पसन्द आ रहा ऑर्गेनिक मार्केट

जैविक खेती (फोटो साभार: सिक्किम ऑर्गेनिक मिशन)
जैविक खेती (फोटो साभार: सिक्किम ऑर्गेनिक मिशन)

जैविक खेती (फोटो साभार: सिक्किम ऑर्गेनिक मिशन) गुजरात की शोभाबेन ऑर्गेनिक उत्पादों से महिलाओं को आय उपलब्ध करवा रहीं हैं। दिल्ली की काजल खुराना किचन वेस्ट के रिसाइकिल का नुस्खा बता रही हैं। इशिप्ता दत्ता और सीमा सिंह ने गुलाब व कॉफी से सौन्दर्य उत्पाद बनाए हैं। शशिकला जलकुम्भी से टोकरियाँ बना रही हैं। कर्नाटक की हर्षा पाटिल बाँस और लकड़ी की कटलरी लेकर स्टार्टअप के जरिये मार्केट में उतरी हैं। ऑर्गेनिक चीजों का व्यवसाय महिलाओं को बहुत भा रहा है।

जिस भी सेक्टर में महिलाओं के सफल होने की उम्मीदें परवान चढ़ी हैं, उसी में उन्होंने परचम लहरा दिया है। खेती में दशकों से महिलाएँ जी-तोड़ मेहनत करती आई हैं, लेकिन उनके योगदान को पहचाना नहीं गया, लेकिन आज वे खुद किसान बनकर ढेरों चीजें पैदा कर रही हैं। इतना ही नहीं उन्होंने ऑर्गेनिक उत्पादों के क्षेत्र में अपने कदम आगे बढ़ाए तो इसमें भी वे सफल एंटरप्रेन्योर बन गई हैं।

सूत की डोरी के प्रोडक्ट

गुदड़ी बाजार में उतरे और लोग उसे पसन्द करें तो यह मानना होगा कि ऑर्गेनिक चीजों को लेकर लोग जागरूक हो गए हैं। गुजरात की शोभाबेन को इसका काफी फायदा मिल रहा है। उन्होंने महिलाओं का एक समूह बनाया है। इसमें वे साथ काम करती हैं। उनके गाँव में कपास उगाया जाता है। इससे सूत कातकर डोरी बनाई जाती है। इसी सूत की डोरी और पुराने कपड़ों के प्रयोग से शोभाबेन बेड शीट, वॉल हैंगिंग, टेबल शीट और बेड रनर जैसी चीजें बनाती हैं और उन्हें अच्छे दामों पर बेचने में सफल रहती हैं। बाद में मुनाफा सभी महिलाओं में बँट जाता है। शोभाबेन कहती हैं, मेरे साथ 21 महिलाएँ काम कर रही हैं। हमारी संस्था का नाम गुजरात महिला मंडल है। हमारे गाँव में पहले घर में गुदड़ी बनती थी। अब इन्हें लड़कियों को शादी में भी दिया जाता है। इसी गुदड़ी से हम सारे आइटम बनाते हैं। अरारोट को पेस्ट के रूप में प्रयोग करते हैं। हल्दी, गुलाब से रंग बनाते हैं। यह गुदड़ी जब फट जाती है तो इनके बैग बना लेते हैं। इस तरह कपड़ों को भी रिसाइकिल करते रहते हैं।

