प्रकृति प्रेम ने चट्टानों पर भी खिला दिए फूल

मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी क्षेत्र हरा-भरा हो गया है।
मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी क्षेत्र हरा-भरा हो गया है।

यूं तो राजस्थान अपनी संस्कृति, सभ्यता, परंपराओं, ऐतिहासिक किलों व पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। क्षेत्रफल के आधार पर भी ये देश का सबसे बड़ा राज्य है, जिसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण पश्चिम में गुजरात, दक्षिण पूर्व में मध्य प्रदेश, उत्तर में पंजाब, उत्तर पूर्व में उत्तर प्रदेश और पंजाब हैं। पांच राज्यों और एक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगा होने के कारण भी राजस्थान में दुनिया भर से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। अभी तक तो राजस्थान की पहचान यहां की ऐतिहासिकता और किले ही थे, जहां रेगिस्तान में ऊंट की सवारी का लुत्फ लेने से भी पर्यटक पीछे नहीं हटते थे, लेकिन प्रसन्नपुरी गोस्वामी पर्यावरण के प्रति प्रेम से राजस्थान के जोधपुर को एक नई पहचान मिली है। गोस्वामी ने मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी क्षेत्र की चट्टानों पर हरियाली उगाकर विश्व के सामने एक मिसाल पेश की। आज 34 वर्ष बाद कभी बंजर रही इस भूमि पर 22 हेक्टेयर औषधि उद्यान में हरियाली लहलहा रही है।

पानी की आपूर्ति के लिए औषधि उद्यान में एनिकट, चैक डैम आदि का भी निर्माण किया गया हैं। फिर बाद में उद्यान का नाम ‘राव जोधा प्रकृति उद्यान’ रख दिया। जिसमें 13 किस्मों के बोगनवेलिया और 50 किस्मों के गुलाब भी उगाए गए हैं। उद्यान की तरफ उन्होंने शासन और प्रशासन का ध्यान भी आकर्षित किया, जिस कारण आज यहां सैंकड़ों लोगों द्वारा लगाए गए पौधें भी लहलहा रहे हैं।

जोधपुर के मेहरानगढ़ दुर्ग की पथरीली चट्टानों और तलहटी में बंजर भूमि पर किसी ने हरियाली की कल्पना तक नहीं की थी। यहीं चिड़ियानाथ की पहाड़ी पर प्रसिद्ध मेहरानगढ़ किला है। किले से थोड़ी ही दूरी पर स्थित जसवंत थड़े की घाटी, खेजड़ी चौक में प्रसन्नपुरी गोस्वामी का घर है। बचपन से ही गोस्वामी को प्रकृति से बड़ी प्यार था। पेड़ों के झुरमुट उन्हें काफी भाते थे। प्रसन्नपुरी गोस्वामी उस दौरान एक स्कूल में पढ़ाते थे। खाली समय में अपने मित्रों के साथ किले की घाटी में नियमित रूप से घूमते थे। एक दिन दोस्तों के साथ पौधारोपण करने की बात होने लगी। पौधारोपण करने का प्रस्ताव सभी को अच्छा लगा और सभी में काफी उत्सुकता भी दिखी, लेकिन जब करने की बात आई तो सन्नाटा पसर गया।

इससे इतर प्रसन्नपुरी गोस्वामी ने पौधारोपण करने के अपने विचार को मौन नहीं होने दिया और अकेले के कांधों पर ही पौधारोपण करने का संकल्प ले लिया। एक दिन उचित स्थान पाकर उन्होंने पौधारोपण करने का श्रीगणेश कर दिया। बरसात के दिनों में पर्याप्त पानी मिलने पर पौधे खिल उठे और पौधों को खिलता देख गोस्वामी को भी एक अलौकिक एहसास की अनुभूति होने लगी। इसके बाद उनके मित्र भी इस कार्य में साथ जुड़ते चले गए और उन्होंने मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी पर सैंकड़ों पौधे रोपे। लोगों ने हौंसला अफजाई करने के बजाए उन पर तंज कसने शुरू कर दिए कि ‘देखो ये पहाड़ों, पत्थरों पर फूल खिलाने आए हैं’, लेकिन वें लोगों की बातों से विचलित नहीं हुए और अपने संकल्प पर दृढ़ रहे। बरसात के बाद खिले पौधों ने प्रमाण देते हुए लोगों की बोलती स्वतः ही बंद कर दी। 
 
