भोपाल। परमाणु ऊर्जा विरोधी संगठन जनपहल, जो कि परमाणु ऊर्जा के खिलाफ देश भर में उठ रही आवाजों का मंच है, ने 1 दिसंबर को भोपाल में परमाणु ऊर्जा विरोधी राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। उक्त जानकारी देते हुए जनपहल के संयोजक विजय कुमार ने बताया कि सम्मेलन में प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. अनिल सद्गोपाल ने कहा कि यह सम्मेलन ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार एक देशव्यापी संगठित मंच से न सिर्फ भारत के परमाणु कार्यक्रम को रद्द करने की बल्कि चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करने की मांग की गई है। उन्होंने कहा कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में दुर्घटना होने पर सरकार का जन विरोधी चेहरा कैसा होगा यह भोपाल गैस त्रासदी में सरकार के रवैये से ही स्पष्ट है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सोम्या दत्ता ने कहा कि परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम भ्रामक तथ्यों के आधार पर आगे बढ़ाया जा रहा है एवं जन पक्षीय ऊर्जा नीति की जरूरत पर बल दिया जो मुनाफाखोरी पर आधारित न हो। सम्मेलन में जैतापुर (महाराष्ट्र), कोवाड़ (आन्ध्र प्रदेश), फतेहाबाद (हरियाणा), मीठी विर्डी (गुजरात), चुटका (मध्य प्रदेश) आदि जगहों से परमाणु विरोधी संघर्षों के नेतृत्वकारी कार्यकर्ता के अलावा देश व प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों के जनआंदोलनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
इससे पहले सम्मेलन ट्रेड यूनियन नेता कॉ. जी. एस. आसिवाल व पत्रकार एल. एस हरदेनिया के अभिभाषणों से शुरू हुआ। सम्मेलन में छः सूत्रीय मांग पत्र जारी किया गया। इनमें सभी नव प्रस्तावित परमाणु संयंत्रों को रद्द करो, सभी चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करो, वर्तमान में चालू एवं प्रस्तावित यूरेनियम खदानों पर रोक लगाओ, परमाणु हथियारों के खिलाफ और सार्वभौमिक परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए संघर्ष करो, वैकल्पिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास करो एवं जनपक्षीय ऊर्जा नीति समेत विकास का वैकल्पिक प्रतिमान तैयार करो।
सम्मेलन के समापन भाषण में कॉ. के.एन. रामचन्द्रन महासचिव भा.क.पा.(मा-ले) ने कहा कि विकसित देशों ने परमाणु संयंत्रों के निर्माण पर रोक तथा बड़ी संख्या में चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करने से परमाणु संयंत्र की तकनीक और परमार्णु इंधन समेत रिएक्टरों की आपूर्ति करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत जैसे देशों पर, जो आई.एम.एफ, विश्व बैंक और बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसी साम्राज्यवादी एजेंसियों पर निर्भर हैं, दबाव डालने का प्रयास तेज कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप संप्रग सरकार ने वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक व पर्यावरण से जुड़े विपरीत पहलूओं पर गंभीरता से विचार किए बिना ही बड़ी संख्या में परमाणु संयंत्रों के निर्माण की राह आसान करने के लिए अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान आदि देशों की साम्राज्यवादी सरकारों की मदद से परमाणु बिजलीघरों और तकनीक को भारत जैसे नव-उपनिवेशिक निर्भरता वाले देशों पर थोपने का पुरजोर प्रयास कर रही है। इसके लिए जरूरी है कि परमाणु विरोधी ताकतों को एकजुट कर सम्मेलन में सर्वसम्मती से पारित मांगों के आधार पर देशभर में जन प्रतिरोध संगठित किया जाए।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सोम्या दत्ता ने कहा कि परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम भ्रामक तथ्यों के आधार पर आगे बढ़ाया जा रहा है एवं जन पक्षीय ऊर्जा नीति की जरूरत पर बल दिया जो मुनाफाखोरी पर आधारित न हो। सम्मेलन में जैतापुर (महाराष्ट्र), कोवाड़ (आन्ध्र प्रदेश), फतेहाबाद (हरियाणा), मीठी विर्डी (गुजरात), चुटका (मध्य प्रदेश) आदि जगहों से परमाणु विरोधी संघर्षों के नेतृत्वकारी कार्यकर्ता के अलावा देश व प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों के जनआंदोलनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
इससे पहले सम्मेलन ट्रेड यूनियन नेता कॉ. जी. एस. आसिवाल व पत्रकार एल. एस हरदेनिया के अभिभाषणों से शुरू हुआ। सम्मेलन में छः सूत्रीय मांग पत्र जारी किया गया। इनमें सभी नव प्रस्तावित परमाणु संयंत्रों को रद्द करो, सभी चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करो, वर्तमान में चालू एवं प्रस्तावित यूरेनियम खदानों पर रोक लगाओ, परमाणु हथियारों के खिलाफ और सार्वभौमिक परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए संघर्ष करो, वैकल्पिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास करो एवं जनपक्षीय ऊर्जा नीति समेत विकास का वैकल्पिक प्रतिमान तैयार करो।
सम्मेलन के समापन भाषण में कॉ. के.एन. रामचन्द्रन महासचिव भा.क.पा.(मा-ले) ने कहा कि विकसित देशों ने परमाणु संयंत्रों के निर्माण पर रोक तथा बड़ी संख्या में चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करने से परमाणु संयंत्र की तकनीक और परमार्णु इंधन समेत रिएक्टरों की आपूर्ति करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत जैसे देशों पर, जो आई.एम.एफ, विश्व बैंक और बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसी साम्राज्यवादी एजेंसियों पर निर्भर हैं, दबाव डालने का प्रयास तेज कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप संप्रग सरकार ने वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक व पर्यावरण से जुड़े विपरीत पहलूओं पर गंभीरता से विचार किए बिना ही बड़ी संख्या में परमाणु संयंत्रों के निर्माण की राह आसान करने के लिए अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान आदि देशों की साम्राज्यवादी सरकारों की मदद से परमाणु बिजलीघरों और तकनीक को भारत जैसे नव-उपनिवेशिक निर्भरता वाले देशों पर थोपने का पुरजोर प्रयास कर रही है। इसके लिए जरूरी है कि परमाणु विरोधी ताकतों को एकजुट कर सम्मेलन में सर्वसम्मती से पारित मांगों के आधार पर देशभर में जन प्रतिरोध संगठित किया जाए।
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