पर्यावरणीय विज्ञान पर्यावरण के भौतिकीय, रासायनिक और जैविक अवयवों के बीच पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन है। पर्यावरणीय विज्ञान पर्यावरणीय व्यवस्था के अध्ययन के लिए समन्वित, परिमाणात्मक और अन्तरविषयक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। पर्यावरणीय वैज्ञानिक पर्यावरण की गुणवत्ता की निगरानी करते हैं, स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी व्यवस्था पर मानवीय कृत्यों की व्याख्या करते हैं तथा पारिस्थतिकी व्यवस्था की बहाली के लिए रणनीतियां तैयार करते हैं। इसके अलावा पर्यावरणीय वैज्ञानिक योजनाकारों की ऐसे भवनों, परिवहन कोरिडोरों तथा उपयोगिताओं के विकास तथा निर्माण में सहायता करते हैं जिनसे जल संसाधनों की रक्षा हो सके तथा भूमि का सदुपयोग हो सके। पर्यावरणीय विज्ञान की अन्तर-विषयक प्रकृति होने के कारण, विशेषज्ञ दल पर्यावरणीय अनुसंधान करने या पर्यावरणीय प्रभाव के विवरण, जैसा कि अमरीकी राष्ट्रीय पर्यावरणीय नीति अधिनियम (एनईपीए) या सरकारी कानूनों के तहत अपेक्षित है, सामान्यतः एक साथ मिल-जुलकर कार्य संचालित करते हैं। चूंकि ज्यादातर पर्यावरणीय मुद्दे मानवीय गतिविधियों से संबंधित होते हैं, अतः पर्यावरणीय विज्ञान के साथ अक्सर अर्थशास्त्र, विधि और समाज-विज्ञान विषयों का अध्ययन भी कराया जाता है। पर्यावरणीय विज्ञान के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन, संरक्षण, जैव- विविधता, भूमिजल और मृदा संदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग, कचड़ा प्रबंधन, सतत विकास,वायु प्रदूषण और शोर से होने वाले प्रदूषण जैसे मुद्दों को शामिल किया जाता है। हालांकि पर्यावरण का अध्ययन कम से कम तब से तो कराया ही जा रहा है, जब से विज्ञान का अध्ययन हो रहा है लेकिन १९६० और १९७० के दशक में पर्यावरणीय व्यवस्था का अध्ययन एक स्थाई और सक्रिय वैज्ञानिक अन्वेषण के क्षेत्र में उभरकर सामने आया है। इसकी आवश्यकता इसलिए हुई कि गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं के विश्लेषण के लिए बृहत बहुविषयक दल की आवश्यकता महसूस की गई तथा पर्यावरणीय समस्याओं के निराकरण के वास्ते विनिर्दिष्ट पर्यावरणीय अन्वेषण के लिए अपेक्षित स्थाई पर्यावरणीय कानूनों और पर्यावरण के प्रति जनता में बढ़ती जागरुकता का संचार हुआ है। रोजागार की संभावनाएं पर्यावरणीय समस्याओं की गंभीरता और विस्तार ने पर्यावरण विज्ञान में कठोर, अन्तर-विषयक प्रशिक्षण प्राप्त वैज्ञानिकों की आवश्यकता में तेजी से वृद्धि की है। ज्यादातर पर्यावरणीय वैज्ञानिक सरकारी पदों पर कार्यरत हैं, लेकिन निजी क्षेत्र में इनकी मांग काफी बढ़ने की आशा है क्योंकि नए नियमों और विनियमों के बारे में सरकारी नीति की मांग उठने लगी है। निजी क्षेत्र की परामर्शदात्री फर्मों में पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के लिए व्यापक रूप से रोजगार की संभावनाएं बढ़ गई हैं। बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ पर्यावरण और जल संसाधनों के प्रति बढ़ती मांग को देखते हुए अर्यावारानीय वैज्ञानिकों के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा इस मांग में कठोर पर्यावरणीय कानूनों और विनियमों, विशेषकर जो भूमिजल विसंदूषण, स्वच्छ हवा और बाढ़ नियंत्रण से संबंधित हैं, के अनुपालन की बाध्यता को देखते हुए और अधिक वृद्धि की संभावना है। औसतन अन्य सभी व्यवसायों की अपेक्षा पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के रोजगार में २००६ और २०१६ के बीच २५ प्रतिशत तक की वृद्धि होने की संभावना है। उप-श्रेणियां वातावरणीय विज्ञान के अंतर्गत पृथ्वी की बाहरी गैसीय परत की अन्य प्रणालियों