तमिलनाडु के कुडनकुलम में रूस के सहयोग से बने परमाणु बिजली घर के खिलाफ जिस तरह का जनसैलाब उमड़ा और सैकड़ों लोग अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे, उससे यह साफ जाहिर होता है कि परमाणु बिजली घर से जुड़ी भीषण दुर्घटना की आशंकाओं ने स्थानीय निवासियों की चेतना को झकझोर दिया है।
जापान के फुकुशिमा में हुई परमाणु दुर्घटना के बाद दुनिया भर में जो परमाणु बिजली घरों के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ था, वह अब जबर्दस्त ढंग से जोर पकड़ रहा है। तमिलनाडु के कुडनकुलम में रूस के सहयोग से जल्द चालू होने वाले परमाणु बिजली घर के खिलाफ लोगों ने अपने संगठित विरोध से राज्य सरकार को झुकाया, जो एक बड़ी नजीर है। परमाणु ऊर्जा के पक्ष-विपक्ष में बंटे लोगों के बीच इस बात पर सहमति बनती नजर आ रही है कि लोगों की आशंकाओं को दूर किए बिना परमाणु बिजली घर नहीं बनने चाहिए। लिहाजा कुडनकुलन की थाप बहुत दूर तक और देर तक सुनाई देगी। वैसे भी इस समय देश भर में जहां भी नए परमाणु बिजली घर प्रस्तावित हैं, वहां उनका कड़ा विरोध चल रहा है। तमिलनाडु के कुडनकुलम में रूस के सहयोग से बने परमाणु बिजली घर के खिलाफ जिस तरह का जनसैलाब उमड़ा और सैकड़ों लोग अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे, उससे यह साफ जाहिर होता है कि परमाणु बिजली घर से जुड़ी भीषण दुर्घटना की आशंकाओं ने स्थानीय निवासियों की चेतना को झकझोर दिया है। इस जनदबाव के आगे झुकते हुए तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने यह वादा किया है कि वह केंद्र सरकार से इस परमाणु बिजली घर परियोजना पर पुनर्विचार करने का आग्रह करेंगी। इस तरह उन्होंने विवाद को केंद्र के पाले में डालने की रणनीति अपनाई है। इसके पीछे निश्चित तौर पर केंद्र की कांग्रेस सरकार से जयललिता अपने पुराने हिसाब-किताब भी निपटाना चाहती होंगी लेकिन जनता के बीच यह संदेश गया है कि उनके आंदोलन ने राज्य सरकार को झुकाया है।इस संदर्भ में पश्चिम बंगाल की हरिपुर परमाणु बिजलीघर परियोजना और महाराष्ट्र की जैतापुर परमाणु परियोजना का जिक्र बेहद जरूरी हो उठता है। हरिपुर में भी रूस के परमाणु रिएक्टर लगने थे, जिसे लेकर स्थानीय लोगों खासकर मछुआरों में कड़ा विरोध था। इस विरोध के मद्देनजर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा कदम उठाते हुए इस परियोजना को राज्य में लगाने से ही इनकार कर दिया। अब केंद्र सरकार रूस के इस परमाणु बिजली घर के लिए दूसरे राज्य में जगह तलाश रही है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र के जैतापुर में फ्रांसिसी कंपनी एरेवा के परमाणु बिजली घर को लेकर लंबे समय से चल रहे विरोध को देखा जा सकता है। फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना और उसके बाद पिछले हफ्ते फ्रांस में इसी कंपनी के संयंत्र में हुए विस्फोट ने जैतापुर के लोगों की आशंकाओं को और पुख्ता आधार दिया है। आने वाले दिनों में वहां के आंदोलन के और उग्र होने के संकेत मिल रहे हैं। जैतापुर में तो लोगों में डर ज्यादा है, क्योंकि यहां दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु पार्क यानी एक जगह से चलने वाले सबसे ज्यादा क्षमता के परमाणु रिएक्टर लगाए जा रहे हैं और यह इलाका भूकंप प्रभावित जोन में आता है। यहां पर परमाणु परियोजना के चलते जिन किसानों की जमीनें गई हैं उनमें से अधिकांशतः ने मुआवजे की राशि तक नहीं ली है। कुडनकुलम के आंदोलन को मिली आंशिक सफलता के बाद जैतापुर में भी इस परियोजना के काम को तुरंत रोकने की मांग उठने लगी है।
