जल ही जीवन है - भाग 3
राजस्थान राज्य अर्ध-शुष्क और जल की कमी वाले क्षेत्र में सुरक्षित पेयजल प्राप्त करने के सामाजिक-सांस्कृतिक और पर्यावरणीय प्रभावों का एक आदर्श उदाहरण है। राज्य की आबादी बड़े पैमाने पर बारहमासी नदियों के अभाव, अपर्याप्त सतह स्रोतों, और शुष्क जलवायु परिस्थितियों के कारण बड़े पैमाने पर कृषि और पेयजल की आवश्यकताओं के लिए भूजल पर निर्भर है। इसके अलावा, पारम्परिक स्रोत जैसे कि स्टेपवेल (बावड़ी) को गिनी कृषि की वृद्धि को रोकने के लिए बंद कर दिया गया था जिससे जल स्रोत और घट गए। दूरदराज के क्षेत्रों में, विशेष रूप से राज्य के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भूजल स्रोतों तक पहुंच के लिए जमीन की खुदाई कर बड़ी मात्रा में नलकूपों और हैंडपम्पों को लगाया गया।
इस प्रकार, भूजल के अति-दोहन से, जो हाल ही में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ लगातार पड़ने वाले सूखे के कारण बढ़ गया है, चट्टानों से फ्लोराइड यौगिकों का रिसाव होता है और यह वाष्पशील तत्व जल स्रोतों में मिल जाता है, जो जल को पीने के लिए असुरक्षित बनाता है। इसने समय के साथ जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए एक दोहरी चुनौती पेश की हैः पेयजल की उपलब्ता और गुणवत्ता को बनाए रखना। दिसम्बर 2019 तक, देश भर की कुल 7,752 फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में से, 3,748 (50 प्रतिशत) राजस्थान से हैं। लम्बे समय तक विश्व स्वास्थ्य संगठ की निर्धारित 1.5 पीपीएम मात्रा से ऊपर फ्लोराइड के स्तर वाले जल पीने से फ्लोरोसिस हो सकता है, विशेष रूप से बच्चों में। दंत, अस्थिपंजर और गैर-अस्थिपंजर फ्लोरोसिस, अपरिवर्तनीय रोग हैं जो जोड़ों के हिलते-डुलते को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं, असहनीय पीड़ा का कारण बनते हैं, और अक्सर इससे ग्रस्त लोग निष्क्रियता का जीवन जीते हैं। सतत विकास लक्ष्य-6 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्यावरण के ऐसे क्षरण के परिणामों से निपटना आवश्यक है और जिन्हें सरकार द्वारा प्राथमिकता के रूप में लेना और तत्काल हल करना होगा।
रोकथाम की अलग-अलग बेहद खर्चीली पहलों के बावजूद प्रभावित क्षेत्रों में लोग अभी भी जोखिम में हैं जिसका एक कारण यह भी है कि ये प्रयास बिना किसी सम्बन्धित पहलुओं पर विचार किए जल से फ्लोराइड हटाने तक सीमित थे। इसके विपरीत, अत्यधिक फ्लोराइड सेवन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बेहतर समझ के साथ रोकथाम की पहलों का आरम्भ किया जाना चाहिए।
वर्तमान सरकार की पहल ने पिछले प्रयासों की सीखों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक बहु-क्षेत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वित किया है। इसे एकीकृत फ्लोरोसिस रोकथाम प्रयास के माध्यम से लागू किया जा रहा है जिसे आरम्भ में राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) और यूनिसेफ द्वारा मध्य प्रदेश में 2007 में शुरू किया गया था और बाद में कुछ अन्य जिलों और राज्यों में दोहराया गया जिसमें राजस्थान शामिल है। भले ही एकीकृत फ्लोरोसिस रोकथाम प्रयास की परिकल्पना और प्रायोगिक पहल मध्यप्रदेश के धार और झाबुआ जिलों में की गई थी जिसके परिणामवश बच्चों में फ्लोरोसिस दर को घटाने में सम्मानजनक सफलता मिली थी लेकिन उस समय सरकार ने इसे अपनाने की महत्त्वपूर्ण नहीं समझा। हालांकि बाद में तेलगांना और राजस्थान में इसे दोहराने में राजकीय विभागों के स्वामित्व वाले सम्मिलित शासन मॉडल के सकारात्मक प्रभाव को सफलतापूर्वक प्रदर्शित करना जारी रहा और इस प्रकार यह इसी तरह की पहलों और अन्य क्षेत्रीय मुद्दों के मजबूत सहायक साधन के रूप में स्थापित हुआ।
