नेताओं और इंजीनियरों के बयान पर अगर विश्वास किया जाय तो इस योजना को 1980 में पूरा कर लिया जाना चाहिये था मगर यह समय हर साल दो-दो साल कर के आगे खिसकता है। आर्थिक दृष्टि से अगर देखें तो 2006 तक इस योजना पर 717.33 करोड़ रुपये खर्च हुये थे और तब इस योजना का एस्टीमेट, भले ही इसकी स्वीकृति न हुई हो, 904 करोड़ रुपये (1998) आंका गया था। यानी इस योजना पर अभी लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च किया जाना बाकी है जिससे योजना को पूरा किया जा सके। पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी कोसी नहर पर खर्च का ब्यौरा नीचे दिया जा रहा है।
स्रोत- पश्चिमी कोसी नहर योजना, दरभंगा मुख्यालय, चीफ इंजीनियर की रिपोर्ट, 2006
जाहिर है, सन 1999-2000 तक योजना पर उस समय तक का सबसे ज्यादा खर्च 46.81 करोड़ किया गया। अभी कमला नदी पर बनने वाला साइफन अधूरा है और शाखा नहरों की बहुतांश संरचनाओं पर काम होना बाकी है। योजना के एस्टीमेट का फिर से निर्धारण करना बाक़ी है और तभी यह साफ हो पायेगा कि कोसी की यह पश्चिमी नहर अभी और कितने करोड़ रुपयों की राशि पीयेगी। इस रफ्तार से अभी 2005-06 में जरूर योजना पर खर्च में वृद्धि हुई है। इस नहर से पूरे निर्धारित क्षेत्र को सिंचाई मिलने में आज (2006) से कम से कम 15-20 साल का समय और लगने वाला है। मगर सरकार 2010 में नहर का काम पूरा कर लेने की गलत बयानी पर आमादा है और उससे सवाल पूछने वाला भी कोई नहीं है। कमला के साथ-साथ धौरी नदी पर बनने वाला साइफन भी अधूरा है और पफील्ड चैनेल्स का काम पिछले कई वर्षों से 26 प्रतिशत पर अटका हुआ है।
इसके अलावा यह परियोजना कब कछुए की तरह अपनी गर्दन सिकोड़ लेगी कह पाना मुश्किल है। 1990 से लेकर 1995 तक योजना पर जो खर्च किया गया वह किसी के लिए भी चिन्ता का विषय होना चाहिये। यह राशि नीचे दिखाई गई है।
स्रोत- भारत के नियंत्राक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट – 1995
यह आंकड़े किसी भी विभाग के लिए शर्म भी वजह बनने चाहिये थे। वर्ष 1994-95 में जहां काम पर मात्रा 10.47 लाख रुपये खर्च हुये वहीं काम करवाने वालों पर 9.38 करोड़ रुपये का बिल बना। इस तरह का सवाल अव्वल तो कोई उठाता नहीं है और अगर कभी उठाया भी गया तो सारे सम्बद्ध पक्ष ‘तो हम क्या करें?’ की मुद्रा में अकड़ कर खड़े हो जाते हैं।
बिहार सरकार की प्राक्कलन समिति की एक रिपोर्ट (1988) में इस परिस्थिति पर टिप्पणी की गई है जो कि इस तरह है। ‘‘... अतः समिति यह भी जानना चाहेगी कि 16 वर्ष पूर्व की परियोजना अभी तक जनहित में क्यों समर्पित नहीं की जा सकी है जबकि इसमें मूल्यवान 16 वर्ष, स्थापना व्यय, सम्पूर्ण नहर का रख-रखाव, सृजित नहर का रख-रखाव, उपकरणों का रख-रखाव, वाहनों का रख-रखाव, पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के यात्रा-भत्ता आदि पर व्यय वहन किया जा चुका है।’’ रिपोर्ट आगे लिखती है कि, ‘‘भारतीय भाग मधुबनी जिला में 2.02 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होनी है जिसमें बिन्दु 37.75 आर0डी0 तक, भुतही बलान तक, 5060 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता अभी तक सृजित है। समिति की राय में इतनी बड़ी धन-राशि व्यय होने के बाद इसकी अर्जित सिंचाई क्षमता काफी नगण्य है। नहर में बाक़ी संरचना के निर्माण के बीच धन नहीं दियाजाना और समय पर कालबद्ध चरण में निर्माण कार्य को पूरा नहीं किया जाना एक दुःखद स्थिति है।’’
इस रिपोर्ट को लिखे हुये भी 18 साल बीत चले हैं और जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं उसके अनुसार अभी तक कम से कम 16 साल और लगेंगे कि पश्चिमी कोसी नहर की सारी शाखाओं और उप-शाखाओं में पानी पहुँच सके।
बिहार विधान सभा में एक बार राज्य में सिंचाई पर बहस चल रही थी। यह वर्ष था 1980 जिसके बारे में यह कहा गया था कि इस साल पश्चिमी कोसी नहर पूरी कर ली जायेगी। विधायक सरयुग मिश्र पूर्वी कोसी मुख्य नहर की बदहाली पर भाषण दे रहे थे। उन्होंने पश्चिमी कोसी नहर पर एक बड़ी मार्मिक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि, ‘‘... आज लाखों एकड़ जमीन को नुकसान हो रहा है। लोग ड्रेन से सिंचाई का काम करते हैं। यह पागलपन है। दूसरा पागलपन है कि ईस्टर्न कोसी पर नहर है तो फिर वेस्टर्न नहर की खुदाई क्यों हो रही है? मैं कहता हूँ कि दरभंगा के जो विधायक हैं, दरभंगा के जो लोग हैं, क्यों अच्छी जमीन को बर्बाद करने के लिए तुले हुये हैं?’’