फ्रांस में एरेवा कंपनी के परमाणु संयंत्र के परमाणु कचरा स्थल में हुए विस्फोट में एक की जान गई थी और कुछ लोगों के घायल होने की बात भी सामने आई थी। तमिलनाडु के कुडनकुलम में चल रहे विरोध में फ्रांस की इस दुर्घटना ने भी उत्प्रेरक का काम किया। यह आंदोलन लंबे समय से चल रहा था और बहुत कम लोगों को यह उम्मीद रही होगी कि जब यह बिजली घर चालू होने के कगार पर होगा, तब इसके खिलाफ जनता का आक्रोश फूट पड़ेगा। ऐसे में पहले जापान की परमाणु दुर्घटना और बाद में फ्रांस में परमाणु संयंत्र में विस्फोट से आम लोगों के दिमाग में यह बात साफ तौर पर बैठ गई कि इस तकनीक में कुछ भी सुनिश्चित नहीं है और एक बार किसी भी वजह से दुर्घटना होने का मतलब है कि कई पीढ़ियों का विनाश। ऐसा कोई जोखिम किसी भी तरह के चमचमाते विकास के तथाकथित दावे के नाम पर लोग अब उठाने को तैयार नहीं हैं। परमाणु दुर्घटनाओं से फैलने वाले जानलेवा विकीरण की काली आशंकाएं इन इलाकों में बसने वाले लोगों की आंखों में तैरती नजर आती हैं। इस जागरूकता का ही फल है कि महाराष्ट्र के जैतापुर में जीवन के सत्तर बसंत देख चुकी कमला ताई परमाणु बिजली घर से हो सकने वाली आशंकाओं पर कोंकणी में उसी दक्षता से बात करती हैं जैसे कोई परमाणु ऊर्जा पर काम करने वाला वैज्ञानिक करता है।
चूंकि देश भर में नए परमाणु संयंत्र प्रस्तावित हैं और कमोबेश हर जगह विरोध जोर पकड़ रहा है, इसलिए केंद्र सरकार को समय रहते परमाणु बिजली घरों के विस्तार की अपनी नीति में रद्दोबदल करने की जरूरत है। हरियाणा के यमुना नगर से लेकर गुजरात की मीठी विरदी तक, जहां अमेरिकी परमाणु बिजली घर लगना है वहां भी विरोध के स्वर जिस तरह से तेज हो रहे हैं उससे आने वाले दिनों में इन प्रस्तावित परियोजनाओं का भविष्य संकट में पड़ सकता है।
परमाणु बिजली घरों के पक्ष में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि यह प्रदूषण रहित है और जिस तेजी से कोयले आदि ईंधनों की खपत हो रही है, उसमें भविष्य की आशा परमाणु ऊर्जा ही है। इसके साथ ही भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह भी तर्क दिया जाता है कि यहां बिजली की इतनी ज्यादा कमी है कि बिना परमाणु ऊर्जा विकसित किए काम ही नहीं चल सकता। फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के बाद यह तर्क एक बार फिर खारिज हो चुका है कि यह प्रदूषण रहित ऊर्जा है। एक बार परमाणु बिजली घर से विकरण फैलने लग जाता है तो उससे बचाव का कोई रास्ता नहीं होता। तत्कालीन सोवियत संघ के चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना के जख्म अब तक भरे नहीं हैं, उसका खौफनाक मंजर लोगों के जेहन में कौंधता है। वहीं कोयले आदि के ईंधन की कमी वाला तर्क परमाणु बिजली घरों पर भी लागू होता है क्योंकि इसके लिए अमेरिका जैसे तमाम विकसित देशों पर ही निर्भरता बढ़ेगी इसके साथ ही यह सवाल भी तो पूछा जाना चाहिए कि आखिर भारत पर परमाणु रिएक्टरों को खरीदने के लिए दबाव बनाने वाले अमेरिका ने पिछले 30 सालों में एक भी परमाणु बिजली घर क्यों नहीं लगाया। अमेरिका में 1979 में थ्री माइल आईलैंड में हुई परमाणु दुर्घटना के बाद से नए बिजली घरों पर रोक सी लगी हुई है। खुद अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के तमाम बड़े छोटे देशों में परमाणु बिजली घरों के खिलाफ माहौल बना हुआ है। फुकुशिमा दुर्घटना के बाद अपने को परमाणु मुक्त घोषित करने वाला पहला औद्योगिक देश बना जर्मनी। इसने इस साल मई में फैसला किया कि वह 2022 तक अपने सारे परमाणु संयंत्र बंद कर देगा।
इटली में भी लोगों ने भारी बहुमत से परमाणु बिजली घरों को फिर से चालू करने की सरकार की कोशिशों को खारिज कर दिया। स्विट्जरलैंड ने फुकुशिमा हादसे के तुरंत बाद ही परमाणु संयंत्रों पर रोक लगा दी थी। जापान में इसी हफ्ते परमाणु ऊर्जा के खिलाफ ऐतिहासिक बड़ा प्रदर्शन हुआ। यह 1960 के बाद जापान की राजधानी में हुआ पहला इतना बड़ा प्रदर्शन था, जिसमें 60 हजार से ज्यादा लोगों ने परमाणु बिजली घरों के खिलाफ सरकार से कड़ा कदम उठाने की मांग की। ऐसे में लोगों की आशंकाओं को सिरे से खारिज करना, उन्हें विकास विरोधी बताना नासमझी होगी क्योंकि विकास लोगों के हित के लिए ही होता है। आखिर लोकतंत्र में लोगों को अपने भविष्य के बारे में फैसला करने का अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए?
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