प्रकृति के करीब


पिछले माह मुझे गुजरात में कच्छ-भुज में स्थित प्राकृतिक चिकित्सा फार्म में ठहरने का मौका मिला। हम वहाँ एक कार्यक्रम के सिलसिले में गए थे। इस फार्म का नाम था- निजानंद फार्म।

यह हरीपर गाँव में था। भुज से चार-पाँच किलोमीटर दूर। सबसे कम बारिश वाले इलाके में बहुत हरा-भरा फार्म मनमोहक था। सरसराती हवा, रंग-बिरंगे फूल, शान्त वातावरण। कुछ सोचने और तलाशने का वातावरण।

यह फार्म जय भाई का है, जो खुद प्राकृतिक चिकित्सक हैं। लेकिन इसकी देखभाल प्रेम भाई और उनकी पत्नी करते हैं। मैंने उनके साथ इस फार्म को देखा। यहाँ कई औषधि पौधे भी थे, जो रंग-रूप, स्वाद में अलग थे, बल्कि उनके उपयोग भी अलग-अलग थे। मैंने इन्हें करीब से देखा जाना।इनमें से कुछ को मैं पहले से जानता था, पर कुछ नए भी थे। अमलतास, सर्पगन्धा, अडूसा, करौंदा, पारिजात, नगोड़, रायन, समंदसोख, कंजी, इमली और तीन प्रकार की तुलसी- राम, श्याम व तिलक इत्यादि। पेड़ों पर लिपटी गुडवेल दिखी, जो पहले गाँव में भी आसानी से मिल जाती थी।

जय भाई ने यह जड़ी-बूटी का बगीचा लगाया है, क्योंकि वे प्राकृतिक चिकित्सा में इन सबका इस्तेमाल करते हैं। प्रेम भाई इनके बारे में बारीकी से बता रहे थे, मैं फूल, पत्ते और फल को देख रहा था।

प्रेम भाई की पत्नी ने बताया कि पहले वे लोग मुम्बई में रहते थे। वहाँ प्रिटिंग का काम करते थे, लेकिन वहाँ वे बीमार रहती थी। रहने की जगह अच्छी नहीं थी, लेकिन जब से इस फार्म में रह रही हैं, पूरी तरह स्वस्थ हैं। बिना इलाज, बिना दवाई।

यहाँ दो बातें कहनी जरूरी हैं- एक, पहले हर घर में जड़ी-बूटी का भले ही ऐसा व्यवस्थित बगीचा नहीं होता था लेकिन तुलसी, अदरक, पोदीना और इस तरह के पौधे होते थे, जिनसे घरेलू इलाज कर लेते थे। और दूसरी बात घर के आसपास हरे-भरे पेड़ होते थे, जो शुद्ध हवा और पानी के स्रोत होते थे। स्वस्थ जीवन के लिये इनका बड़ा योगदान है।

मेरे पिताजी खुद जड़ी-बूटी के जानकार थे। घर के आगे-पीछे कई तरह जड़ी-बूटी के पौधे लगाए थे। जंगल से भी पौधों की छाल, पत्ते, फल, फूल लेकर आते थे। उन्हें कूटते, छानते बीनते थे। अर्क, चूर्ण और बटी बनाते थे। इनकी खुश्बू घर में फैलती रहती थी।

अगर इस तरह के पेड़-पौधे घर में लोग लगाएँ तो छोटी-मोटी बीमारी का इलाज खुद कर सकेंगे, जो पहले करते ही थे। और इनसे शुद्ध हवा, पानी भी मिल सकेगा। पेड़ भी पानी ही है। इसे कालम वाटर कहते हैं। सिर्फ नदी नालों, कुओं, बावड़ियों में ही पानी नहीं रहता, पेड़ों में भी होता है।

यह जड़ी-बूटी का बगीचा सदा याद आएगा, चार दिन हम रहे, रोज सुबह की सैर की। और प्रकृति को नजदीक से देखा, उसके पास, उसके साथ रहे।
 

Path Alias

/articles/parakartai-kae-karaiba

Post By: RuralWater
×