डॉल्फिन का ऐतिहासिक एवं प्राचीन नाम गांगेय है। आज भी गंगा के प्रति समर्पित अनेक लोग अपने उपनाम में गांगेय शब्द का प्रयोग करते हैं। गांगेय की महत्ता सनातन धर्म में गंगा के साथ-साथ ही चलती है। आधुनिक भारत के इतिहास में इसका वर्णन लिखित रूप से सम्राट अशोक के कार्यकाल से मिलता है जिनके द्वारा बिहार के वर्तमान भागलपुर में विक्रमशिला के पास एक डॉल्फिन अभ्यारण्य का तैयार कराया जाना है। उनके समय में इसके शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि लिखित रूप में विश्व की प्रथम सुरक्षित प्रजाति गांगेय थी जिसको उस समय 'पुपुतकास' के नाम से पुकारा जाता था। भारत सरकार द्वारा 5 अक्टूबर 2006 को डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया इसके पश्चात से यह तिथि डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाई जाती है। वर्तमान में संपूर्ण विश्व के अंदर लगभग 45 00 से 5000 के बीच में डहल्फिन की संख्या रह गई है हमारे लिए प्रसन्नता की बात है यह है कि इनमें से 80 प्रतिशत का रहवास क्षेत्र भारत की धरा पर बहने वाली नदियों जिनमें प्रमुख रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना आदि नदियों में है।
भारतवर्ष के अंदर डॉल्फिन संरक्षण में सरकारी स्तर पर वन विभाग एवं डब्ल्यूडब्ल्यू ऑफ इंडिया की भूमिका रहती है। डॉल्फिन संरक्षण के लिए अपर गंगा रामसर साइट को नवंबर 2005 में रामसर साइट घोषित किया गया। डॉल्फिन संरक्षण के लिए यह भारत की पहली रामसर साइट थी जिसका क्षेत्र गढ़मुक्तेश्वर से प्रारंभ होकर नरोरा तक जाता है। इसकी लंबाई लगभग 110 किलोमीटर होती है। लोक भारती के वर्तमान में क्षेत्र सहसंयोजक भारत भूषण गर्ग डॉल्फिन संरक्षण के कार्य से प्रारंभ से ही जुड़े हुए है। 2006-07 में सेलिब्रिटी अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता बच्चन डॉल्फिन के शावकों को गंगा में छोड़कर इस महत्वपूर्ण अवसर पर उपस्थित रहीं जिनका एक कार्यक्रम पुष्पावती पूठ में लोक भारती के तत्वाधान में आयोजित कराया गया था।
अपर गंगा रामसर साइट में प्रथम बार 2025 में डॉल्फिन की गणना प्रारंभ की गई जिसमें 11डॉल्फिन की गणना की गई। यह स्थिति बहुत ही अच्छी थी क्योंकि नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का सबसे विश्वसनीय प्रतीक डॉलफिन होती है। इसके सांस लेने की आवाज के कारण से इसे सूंस के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एक दृष्टिहीन स्तनधारी जीव होता है एवं मीठे पानी में ही रहता है। यह जहां होता है वहां का पानी बिना किसी संशय के पीने योग्य होता है। इसके संरक्षण के लिए विशेष प्रयास करते हुए भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1872 की अनुसूची प्रथम में इसको संरक्षित घोषित किया गया। डॉल्फिन को सबसे अधिक खतरा अवैध शिकार, प्रदूषण एवं बांधों के कारण से होता है। डॉल्फिन गहरे जल में रहने के साथ ही 15 से 20 किलोमीटर ऊपर नीचे के चक्कर लगाती रहती है। यह एक से डेढ़ मिनट में सांस लेने के कारण से बाहर भी आती है। 2002 से डॉल्फिन संरक्षण के कार्य में जुटे भारत भूषण गर्ग के प्रयासों को देखते हुए 2016 में डब्ल्यू डब्ल्यू अहफ भारत के दिल्ली स्थित मुख्यालय में भारत भूषण गर्ग को डॉल्फिन गार्जियन की मानक उपाधि प्रदान की गई।
आज लोक भारती के प्रयासों के कारण से राज्य वन्य जीव अभ्यारण हस्तिनापुर एवं अपर गंगा रामसर साइट में जितने भी अभियान डॉल्फिन संरक्षण, घड़ियाल संरक्षण एवं अन्य प्रकार के जैसे सारस गणना अथवा प्रवासी पक्षियों की गणना के सरकारी स्तर पर चलाए जाते हैं उनमें विधिवत रूप से लोक भारती को सहभागी किया जाता है। लोक भारती के तत्वाधान में गंगा ग्रामों में लगातार जन जागरण के कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं जिस कारण से गंगा के अंदर शिकार एवं प्रदूषण कम हुआ है। वर्तमान में स्वर्गद्वारी पुष्पावती पूठ थाम डॉल्फिन को देखने के लिए आने वाले लोगों का केंद्र बन गया है। यहां कछुआ की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यहां डॉल्फिन अपने परिवार के साथ सुबह और शाम के समय स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। आज लोक भारती के तत्वाधान में डॉल्फिन गार्जियन भारत भूषण गर्ग के महती प्रयासों से डॉल्फिन की संख्या बढ़कर 50 हो गई है। इस वर्ष 02 अक्टूबर 2023 को बिजनौर गंगा बैराज से मुख्य वन संरक्षक मेरठ एनके जानू के द्वारा डॉल्फिन काउंटिंग का प्रारंभ किया गया जिनका स्वागत 4 अक्टूबर 2023 को डॉल्फिन गार्जियन भारत भूषण गर्ग ने बृजघाट गंगा तट पर किया। जहां जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन भी हुआ। तत्पश्चात डब्ल्यू डब्ल्यू ऑफ भारत के डॉल्फिन प्रोजेक्ट के प्रमुख शाहनवाज खान एवं टीम लीडर संजीव यादव, प्रभागीय वन अधिकारी हापुड़ संजय कुमार मल्ल के साथ लोक भारती के क्षेत्र सहसंयोजक व डॉल्फिन गार्जियन भारत भूषण गर्ग तथा मूलचंद आर्य ने मोटर बोट के द्वारा डॉल्फिन गणना में भाग लिया गणना की समाप्ति 6 अक्टूबर को नरोरा में हुई तब इसके आंकड़े जारी किए गए जिनमें सर्वाधिक डॉल्फिन रामसर साइट में पुष्पावती पूठ में ही देखने को मिली। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक संस्था लोक भारती के प्रयासों के कारण से जो सहयोग सरकारों को एवं इस प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों को दिया जा रहा है वह अपने आप में अद्वितीय है। आज लोक भारती पर्यावरण के क्षेत्र में एक विशिष्ट स्थान अपने कार्यकर्ताओं के बल पर रखती है। पश्चिम क्षेत्र में लोक भारती के अभियान आम जनमानस को प्रभावित कर रहे है।
स्रोत - लोक सम्मान नवम्बर, 2023
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