परमाणु विकिरण और भ्रान्तियाँ

सभी पदार्थ तत्वों से बने होते हैं। हाइड्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन, स्वर्ण आदि सभी तत्व हैं। परमाणु किसी तत्व का सम्भवतः सबसे छोटा कण है। इसका व्यास एक मीटर के 1,000 करोड़वें (यानी करीब 10 अरब) हिस्से के बराबर होता है। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट गुणधर्मी परमाणु होते हैं। जैसे— दीवार ईंट या पत्थरों की बनी होती है। उसी प्रकार प्रत्येक पदार्थ अरबों परमाणुओं से बना होता है।अमरीका के साथ हुए परमाणु करार के बाद ही देश में परमाणु ऊर्जा को लेकर विरोध का माहौल बना हुआ है। सबसे ज्यादा चिन्ता विकिरण के खतरों को लेकर व्यक्त की जा रही है। जहाँ भी परमाणु ऊर्जा संयन्त्र लगाने की योजना बनती है, स्थानीय लोग बड़े स्तर पर उसका विरोध शुरू कर देते हैं। जापान के फुकुशिमा में हाल ही में हुए परमाणु हादसे के बाद ऐसी चिन्ताओं को और बल मिला है। हादसे से कहीं भी इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ संगठनों द्वारा जिस प्रकार से इन खतरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है, वह चिन्ताजनक है। परमाणु ऊर्जा विभाग और भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों और इससे जुड़ी अन्य भ्रान्तियों को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चला रहा है। इसी कड़ी में उसने ‘एक था बुधिया’ एवं ‘एक खुशहाल गाँव की कहानी’ शुरू की है। इसमें यही बताया गया है कि किस प्रकार एक गाँव में लोग परमाणु बिजलीघर लगाने का विरोध करते हैं लेकिन जब उन्हें इस ऊर्जा के फायदे, सुरक्षा उपायों और फैलाई जा रही भ्रान्तियों के बारे में बताया जाता है तो गाँव के सभी लोग इसी महत्व को समझने लगते हैं। परमाणु और इससे बनने वाली बिजली और विकिरण को लेकर क्या भ्रान्तियाँ हैं, इसका ब्यौरा यहाँ दिया जा रहा है।

परमाणु क्या है?


सभी पदार्थ तत्वों से बने होते हैं। हाइड्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन, स्वर्ण आदि सभी तत्व हैं। परमाणु किसी तत्व का सम्भवतः सबसे छोटा कण है। इसका व्यास एक मीटर के 1,000 करोड़वें (यानी करीब 10 अरब) हिस्से के बराबर होता है। प्रत्येक तत्व के अपने विशिष्ट गुणधर्मी परमाणु होते हैं। जैसे— दीवार ईंट या पत्थरों की बनी होती है। उसी प्रकार प्रत्येक पदार्थ अरबों परमाणुओं से बना होता है। सभी जीवित और निर्जीव वस्तुएँ पदार्थ से बनी होती हैं। परमाणु का एक अन्दरूनी हिस्सा नाभिक या न्यूक्लियस कहलाता है जो प्रोटोन और न्यूट्रॉन कणों से मिलकर बना होता है। यह नाभिक इलेक्ट्रॉन कणों से घिरे रहते हैं जो नाभिक के चारों ओर एक विशिष्ट पथ आवर्त में चक्कर लगाते रहते हैं।

प्रोटोन धन आवेशित होते हैं एवं इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेशिक वाले होते हैं, जबकि न्यूट्रॉन किसी भी आवेश से आवेशित नहीं होते हैं। किसी भी तत्व में प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन की संख्या बराबर होती है। नतीजा यह होता है कि कोई भी परमाणु आवेश रहित होता है। अभी तक ऐसे 108 तत्वों का पता लग चुका है जिन्हें पिरियाडिक टेबल में उनके परमाण्विक संख्या के अनुसार रखा गया है। किसी भी तत्व के नाभिक में प्रोटोनों की संख्या ही उसकी परमाण्विक संख्या होती है। पिरियाडिक टेबल में पहला तत्व हाइड्रोजन है जिसकी परमाण्विक संख्या-1 है। इसी प्रकार किसी भी तत्व के प्रोटोन और न्यूट्रॉन को जोड़कर उसका परमाणु भार निकाला जा सकता है।

रेडियो सक्रियता


1896 में एक फ्रांसीसी भौतिकीविद को संयोग से यूरेनियम यौगिक की रेडियो सक्रियता का पता लगा था। उन्होंने अचानक ही इसका प्रभाव एक बिना एक्सपोज की हुई फोटोग्राफिक फिल्म पर देखा। बाद में वर्ष 1897 में मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी ने दो और रेडियो सक्रिय तत्वों— पोलोनियम और रेडियम की पहचान करने में सफलता पाई। इन रेडियो सक्रिय तत्वों से निकलने वाले उत्सर्जनों की पहचान अल्फा, बीटा तथा गामा किरणों के रूप में हुई।