से संबद्धता के साथ नए घटना-क्रिया विज्ञान की जांच की जाती है। वातावरणीय विज्ञान में मौसम विज्ञान का अध्ययन, ग्रीन हाउस गैस घटना-क्रिया-विज्ञान, वायुवाहित सम्मिश्रणों के वातावरणीय विखंडन मॉडलिंग, ध्वनि प्रदूषण और यहां तक कि प्रकाश प्रदूषण से संबंधित क्रियाओं का अध्ययन सम्मिलित है। विश्व में बढ़ती गर्मी को देखते हुए भौतिकीविद वातावरणीय प्रचालन और इन्फ्रा-रेड विकिरण प्रसार के कम्प्यूटर मॉडल तैयार करते हैं, रसायन शास्त्री वातावरणीय रसायनों और उनकी क्रियाओं की जांच करते हैं, जैविक विज्ञानी पौधों और पशुओं के कार्बन-डाइ-ऑक्साइड में योगदान का विश्लेषण करते हैं तथा विशेषज्ञ जैसे कि मौसम विज्ञानी और समुद्र-विज्ञानी वातावरणीय गतिशीलता को समझने में व्यापकता का संचार करते हैं।
पारिस्थितिकी अध्ययन के अंतर्गत विशेष तौर पर मिलती-जुलती जनसंख्या के बीच गतिशीलता याजनसंख्या और इसके कुछ पर्यावरणीय पहलुओं के विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है। इन अध्ययनों से संकटापन्न प्रजातियों/परभक्षी/शिकारी संपर्क, बस्तियों की एकता, पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का जनसंख्या पर प्रभाव या प्रजातियों की जीवनक्षमता पर प्रस्तावित भूमि विकास के प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता है। पारिस्थितिकी प्रणाली के अंतरविषयक विश्लेषण की काफी व्यापकता है और इनमें पर्यावरण से संबंधित कई क्षेत्रों को शामिल किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर नदीमुख के आसपास प्रस्तावित औद्योगिक विकास के समय इस बात की जांच कर ली जानी चाहिए कि इससे जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण से कुछेक प्रजातियों पर असर पड़ सकता है। इस अध्ययन के अंतर्गत जीवविज्ञानी वनस्पतियों का अध्ययन करेंगे, रसायन शास्त्री जलप्रदूषकों से होने वाली दलदल का, भौतिकीविद् वायु प्रदूषण का अध्ययन करेंगे तथा भू-वैज्ञानिक दलदल मिट्टी और कीचड़ के बारे में समझने में सहायता करेंगे। पर्यावरणीय रसायन-विज्ञान पर्यावरण में रासायनिक तत्वों के अध्ययन का क्षेत्र है। अध्ययन के प्रमुख क्षेत्रों में मृदा संदूषण तथा जल प्रदूषण शामिल है।
विश्लेषण के विषयों के अंतर्गत पर्यावरण में रासायनिक निम्नीकरण, रसायनों के बहु-चरणीय परिवहन (उदाहरण के लिए लाक्षक युक्त मिश्रण का वायु प्रदूषक के तौर पर वाष्पीकरण), तथा बायोटा पर रासायनिक प्रभाव आदि क्षेत्र शामिल हैं। उदाहरणार्थ अध्ययन के तौर पर एक ऐसे लीक कर रहे माल से भरे टैंक के बारे में विचार करें जो कि संकटापन्न प्रजातियों के जलीय क्षेत्र में मिट्टी के ढलान में प्रवेश कर जाता है। ऐसे में भौतिकीविद मृदा संदूषण के स्तर को समझने के लिए एक कम्प्यूटर मॉडल तैयार करेगा, रसायन विज्ञानी मिट्टी के प्रकार में उस साल्वेंट की आणविक स्थिति का मूल्यांकन करेगा तथा जैविक शास्त्री मिट्टी सन्धिपाद, पौधों तथा अन्ततः तालाब में प्रावारकों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करेगा, जो कि संकटापन्न प्रजातियों का जलीय भोजन है। भूविज्ञान के अंतर्गत पर्यावरणीय भूविज्ञान, जलविज्ञान, भौतिकी भूगोल, जलवायु विज्ञान तथा भू-आकृतिविज्ञान शामिल है। इसमें समुद्र-विज्ञान तथा अन्य संबद्ध क्षेत्र भी सम्मिलित हो सकते हैं। मिट्टी कटाव के अध्ययन के उदाहरण के रूप में मृदा वैज्ञानिकों द्वारा भूमि कटाव का अध्ययन किया जाएगा। जल-विज्ञानी स्थल मार्ग बहाव में तलछट परिवहन की जांच में सहायता करेंगे। भौतिकीविद पानी प्राप्त होने में लाइट ट्रांसमिशन में परिवर्तनों के मूल्यांकन में योगदान करेंगे। जीव-विज्ञानी पानी में गंदगी बढ़ने से उसका वनस्पति पर होने वाले प्रभाव की जांच