पर्यावरण संरक्षण को समर्पित राज्य सिक्किम

1975 में भारतीय संघ में शामिल होने वाला प्रदेश सिक्किम हिमालय की गोद में बसा वह हरा-भरा भूभाग है जो अपनी प्राकृतिक सम्पदा को समृद्ध बनाने के साथ-साथ आर्थिक विकास की दिशा में भी लम्बे डग भरने के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं व सीमाओं के बावजूद सिक्किम न केवल अपने पड़ोसी पूर्वोत्तर राज्यों बल्कि देश के कई अन्य राज्यों की तुलना में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि और गरीबी की रेखा से नीचे के लोगों की घटती संख्या जैसे आर्थिक मानदण्ड हों या साक्षरता और बाल मृत्यु जैसे सामाजिक मापदण्ड हों, सिक्किम ने भारतीय संघ में शामिल होने के बाद से सकारात्मक उपलब्धियों के रिकॉर्ड बनाए हैं।

सभी सरकारी विभागों के लिए अपने बजट की एक या दो प्रतिशत राशि इस ग्रीन मिशन के लिए देना अनिवार्य है। यह मिशन एक स्वायत संस्था के रूप में शासन और आम जनता के सहयोग से हरियाली अभियान को गति प्रदान करेगा।पर्यटन और पनबिजली उत्पादन ऐसे दो और क्षेत्र हैं जो सिक्किम को विशिष्टता प्रदान करते हैं। लगभग 7,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह प्रदेश चहुमुंखी विकास इसलिए कर सका है कि सांस्कृतिक, भाषायी और नस्ल सम्बन्धी विविधताओं के बावजूद यह राज्य राजनीतिक उठापटक, साम्प्रदायिक टकराव और सामाजिक तनावों से मुक्त है। ‘शान्ति और स्थिरता विकास की पहली शर्त है।’ यह कहावत सिक्किम पर पूरी तरह लागू होती है। इसका प्रमाण है मौजूदा मुख्यमन्त्री पवन चामलिंग का लगातार तीसरी बार राज्य का मुख्यमन्त्री चुना जाना। राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ सिक्किमवासियों की मेहनत व लगन तथा मुख्यमन्त्री के कुशल नेतृत्व का ही परिणाम है कि यह राज्य हर क्षेत्र में प्रगति की राह पर अग्रसर है।

पर्यावरण संरक्षण


सिक्किम ‘ग्रीनलैणड’ यानी हरित प्रदेश के नाम से विख्यात हो गया है। इसे उद्यानों का प्रदेश भी कहा गया है। इसके दो प्रमुख करण हैं। पहला तो यह कि प्रकृति ने इस राज्य को सुन्दरता और हरियाली की असीम भण्डार नवाजा है और दूसरा यह कि सरकार ने प्राकृतिक धरोहर को सहेज कर रखने और उसकी भव्यता में चार चाँद लगाने के लिए कई परियोजनाएँ चलाई हैं। पर्यावरण को बचाने की दिशा में किए गए अनेक उपायों को देखते हुए ही मुख्यमन्त्री चामलिंग को कुछ समय पहले देश का ‘सबसे अधिक हरा’ यानी ‘ग्रीनेस्ट’ मुख्यमन्त्री घोषित किया गया था।

पर्यावरण संरक्षण को उच्च प्राथमिकता देते हुए राज्य सरकार ने वनों और भूमि के उपयोग के बारे में राज्य नीति तैयार की है। इस नीति के क्रियान्वयन पर गम्भीरता से काम किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप पूरे राज्य में पर्यावरण के बचाव के अनुरूप माहौल बनाने में मदद मिली है। इस माहौल को और गहरा व व्यापक बनाने के उदेश्य से वर्ष 2000 से स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य विषय के रूप में लागू किया जा चुका है। कुछ स्कूलों तथा कॉलेजों में ईको क्लब भी बनाए गए हैं जिससे छात्र-छात्राओं को पर्यावरण संरक्षण के काम हाथ में लेने के मौके मिलते हैं। वन्य जीवन की रक्षा को भी पर्यावरण संरक्षण का हिस्सा बनाया गया है और समूचे राज्य में वन्य प्राणियों के शिकार पर पाबन्दी लगा दी गई है। यह प्रतिबन्ध जल-जीवों की हत्या पर भी लागू है। पर्वतीय सम्पदा और धरोहर को नुकसान से बचाने की दृष्टि से सिक्किम के देव पर्वत कंचनजंघा समेत सभी ऊँची चोटियों पर चढ़ाई करने तथा गर्म झरनों, पार्कों और महत्त्वपूर्ण गुफाओं में जाने पर रोक लगा दी गई है।

