पर्यावरण मंजूरी में देरी के लिए ‘डर’ जिम्मेदार : मोइली

नई दिल्ली, 12 जनवरी। पर्यावरण व वन मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने रविवार को परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी में देरी के लिए अधिकारियों व अपने पूर्ववर्ती पर्यावरण मंत्रियों के ‘मन के डर’ को जिम्मेदार ठहराया। देश की मौजूदा आर्थिक नरमी के लिए इन मंजूरियों में देरी को भी दोष दिया जा रहा है।

तीन हफ्ते पहले पर्यावरण मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभालने वाले पेट्रोलियम मंत्री मोइली ने कहा कि मंजूरियां इसलिए भी प्रभावित होती हैं क्योंकि नियम जटिल हैं और सक्षम अधिकारियों के पास व्यक्तिगत विवेक का प्रयोग करने का अधिकार है। मोइली ने एक बातचीत में कहा कि आप किसी को भी जिम्मेदार ठहरा सकते हैं खासकर 2009 के बाद ऐसा मौहल बन चुका है जहां भय की भावना है। यह कैग कि रिपोर्टों, अदालतों के आदेश और मुकदमों के कारण पैदा हुआ है।

मोइली ने कहा कि मंत्री व अधिकारी सोचते हैं कि हमें अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है। अतिरिक्त सावधानी बरतने से कभी-कभी प्रक्रिया में देरी होती है। इसलिए हम किसी एक को जिम्मेदार नहीं मान सकते-न ही मंत्री को और न अधिकारी को। वह जयंती नटराजन के कार्यकाल में परियोजनाओं को मंजूरी में देरी के कारणों के बारे में जवाब दे रहे थे। उद्योग जगत इस बात की शिकायत करता रहा है कि पर्यावरण मंजूरियों में देरी के कारण उनकी परियोजनाएं बाधित हो रही हैं और इससे आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो रही है।

माना जाता है कि इस वजह से नटराजन को मंत्री पद गवाना पड़ा। मोइली फैसलों की गति तेज करने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि नियम व कानून ऐसे होने चाहिए जिससे धरती पर संतुलन कायम रहे। नियम जटिल नहीं होने चाहिए कभी-कभी नियम इतने होते हैं कि उनकी मनमाफिक व्याख्या की जा सकती है। इनसे फैसला करने वाले पक्षों के मन में संदेह पैदा होता है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विवेकाधीन क्षेत्र कुछ ज्यादा ही है। उन्होंने कहा कि लोग धरती पर पारिस्थिकी संतुलन बनाए रखने के हित में नियम से चलें तो कोई सवाल खड़ा नहीं करेगा। इसके लिए आपको संचालन व्यवस्था करनी पड़ेगी। फैसला नहीं करना कोई समाधान नहीं है। उनका मानना है कि नियोजन में मानव जाति के साथ वन्य जीव, पर्यावरण व वनों के लिए भी स्थान ही। हमें दूसरों की जगहों पर अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। इसलिए नियम जरूरी है।

मंत्री ने यूपीए सरकार में नीतिगत लाचारी के आरोपों को खारिज किया और कहा कि पिछले 10 साल में कई महत्वपूर्ण कानून बनाए गए हैं। उदाहरण के तौर पर खाद्य सुरक्षा कानून पारित किया गया है। कई नई चीजें की गई हैं। यह पूछे जाने पर कि खाद्य सुरक्षा कानून कहीं अधिक लोकलुभावन फैसला है, उन्होंने कहा-यह जीविका की समस्या से निपटता है। आप इसे लोकलुभावन नहीं कह सकते। आप गरीबी खत्म नहीं करते तो किसी भी सरकार को बने रहने का हक नहीं है। आर्थिक वृद्धि का लोगों के साथ भी संतुलन बिठाना होगा। यूपीए सरकार ने समावेशी विकास पर जोर दिया। जब तक आप लोगों को साथ लेकर नहीं चलेंगे, आर्थिक वृद्धि का कोई मतलब नहीं रहेगा।

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