पर्यावरण संवारती भारत की नदियां

भारत की नदियां,PC-indianetzone
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भारत की नदियां भारतवासियों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। नदियां हमें सिंचाई व पीने योग्य पानी, सस्ता परिवहन और बिजली प्रदान करती हैं। यह प्राकृतिक संसाधन पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह महत्वपूर्ण बात है कि भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर नदी के किनारे ही स्थित हैं। नदियां जीवनदायिनी होती हैं। प्रस्तुत लेख में लेखक ने भारत की प्रमुख नदियों, उनके प्राकृतिक सौंदर्य, जैवविविधता और पर्यावरण को संवारने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर जीवंत वर्णन किया है।

सात प्रमुख नदियां (सिंधु, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, तापी, गोदावरी, कृष्णा और महानदी)

अपनी कई सहायक नदियों के साथ भारत की नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं। अधिकांश नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में गिराती हैं। कुछ नदियों के प्रवाह उन्हें देश के पश्चिमी भाग से होते हुए और हिमाचल प्रदेश राज्य के पूर्व की ओर अरब सागर में ले जाते हैं। भारत की सभी प्रमुख नदियां तीन मुख्य जलसंभरों में से एक से निकलती है। भारत की नदियों को उत्पत्ति के आधार पर और उनके द्वारा बनाए गए बेसिन के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

गंगा नदी
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गंगा नदी

गंगा, जिसे भारत में मां स्वरूपा नदी के रूप में जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं की बात करें तो सबसे पवित्र नदी है और यह भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ी सबसे लंबी नदी भी है। इसका उद्गम उत्तराखंड में गंगोत्री ग्लेशियर है और यह उत्तराखंड के देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा नदियों के संगम से शुरू होता है। गंगा में 140 से अधिक मछली की प्रजातियां, सरीसृप (उदाहरण के लिए, घड़ियाल) और समतापी जीवों की असंख्य प्रजातियां रहती हैं। डॉल्फ़िन गंगा नदी में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण जंतु है जोकि आईयूसीएन की संकटग्रस्त सूची में शामिल हो  गया है।

गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो गढ़वाल में हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद या ग्लेशियर से निकलती है। गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊंचाई 3,140 मीटर है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से 19 कि.मी. उत्तर की ओर 3,892 मी. (12,770 फीट) की ऊंचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 कि.मी. लंबा व 4 कि.मी. चौड़ा और लगभग 10 मीटर ऊंचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती हैं। इसका जल स्रोत 5,000 मीटर ऊंचाई पर स्थित एक घाटी है। इस घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की  संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 5,600 मीटर ऊंचे चिरवासा ग्राम से विशाल गौमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नन्दा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है, लेकिन 6 बड़ी और उनकी सहायक 05 छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व अधिक है। अलकनन्दा (विष्णु गंगा) की सहायक नदी थाली, विष्णु गंगा तथा मन्दाकिनी है। धौली गंगा का अलकनन्दा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है। यह 1,372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। फिर 2,805 मीटर ऊंचे नन्द प्रयाग में अलकनंदा का मन्दाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्णप्रयाग में अलकनंदा का कर्णगंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से 199 कि.मी. दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मन्दाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनंदा 1,500 फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती है यहां से यह सम्मिलित जल धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन 5 प्रयागों को सम्मिलित रूप से पंच प्रयाग कहा जाता है। इस प्रकार 200 कि.मी. का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए पहली बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती है।

ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि 16वीं तथा 17वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। इन वनों में जंगली हाथी, भैंस, गैंडा, शेर, बाघ आदि जंतु रहते थे। गंगा का तटवर्ती क्षेत्र अपने शान्त व अनुकूल पर्यावरण के कारण रंग-बिरंगे पक्षियों का संसार अपने आंचल में संजोए हुए है। इसमें मछलियों की 140 प्रजातियां, 35 सरीसृप तथा इसके तट पर 42 स्तनधारी जंतु प्रजातियां पायी जाती हैं। यहां की उत्कृष्ट पारिस्थितिकी संरचना में कई प्रजाति के वन्यजीवों जसे- नीलगाय, साम्भर, खरगोश, नेवला, चिंकारा के साथ सरीसृप वर्ग के जीव-जन्तुओं को भी आश्रय मिला हुआ है।