अब जनता की इस नहर में कितनी दिलचस्पी बची हुई है वह इसी बात से जाहिर है कि अब नहर के शीघ्र निर्माण के लिए न तो कोई सड़कों पर उतरता है न ही कहीं धरना या प्रदर्शन होता है। राधानन्दन झा ने जो कभी कहा था कि अगर नहर का काम पूरा नहीं होता है तो दरभंगा का आदमी आदमी को खायेगा, वैसा भी कुछ इस इलाके में नहीं हो रहा है। यह मानना कि दरभंगा या मधुबनी के किसान सरकार पर निर्भर हो कर अपनी खेती कर रहे हैं, उनके पुरुषार्थ को ललकारना है। नहर बने या न बने, यह अब उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा। सरकार जरूर हर साल आने वाले दो वर्षों में नहर का काम पूरा कर लेने का दम भरती है। देखना यह है कि यह दो वर्ष कब पूरे होते हैं?
तालिका 6.2
पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी कोसी नहर परियोजना परकिया गया खर्च | |
वर्ष | वार्षिक खर्च (करोड़ रुपये) |
1996-97 | 0.71 |
1997-98 | 8.56 |
1998-99 | 24.36 |
1999-2000 | 46.81 |
2000-01 | 43.20 |
2001-02 | 23.70 |
2002-03 | 23.30 |
2003-04 | 44.31 |
2004-05 | 34.77 |
2005-06 | 82.60 |
स्रोत- पश्चिमी कोसी नहर योजना, दरभंगा मुख्यालय, चीफ इंजीनियर की रिपोर्ट, 2006
जाहिर है, सन 1999-2000 तक योजना पर उस समय तक का सबसे ज्यादा खर्च 46.81 करोड़ किया गया। अभी कमला नदी पर बनने वाला साइफन अधूरा है और शाखा नहरों की बहुतांश संरचनाओं पर काम होना बाकी है। योजना के एस्टीमेट का फिर से निर्धारण करना बाक़ी है और तभी यह साफ हो पायेगा कि कोसी की यह पश्चिमी नहर अभी और कितने करोड़ रुपयों की राशि पीयेगी। इस रफ्तार से अभी 2005-06 में जरूर योजना पर खर्च में वृद्धि हुई है। इस नहर से पूरे निर्धारित क्षेत्र को सिंचाई मिलने में आज (2006) से कम से कम 15-20 साल का समय और लगने वाला है। मगर सरकार 2010 में नहर का काम पूरा कर लेने की गलत बयानी पर आमादा है और उससे सवाल पूछने वाला भी कोई नहीं है। कमला के साथ-साथ धौरी नदी पर बनने वाला साइफन भी अधूरा है और पफील्ड चैनेल्स का काम पिछले कई वर्षों से 26 प्रतिशत पर अटका हुआ है।
इसके अलावा यह परियोजना कब कछुए की तरह अपनी गर्दन सिकोड़ लेगी कह पाना मुश्किल है। 1990 से लेकर 1995 तक योजना पर जो खर्च किया गया वह किसी के लिए भी चिन्ता का विषय होना चाहिये। यह राशि नीचे दिखाई गई है।
तालिका 6.3
पश्चिमी कोसी नहर पर वर्ष 1990-91से 1994-95तककिया गया खर्च-लाख रुपये | |||
वर्ष | कार्य पर खर्च | स्थापना खर्च | कुल खर्च |
1990-91 | 762.93 | 7873.47 | 1536.40 |
1991-92 | 110.19 | 761.23 | 871.42 |
1992-93 | 95.29 | 833.10 | 928.39 |
1993-94 | 36.29 | 885.68 | 921.97 |
1994-95 | 10.47 | 938.34 | 948.81 |
स्रोत- भारत के नियंत्राक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट – 1995
यह आंकड़े किसी भी विभाग के लिए शर्म भी वजह बनने चाहिये थे। वर्ष 1994-95 में जहां काम पर मात्रा 10.47 लाख रुपये खर्च हुये वहीं काम करवाने वालों पर 9.38 करोड़ रुपये का बिल बना। इस तरह का सवाल अव्वल तो कोई उठाता नहीं है और अगर कभी उठाया भी गया तो सारे सम्बद्ध पक्ष ‘तो हम क्या करें?’ की मुद्रा में अकड़ कर खड़े हो जाते हैं।
