पट्टे पर दी जा रही है यमुना, बैंक बांट रहे हैं कर्ज

नियमों के मुताबिक नदी में मालिकाना यानि संक्रमणीय अधिकार देना गैर-कानूनी है। उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 132 के अंतर्गत वन, नदी, नालों, झील, तालाब, पोखर, श्मशान, कब्रिस्तान, सार्वजनिक इस्तेमाल या विशेष प्रयोजन के लिए आरक्षित जमीन पर किसी भी तरह के भूमिधरी अधिकार नहीं दिए जा सकते। लेकिन सहारनपुर प्रशासन के लिए ये कानून कोई मायने नहीं रखते। भूमाफिया ने जमुना नदी को आईसीआईसीआई जैसे प्रतिष्ठित बैंकों में गिरवी रखकर करोड़ों का कर्ज भी ले रखा है।सहारनपुर, 18 जून। अफसरों व प्रशासन की मिलीभगत से यमुना नदी की हजारों बीघे गैर-कृषि भूमि पर भूमाफिया को मालिकाना हक बांट दिए गए हैं। सिर्फ यमुना ही नहीं, यही हाल हिंडन व ढमोला जैसी उसकी सहायक नदियों का भी है। गांवों में तालाबों और पोखरों की जमीन के भी अवैध तरीके से मालिकाना हक बांटे जा रहे हैं। इस तरह से हजारों हेक्टेयर सार्वजनिक जमीन पर अवैध कब्जे हो चुके हैं। इस खेल में बैंक भी पीछे नहीं हैं। अवैध तरीके से पट्टे पर दी गई इस जमीन पर बैंकों ने लोगों को करोड़ों के कर्ज बांट रखे हैं। इसकी आड़ में चंद प्रभावशाली लोग खेती, पेड़ों की कटाई और खनन से हर साल करोड़ों की कमाई कर रहे हैं।

नियमों के मुताबिक नदी में मालिकाना यानि संक्रमणीय अधिकार देना गैर-कानूनी है। उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 132 के अंतर्गत वन, नदी, नालों, झील, तालाब, पोखर, श्मशान, कब्रिस्तान, सार्वजनिक इस्तेमाल या विशेष प्रयोजन के लिए आरक्षित जमीन पर किसी भी तरह के भूमिधरी अधिकार नहीं दिए जा सकते। लेकिन सहारनपुर प्रशासन के लिए ये कानून कोई मायने नहीं रखते। भूमाफिया ने जमुना नदी को आईसीआईसीआई जैसे प्रतिष्ठित बैंकों में गिरवी रखकर करोड़ों का कर्ज भी ले रखा है। हरियाणा व उत्तर प्रदेश की सीमा पर यमुना नदी की बंदरबांट का यह धंधा पिछले दो दशक से जारी है।

खतौनियों में दाखिल-खारिज के साथ ही खरीद-फरोख्त व मालिकाना हकों के पुश्तैनी तौर पर हस्तांतरण तक भी धड़ल्ले से किए जा रहे हैं। ये कारनामे किसी पटवारी या कानूनगो के नहीं, बल्कि प्रथम श्रेणी के सहायक कलक्टर स्तर के अधिकारियों के हैं। यमुना नदी की खतौनी में दर्ज मालिकाना हक व उनके नाम पर लाखों के कर्ज चढ़े देखकर आयुक्त सुरेश चंद्रा व डीएम आलोक कुमार भी एकबारगी चौंक गए। विभागीय सूत्रों का कहना है कि भूमाफिया ने 1359 फसली रिकार्डों में फर्जी प्रविष्टियां दर्ज कराकर अपने नाम मालिकाना हक ले लिया था। जांच के बाद ये फर्जी प्रविष्टियां तो रद्द कर दी गई लेकिन खतौनी से मालिकाना हक नहीं काटे गए। यही नहीं, ज्यादातर कब्जेदारों को जितनी जमीन पर मालिकाना हक दिए गए हैं, उससे कई गुना ज्यादा जमीन पर उन्होंने अवैध कब्जे कर रखे हैं।

