परमाणु संयंत्र के विरोध में आदिवासियों का सत्याग्रह

मेधा पाटकर
मेधा पाटकर


मध्य प्रदेश में मंडला जिले के आदिवासी इन दिनों नर्मदा नदी के समीप बनने वाले 25 हजार करोड़ की लागत वाली चुटका परमाणु विद्युत संयंत्र का विरोध करते हुए सत्याग्रह कर रहे हैं। ये लोग पहले ही बरगी बाँध की वजह से विस्थापित हो चुके हैं। इन्हें अब इस परियोजना के कारण दुबारा विस्थापित होना पड़ेगा। साथ ही पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक यह परियोजना नर्मदा नदी के पानी को सर्वाधिक प्रदूषित करेगी और इसका असर मध्य प्रदेश और गुजरात के बड़े हिस्से की आबादी पर पड़ेगा।

13 फरवरी 2017 का दिन। छोटे से गाँव चुटका में आज सुबह से ही आसपास के गाँवों से अपना अनाज अपने माथे पर बाँधे आदिवासी जत्थों में आते जा रहे हैं। वे यहाँ हाट करने या काम करने नहीं आ रहे हैं, बल्कि सरकार का ध्यान अपनी माँगों की ओर खींचने के लिये सत्याग्रह करने यहाँ आये हैं। जैसे–जैसे सूरज की तपन तेज होती जा रही है, वैसे–वैसे उनका गुस्सा भी तेज होने लगता है। वे हवा में मुट्ठियाँ उछालते हुए नारे लगा रहे हैं। वे कहते हैं कि उनके गाँव में किसी भी कीमत पर वे संयंत्र नहीं लगने देंगे।

सत्याग्रह स्थल पर पहुँची नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने यहाँ चुटका परमाणु संयंत्र लगाए जाने का सख्त विरोध करते हुए कहा– 'यहाँ परमाणु बिजली संयंत्र लगाना नर्मदा नदी को बचाने का नहीं मिटाने का प्रयास है। इसके विकिरणों से यहाँ के लोगों और नदी के पानी को गम्भीर खतरा है। इसके बावजूद यहाँ संयंत्र स्थापित करने की तैयारियाँ चल रही हैं। चुटका की लड़ाई सिर्फ इस घाटी में बसे आदिवासियों और ग्रामीणों की लड़ाई नहीं है। यह जल, जंगल, जमीन और जिन्दगी के लिये जूझ रहे भारतीयों की लड़ाई है। जनता की चुनी हुई सरकारों को जनता की भावना का सम्मान करना चाहिए। संविधान की मूल भावना का आदर करना चाहिए लेकिन यहाँ तो ग्रामसभा की अनुमति भी नहीं ली जा रही है। पाँचवीं अनुसूची और अन्य कानूनों में स्पष्ट उल्लेख है कि इस तरह की परियोजनाओं को स्थापित करने से पहले स्थानीय ग्रामसभा से लिखित अनुमति जरूरी है।'

जबलपुर से कोई 75 किमी दूर नारायणगंज तहसील में कुछ सालों पहले नर्मदा नदी पर बरगी बाँध बनाया गया था। 1974 में इसके लिये काम शुरू हुआ और 1990 में यह बनकर तैयार हुआ। यह नर्मदा घाटी में बने 30 बड़े बाँधों में से एक है। इसमें मंडला जिले के 95, सिवनी के 48 तथा जबलपुर के 19 गाँवों के लोग विस्थापित करने पड़े। इनमें भी करीब 70 फीसदी से ज्यादा आदिवासी थे।

इन विस्थापितों को चुटका, कुंडा, टाटीघाट और माने गाँव में बसाया गया था। बरगी बाँध पर दो पनबिजली संयंत्र भी लगाए गए हैं। हालांकि आसपास के गाँव अब भी अन्धेरे में ही हैं। यहाँ के विस्थापितों को अब तक समुचित मुआवजा और पुनर्वास की सुविधाएँ भी नहीं मिल सकीं।

चुटका परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल ग्रामीणअब समस्या की मूल वजह है 1400 मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिये चुटका में प्रस्तावित परमाणु बिजली संयंत्र। 1984 में पहली बार लोगों ने इसका नाम सुना। इसके लिये पहले से विस्थापित लोगों को दुबारा विस्थापित किये जाने की तैयारी है। दूसरे वैज्ञानिक बताते हैं कि यहाँ संयंत्र लगाना पर्यावरण के हित में नहीं है। यह स्थान भूसंवेदी क्षेत्र में है। यहाँ 22 मई 1997 को 6.4 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकम्प आ चुका है। इससे इलाके में भारी तबाही हुई थी।

कई लोगों की मौतें भी इसमें हुईं। इससे भी बड़ी बात यह है कि इससे नर्मदा के बेशकीमती पानी का बड़ा नुकसान भी होगा। नदी के पानी को रेडियोधर्मी विकिरणों से जो नुकसान होगा, उससे प्रदूषित पानी आगे मध्य प्रदेश और गुजरात की आबादी के बड़े हिस्से को प्रभावित करेगा।

इस हिस्से में पीने के पानी का नर्मदा के अलावा अन्य कोई विकल्प ही नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक परमाणु बिजली संयंत्र से 1400 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिये हर साल करीब सात करोड़ 25 लाख 75 हजार घनमीटर पानी की जरूरत होगी। इतनी बड़ी तादाद में पानी की खपत होने से बरगी बाँध की सिंचाई क्षमता प्रभावित होगी।