रोकथाम का इतिहास
2001 में पीने के जल में पाए जाने वाले अतिरिक्त फ्लोराइड के बाद से, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) द्वारा रोकथाम के अनेक उपाय लाए गए, और यूनिसेफ के समर्थन से 2004 में ‘राजस्थान एकीकृत फ्लोरोसिस प्रबंधन कार्यक्रम (आरआई एफएमपी)’ की शुरुआत हुई। आरआईएफएमपी चरण I और II में, अवशोषण तकनीक पर आधारित घरेलू डी-फ्लोराइडेशन इकाइयों का गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से वितरण किया गया, जो लोगों को डी-फ्लोराइडेशन इकाइयों बारे में जानकारी प्रदान करने और उपयोग करने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने वाले थे। उच्च संसाधन निवेश के बावजूद, दोनों चरण राजस्थान के लगभग सभी ग्रामीण क्षेत्रो में फ्लोरोसिस के प्रति बढ़ती जागरूकता को छोड़कर वांछित सफलता नहीं ला सके। चरण I और II से मिली सीखों के आधार पर, सरकार ने चरण III का आरम्भ किया, जिसमें निजी एजेंसियों के माध्यम से हैड पम्प और नलकूप बड़े आकार की डी-फ्लोराइडेशन इकाइयों में लगाए गए। निजी एजेंसियों को 10 वर्षों के लिए इन इकाइयों का संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी दी गई। फ्लोराइड की उच्च मात्रा का सेवन करने के खतरों से लोगों को जागरूक बनाने के लिए पूरत तौर पर गहन जागरूकता अभियान भी चलाए गए हैं। सरकार द्वारा समर्थित राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) कार्यक्रम के तहत, वैकल्पिक पेयजल स्रोत प्रदान करने के लिए वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण की पहल भी बड़े पैमाने पर की गई। पीने के लिए वर्षा जल का उपयोग करना विपरीत सामाजिक-सांस्कृतिक प्राथमिकताओं के चलते अधिकांश जिलों में लोकप्रियता हासिल नहीं कर सका। राजस्थान सरकार का लक्ष्य पूरे राज्य में सतही जल पहुंचाना है, लेकिन भूजल के शुद्धिकरण को एक अंतरिम उपाय के रूप में जारी रखने की सम्भावना है, जब तक कि पाइप जलापूर्ति प्रणाली पर्याप्त रूप से स्थापित नहीं हो जाती जिसका उद्देश्य राज्य की आबादी को सुरक्षित रूप से प्रबंधित जल तक पहुँच सुनिश्चित करने के एसडीजी 6 के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
निरन्तर जारी चुनौतियां
राजस्थान में फ्लोरोसिस की समस्या काफी जटिल है और यह समय के साथ अधिक-से-अधिक लोगों को प्रभावित करती रहती है। जल की आपूर्ति के लिए पारम्परिक जल स्रोतों के अपने पूर्व ज्ञान से हटकर पाइप जलापूर्ति की ओर बढ़ना हालांकि जल की सुरक्षा निश्चित करती हैं लेकिन स्रोत की विश्वसनीयता, बड़े पैमाने पर नेटवर्क की निगरानी करने में असमर्थता, और सुरक्षित विश्वसनीय स्रोतों की पहचान का सवाल बना रहता है। पंचायती राज संस्थानों का शोधन संयंत्रों के टिकाऊ संचालन और रखरखाव प्रदान करने में सक्षम नहीं होने से यह और भी कठिन हो जाता है। एक क्षेत्र विशेष में रहने वाले समुदाय को फ्लोराइड मुक्त जल की अंधाधुंध आपूर्ति की वर्तमान