जलकुम्भी की टोकरियाँ

तालाब की जलकुम्भी हजारों के लिये परेशानी का सबब बन सकती है, लेकिन इससे टोकरियाँ बनाने वाली शशिकला उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में अपना सेंटर चला रही हैं। इतना ही नहीं वह आस-पास के गाँवों की महिलाओं को प्रशिक्षित भी कर रही हैं। पहले जब यह काम घरों में होता था तो वह इसे इतना महत्त्वपूर्ण नहीं समझती थीं, लेकिन आज ऑर्डर मिलते हैं तो रात में सोती भी नहीं। देखने में लगता है कि कैसे बात कर पाएँगी, लेकिन आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, तीन साल से यह काम कर रही हूँ। इतना कमा लेती हूँ कि किसी से कुछ माँगना नहीं पड़ता। हमारे यहाँ दलदल वाले खेत हैं। महिलाएँ खाली रहती हैं। मैं गाँव की महिलाओं को ट्रेनिंग देती हूँ। उन्हें कमेटी डालना भी बताती हूँ जिससे पैसे मिलने पर वे अपना काम करती हैं। इन टोकरियों में हम कोई केमिकल नहीं लगाते। पॉलिश भी ऑर्गेनिक है। हम कोशिश कर रहे हैं कि महिलाओं को महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्रालय की ओर से सेंटर मिल जाए।

खुबानी व चावल का कारोबार

खास बात यह है कि दूर दराज के क्षेत्रों में भी महिलाएँ ऑर्गेनिक उत्पाद बना रही हैं या उगा रही हैं। उन्हें इनका मोल पता है और इनके बढ़ते प्रयोग से वे उत्साहित हैं। लद्दाख की सोनम यानचन की कोई दुकान नहीं है, लेकिन लद्दाख एनवायरनमेंट हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन से कॉन्ट्रैक्ट मिलता है और वे खुबानी जैसे अपने प्रोडक्टस उन्हें सीधे ही बेचती हैं। साल में करीब एक लाख के प्रोडक्ट बेच लेती हैं वह। वह कहती हैं, हमारा गाँव इको-विलेज है यहाँ सिर्फ ऑर्गेनिक खेती होती है। यहाँ टूरिस्ट सिर्फ एप्रीकॉट खरीदने आते हैं। इसी प्रकार चेन्नई से तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंजाकुडी गाँव में एम फॉर सेवा के तहत शीला बालाजी की पूरी टीम पचास एकड़ के फॉर्म पर ऑर्गेनिक खेती को अंजाम देती है और कई राज्यों से बीज मंगाकर ऑर्गेनिक चावल उगाती है। इसके लिये वह मणिपुर में पैदा होने वाले विशेष काला चावल, तमिलनाडु का लाल चावल, केरल का क्रीम राइस भी मंगाती हैं। वह सीड बैंक भी तैयार करती हैं।

युवा ब्रिगेड आई है आगे

ऑर्गेनिक उत्पादों को बढ़ावा देने में युवा ब्रिगेड भी पीछे नहीं है। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज की एक संस्था है बस्ता, जिसे 2015 में शुरू किया गया था। इसकी प्रोजेक्ट हेड रिया शर्मा कहती हैं, हम गरीब कलाकार महिलाओं को काम देते हैं और उनके प्रोडक्ट्स को सोशल मीडिया के जरिये बेचते हैं। करीब 25 छात्राएँ इससे जुड़ी हैं। हम सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिये काम कर रहे हैं। गुजरात की सकीना अहमद ऑर्गेनिक पॉटरीज का अपना पुश्तैनी व्यापार करती हैं।

वह कच्छ क्षेत्र की मिट्टी से ये बर्तन बनाती हैं जिनकी बहुत माँग है। भंडोरा ऑर्गेनिक्स की इशिप्ता दत्ता कहती हैं, हम ऑर्गेनिक कॉस्मेटिक के क्षेत्र में भी आए हैं। हिमाचल में हमारी यूनिट है। हल्दी, ओट्स, गुलाब की पत्तियों के क्रीम बेस्ट फेस मास्क हैं हमारे। इसके अलावा फेश रोस्टेड कॉफी बीन्स और लेमन के बाथ सॉल्ट हैं। हमने ऐसे इनग्रेडिएंट्स रखे हैं, जो स्किन को साफ और प्यूरीफाई करते हैं।