यमुना को गिरवी रखने में बैंक भी पीछे नहीं रहे। रपरौली में ही आईसीआईसीआई बैंक ने यमुना के खाता संख्या 0042 को बंधक कर रामेश्वर को पांच लाख, जसवीर को तीन लाख, महेंद्र को साढ़े तीन लाख रुपए का कर्ज दे रखा है। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने शफीक व रफीक को एक-एक लाख और मौसम को 55 हजार का कर्ज दे रखा है। आईसीआईसीआई बैंक के मैनेजर रितेश श्रीवास्तव ने यमुना की जमीन पर देने की बात स्वीकार की। लेकिन साथ ही उन्होंने इसे मुख्यालय स्तर का मामला बताकर पल्ला झाड़ लिया।

यमुना के पाट का काफी बड़ा हिस्सा भूमाफिया के कब्जे में है। इस गोरखधंधे में चकबंदी व तहसील प्रशासन दोनों शामिल हैं। कहीं चकबंदी में नवैय्यत बदल दी गई तो कहीं तहसील अधिकारियों ने संक्रमणीय अधिकार थमा दिए। कुछ मामलों में तो अवैध कब्जेदारों ने झूठ-मूठ के वाद दायर करा कर सुनवाई की आड़ में कब्जे जमा रखे हैं। यमुना तट पर बसे ढिक्काकलां गांव में चकबंदी अफसरों ने तो रपरौली गांव में सहायक कलक्टर प्रथम श्रेणी स्तर के तहसील अधिकारियों ने भूमाफिया को मालिकाना हक दे दिए। सिराजपुर तकीपुर, झरौली, हुसैनपुर, जमालपुरा जैसे गांवों में भी यही हाल है।

यमुना ही नहीं, अधिकारियों की निष्क्रियता से इसकी सहायक नदियां हिंडन व ढमोला अब नालों में तब्दील हो गई हैं। मैंनेजमेंट व इंजीनियरिंग कालेजों और फैक्टरी मालिकों ने नदी के बीचोंबीच तक दीवारें उठा रखी हैं। समाजसेवी राजकुमार ने कहा कि चंद पैसों के लालच में अफसर नदियों तक पर मालिकाना हक दे सकते हैं तो यह सोचना भी बेमानी लगता है कि यही अफसर इन जमीनों को अवैध कब्जे से मुक्त कराएंगे। अकेले रपरौली गांव में ही डेढ़ सौ हेक्टेयर के आस पास जमीन पर अवैध रूप से मालिकाना हक दिए गए हैं। सिराजपुर तकीपुर, झरौली, ढिक्काकलां, जमालपुरा, हुसैनपुर आदि गांवों को मिलाने पर यह जमीन हजारों हेक्टेअर के आसपास जाकर बैठेगी।

तालाबों व छोटे जलस्रोतों की तो और भी बुरी हालत है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक सहारनपुर तहसील के दो विकास खंडों के करीब 200 गांवों में तालाब, पोखर व जलप्रणालियों इत्यादि की हजारों हेक्टेअर भूमि पर अवैध कच्चे व पक्के कब्जे हैं। प्रशासन ने इन लोगों को चिन्हित तो कर लिया है लेकिन एकाध के खिलाफ कार्रवाई कर खानापूरी कर ली गई। ज्यादातर कब्जे तहसील-कर्मियों की अवैध कमाई का जरिया बने हुए हैं। यहीं नहीं, तालाबों में बनाए गए सरकारी भवनों जैसे प्रशासनिक कब्जे भी नहीं हटाए गए हैं। शहर के बीचोंबीच स्थित तालाबों तक पर कालोनियां काटी जा रही हैं। ऐसा भी नहीं है कि जलस्रोतों को बचाने में सरकार पैसा नहीं खर्च कर रही है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में पहली प्राथमिकता भूजल को बचाए रखने की है। लेकिन सरकार व अदालतों को अपनी कागजी प्रगति रिपोर्ट व तालाबों के जीर्णोद्धार के आंकड़े पेश कर वाहवाही लूटने वाले प्रशासन की कारगुजारी अब सबके सामने है।

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