कार्यप्रणाली से उन लोगों को राहत नहीं मिल सकती है जो फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं, क्योंकि शरीर में फ्लोराइड की मात्रा पेयजल के अलावा अन्य स्रोतों से बहुत अधिक हो सकती है। राजस्थान के गाँव विशेष में पेयजल की आपूर्ति में सुधार से फ्लोरोसिस के मामलों में कमी आई है, लेकिन जागरूकता स्तर में कमी और मौजूदा आहार और व्यवहार सम्बन्धी कार्यप्रणाली के कारण अभी भी उनके समक्ष अधिक फ्लोराइड सेवन का जोखिम हैं। इसके गहन अध्ययन की आवश्यकता है जिससे समग्र रूप से फ्लोरोसिस के पर्यावरणीय कोप का मुकाबला करने के लिए युक्तिपूर्ण कदम उठाए जा सकें। फ्लोरोसिस से प्रभावित लोगों को इस संकट से छुटकारा पाने में मदद करने के लिए फ्लोरोसिस से निपटने, संमिलन, समन्वय, सहानुभूति और इस कार्य में संलग्न लोगों का फ्लोरोसिस से ग्रस्त लोगों की सहायता करने के संकल्प का दायित्व निर्वहन में गम्भीर कमियां हैं।
वर्तमान स्थिति और भावी कदम
फ्लोरोसिस को केवल फ्लोराइड-मुक्त जल प्रदान करने से कम नहीं किया जा सकता है, लेकिन फ्लोरोसिस के खतरे की समग्र रोकथाम लिए उठाए प्रयासों को स्वास्थ्य और पोषण आधारित पहलों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। इसलिए सभी हितधारकों को फ्लोरोसिस के उन्मूलन के लिए एक संमिलित मंच की आवश्यकता है। इस प्रयास के भाग के रूप में विभागों को अपनी योजनाओं में, सामुदायिक भागीदारी और जलवायु अनुकूलक जल सुरक्षा और बचाव पर ध्यान देना चाहिए।
राजस्थान में 2018 में यूनिसेफ ने डूंगरपुर में जो एक जन-केन्द्रित जिला मंच है, एकीकृत फ्लोरोसिस रोकथाम प्रायोगिक पहल को सहायता प्रदान की। इसका नेतृत्व जिला मजिस्ट्रेट ने किया। इसका उद्देश्य समग्र फ्लोरोसिस रोकथाम पर बल देना था और साथ ही कार्यक्रम निधि का जिलों में योजनाबद्ध गतिविधियों में प्रयोग करना था। इस मॉडल में जिला मजिस्ट्रेट नेतृत्व की स्थिति में होता है और मजिस्ट्रेट के पद के मौजूदा प्रभाव और जिम्मेदारियों का सभी सम्बन्धित विभागों के भीतर फ्लोरोसिस प्रयासों को प्राथमिकता देने के लिए प्रयोग होता है। डूंगरपुर जिले में एकीकृत फ्लोरोसिस रोकथाम पहल के इस नए मॉडल के सफल प्रदर्शन पर, जिसमें फ्लोरोसिस को कम करने और इसके माध्यम से सकारात्मक परिणामों को प्राप्त करने के लिए कई राज्य और जिला विभागों के प्रयासों को सम्मिलित करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, राजस्थान सरकार ने इस नए कदम को सभी एकीकृत फ्लोरोसिस रोकथाम पहल को सभी प्रभावित जिलों में चरणबद्ध तरीके से, चार साल की समयावधि के भीतर तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है। इस पहल मेंजल, स्वास्थ्य और पोषण सम्बन्धी प्रयासों के साथ, विशेष रूप से (0-12) आयु वर्ग के बच्चों में फ्लोरोसिस के घटने की अधिक सम्भावना है।
पर्यावरण बचाव के लिए, जल के पुनः उपयोग, जलभृत और अन्य स्रोतों के पुनर्भरण की पहचान और बढ़ावा देने की आवश्यकता है जिससे जल के निर्वहन और पुनर्भरण के बीच संतुलन बने। यह स्रोत में जल की गुणवत्ता को बनाए रखने में भी मदद करेगा। हालिया जल शक्ति अभियान सरकार की एक बड़ी पहल है, जिसने जल प्रबंधन में एकीकृत प्रयास के साझा मंच पर सभी लाइन विभागों को संमिलित करके अच्छा आशय प्रदर्शित किया था।
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