बिहार सरकार की प्राक्कलन समिति की एक रिपोर्ट (1988) में इस परिस्थिति पर टिप्पणी की गई है जो कि इस तरह है। ‘‘... अतः समिति यह भी जानना चाहेगी कि 16 वर्ष पूर्व की परियोजना अभी तक जनहित में क्यों समर्पित नहीं की जा सकी है जबकि इसमें मूल्यवान 16 वर्ष, स्थापना व्यय, सम्पूर्ण नहर का रख-रखाव, सृजित नहर का रख-रखाव, उपकरणों का रख-रखाव, वाहनों का रख-रखाव, पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के यात्रा-भत्ता आदि पर व्यय वहन किया जा चुका है।’’ रिपोर्ट आगे लिखती है कि, ‘‘भारतीय भाग मधुबनी जिला में 2.02 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होनी है जिसमें बिन्दु 37.75 आर0डी0 तक, भुतही बलान तक, 5060 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता अभी तक सृजित है। समिति की राय में इतनी बड़ी धन-राशि व्यय होने के बाद इसकी अर्जित सिंचाई क्षमता काफी नगण्य है। नहर में बाक़ी संरचना के निर्माण के बीच धन नहीं दियाजाना और समय पर कालबद्ध चरण में निर्माण कार्य को पूरा नहीं किया जाना एक दुःखद स्थिति है।’’
इस रिपोर्ट को लिखे हुये भी 18 साल बीत चले हैं और जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं उसके अनुसार अभी तक कम से कम 16 साल और लगेंगे कि पश्चिमी कोसी नहर की सारी शाखाओं और उप-शाखाओं में पानी पहुँच सके।
बिहार विधान सभा में एक बार राज्य में सिंचाई पर बहस चल रही थी। यह वर्ष था 1980 जिसके बारे में यह कहा गया था कि इस साल पश्चिमी कोसी नहर पूरी कर ली जायेगी। विधायक सरयुग मिश्र पूर्वी कोसी मुख्य नहर की बदहाली पर भाषण दे रहे थे। उन्होंने पश्चिमी कोसी नहर पर एक बड़ी मार्मिक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि, ‘‘... आज लाखों एकड़ जमीन को नुकसान हो रहा है। लोग ड्रेन से सिंचाई का काम करते हैं। यह पागलपन है। दूसरा पागलपन है कि ईस्टर्न कोसी पर नहर है तो फिर वेस्टर्न नहर की खुदाई क्यों हो रही है? मैं कहता हूँ कि दरभंगा के जो विधायक हैं, दरभंगा के जो लोग हैं, क्यों अच्छी जमीन को बर्बाद करने के लिए तुले हुये हैं?’’
उपसंहार
अब जनता की इस नहर में कितनी दिलचस्पी बची हुई है वह इसी बात से जाहिर है कि अब नहर के शीघ्र निर्माण के लिए न तो कोई सड़कों पर उतरता है न ही कहीं धरना या प्रदर्शन होता है। राधानन्दन झा ने जो कभी कहा था कि अगर नहर का काम पूरा नहीं होता है तो दरभंगा का आदमी आदमी को खायेगा, वैसा भी कुछ इस इलाके में नहीं हो रहा है। यह मानना कि दरभंगा या मधुबनी के किसान सरकार पर निर्भर हो कर अपनी खेती कर रहे हैं, उनके पुरुषार्थ को ललकारना है। नहर बने या न बने, यह अब उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं रहा। सरकार जरूर हर साल आने वाले दो वर्षों में नहर का काम पूरा कर लेने का दम भरती है। देखना यह है कि यह दो वर्ष कब पूरे होते हैं?
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