आम लोगों को हरियाली के विस्तार के अभियान में शामिल करने और उन्हें इस दिशा में प्रेरित व निर्देशित करने के विचार से ‘सिक्किम ग्रीन मिशन, 2006’ गठित किया गया है।जाहिर है कि केवल सरकारी प्रयासों से समूचे प्रदेश में पर्यावरण बचाव में सफलता नहीं पाई जा सकती। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने पर्यावरणविदों और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे व्यक्तियों व संस्थाओं का भी सहयोग लिया गया है। जानी-मानी पर्यावरणविद और सेण्टर फॉर साइंस एण्ड एनवायरमेण्ट की निदेशक सुनीता नारायण की अध्यक्षता में ‘पर्यावरण आयोग’ का गठन किया गया है जो पर्यावरण को प्रभावित करने वाली गतिविधियों पर नजर रखेगा और राज्य की पारिस्थितिकी को बेहतर बनाने के उपाय भी सुझाएगा। इसी तरह आम लोगों को हरियाली के विस्तार के अभियान में शामिल करने और उन्हें इस दिशा में प्रेरित व निर्देशित करने के विचार से ‘सिक्किम ग्रीन मिशन, 2006’ गठित किया गया है। राज्य में जितनी भी मौजूदा सड़कें हैं और जो भी नयी सड़कें बनेंगी, उनके साथ पर्याप्त संख्या में पेड़ लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। एक अनूठा और अनुकरणीय उपाय यह किया गया है कि सभी सरकारी विभागों के लिए अपने बजट की एक या दो प्रतिशत राशि इस ग्रीन मिशन के लिए देना अनिवार्य है। यह मिशन एक स्वायत संस्था के रूप में शासन और आम जनता के सहयोग से हरियाली अभियान को गति प्रदान करेगा। 2001 में राज्य में पहली बार एक जैव विविधता पार्क तेंदोंग में बनाया गया।

उद्योगों तथा विजलीघरों के निर्माण और संचालन में पर्यावरण को हानि होने की ज्यादा आशंका रहती है। इस खतरे को टालने के उदेश्य से राज्य सरकार ने पनबिजली परियोजनाएँ तथा अन्य परियोजनाएँ लगाने से पहले उनसे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना अनिवार्य बना दिया है। इसी तरह पनबिजली परियोजनाओं के लिए एक पर्यावरण प्रबन्ध योजना और जल-ग्रहण क्षेत्र शोधन योजना भी लागू कर दी गई है। यही नहीं, राज्य उद्योग नीति, 1996 में इस बात का प्रावधान किया गया है कि सिक्किम में उन्हीं उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाएगा जो पर्यावरण के अनुरूप हों और जिनसे प्रदूषण न फैलता हो।

सिक्किम अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संपदा के प्रति कितना संवेदनशील है, इसका अनुमान इस तथ्य से लगया जा सकता है कि राज्य में पर्यटन विकास के लिए बनाई गई मास्टर प्लान में भी पर्यावरण संरक्षण को केन्द्रीय स्थान दिया गया है। यह भी फैसला किया गया है कि खेतीबाड़ी, बागान और वृक्षारोपण में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से बचा जाएगा और केवल जैव खाद के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जाएगा। पर्यावरण अभियान में झीलों, हिमनदों और अन्य जलाशयों को भी शामिल किया गया है। इसके लिए आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम तैयार किया गया है जो इसी वर्ष से लागू किया है। जल संसाधनों पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के अध्ययन के लिए हिमनद अध्ययन एवं कार्य योजना बनाई गई है। पर्यावरण पर ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए इस बारे में गहन अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ दल बनाने का भी निर्णय किया गया है।

