पृथ्वी के जीवन अस्तित्व पर मंडराता खतरा

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष


आज विश्व की आबादी का छठा हिस्सा शुद्ध पेयजल की समस्या से जूझ रहा है। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा कम पड़ने लगी है। प्रदूषित जल पीने से असाध्य बीमारियों का लगातार प्रकोप बढ़ता जा रहा है। जिससे हैजा, आंत्रशोध, पीलिया, मोतीझरा, ब्लड कैंसर, त्वचा कैंसर, हड्डी रोग, हृदय एवं गुर्दे के रोग सैकड़ों नागरिकों को चपेट में लेते हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण जीव अपने परिवेश से विस्थापित हो रहे हैं। विश्व में प्रतिवर्ष 1.1 करोड़ हे. वन काटा जाता है। जिसमें भारत में प्रतिवर्ष 10 लाख हे. वनों की कटाई धड़ल्ले से हो रही है। जनसंख्या की विस्फोटक बाढ़ और मनुष्य की भौतिक जीवनशैली ने मिलकर प्राकृतिक संसाधनों का इतना अंधाधुंध दोहन किया व आर्थिक विकास का माध्यम बनाया कि विश्व में गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रहीं हैं।

शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, जंगलों का नष्ट होना, कल-कारखानों से धुआं उगलती चिमनियों से प्रवाहित कार्बन डाइऑक्साइड, कचरे से भरी नदियां, रासायनिक गैसों से भरा प्रदूषित वातावरण, सड़कों पर वाहनों की भरमार, लाउड स्पीकरों की कर्कश ध्वनि, रासायनिक हथियारों का परीक्षण एवं संचालन आदि ने पर्यावरणी समस्याओं को उत्पन्न करके मानव को आशंकित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण असंतुलन के कारण पृथ्वी पर जीवन अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है।

विश्व जलवायु में अप्रत्याशित परिवर्तन आ चुका है। उनमें भारत भी शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत के ज्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति काफी भयानक है। दुनिया के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में 13 भारतीय शहर भी शामिल हैं। उसमें दिल्ली सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में है।

भारत में वन्य जीवों की समृद्ध विरासत के साथ-साथ जैवविविधता के संरक्षण का लंबा इतिहास और परंपरा रही है। प्राचीन भारत के संत-महात्माओं के आश्रम जीवों की सुरम्य स्थली हुआ करते थे। पेड़-पौधों और पशुओं के प्रति प्रेम का पहला लिखित प्रमाण तीसरी सदी ईसा पूर्व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। 242 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने भी पशु पक्षियों और वनस्पतियों के संरक्षण पर जोर दिया था। लगभग सभी मुगल शासक भी जैव विविधता के संरक्षण के हिमायती थे।

उस समय कल-कल निनाद बहती स्वच्छंद सरिताएं, निर्मल झीलें एवं पावन झरने थे। जंगल भी तरह-तरह के जीव-जंतुओं से आबाद था। आज सभी गायब हैं। नदियां प्रदूषित कर दी गईं, जो गंदे नालों के रूप में परिवर्तित होती जा रही हैं। समुद्र भी प्रदूषित हो रहे हैं। झील-झरने सूख रहे हैं। वनों से पेड़, वन्यजीव गायब होते जा रहे हैं।

विश्व वनजीव कोष के अनुसार विश्व की दस बड़ी नदियों पर सूखने का खतरा मंडरा रहा है। मौत की दहलीज पर खड़ी उन नदियों में हमारी गंगा भी शामिल है। पतित पावनी गंगा अब स्वयं अपनी मुक्ति की गुहार लगा रही है। यह चिंता का विषय है कि आज गंगा जैसी सर्वाधिक पवित्र मानी जाने वाली नदी ही सबसे अधिक प्रदूषित हो गई है।

वैज्ञानिकों ने भी स्पष्ट किया है कि कल-कारखानों द्वारा निकले औद्योगिक कचरों को गंगा नदीं में डाल दिए जाने से नदी का जल बहुत दूर तक प्रदूषित हो गया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्र के अनुसार बनारस में 33 नालों के जरिए लगभग 350 एमएलडी सीवेज का कचरा गंगा नदी में प्रवाहित हो रहा है। इसके अलावा मर्णिकणिका व हरीशचंद्र घाट पर वर्ष भर में 33 हजार शव जलाए जाते हैं।

जिनकी 800 टन राख, 300 टन अधजला मास, बच्चों, पुरुषों व महिलाओं के 3000 शव और 6000 जानवरों की लगभग लाशें गंगा नदी में प्रवाहित की जाती हैं। जिससे विषैले तत्वों के मिल जाने से गंगा नदी का जल पारदर्शी नहीं रह गया है, बल्कि गहरा नीला पड़ता जा रहा है। कानपुर में चमड़ा और अन्य उद्योगों से बहाए गए कचरे के कारण गंगा का पानी इतना गंदा हो गया है कि उसमें डुबकी लगाना तो दूर वहां खड़े होकर सांस तक नहीं ली जा सकती है।