नर्मदा नदी के शुद्ध पानी का इस्तेमाल करने के बाद विकीरण युक्त प्रदूषित पानी फिर से नर्मदा नदी में ही छोड़ दिया जाएगा। इससे समूचा पानी दूषित हो जाएगा और इसके असर से मछलियाँ और अन्य जलीय जीव भी खत्म होंगे। इस पानी को आगे जहाँ भी मानव बस्तियों में पीने के पानी के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा, वहाँ मनुष्य तो दूर मवेशियों के स्वास्थ्य पर भी दूषित पानी का बुरा असर पड़ेगा और कैंसर तथा विकलांगता सहित विभिन्न गम्भीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाएगा।'

चुटका परमाणु संयंत्र विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादुलाल कुडापे और नवरत्न दुबे बताते हैं– 'स्थानीय ग्रामीण आदिवासियों ने 2014 में इसका विरोध कर इसकी शिकायत मुख्यमंत्री को भी की थी। यहाँ 70 फीसदी लोग मुआवजा लेने को तैयार नहीं हैं। इसके बावजूद उनके बैंक खातों में जबरिया रूप से राशि जमा की जा रही है।'

बरगी विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राजकुमार सिन्हा कहते हैं– 'बरगी बाँध के विस्थापित पच्चीस साल बाद अब भी विस्थापन के बुरे बर्ताव का दंश झेल रहे हैं। ऐसे में हम लोग एक और विस्थापन के लिये अब किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं। हमारी कई माँगे इतने लम्बे वक्त बीतने के बाद भी अब तक पूरी नहीं की जा सकी है।'

ग्रामीण बताते हैं कि 17 फरवरी, 2014 को पर्यावरणीय प्रभाव आकलन हेतु सम्पन्न जन-सुनवाई में क्षेत्रीय लोगों ने हजारों की संख्या में विरोध प्रदर्शन किया तथा विधिवत लिखित आपत्ति दर्ज की। क्षेत्र के प्रभावित होने वाले आदिवासी ग्रामों के कई महिला-पुरुष विगत पाँच वर्षों से परियोजना के विरोध में संघर्षरत हैं। 250 से अधिक आदिवासी प्रतिनिधियों ने भोपाल जाकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के समक्ष आपत्ति दर्ज की।

चुटका परमाणु परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में महिलाओं के साथ मेधा पाटकरकेन्द्र और राज्य के अनुसूचित जनजाति आयोग में भी विविधत लिखित आपत्ति दर्ज की। इन सभी को नकारते हुए राज्य सरकार परियोजना को आगे ले जा रही है तथा भूमि के अधिग्रहण की कार्यवाही अन्यापूर्ण ढंग से आगे बढ़ाई जा रही है। मध्य प्रदेश के पाँचवीं अनुसूची वाले आदिवासी क्षेत्र मंडला जिले में नारायणगंज तहसील के भूकम्प संवेदी एवं बरगी बाँध से विस्थापित ग्राम चुटका, कुण्डा, टाटीघाट और मानेगाँव में ग्रामसभा के विरोध के बावजूद चुटका परमाणु विद्युत संयंत्र स्थापित करने के लिये केन्द्र सरकार कटिबद्ध है।

संविधान में पाँचवीं अनुसूची वाले क्षेत्रों की ग्रामसभाओं को सर्वोच्च प्रधानता दी गई है तथा ग्रामसभा की अनुमति से ही भूमि अधिग्रहण का प्रावधान है। इसकी सरकार द्वारा अवहेलना की जा रही है। इस कारण आदिवासियों की संस्कृति, संसाधन जल, जंगल, जमीन एवं सामाजिक पहचान खत्म होती जा रही है।

आदिवासी हितों की रक्षा के लिये राष्ट्रपति और राज्यपाल को असीमित अधिकार हैं। उन्होंने माँग की है कि चुटका परमाणु बिजली परियोजना को रद्द किया जाये। बरगी विस्थापितों के पुनर्वास सम्बन्धी सभी लम्बित मामले का तत्काल निराकरण किया जाये। क्षेत्र में वनाधिकार कानून के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार देने की कार्यवाही को तेजी से आगे बढ़ाया जाये। यह भी कि मछुआरों के हित में बरगी जलाशय में ठेकेदारी प्रथा खत्म कर मत्स्याखेट एवं विपणन का पूर्ण अधिकार बरगी मत्स्यसंघ को दिया जाये।

सामजिक कार्यकर्ता गोपाल राठी बताते हैं– 'मध्य प्रदेश में बिजली उपलब्धता 18300 मेगावाट तक पहुँच चुकी है, जबकि बिजली की अधिकतम माँग 11, 501 मेगावाट ही है। जबकि मध्य प्रदेश सरकार की सार्वजनिक 11 विद्युत इकाई फिलहाल शट डाउन की मार झेल रही हैं। इसलिये 1400 मेगावाट बिजली के लिये 25,000 करोड़ की चुटका परमाणु परियोजना बनाने का औचित्य क्या है?'
 

Path Alias

/articles/paramaanau-sanyantara-kae-vairaodha-maen-adaivaasaiyaon-kaa-satayaagaraha

Post By: RuralWater
×