ड्रॉपस्टेयर क्या है?
नालों एवं गदेरों में पत्थरों की सीढ़ीनुमा ढंग से चिनाई करके जल निकास के लिए बनाए गए कार्य को ड्रॉपस्टेयर कहते हैं।
ड्रॉपस्टेयर बनाने की विधि
पर्वतीय क्षेत्रों में पत्थर प्रचुर संख्या में हर जगह मिल जाते हैं। इनमें से पौने से लेकर डेढ़ फुट चौड़ाई तक के चपटे आकार वाले पत्थर अनुमानित मात्रा में एकत्र कर लें। इसके बाद नालों एवं गदेरों में उनकी सूखी चिनाई नीचे से ऊपर को इस प्रकार करें कि वे 20-30 सेमी. चौड़ी व 15-20 सेमी. ऊंची सीढ़ियों का रूप ले लें। इस सीढ़ीदार मार्ग की चौड़ाई वर्षा जल के बहाव की मात्रा के अनुसार 1 से 3 मी. तक काफी रहती है। इन्हें बनाने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में ढाल की दिशा में ऊपर की ओर से मिट्टी काट कर नीचे ढाल की ओर मिट्टी भर दी जाती है। जहां ढाल की दिशा में भरी जाती है, उस पर पत्थरों की दीवार बना दी जाती है। दीवार को राइजर कहते हैं। दीवार को सुरक्षित रखने के लिए उसकी ढाल 1:3 कर लेते हैं व दीवार की सतह पर घास उगा देते हैं।
ड्रॉपस्टेयर के लाभ
1. ड्रॉपस्टेयर पानी के बहाव के वेग को कम करके नालों व गदेरों की रक्षा करते हैं जिससे मृदाक्षरण कम होता है।
2. इसको बनाने में न तो सीमेंट बजरी आदि की ही आवश्यकता पड़ती है और न किसी कारीगर की इसको एक किसान खुद बना सकता है।
3. ड्रॉपस्टेयर केवल स्थानीय उपलब्ध पत्थरों से ही बनाया जाता है इसलिए अन्य साधनों के मुकाबले खर्चा भी कम होता है।
4. इसके रख-रखाव में कोई विशेष खर्चा नहीं होता।
5. ड्रॉपस्टेयरों में होकर मनुष्य एवं पशु आसानी से ऊपर-नीचे आ जा सकते हैं, अतः यह रास्तों का भी काम करता है।
6. इसका जीवन काल लगभग 50-60 वर्ष होता है।
7. पर्वतीय क्षेत्रों के पैदल मार्गों पर भी ड्रॉपस्टेयर बनाकर भूक्षरण को रोका जा सकता है।
सम्पर्क
श्री पंकज कुमार, अस्सिटेंट प्रोफेसर, जी.बी.पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नोलॉजी पंतनगर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड
नालों एवं गदेरों में पत्थरों की सीढ़ीनुमा ढंग से चिनाई करके जल निकास के लिए बनाए गए कार्य को ड्रॉपस्टेयर कहते हैं।
ड्रॉपस्टेयर बनाने की विधि
पर्वतीय क्षेत्रों में पत्थर प्रचुर संख्या में हर जगह मिल जाते हैं। इनमें से पौने से लेकर डेढ़ फुट चौड़ाई तक के चपटे आकार वाले पत्थर अनुमानित मात्रा में एकत्र कर लें। इसके बाद नालों एवं गदेरों में उनकी सूखी चिनाई नीचे से ऊपर को इस प्रकार करें कि वे 20-30 सेमी. चौड़ी व 15-20 सेमी. ऊंची सीढ़ियों का रूप ले लें। इस सीढ़ीदार मार्ग की चौड़ाई वर्षा जल के बहाव की मात्रा के अनुसार 1 से 3 मी. तक काफी रहती है। इन्हें बनाने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में ढाल की दिशा में ऊपर की ओर से मिट्टी काट कर नीचे ढाल की ओर मिट्टी भर दी जाती है। जहां ढाल की दिशा में भरी जाती है, उस पर पत्थरों की दीवार बना दी जाती है। दीवार को राइजर कहते हैं। दीवार को सुरक्षित रखने के लिए उसकी ढाल 1:3 कर लेते हैं व दीवार की सतह पर घास उगा देते हैं।
ड्रॉपस्टेयर के लाभ
1. ड्रॉपस्टेयर पानी के बहाव के वेग को कम करके नालों व गदेरों की रक्षा करते हैं जिससे मृदाक्षरण कम होता है।
2. इसको बनाने में न तो सीमेंट बजरी आदि की ही आवश्यकता पड़ती है और न किसी कारीगर की इसको एक किसान खुद बना सकता है।
3. ड्रॉपस्टेयर केवल स्थानीय उपलब्ध पत्थरों से ही बनाया जाता है इसलिए अन्य साधनों के मुकाबले खर्चा भी कम होता है।
4. इसके रख-रखाव में कोई विशेष खर्चा नहीं होता।
5. ड्रॉपस्टेयरों में होकर मनुष्य एवं पशु आसानी से ऊपर-नीचे आ जा सकते हैं, अतः यह रास्तों का भी काम करता है।
6. इसका जीवन काल लगभग 50-60 वर्ष होता है।
7. पर्वतीय क्षेत्रों के पैदल मार्गों पर भी ड्रॉपस्टेयर बनाकर भूक्षरण को रोका जा सकता है।
सम्पर्क
श्री पंकज कुमार, अस्सिटेंट प्रोफेसर, जी.बी.पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नोलॉजी पंतनगर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड
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