राज्य में जितनी भी मौजूदा सड़कें हैं और जो भी नयी सड़कें बनेंगी, उनके साथ पर्याप्त संख्या में पेड़ लगाना अनिवार्य कर दिया गया है।राज्य के इन उपायों को केन्द्र सरकार और पर्यावरण मन्त्रालय का पूरा समर्थन और सहयोग मिल रहा है। सिक्किम में पर्यावरण संरक्षण के अभियान का महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि इस पर्वतीय प्रदेश में 4,000 से अधिक प्रजातियों के पौधे और झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इसी तरह विविध प्रकार के रंग-रूप वाले खूबसूरत फूलों के उद्यान इस राज्य की शोभा बढ़ा रहे हैं। अनेक हिमधवल पर्वत चोटियाँ, दो प्रमुख नदियाँ तीस्ता व रंगित तथा अनेक हरी-भरी वादियाँ भी यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य की पहचान हैं। सिक्किम सरकार ने राज्य के इस प्राकृतिक खजाने को अक्षुण्ण रखने के मामले में जो चिन्ता और सक्रियता दिखाई है वह अन्य प्रदेशों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं।

कृषि विकास


सिक्किम की कृषि भी यहाँ के पर्यावरण पर आधारित है। अकूत प्राकृतिक व वन सम्पदा की मौजूदगी के कारण यहाँ बागवानी पर अधिक जोर दिया जा रहा है। अब बेमौसम की सब्जियाँ उगाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि उत्पादकों को अच्छे दाम मिल सकें। इलायची, अदरक, फूल, सन्तरे और चेरी यहाँ की मुख्य व्यापारिक फसले हैं। राज्य में जैविक खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार का यह दावा है कि सिक्किम 2009 तक जैव राज्य (आर्गेनिक स्टेट) का दर्जा हासिल कर लेगा।

फूलों की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए राज्य सरकार फूलों की खेती के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है। इसके लिए हॉलैण्ड के विशेषज्ञों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इस समझौते में उत्पादों की विश्व के बाजारों में बिक्री के प्रयास भी शामिल हैं। फूलों की खेती की तकनीक सिखाने के लिए पूर्वी सिक्किम में पांगयांग में पुष्प कृषि प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। किसानों और काश्तकारों को उनके उत्पादों के समुचित दाम दिलाने की दृष्टि से भी कई उपाय किए गए हैं।

रांगपो क्षेत्र में एक नियमित बाजार खोला गया है जहाँ किसान बिचौलियों और आढ़तियों का सहारा लिए बिना सीधे अपना सामान बेच सकते हैं। कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम मूल्य तय किए गए हैं ताकि किसान माँग और पूर्ति के असन्तुलन से कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव के दुष्प्रभाव से बचे रह सकें। इन सभी उपायों के फलस्वरूप बहुत जल्दी ही सिक्किम से कृषि बागवानी उत्पादों का निर्यात किया जाने लगेगा।

ग्रामीण विकास


कृषि के विकास से ग्रामीण क्षेत्रों के उत्थान में मदद मिल रही है। राज्य का 70 प्रतिशत बजट ग्रामीण विकास के लिए रखा गया है। गाँवों के विकास में पंचायतों का उल्लेखनीय योगदान रहा है। यहाँ पंचायत व्यवस्था को सुचारू और कारगर बनाने पर खास ध्यान दिया गया है। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक गाँवों में बुनियादी सुविधाएँ जुटाने और उनके रख-रखाव के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत को हर साल 10 लाख रुपए और जिला पंचायत को 60 लाख रुपए दिए जाते हैं।

इस राशि के अलावा पंचायत अधिनियम के अन्तर्गत विभिन्न विभागों को अनिवार्य रूप से पंचायतों को राशि देना होता है। पंचायतों को वित्तीय अधिकार देकर सत्ता के विकेन्द्रीकरण के इस प्रयोग से गाँवों की स्थिति सुधारने के प्रयासों को बल मिला है। पंचायतों के जरिये निचले स्तर तक सत्ता के हस्तान्तरण के मामले में सिक्किम का देश में तीसरा स्थान है। इससे प्रगति के लाभों का समान वितरण करने के साथ-साथ राज्य के समग्र विकास में भी मदद मिल रही है।