विकिरण (रेडिएशन)


किसी भी स्रोत से ऊर्जा का उत्सर्जन विकिरण कहलाता है। रेडियो सक्रिय परमाणु जो विकिरण उत्सर्जित करते हैं उसे नाभिकीय विकिरण कहा जाता है। यह मुख्यतः तीन प्रकार का होता है— अल्फा, बीटा एवं गामा। कुछ भारी परमाणु न्यूट्रॉन कण भी उत्सर्जित करते हैं जिन्हें न्यूट्रॉन विकिरण कहा जाता है। उच्च ऊर्जा विकिरण अन्य परमाणुओं और अणुओं के इलेक्ट्रॉनों को उनसे अलग करने में सक्षम होते हैं जिनके माध्यम से वे गुजरते हैं। इस तरह के विकिरण को आयनीकरण विकिरण कहते हैं।

मानव स्वास्थ्य पर असर


यदि विकिरण मानव शरीर से गुजरता है तो इसके प्रभाव से कुछ अणु क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। लेकिन विकिरण की मात्रा अधिक नहीं हो और यह एक लम्बी अवधि में फैला हो तो क्षतिग्रस्त अणु अपने आप ही अपनी मरम्मत कर पूर्व स्थिति में आ जाते हैं। मानव शरीर में प्राकृतिक रूप से मरम्मत करने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। कई बार ऐसा भी होता है कि ये क्षतिग्रस्त अणु गलत तरीके से आपस में जुड़ जाते हैं। ऐसे में इनका प्रभाव कोशिकाओं की गतिविधियों पर पड़ सकता है। यदि विकिरण ज्यादा हो और कम अवधि में हुआ हो तो शरीर का प्राकृतिक मरम्मत करने वाला तन्त्र ही बिगड़ जाता है और वह सही कार्य नहीं कर पाता है। ऐसी स्थिति में विकिरण का प्रभाव तुरन्त देखा जाता है।

विकिरण का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि एक्सपोजर का स्तर क्या है और एक अवधि के दौरान एक्सपोजर कितनी देर तक हुआ। हम प्रभाव को निम्न, मध्यम और उच्च तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक विकिरण से प्रभावित हो रहा है। इस प्रकार के प्रभाव को हम निम्न स्तर का एक्सपोजर कह सकते हैं।

प्राकृतिक स्तर के 100 गुना एक्सपोजर को मध्यम स्तर का और उससे अधिक एक्सपोजर को उच्च स्तर का कहा जाता है। निम्न एक्सपोजर से कोई नुकसान नहीं है। लेकिन ये मध्यम एवं लम्बी समयावधि के बाद दुष्प्रभाव छोड़ते हैं। कैंसर का होना इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। परन्तु अनुसन्धानों से यह स्पष्ट हो गया है कि इससे कैंसर नहीं होता है। इससे उल्टी या मितलाने जैसी घटना हो सकती है। लेकिन लम्बे समय तक होने वाले विकिरण से कैंसर हो सकता है। परन्तु तब जब यह प्रकृति में फैले विकिरण से हजार गुना ज्यादा हो।

परमाणु ऊर्जा को लेकर भ्रान्तियाँ


परमाणु ऊर्जा को लेकर चार किस्म की भ्रान्तियाँ हैं। पहली भ्रान्ति यह है कि परमाणु ऊर्जा के रिएक्टरों में बड़े पैमाने पर विकिरण होता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विकिरण के प्रभाव में रहना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके कारण दो तरह के जैविक प्रभाव पड़ सकते हैं। एक शारीरिक प्रभाव और दूसरा आनुवंशिक प्रभाव, जहाँ प्रभावित व्यक्ति की अगली पीढ़ी में विकिरण का प्रभाव पड़ता है। लेकिन ऐसी आशँका तभी होती है जब विकिरण की मात्रा ज्यादा हो। परमाणु संयन्त्रों में विकिरण को नियन्त्रित किया जाता है। वे विकिरण की मात्रा को मॉनीटर करते रहते हैं, इसलिए खतरा नहीं है। रासायनिक एवं पेट्रोकेमिकल उद्योगों, कोयले को ईन्धन के रूप में इस्तेमाल करने वाले बिजलीघरों से निकलने वाले विषैले रसायनों एवं लकड़ी और कण्डे के जलने से भी इस प्रकार का जैविक प्रभाव पड़ सकता है। कुछ और तथ्य भी हैं, जैसे— विकिरण हमारे पर्यावरण का हिस्सा है। अन्य उद्योगों के हानिकारक प्रभावों की तुलना में विकिरण के प्रभाव हमें पहले से ही ज्ञात हैं तथा उसके रोकथाम के पर्याप्त इन्तजाम हैं।