करेंगे। पर्यावरण मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके जरिए पर्यावरण सुरक्षा और सतत विकास पर विचार हो सकता है। पर्यावरणीय मूल्यांकन के अंतर्गत मुख्यतः फील्ड डाटा एकत्र करके इसका पर्यावरण और विकास से संबंधित विभिन्न शाखाओं के जरिए परस्पर संबंधों का मूल्यांकन करना है। पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवविज्ञान पर्यावरण में सूक्ष्म जीवों के मिश्रण तथा शरीर क्रिया विज्ञान का अध्ययन है। इस मामले में पर्यावरण से आशय मिट्टी, जल, वायु और ग्रह पर होने वाले अवसाद हैं और इनमें इन क्षेत्रों में रहने वाले पशु तथा पौधे भी शामिल किए जा सकते हैं। पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवविज्ञान में बायो-रिएक्टर्स जैसे कृत्रिम पर्यावरण में होने वाले माइक्रोआर्गेनिज्म का अध्ययन भी शामिल हो सकता है। पर्यावरणीय विज्ञान में कॅरिअर और रोजगार की संभावनाएं :
अर्हताएं : देश भर में कई संस्थानों द्वारा पर्यावरणीय विज्ञान और पर्यावरणीय इंजीनियरी दोनों में स्नातकपूर्व और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। पर्यावरणीय विज्ञान और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, उनकी अवधि तथा अपेक्षित योग्यताएं निम्नानुसार हैं :-
• बीएससी (पर्यावरणीय विज्ञान), अवधि : ३ वर्ष, पात्रता : भौतिकी, रसायनशास्त्र और जीव विज्ञान विषयों के साथ १०+२।
• एमएससी (पर्यावरणीय विज्ञान), अवधि : २ वर्ष, पात्रता : पर्यावरणीय विज्ञान, प्राणीविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी या रसायन शास्त्र में बीएससी।
• पर्यावरण प्रबंधन और पर्यावरणीय विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम।
• पर्यावरणीय इंजीनियरी में बीई, पात्रता : भौतिकी, रसायन शास्त्र और गणित विषयों के साथ १०+२।
• पर्यावरणीय विज्ञान और इंजीनियरी में एम.टैक, अवधि : २ वर्ष पात्रता : पर्यावरणीय/सिविल इंजीनियरी में बीई/बी.टैक।
• ऊर्जा और पर्यावरण प्रबंधन में एम.टैक, अवधि : २ वर्ष, पात्रता : पर्यावरणीय/सिविल इंजीनियरी में बीई/बी.टैक।
• एम.टैक (पर्यावरणीय इंजीनियरी), अवधि : २ वर्ष, पात्रता : पर्यावरणीय/सिविल इंजीनियरी में बीई/बी.टैक।
पारिस्थितिकी अध्ययन के अंतर्गत विशेष तौर पर मिलती-जुलती जनसंख्या के बीच गतिशीलता याजनसंख्या और इसके कुछ पर्यावरणीय पहलुओं के विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है। इन अध्ययनों से संकटापन्न प्रजातियों/परभक्षी/शिकारी संपर्क, बस्तियों की एकता, पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का जनसंख्या पर प्रभाव या प्रजातियों की जीवनक्षमता पर प्रस्तावित भूमि विकास के प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता है। पारिस्थितिकी प्रणाली के अंतरविषयक विश्लेषण की काफी व्यापकता है और इनमें पर्यावरण से संबंधित कई क्षेत्रों को शामिल किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर नदीमुख के आसपास प्रस्तावित औद्योगिक विकास के समय इस बात की जांच कर ली जानी चाहिए कि इससे जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण से कुछेक प्रजातियों पर असर पड़ सकता है। इस अध्ययन के अंतर्गत जीवविज्ञानी वनस्पतियों का अध्ययन करेंगे, रसायन शास्त्री जलप्रदूषकों से होने वाली दलदल का, भौतिकीविद् वायु प्रदूषण का अध्ययन करेंगे तथा भू-वैज्ञानिक दलदल मिट्टी और कीचड़ के बारे में समझने में सहायता करेंगे। पर्यावरणीय रसायन-विज्ञान पर्यावरण में रासायनिक तत्वों के अध्ययन का क्षेत्र है। अध्ययन के प्रमुख क्षेत्रों में मृदा संदूषण तथा जल प्रदूषण शामिल है।