इस इलाके में ऐसे कई जीव-जन्तुओं की प्रजातियां हैं जो दुर्लभ होने के कारण सरक्षित घोषित की जा चुकी हैं। गंगा के पर्वतीय किनारों पर लंगूर, लाल बंदर, भूरे भालु, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, भौंकने वाले हिरण, साम्भर, कस्तूरी मृग, शेरो, बरड़ मृग, साही, तहर आदि काफी संख्या में मिलते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियां तथा कीट भी यहां पाए जाते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव में धीरे-धीरे वनों का लोप होने लगा है और गंगा की घाटी में सर्वत्र कृषि होने लगी फिर भी गंगा के मैदानी भाग में हिरण, जंगली सूअर, जंगली बिल्लियां भेड़िया, गीदड़, लोमड़ी की अनेक प्रजातियां काफी संख्या में पाई जाती हैं। गंगा में डॉल्फिन की दो प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें गंगा डॉल्फिन और इरावदी डॉल्फिन के नामों से जाना जाता है। इसके अलावा गंगा में पाए जाने वाले शार्क की वजह से भी गंगा की प्रसिद्धि है, जिसके बहते हुए पानी में पाए जाने वाले शार्क के कारण इस नदी की विश्व के वैज्ञानिकों में काफी रुचि है। इस नदी और बंगाल की खाड़ी के मिलन स्थल पर बनने वाले मुहाने को सुन्दरवन के नाम से जाना जाता है जो विश्व की बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और बंगाल बाघ का घर है।

गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को  बनाये रखने की असाधारण क्षमता भी पाई जाती है।

गोदावरी नदी
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गोदावरी नदी 

1,465 किलोमीटर लंबी गोदावरी भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। गोदावरी महाराष्ट्र में 'यंबकेश्वर, नासिक से शुरू होती है और छत्तीसगढ़, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश से होकर गुजरते हुए यह अंत में बंगाल की खाड़ी से मिलती है। इस नदी की प्रमुख सहायक नदियों को बाएं किनारे की सहायक नदियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें पूर्णा, प्राणहिता, इंद्रावती और सबरी नदियां शामिल हैं।

गोदावरी के तट पर कुछ प्रमुख शहर नासिक, नादेड़ और राजमुंदरी हैं। गोदावरी डेल्टा में कोरिंगा मंग्रोव वन देश का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है। इसका एक हिस्सा कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया है, जो सरीसृपों के लिए प्रसिद्ध है। यह विभिन्न प्रकार की मछलियों और क्रस्टेशियस को एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक आवास भी प्रदान करता है। ये वन चक्रवात, उष्णकटिबंधीय तूफान और तूफानी लहरों के खिलाफ बाधाओं के रूप में भी कार्य करते हैं। इस प्रकार के वन क्षेत्र आसपास के गांवों की रक्षा करते हैं।नंदुरमदमेश्वर पक्षी अभयारण्य कडवा नदी के संगम पर नासिक के • पास गोदावरी नदी में स्थित है। पक्षियों की व्यापक विविधता के कारण इसे महाराष्ट्र के भरतपुर के रूप में जाना जाता है।

कृष्णा नदी
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कृष्णा नदी

कृष्णा नदी जल प्रवाह और नदी बेसिन क्षेत्र के मामले में गंगा, गोदावरी और ब्रह्मपुत्र के बाद भारत में चौथी सबसे लंबी नदी (देश की सीमाओं के भीतर) है। यह नदी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के लिए सिंचाई के प्रमुख स्रोतों में से एक के रूप में कार्य करती है। यह महाबलेश्वर से निकलती है और फिर इन राज्यों से होकर बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है। कृष्णा की मुख्य सहायक नदियों भीम, पंचगंगा, दूधगंगा, घटप्रभा, तुंगभद्रा है और इसके किनारे के मुख्य शहर सांगली और विजयवाड़ा हैं।

कृष्णा नदी के निकट विस्तृत क्षेत्र में समृद्ध वनस्पति और जीव पाए जाते हैं। कृष्णा वन्यजीव अभ्यारण्य में निवासी और प्रवासी पक्षियों का घर है अभ्यारण्य में मछली पकड़ने वाली बिल्लियां, ऊदबिलाव, मगरमच्छ, चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, काले हिरण, सांप, छिपकली और सियार भी देखे जा सकते हैं। अभ्यारण्य में राइजोफोरा, एविसेनिया और एजिसरोस जैसे पौधों सहित समृद्ध वनस्पतियां मौजूद हैं।

यमुना नदी

यमुना नदी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बंदरपूंछ चोटी पर यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है। यह गंगा नदी की सबसे लंबी सहायक नदी है और यह सीधे समुद्र में नहीं गिरती है। हिंडन, शारदा, गिरि, ऋषिगंगा, हनुमान गंगा, ससुर खदेरी, चंबल, बेतवा, केन, सिंघ और टोस यमुना की सहायक नदियां हैं। जिन प्रमुख राज्यों से होकर यह नदी बहती है, वे हैं उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश

यमुना में 1,376 कि.मी. तक मछलियों का निवास स्थान है। मछलियों की विभिन्न प्रजातियों की एक समृद्ध विविधता इस नदी में विद्यमान है। कैटफिश सहित इस नदी में मछलियों की लगभग 93 प्रजातियां पाई जाती हैं। नदी में घड़ियाल की आबादी में गिरावट दर्ज की गई है। कुछ दशक पहले इस नदी में बड़े कछुए आमतौर पर दिखाई देते थे लेकिन अब इनकी संख्या कम हो गई है।