किसी भी स्रोत से ऊर्जा का उत्सर्जन विकिरण कहलाता है। रेडियो सक्रिय परमाणु जो विकिरण उत्सर्जित करते हैं उसे नाभिकीय विकिरण कहा जाता है। यह मुख्यतः तीन प्रकार का होता है— अल्फा, बीटा एवं गामा। दूसरी भ्रान्ति नाभिकीय अपशिष्ट और इसके प्रबन्धन के सम्बन्ध में है। नाभिकीय अपशिष्ट एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान नहीं हो सकता है। जबकि वास्तविकता यह है कि विश्व की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में समक्ष ऊर्जा के सभी प्रकारों में परमाणु ऊर्जा ही एक ऐसा विकल्प है जो सबसे कम अपशिष्ट उत्सर्जित करती है। दूसरे, इसका आसानी से प्रबन्धन किया जा सकता है। इसके तरीके उपलब्ध हैं। परमाणु ऊर्जा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री परिष्कृत होकर सदियों तक चलती रहती है। इसलिए अपशिष्ट बहुत ही कम निकलता है। किन्तु जीवाश्म ईन्धनों से उत्सर्जित अपशिष्ट का समाधान नहीं है। जीवाश्म ईन्धन के अपशिष्ट को वायुमण्डल में यूँ ही छोड़ दिया जाता है। इनके निपटान के लिए प्रौद्योगिकी नहीं है। जबकि परमाणु ऊर्जा के अपशिष्ट के निपटान के लिए उच्च कोटि की प्रौद्योगिकी उपलब्ध है।

तीसरी भ्रान्ति यह है कि नाभिकीय रिएक्टरों से हथियारों का उत्पादन होता है। यह सम्पूर्ण सत्य नहीं है। परमाणु बम बनाने वाले पाँच देश नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन करने से पहले ही परमाणु बम बना चुके थे। यानी परमाणु बम बनाने के लिए रिएक्टर बनाने की जरूरत नहीं है। इसलिए यह सोच ही गलत है। दूसरे, भारत जैसे देशों की नीति हमेशा ही परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल विकास और शांतिपूर्ण कार्यों के लिए करने की रही है।

भ्रान्ति यह है कि नाभिकीय रिएक्टरों से हथियारों का उत्पादन होता है। यह सम्पूर्ण सत्य नहीं है। परमाणु बम बनाने वाले पाँच देश नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन करने से पहले ही परमाणु बम बना चुके थे। यानी परमाणु बम बनाने के लिए रिएक्टर बनाने की जरूरत नहीं है। चौथी भ्रान्ति यह है कि परमाणु विद्युत संयन्त्र एक बम की तरह है तथा किसी दुर्घटना की स्थिति में यह अपने आप एक बम बन जाएगा। थ्री माइल्स, चेर्नोबिल, फुकुशिमा को इसके उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है जिनकी भयावहता हम देख चुके हैं। किन्तु थ्री माइल्स आईलैण्ड के बारे में सच्चाई यह है कि इसका आम जनता के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ा था। रिएक्टर को क्षति पहुँची लेकिन विकिरण का प्रभाव इतना कम था कि इससे प्राकृतिक वायुमण्डल प्रभावित नहीं हुआ। लेकिन चेर्नोबिल एक त्रासदी थी जिसका आम जनता और पर्यावरण पर प्रभाव पड़ा है।

ऐसी ही दुर्घटना फुकुशिमा में बीते साल हुई। इन रिएक्टरों में संरक्षा प्रौद्योगिकी, कार्यपद्धति तथा संरक्षात्मक अवरोधों की व्यवस्था सामान्य नहीं पाई गई। बावजूद इसके इन हादसों से बम जैसी स्थिति पैदा नहीं हुई। दूसरे, वैज्ञानिकों ने दोनों हादसों से सबक लिए हैं और संरक्षा के उपाय मजबूत बनाए हैं। फुकुशिमा हादसे के बाद प्रधानमन्त्री के निर्देश पर एनपीसीआईएल ने विशेषज्ञ समिति गठित कर देश में चल रहे सभी 20 परमाणु रिएक्टरों की जाँच की और उनमें सुरक्षा उपायों की समीक्षा की।

ज्ञात हो कि इन रिएक्टरों से इस समय 4,780 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। इस समय रावतभाटा, काकरापार और कैगा में छह रिएक्टर निर्माणाधीन हैं। जबकि 14 और रिएक्टर अगले पाँच-दस सालों के भीतर लगने हैं। 2030 तक परमाणु बिजली का उत्पादन 35 हजार मेगावाट तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। दरअसल, देश में चालीस फीसदी आबादी को आज भी समुचित बिजली उपलब्ध नहीं है, इसलिए ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए परमाणु ऊर्जा के विकल्प को नहीं छोड़ा जा सकता।

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के विशेष प्रतिनिधि हैं। पीआईबी फीचर)

Path Alias

/articles/paramaanau-vaikairana-aura-bharaanataiyaan

×