विश्लेषण के विषयों के अंतर्गत पर्यावरण में रासायनिक निम्नीकरण, रसायनों के बहु-चरणीय परिवहन (उदाहरण के लिए लाक्षक युक्त मिश्रण का वायु प्रदूषक के तौर पर वाष्पीकरण), तथा बायोटा पर रासायनिक प्रभाव आदि क्षेत्र शामिल हैं। उदाहरणार्थ अध्ययन के तौर पर एक ऐसे लीक कर रहे माल से भरे टैंक के बारे में विचार करें जो कि संकटापन्न प्रजातियों के जलीय क्षेत्र में मिट्टी के ढलान में प्रवेश कर जाता है। ऐसे में भौतिकीविद मृदा संदूषण के स्तर को समझने के लिए एक कम्प्यूटर मॉडल तैयार करेगा, रसायन विज्ञानी मिट्टी के प्रकार में उस साल्वेंट की आणविक स्थिति का मूल्यांकन करेगा तथा जैविक शास्त्री मिट्टी सन्धिपाद, पौधों तथा अन्ततः तालाब में प्रावारकों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करेगा, जो कि संकटापन्न प्रजातियों का जलीय भोजन है। भूविज्ञान के अंतर्गत पर्यावरणीय भूविज्ञान, जलविज्ञान, भौतिकी भूगोल, जलवायु विज्ञान तथा भू-आकृतिविज्ञान शामिल है। इसमें समुद्र-विज्ञान तथा अन्य संबद्ध क्षेत्र भी सम्मिलित हो सकते हैं। मिट्टी कटाव के अध्ययन के उदाहरण के रूप में मृदा वैज्ञानिकों द्वारा भूमि कटाव का अध्ययन किया जाएगा। जल-विज्ञानी स्थल मार्ग बहाव में तलछट परिवहन की जांच में सहायता करेंगे। भौतिकीविद पानी प्राप्त होने में लाइट ट्रांसमिशन में परिवर्तनों के मूल्यांकन में योगदान करेंगे। जीव-विज्ञानी पानी में गंदगी बढ़ने से उसका वनस्पति पर होने वाले प्रभाव की जांच करेंगे। पर्यावरण मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जिसके जरिए पर्यावरण सुरक्षा और सतत विकास पर विचार हो सकता है। पर्यावरणीय मूल्यांकन के अंतर्गत मुख्यतः फील्ड डाटा एकत्र करके इसका पर्यावरण और विकास से संबंधित विभिन्न शाखाओं के जरिए परस्पर संबंधों का मूल्यांकन करना है। पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवविज्ञान पर्यावरण में सूक्ष्म जीवों के मिश्रण तथा शरीर क्रिया विज्ञान का अध्ययन है। इस मामले में पर्यावरण से आशय मिट्टी, जल, वायु और ग्रह पर होने वाले अवसाद हैं और इनमें इन क्षेत्रों में रहने वाले पशु तथा पौधे भी शामिल किए जा सकते हैं। पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवविज्ञान में बायो-रिएक्टर्स जैसे कृत्रिम पर्यावरण में होने वाले माइक्रोआर्गेनिज्म का अध्ययन भी शामिल हो सकता है। पर्यावरणीय विज्ञान में कॅरिअर और रोजगार की संभावनाएं :
अर्हताएं : देश भर में कई संस्थानों द्वारा पर्यावरणीय विज्ञान और पर्यावरणीय इंजीनियरी दोनों में स्नातकपूर्व और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। पर्यावरणीय विज्ञान और इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, उनकी अवधि तथा अपेक्षित योग्यताएं निम्नानुसार हैं :-
• बीएससी (पर्यावरणीय विज्ञान), अवधि : ३ वर्ष, पात्रता : भौतिकी, रसायनशास्त्र और जीव विज्ञान विषयों के साथ १०+२।
• एमएससी (पर्यावरणीय विज्ञान), अवधि : २ वर्ष, पात्रता : पर्यावरणीय विज्ञान, प्राणीविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी या रसायन शास्त्र में बीएससी।
• पर्यावरण प्रबंधन और पर्यावरणीय विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम।
• पर्यावरणीय इंजीनियरी में बीई, पात्रता : भौतिकी, रसायन शास्त्र और गणित विषयों के साथ १०+२।
• पर्यावरणीय विज्ञान और इंजीनियरी में एम.टैक, अवधि : २ वर्ष पात्रता : पर्यावरणीय/सिविल इंजीनियरी में बीई/बी.टैक।
• ऊर्जा और पर्यावरण प्रबंधन में एम.टैक, अवधि : २ वर्ष, पात्रता : पर्यावरणीय/सिविल इंजीनियरी में बीई/बी.टैक।
• एम.टैक (पर्यावरणीय इंजीनियरी), अवधि : २ वर्ष, पात्रता : पर्यावरणीय/सिविल इंजीनियरी में बीई/बी.टैक।
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