुपे रहें और पकी फसल को काटते ही उन्हें चावल, जौ या राई के पुआल से ढंक दिया जाए तो चिड़ियों की समस्या से काफी प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
बीते बरसों में मैंने कई गलतियां कीं तथा प्रयोगों के दौरान सभी प्रकार की असफलताओं का स्वाद भी चखा। कृषि फसलें उगाते हुए अचानक क्या अनसोचा घट सकता है, इसे मुझसे ज्यादा जानने वाला किसान जापान में शायद ही कोई दूसरा होगा। जब मैं बिना जुताई की विधि से पहली बार चावल तथा जाड़े की फसल उगाने में सफल हुआ तो मुझे वैसी ही खुशी हुई जैसी अमेरिका खोज लेने पर कोलंबस को हुई होगी।
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