प्रकृति को हक़ देने वाला पहला देश : इक्वाडोर

October 11, 2008/ अफ़लातून
प्रकृति और पर्यावरण को हक़ देने वाला इक्वाडोर पहला देश बन गया है। २८ सितम्बर २००८ को देश के ६८ फीसदी जनता ने मतदान द्वारा इस देश के लिए एक नया संविधान मंजूर किया है। कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय के तीसरे साल तक की मुफ़्त शिक्षा , सबके लिए मुफ़्त चिकित्सा के अलावा नदियों, जंगल, पौधों और जानवरों को भी अधिकार मिले हैं। नये संविधान की निसर्ग सम्बन्धी एक धारा कहती है - ‘इन कुदरती संसाधनों को बने रहने, फलने - फूलने और विकसित होने का अधिकार होगा।’ इक्वाडोर की समस्त सरकारों ,समुदायों और व्यक्तियों का यह दायित्व और अधिकार होगा कि वे प्रकृति के इन अधिकारों का लागू करें। हर व्यक्ति , समुदाय और राष्ट्रीयता के लोगों को प्रकृति के इन अधिकारों को मान्यता दिलाने की माँग करने का अधिकार होगा।

संविधान में हुई यह तब्दीलियां किसी भावुकता से प्रेरित नहीं है। विदेशी तेल और खनन कम्पनियों द्वारा प्रदूषण और दोहन से यह मुल्क तंग रहा है। इक्वाडोर सरकार टेक्सको नामक कम्पनी द्वारा दुर्लभ जंगलों में फैलाये गये एक करोड़ 70 लाख टन पेट्रोलियम कचरे के बदले मुआवजे की लड़ाई लड़ रहा है।

सरकार को इस बात के लिए एहतियात बरतने होंगे और ऐसी रोक लगानी होगी जिनसे जैव प्रजातियां विलुप्त होने से बचें तथा नैसर्गिक चक्रों में स्थायी तौर पर तब्दीलियां न हों। जैविक सम्पदा को नष्ट करने वाले उत्पादों पर रोक होगी।

प्रकृति के लिए एन्डीज़ देवी ‘पाचामामा’ शब्द का प्रयोग इस संविधान में किया गया है। ‘क्षिति,जल,पावक,गगन समीरा’ - पंचभूतों से ‘पाचामामा’ का कोई नाता बनता है या नहीं ?


समाजवादी जनपरिषद (ब्लॉग) के संपादक उत्तर प्रदेश समाजवादी जनपरिषद इकाई के अध्यक्ष अफ़लातून जी हैं।

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