भारत की गंगा, सिंध, नील और चीन की यात्सी नदियां प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में है। इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले आने वाले कुछ दशकों में गंगा का अस्तित्व इतिहास के पन्नों पर दर्ज होकर ही रह जाएगा।

आज विश्व की आबादी का छठा हिस्सा शुद्ध पेयजल की समस्या से जूझ रहा है। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा कम पड़ने लगी है। प्रदूषित जल पीने से असाध्य बीमारियों का लगातार प्रकोप बढ़ता जा रहा है। जिससे हैजा, आंत्रशोध, पीलिया, मोतीझरा, ब्लड कैंसर, त्वचा कैंसर, हड्डी रोग, हृदय एवं गुर्दे के रोग सैकड़ों नागरिकों को चपेट में लेते हैं।

वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण जीव अपने परिवेश से विस्थापित हो रहे हैं। विश्व में प्रतिवर्ष 1.1 करोड़ हे. वन काटा जाता है। जिसमें भारत में प्रतिवर्ष 10 लाख हे. वनों की कटाई धड़ल्ले से हो रही है। वनों के विनाश के कारण वन्यजीव लुप्त हो रहे हैं। रूस, इंडोनेशिया, अफ्रीका, चीन सहित भारत के कई अनछुए माने जाने वाले जंगल भी कटाई का शिकार हो चुके हैं।

पशु-पक्षी, पेड़-पौधे जीव-जंतु, मानव व जानवर सभी अपने जीवन अस्तित्व के संकट की चपेट में तड़प रहे हैं। पेड़ों के कटने के कारण वायु मंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की निरंतर बढ़ती मात्रा के कारण वातावरण के तापमान में दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है। जिससे धरती का तापमान निरंतर बढ़ रहा है, इसलिए पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गई हैं।

विश्व पर्यावरण दिवसजंगलों से शेर, चीते, बाघ आदि गायब हो रहे हैं। 90 प्रतिशत गिद्ध दुनिया से विदा हो चुकें हैं। मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन व असंतुलन निरंतर बढ़ रहा है, जिससे समय-समय पर अतिवृष्टि व अनावृष्टि भी हो रही है। हिमनंद सूख रहे हैं। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की बर्फ पिघलकर महाविनाश की भूमिका तैयार कर रही है। यह सब पर्यावरण प्रदूषण के परिणामस्वरूप ही हो रहा है, जो भविष्य में सतर्क होने की चेतावनी दे रहा है।

अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों ने चेताया है कि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस जलवायु परिवर्तन के दुष्चक्र में फंस चुंके हैं। इन देशों के तापमान व समुद्री जलस्तर में निरंतर वृद्धि हो रही है, जिससे इन स्थानों पर समुद्री तूफान आने की संभावना बनी रहती है। गत् कुछ वर्षों के समुद्री तूफानों ने विश्व भर में भारी तबाही भी मचाई है।

भारत सरकार वन संरक्षण और वनों के विस्तार की योजना पर गंभीरता से कार्य नहीं कर रही है। जिससे उसके अधीनस्थ अधिकारियों, कर्मचारियों और नेताओं की मिली भगत से सिर्फ कागजों पर ही पेड़ लगाए जा रहे हैं और उसी पर उग रहे हैं लेकिन हकीकत में जमीन से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जारी है।

शासन प्रशासन में बैठे लोग, वन विभाग के अधिकारी, पुलिस प्रशासन और ठेकेदारों की मिली भगत से जारी अवैध कटान ने स्थिति को और विकराल बना दिया है। जिम्मेदार अधिकारी रुपयों के चंगुल में फंसकर बेशकीमती हरे पेड़ों को अंधाधुंध कटवाने में लगे हुए हैं। इन लोगों की आंखों पर काले चश्मे लगे हैं, जिससे उन्हें दिखाई नहीं पड़ता कि देश की बहुमूल्य संपदा नष्ट हो रही है, जिसका असर पूरी दुनिया भर में पड़ रहा है।

आजादी के बाद से आज तक 53 लाख घने जंगल खत्म हो चुके हैं। पर्यावरण मंत्रालय भी वनों को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं दिखाई पड़ता है। देश का एक भी मैदानी राज्य ऐसा नहीं है, जो 33 प्रतिशत वन क्षेत्र के मानक पर खरा उतरता हो।

पर्यावरण दिवस पर सभी सचेतन नागरिकों को शपथ लेनी होगी कि हम विरासत में मिली हुई धरोहर पृथ्वी के पर्यावरण को प्रदूषण की समस्या से मुक्त करने का पुरजोर प्रयास करेंगे। साथ ही दुनिया को शस्य श्यामला बनाए रखने के लिए चारों तरफ हरियाली लानी होगी और वन संपदा तथा जीव जंतुओं को बचाना होगा। अगर समय रहते पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन एवं संतुलन की दिशा में कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में पृथ्वी पर जीवन अस्तित्व का संकट ही खड़ा हो जाएगा।

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