पर्यावरण संरक्षण के लिए संस्कृति की तरफ लौटना होगा

पर्यावरण संरक्षण के लिए संस्कृति की तरफ लौटना होगा
पर्यावरण संरक्षण के लिए संस्कृति की तरफ लौटना होगा

कोरोना महामारी के बीच आज पूरी दुनिया ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मना रही है। कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन से लंबे समय बाद हवा और पानी साफ हुए हैं। अलग-अलग स्थानों पर जीव-जंतु, विशेषकर पक्षी स्वतंत्र होकर चहचहाते दिखे। 40 साल में पहली बार गंगा नदी का जल साफ हुआ। इन सभी सकारात्मक परिणामों के कारण लोगों का मानना है कि ‘पर्यावरण से छेड़छाड़ का नतीजा ही ‘कोरोना वायरस’ है, लेकिन जैसे ही लाॅकडाउन के बाद अनलाॅक हुआ, दुनिया अपने पुराने ढर्रे पर लौट आई। जहां ‘एसी’ चलाकर इंटरनेट के माध्यम से पर्यावरण पर आधारित वेबिनारों में ‘पर्यावरण संरक्षण’ की बात की जा रही है, लेकिन हमें समझना होगा कि ये समय धरातल पर कम करने का है। इसलिए हमने ‘पर्यावरण संरक्षण कैसे किया जाए’ जानने के लिए उत्तराखंड के ग्रीन अंबेसडर और कर्णप्रयाग में मानव निर्मित जंगल उगाने वाले जगत सिंह ‘जंगली’ से वार्ता की।

जगत सिंह ‘जंगली’ ने बताया कि ‘‘इस बार पर्यावरण दिवस खास है और इस पर्यावरण दिवस पर हमें बहुत सूझबूझ से पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण की योजनाएं बनानी होंगी। हमें पर्यावरण दिवस को प्रकृति और संस्कृति से जोड़कर मनाना चाहिए। क्योंकि जिस तरह आज पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा है, ये प्रकृति से छेड़छाड़ का ही नतीजा है।’’ इसका परिणाम हम विभिन्न आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के रूप में देख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और आपदाओं का सबसे ज्यादा शिकार हिमालयी व पर्वतीय इलाकों को ही उठाना पड़ता है। ऐसे में पर्वतीय इलाकों के लोग धीरे-धीरे खेती-बाड़ी आदि संसाधनों का अभाव होने के कारण रोजी-रोटी की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं। एक तरह से उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ता है। उन्होंने बताया कि ‘‘हिमालय पूरे देश के लिए बहुत आवश्यक है। पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं का सामना कर रहा है। वृहद स्तर पर इसके कई परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं - हिमालय में बर्फ पिघल रही है। पानी लगातार कम हो रहा है। इन सभी का प्रभाव लोगों की आजीविका पर भी पड़ रहा है। इसलिए पर्यावरण संरक्षण के लिए हिमालय में मिश्रित वनों को बढ़ावा देना जरूरी है। मिश्रित वन लगाने से ही जैव विविधता का संरक्षण होगा। इस दिशा में हमें न केवल सोचना है, बल्कि कार्य करने की भी जरूरत है।’’  

जैव विविधिता के होते नुकसान के अलावा जल संकट भी देश के लिए गंभीर समस्या है। देश ही नहीं बल्कि दुनिया में जल संकट गंभीर रूप से गहराता जा रहा है। कई स्थानों पर लोग बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हैं। ऐसे में जल संरक्षण वर्तमान की सबसे बड़ी मांग है, जिसके लिए पर्यावरण संरक्षण अनिवार्य है। जगत सिंह बताते हैं कि ‘‘जिस तरह से जल संकट गहरा रहा है। ऐसे में हमें अपने पानी के स्रोतों को न केवल बचाना है, बल्कि बढ़ाना भी है। इसमें जल की स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। पर्वतीय इलाके मैदानों को जल उपलब्ध कराते हैं। यहां से बहने वाली नदियों का पर्वतीय इलाकों को उतना लाभ नहीं मिलता, जितना मैदानों को मिलता है, लेकिन नदियों और विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों में जल की उपलब्धता बनी रहे, इसके लिए पहाड़ों पर मिश्रित वनों को उगाना होगा।’’ हालांकि देश-दुनिया में करोड़ों लोग पर्यावरण संरक्षण करना चाहते हैं। लोग इस दिशा में कार्य कर भी रहे हैं, लेकिन कई लोग केवल योजनाओं का लाभ लेने और ख्याती बटोरने तक ही सीमित हैं। किंतु सैंकड़ों लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें पर्यावरण संरक्षण के सबसे अच्छे और दीर्घकाल तक लाभ देने वाले तरीकों के बारे में जानकारी ही नहीं है। 

पर्यावरण बचाने के बारे में जगत सिंह बताते हैं कि ‘‘हमारी संस्कृति ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। ये सभी कुछ हमें संस्कृति से परंपरागत ज्ञान के रूप में मिला है। हमारे बुजुर्गों ने भी हमें सिखाया है कि ‘‘कैसे उन्होंने परंपरागत ज्ञान के आधार पर अच्छा जीवन व्यतीत किया है। हमें इसी दिशा में सोचने की जरूरत है और अपनी संस्कृति को हमेशा याद रखना होगा। इसके लिए हमें पर्यावरण के साथ आजीविका को जोड़ना होगा, ताकि पर्यावरण भी ठीक रहे और आजीविका भी चलती रहे। अपने परंपरागत उत्पादों को आगे लाना होगा। परंपरागत ज्ञान के आधार पर हमारे जो भी उत्पाद थे, उनको आगे बढ़ाना होगा। हमें अपने घराटों को विकसित करना होगा।’’

इसके अलावा हर स्थान पर अपनी-अपनी वनस्पतियों का संरक्षण करना होगा। जड़ी-बूटियों को उगाने पर जोर देना होगा। क्योंकि आने वाले समय में यही चीजें हमें बचाएंगी। इसी से हिमालय बचेगा। जगत सिंह ने बताया कि ‘‘ये समय धरातल पर काम करने का है। यदि हम वास्तव में पर्यावरण संरक्षण करना चाहते हैं, तो हमें ग्रीन इकोनाॅमी को जन्म देना होगा। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन में हमने देखा कि मां गंगा साफ हो गई है। वातावरण स्वच्छ हो गया है। हर तरफ साफ हवा है। मौसम सुंदर हो गया है। ऐसे में हमें ये पता चला कि यदि इसी तरह से हम अपने पर्यावरण को बनाए रखें, तो महामारी हमें परेशान नही करेगी।’’


हिमांशु भट्ट (8057170025)

 

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Post By: Shivendra
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