पर्यटन की सम्भावनाएँ


ग्रामीण विकास के इन उपायों से सिक्किम का जो एक और महत्त्वपूर्ण व्यवसाय फलफूल रहा है, वह है पर्यटन। इसका कारण है सिक्किम सरकार द्वारा ग्रामीण पर्यटन की अवधारणा को अपनाना। प्राकृतिक सौन्दर्य से ओतप्रोत इस राज्य में पर्यटन की यों भी अपार सम्भावनाएँ हैं लेकिन ग्रामीण पर्यटन की नयी अवधारणा से पर्यटन विशिष्ट वर्ग तक सीमित न रहकर आम लोगों का शौक बन रहा है। इस योजना के अन्तर्गत राज्य के अनेक गाँव पर्यटन स्थल का रूप ले लेंगे जिससे राज्य में आने वाले बाहरी सैलानी मन बहलाव और प्रकृति का आनन्द लेने के साथ-साथ सिक्किम की संस्कृति, लोकशिल्प, लोककलाओं और लोकजीवन से परिचित हो सकेंगे। इसके लिए गाँवों में पर्यटकों के लिए जरूरी बुनियादी ढाँचा बनाने के उपाय किए जा रहे हैं। ग्रामीण पर्यटन एक तरह से सामाजिक पर्यटन है जिसमें सैलानी स्थानीय लोगों के बीच रहकर उनके जीवन को नजदीक से देखते हैं। इस तरह का अनुभव सैलानियों की स्मृति का अंग बन जाता है और इससे राष्ट्रीय तथा भावनात्मक एकता भी सुदृढ़ होती है।

सिक्किम के लिए पर्यटन का मास्टर प्लान तैयार किया गया है जिसमें पर्यटन को बढ़ावा देते हुए पर्यावरण संरक्षण का खास ध्यान रखा गया है।जैसा कि पहले कहा गया है, सिक्किम के लिए पर्यटन का मास्टर प्लान तैयार किया गया है जिसमें पर्यटन को बढ़ावा देते हुए पर्यावरण संरक्षण का खास ध्यान रखा गया है। वास्तव में सिक्किम में वे सब चीजें बहुतायत में मौजूद हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। लेकिन आधुनिक पर्यटन में रहने, खाने-पीने, परिवहन आदि की बुनियादी सुविधाओं को आवश्यक माना गया है। इसलिए राज्य में ग्रामीण पर्यटन की तरह पर्यावरण पर्यटन यानी ईको-टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। पर्यावरण के अनुकूल आवास विकसित किए गए हैं। वन-वास नाम की इस नयी अवधारणा के अन्तर्गत वन क्षेत्रों में झोंपड़ीनुमा आवास बनाए गए हैं। इस अभिनव प्रयोग से वनों को बिना कोई हानि पहुँचाए उनसे लाभ अर्जित किया जा रहा है।

इसके अलावा अपने पर्वतीय स्वरूप का लाभ उठाते हुए राज्य साहसिक खेलों के विकास पर ध्यान दे रहा है। आसियान कार रैली और माउण्टेन बाइक रैली सिक्किम से होकर गुजरती हैं। अमेरिका में एरीजोना के ग्रैण्ड कैन्यान की तरह सिक्किम में भी 10,000 फुट की ऊँचाई पर स्काईवाक की स्थापना की जा रही है, जिससे प्रमुख पर्यटन स्थल रोप-वे से जुड़ जाएँगे। राज्य में पैरा ग्लाइडिंग के भी प्रबन्ध किए गए हैं।

अब सिक्किम को तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केन्द्र बनाने की भी कोशिश की जा रही हैं। सिक्किम के महान सन्त गुरु पद्मसम्भव की 135 फुट की प्रतिमा, राज्य के दक्षिण समदुपत्से में स्थापित की गई है जो विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा मानी जाती है। यह प्रतिमा पर्यटकों का मुख्य आकर्षण बनती जा रही है। साथ ही चार धाम और साईं मन्दिर के निर्माण तथा अन्य धार्मिक स्थलों के विकास के परिणामस्वरूप धार्मिक पर्यटन या तीर्थयात्रा के लिए सिक्किम आने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ रही है। परन्तु इन सभी उपायों को क्रियान्वित करते हुए इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि सिक्किम की हरयिाली अक्षुण्ण रहे और पर्यावरण सन्तुलन को कोई नुकसान न पहुँचे।

(लेखक आकाशवाणी के समाचार निदेशक रह चुके हैं)
ई-मेल : setia-subhash@yahoo.co.in

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