 

नर्मदा नदी
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नर्मदा नदी

नर्मदा नदी को रीवा भी कहा जाता है और पहले इसे नबुड्डा के नाम से भी जाना जाता था। यह नदी अमरकंटक से निकलती है। मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों में इसके विशाल योगदान के लिए इसे "मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा" के रूप में भी जाना जाता है। देश की सभी नदियों के विपरीत यह पश्चिम की ओर बहती है। इसे सबसे पवित्र जल निकायों में से एक माना जाता है। हिंदुओं के लिए नर्मदा भारत के सात स्वर्गीय जलमार्गों  में से एक है; अन्य छः गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, सिंधु और कावेरी हैं।भारत की पांचवीं सबसे लंबी यह नदी मध्य भारतीय हाइलैंड्स के विंध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के माध्यम से पश्चिम की ओर बहती है, जिसकी लंबाई 1,312 किलोमीटर से भी अधिक है। वनपोषित नर्मदा मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों में पीने, सिंचाई और जल विद्युत के लिए पानी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है और यह नदी 50 लाख लोगों को भोजन, पानी और आजीविका प्रदान करती है।

नर्मदा के बेसिन का एक तिहाई हिस्सा जंगलों से आच्छादित है, जो प्रसिद्ध कान्हा टाइगर रिजर्व और पंचमढ़ी बायोस्फीयर रिजर्व सहित 11 से अधिक संरक्षित क्षेत्रों को अपने में सामाहित करता है। नर्मदा नदी की जैवविविधता बेहद समृद्ध है। इस नदी के परिवेश में पौधों, पक्षियों, स्तनपायी और मछलियों की क्रमशः 4000, 276, 76 तथा 118 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।

सिंधु नदी  
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सिंधु नदी  

हमारे देश के नाम का इतिहास सिंधु नदी से जुड़ा है, यह मानसरोवर झील से शुरू होकर लद्दाख, गिलगित और बाल्टिस्तान को पार करते हुए यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है। सिंधु सबसे पुरानी और समृद्ध सभ्यताओं में से एक, सिंधु घाटी सभ्यता को आश्रय देने के लिए भी जानी जाती है। इसकी मुख्य सहायक नदियों में जानस्कर, सोन, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास शामिल हैं। सिंधु के तट पर स्थित प्रमुख शहर हैं: लेह और स्कार्दू  सिंधु नदी की कुल लंबाई लगभग 3,180 किलोमीटर है।

ब्रह्मपुत्र नदी
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ब्रह्मपुत्र नदी

ब्रह्मपुत्र दूसरी सबसे बड़ी नदी है जो मानसरोवर पर्वतमाला से निकलती  है। यह मानसरोवर झील, तिब्बत, चीन के पास अंगसी ग्लेशियर से निकलती है। यह एकमात्र नदी है जिसे पुल्लिंग में व्यक्त किया जाता है। इसे चीन में यारलुंग त्सांगपो नदी कहा जाता है और फिर यह अरुणाचल प्रदेश के माध्यम से भारत में प्रवेश करती है। बारिश  के मौसम (जून-अक्टूबर) के दौरान, बाढ़ का आना इस नदी में एक असाधारण सामान्य घटना है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान ब्रह्मपुत्र के तट पर है। यह नदी असम से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है। भारत के भीतर इसकी कुल लंबाई केवल 916 किलोमीटर है माजुली या माजोली ब्रह्मपुत्र नदी, असम में एक नदी द्वीप है और 2016 में यह नदी द्वीप बन गई।

पर्यावरण को बचाने के लिए हमें सजग होने की आज बेहद जरूरत है। अगर हम अपने बच्चों को स्वस्थ वातावरण और साफ जल देना चाहते हैं तो आज से नदियों का संरक्षण करने में अपना योगदान देना आरंभ करें। नदियों के संरक्षण के लिए हर स्तर पर कार्य करना, लोगों को इस विषय पर जागरूक करना, सरकार द्वारा इस दिशा में नई योजनाओं का क्रियांवयन करना आदि विविध गतिविधियां शामिल की जा सकती हैं। नदियां जीवनदायिनी हैं। ये जीवन की स्रोत बनी रहेंगी यदि हम इन्हें स्वच्छ, निर्मल  और प्रवाहमान बनाए रखने की दिशा में प्रयत्नशील रहेंगे।

श्री सचिन सी नरवड़िया

वैज्ञानिक डी, विज्ञान प्रसार, डीएसटी,

टेक्नोलॉजी भवन, नया महरौली मार्ग, नई दिल्ली-110016 ई-मेलः sachin@vigyanprasar.gov.in]
 

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