गोस्वामी इन पहाड़ियों की बरसाती संरचना से अच्छी तरह परिचित थे, इसी के चलते उन्हें बरसाती झरनों की दिशा और ढलान के अनुकूल पौधारोपण करने की आसानी रही। जिसके चलते उन्होनें किले के आसपास बरसाती झरनों और चट्टानों, गढ्ढ़ों से रिसते पानी के सहारे पौधे रोपे। बरसात के अलावा अन्य महीनों में पौधों को पानी देने के लिए उन्होंने पेयजल लाइन के लीकेज के पानी का उपयोग किया, लेकिन लीकेज ठीक होने के बाद फिर पानी की दिक्कत होने लगी। जिसके बाद उन्होंने आस पास के इलाकों में बने प्याऊ से तो कभी दूर कभी दूर छोटे पहाड़ी तालाब से पानी लाकर पौधों को सींचना शुरू किया। जिससे पोधें धीरे-धीरे बड़े होने लगे और गोस्वामी का उनसे अपने बच्चों के समान लगाव-सा हो गया था। इसी बीच प्रसन्नपुरी गोस्वामी का तबादला जालौर हो गया। पेड़ों की हिफाजत का जिम्मा उन्होंने अपने छोटे बेटे प्रमोदपुरी को सौंप दिया। प्रमोद भी अपने पिता की ही तरह प्रकृति प्रेमी था, लेकिन पौधों पर दवा स्प्रे करने के दौरान हुई एक दुर्घटना में प्रमोद की मौत हो गई। जिससे गोस्वामी को काफी धक्का लगा।

आज प्रसन्नपुरी को अपने बेटे के हिस्से की भी मेहनत करनी पड़ रह है, लेकिन बेटे की मौत ने उनका प्रकृति प्रेम कम होने नहीं दिया बल्कि उन्हें प्रकृति से जुड़े रहने का एक और मकसद दे दिया। अपने बेटे की प्रकृति भावना के बलबूते ही उन्होंने आज भी पौधारोपण करना नहीं छोड़ा और आज 72 साल की उम्र की में गोस्वामी पहाड़ी पर चढ़ उतरे रहे हैं। वक्त के साथ-साथ उनके इस कार्य में लोग जुड़ते चले गए और उन्होंने इस अभियान को मेहरानगढ़ पहाड़ी पर्यावरण विकास समिति के नाम से शुरू किया। आज उनका ये अभियान 22 हेक्टेयर में फैले एक उद्यान के रूप में परिवर्तित हो गया है, जहां अश्वगंधा, आंवला, अपामार्ग, थौर, खींप, बुई, हरशृंगार, अजवायन, गुगल, दूदी, गंगेटी, वज्रदंजी, भृंगरात आदि के पौधे और विभिन्न प्रकार के वृक्ष हैं।

पानी की आपूर्ति के लिए औषधि उद्यान में एनिकट, चैक डैम आदि का भी निर्माण किया गया हैं। फिर बाद में उद्यान का नाम ‘राव जोधा प्रकृति उद्यान’ रख दिया। जिसमें 13 किस्मों के बोगनवेलिया और 50 किस्मों के गुलाब भी उगाए गए हैं। उद्यान की तरफ उन्होंने शासन और प्रशासन का ध्यान भी आकर्षित किया, जिस कारण आज यहां सैंकड़ों लोगों द्वारा लगाए गए पौधें भी लहलहा रहे हैं। गोस्वामी के इस अभियान में जिला प्रशासन के साथ ही कई संस्थाओं का भी योगदान रहा। वर्ष 2008 में सेवानिर्वत्त होने के बाद तो उनकी दिनचर्या इन पेड़-पौधों के बीच ही सिमट गई है।

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