पश्चिमी घाट का अनोखा प्राकृतिक सौंदर्य : सैकड़ों नदियों का उद्गम

गोबिचेत्तिपालयम से दिखने वाले पश्चिमी घाट. (स्रोत: www.wikipedia.org)
गोबिचेत्तिपालयम से दिखने वाले पश्चिमी घाट. (स्रोत: www.wikipedia.org)

हां भारत जैसे विशाल देश में अनोखी पारिस्थितिकीय विविधता पाई जाती है, वहीं पश्चिमी घाट की भारत देश में अपनी एक विशिष्ट पहचान है। पश्चिमी घाट प्रायद्वीपीय भारत की पूर्व दिशा में बहने वाली तीन प्रमुख नदियों गोदावरी, कृष्णा और कावेरी सहित बड़ी संख्या में बारहमासी नदियों का उद्गम स्थल है। यह ऐसे कई पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओं का आवास क्षेत्र है, जो विश्व में कहीं और नहीं पाए जाते। उत्तर-पूर्व के वन क्षेत्र, पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह क्षेत्रफल के लिहाज से बहुत छोटे हैं, मगर यहां पुष्पीय पौधों की लगभग 200 प्रजातियों के साथ 100 फर्न प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां के समुद्र में फैली मूंगे की चट्टानें जैवविविधता की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। उत्तर-पूर्वी वन में 1500 स्थानिक पादप प्रजातियां पाई जाती हैं तो वही, पश्चिमी घाट अनेक दुर्लभ उभयचरों, सरीसृपों व विशिष्ट पादप समूहों के लिए प्रसिद्ध है। पश्चिमी घाट दुनिया के उन 14 स्थानों में से एक है, जो अपनी जैवविविधता के लिए जाना जाता है। यह देश की 27 फीसदी वनस्पतियों के अलावा वैश्विक स्तर पर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे तीन सौ से अधिक पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की प्रजातियों का घर है। हालांकि, पेड़ काटने, खनन और अतिक्रमण के कारण पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत असर पड़ रहा है।

एक-फसलीय कृषि चक्र आदि ऐसे कारण हैं, जिनसे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। अवैध और अवैज्ञानिक गतिविधियों के चलते इस क्षेत्र में सूखा, अकाल, पानी की कमी तथा उपज में कमी आदि बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस क्षेत्र से बहने वाली 58 नदियों का पानी प्रदूषित हो गया है।

प्रकृति के निर्माण और इसके अस्तित्व हेतु जैवविविधता की प्रमुख भूमिका होती है, किन्तु यदि इसका हास होता है तो पर्यावरण चक्र में गतिरोध से जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है। वर्तमान में मानवजनित गतिविधियों के कारण जैवविविधता की तीव्र गति से हानि हो रही है। पृथ्वी पर लगभग 20 जीव प्रजातियों का अस्तित्व है और प्रत्येक जीव का पारिस्थितिक तंत्र में महत्व है। गौरतलब है कि दुनिया में 17 मेगा बायो डाइवर्सिटी हॉट स्पॉट हैं, जिनमें भारत का भी एक अहम स्थान है। बताते चलें कि पश्चिमी घाट की जैव विविधता के संरक्षण के लिए वर्ष 2010 में प्रख्यात पर्यावरणविद माधव गाडगिल की अध्यक्षता में गठित पश्चिमी घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल ने इस संपूर्ण क्षेत्र को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र का दर्जा प्रदान किया था। बाद में, इस पैनल की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए कस्तूरीरंगन कमेटी का भी गठन किया गया। भारत में गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के बाद कन्याकुमारी तक जाने वाली 1600 किलोमीटर लंबे इलाके को पश्चिमी घाट पर्वतीय श्रृंखला कहा जाता है। यहां के वन भारतीय मॉनसून की स्थिति को भी प्रभावित करते हैं। इस इलाके के पर्यावरण संरक्षण हेतु अनुशंसा करने के लिए केंद्र सरकार ने माधव गाडगिल समिति गठित की थी। इस समिति की अनुशंसाओं की दिशा में कुछ गतिरोध सामने आए। लेकिन वृहद उद्देश्य है पश्चिमी घाट के प्राकृतिक संसाधनों और इसकी समृद्ध जैवविविधता के संरक्षण हेतु प्रयास करना। इन प्रयासों में जनभागीदारी की बड़ी भूमिका है। अगर हम संरक्षण में वहां के निवासियों का सहयोग लेंगे तो इसके दो त्वरित फायदे सामने होंगे। एक तो जैवविविधता का बचाव संभव होगा तथा दूसरा, जो लोग इसका विरोध करते हैं, अब वे इसके सहायक बन कर इसके संरक्षण की जिम्मेदारी निभाएंगे। सर्वविदित है कि किसी भी भौगोलिक परिस्थिति की जानकारी वहां के निवासियों से बेहतर और भला कौन जान सकता है। वैसे भी लगातार मानवीय गतिविधियों और विकास के नाम पर हम जैवविविधता को बहुत क्षति पहुंचा चुके हैं, और अब हमें सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लेनी होगी।

देखा गया है कि जैवविविधता का क्षरण अधिकांशतः मानवीय क्रियाओं द्वारा ही हो रहा है। वैज्ञानिकों का मत है कि प्रति हजारों जीय प्रजातियाँ समाप्त हो रही हैं। इस प्रकार की हानि न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए ही हानिकारक है। आज आवश्यकता है कि नीति निर्माताओं और पश्चिमी घाट से जुड़े छः राज्यों की सरकारों को एकजुट होकर इस अति प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र को लोप होने से बचाने के प्रयास के लिए आगे आएं। अब इसके समुचित स्वरूप की जानकारी कर इसका संरक्षण करना बहुत जरुरी हो गया है। पश्चिमी घाट की जैवविविधता को बनाए रखने के लिये वन एवं वन्यजीवों की रक्षा ज़रूरी है। चूंकि स्वयं मानव का विकास विभिन्न चरणों में विभिन्न प्राणी जगत से होते हुए आगे बढ़ा है। अतः हमारे शरीर की रचना में इनके अंश निहित हैं। इसलिए हमें अपनी ज़रूरतों और उपलब्ध संसाधनों के मध्य सामंजस्य बैठाना होगा। साथ ही सरकार को इस पूरे क्षेत्र में भूस्खलन संबंधी विस्तृत ऑडिट कराना चाहिए। प्रवण क्षेत्रों की जनता को पुर्नस्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। ऐसे ही नदियों का ऑडिट करके बाढ़-क्षेत्र की पहचान की जानी चाहिए। अति वर्षा की चेतावनी का तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। पारिस्थितिकी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में खनन को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। कृषक और आदिवासी समुदाय को धारणीय कृषि के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। तभी वास्तव में, पश्चिमी घाट के प्राकृतिक संसाधनों और यहां की जैवविविधता का संरक्षण सुनिश्चित हो सकेगा।

संपर्क - लालजी जायसवाल,
मकान नं. 353/ए, 8वीं चौराहा सड़क, जीवन रेखा के पास
स्कूल आईटीडब्ल्यू साइनोड कॉलोनी, बीरमगुडा, हैदराबाद - 502 032 (तेलंगाना)
[ई-मेल: laljijayswal99@gmail.com]

स्रोत - विज्ञान प्रगति, जून 2022


 

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Post By: Kesar Singh
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