किचन वेस्ट को रिसाइकिल करते हैं

कूड़े के भण्डार को कम करने में हर कोई योगदान दे सकता है। मैं किचन वेस्ट को रिसाइकिल करने का व्यवसाय करती हूँ। मेरे पास कम्पोस्टर हैं जिनमें किचन के अलावा हर तरह का वेस्ट डाला जा सकता है। इससे ऑर्गेनिक खाद बनाई जा सकती है। इस विधि को बताने के लिये हम स्कूलों में जाते हैं और महिलाओं को भी बताते हैं। मेरे पिता वन विभाग में थे। वह घर पर वेस्ट से खाद बनाते थे। वहीं से मैंने यह सीखा -काजल खुराना, एटीपी ग्रीनटेक प्राइवेट लिमिटेड

नेचुरल तरीके से बनाते हैं कपड़ा

अहमदाबाद में हम हाथ से कपड़े बनाते हैं। अनार के छिलकों और हल्दी आदि से रंग बनाते हैं। हमारे साथ अधिकतर महिलाएँ ही काम करती हैं। हमारा पूरा प्रोसेस ऑर्गेनिक और नॉन-टॉक्सिक होता है। हम महिलाओं को चरखा चलाने और कपड़ा बुनने की ट्रेनिंग भी देते हैं। सौ साल पहले हमारे यहाँ जैसे कपड़ा बनता था वैसे ही हम बनाते हैं। हमने करीब दो लोगों को प्रशिक्षित किया है। हम गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र व बंगाल आदि के कलाकारों के साथ काम कर रहे हैं -सोनल बैद, सस्टेनेबल अर्थ फाउंडेशन

कोल्हू से सरसों का तेल

हम कोल्हू से तेल बनाते हैं और वह ग्रेड वन में आता है। हम पूरी तरह से ऑर्गेनिक फॉर्मिंग करते हैं। हमारे खेतों में सत्तर प्रतिशत महिलाएँ हैं। हमारी अपनी प्रोसेसिंग यूनिट है। हम बिना पॉलिश की दालें और अनाज बेचते हैं। हमारी अपनी कम्पोस्ट यूनिट है और हम अपने बायो फर्टिलाइजर्स और ऑर्गेनिक कीटनाशक बनाते हैं। हमारी कॉमर्शियल यूनिट हस्तिनापुर के पास है -सीमा सिंह, भंडोरा ऑर्गेनिक

जीरो वेस्ट नारा है हमारा

हमारे होम केयर, लाइफ स्टाइल और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स हैं। हम बॉडी स्क्रब्स, लिप बाम, टूथ पेस्ट, फेस स्क्रब्स बनाते हैं। रोज के प्रयोग के लिये ऑर्गेनिक साबुन और बाथ सॉल्ट बनाते है। हमारे पास स्टील और बैम्बू के स्ट्रॉज और बैम्बू टूथब्रश हैं हमारी कटलरी लकड़ी की है और बहुत हल्की है। इसे लेकर आप आसानी से कहीं भी जा सकते हैं। हमारा बंगलुरु बेस्ड स्टार्टअप है, जिसमें पाँच लोगों की छोटी सी टीम है। फाउंडर सहर मंसूर हैं। हमारा विचार जीरो वेस्ट का है। हम अपने उत्पाद काँच के जार में पैक करते हैं जिन्हें हमें वापस भेजकर फिर से भरवाया जा सकता है। हम पैकिंग भी रिसाइकिल पेपर में करते हैं। प्लास्टिक का कोई प्रयोग नहीं करते। हम जो भी चीजें इस्तेमाल करते हैं, उन्हें स्थानीय लोगों से ही खरीदते हैं। साथ ही देशी चीजें इस्तेमाल करते हैं -हर्षा पाटिल, बेअर नेसेसिटीज, जीरो वेस्ट


TAGS

rising market share of organic products in hindi, new products being invented by women in hindi, several startups based on organic products in hindi, rising number of women entrepreneurs in hindi, ladakh environment health organisation in hindi, recycling of organic products in hindi


Path Alias

/articles/pasanada-rahaa-oragaenaika-maarakaeta

Post By: editorial
×