परियोजनाओं की भेंट न चढ़ जाएं प्रदेश के सुंदर नजारे

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यदि तीर्थन नदी पर पनविद्युत परियोजना को मंजूरी दी गई, तो ट्राउट मछली संरक्षण समाप्त होगा व साथ में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्रों से छेड़छाड़ होगी, जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए खतरनाक है, वहीं ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क वर्ल्ड हेरिटेज बनने जा रहा है। यूनेस्को ने पिछले साल इस क्षेत्र को इसके लिए नामित किया था।

कुल्लू के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के दूसरे छोर बंजार की तीर्थन वैली को भी पनविद्युत परियोजना की मंजूरी प्रदान करवाई जा रही है। इसके साथ जिला कुल्लू का ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क प्रदूषण का शिकार हो जाएगा। हिमाचल प्रदेश हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। ब्रिटिश शासन में भी अंग्रेजों ने हिमाचल पर्यटन के लिए विशेष महत्त्व दिया। इसी कारण हिमाचल प्रदेश विश्व के पर्यटन मानचित्र में विशेष स्थान रखता है। हिमाचल प्रदेश में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हिमाचल में पर्यटकों का रुझान कुल्लू-मनाली की ओर तो है ही, इसके साथ जिला कुल्लू का ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क भी पर्यटकों को प्रकृति से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान कर रहा है।

हिमालयी वन्य प्राणी प्रोजेक्ट के तहत 1980 में ब्यास क्षेत्र का सर्वे किया गया। परिणामस्वरूप 1984 में जिला कुल्लू की सैंज में जीवा नाला व बंजार की तीर्थन वैली के क्षेत्रों को मिलाकर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की स्थापना की गई। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क 754.4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जैव विविधता के लिए पहचाने जाने वाले ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में मुख्य आकर्षण यहां पाए जाने वाले जंगली जानवर हैं। पूरे विश्व में इन पक्षियों की संख्या 25000 पाई गई है। पार्क क्षेत्र में कई प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं, जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की स्थापना के पश्चात सरकार ने पार्क क्षेत्रों में पनविद्युत परियोजनाओं के लिए मंजूरी प्रदान करके ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की सुंदरता व पर्यावरण से खिलवाड़ किया है।

जिला कुल्लू की सैंज घाटी में तो पार्वती परियोजना व इसके अतिरिक्त 100 मेगावाट सैंज प्रोजेक्ट के तहत पर्यावरण से खिलवाड़ हुआ, जंगलों को काटा गया। अकेले सैंज प्रोजेक्ट 100 एमडब्ल्यू के तहत 1138 पेड़ों को काटा जाना तय है। पार्वती परियोजना के बारे में हम स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि पर्यावरण का कैसे नाश हुआ होगा। यह परियोजना 2071 मेगावाट की है। इस बात पर हम सहमत हैं कि राष्ट्रहित के लिए विनाश भी संभव है, लेकिन अंधाधुंध विकास की आड़ में कहीं हम पर्यावरण का विनाश न कर बैठें। पार्वती परियोजना ने सैंज घाटी की सुंदरता पर ग्रहण लगा दिया है। साथ ही सैंज घाटी में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के क्षेत्र को भी बुरी तरह प्रभावित किया जा चुका है। सरकार ने विद्युत परियोजनाओं के एमओयू को साइन करते समय ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को नजरअंदाज किया।

जिला कुल्लू के ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की दूसरे छोर बंजार की तीर्थन वैली को भी पनविद्युत परियोजना की मंजूरी प्रदान करवाई जा रही है, जो ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में जीव-जंतुओं को प्रभावित करेगा। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क पनविद्युत परियोजनाओं का शिकार हो जाएगा। जहां यह पार्क की सुंदरता को प्रभावित कर सकता है, वहीं बंजार की तीर्थन नदी पर यदि पनविद्युत परियोजना को मंजूरी प्रदान की गई, तो मत्स्य आखेट के लिए विश्व विख्यात तीर्थन नदी से उत्पादित होने वाली ट्राउट मछली के उत्पादन पर घोर संकट आएगा। तीर्थन नदी मत्स्य आखेट होने के कारण न केवल पर्यटकों को आकर्षित करती है, बल्कि पर्यावरण संतुलन के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है। जिला कुल्लू की तीर्थन नदी पर हाई कोर्ट द्वारा पनविद्युत परियोजना के निर्माण कार्य में रोक के बावजूद कंपनी प्रबंधन द्वारा यहां पर अपने पूर्व प्रस्तावित प्रोजेक्ट के सिलसिले में उपस्थित होना हैरानी की बात है।

राजनीति में ऊंची पहुंच वाले लोग आज कानून को नजरअंदाज करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बंजार की तीर्थन नदी पर हिमाचल निर्माता पूर्व मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 1976 में प्रतिबंध लग चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में तीर्थन नदी के अध्ययन हेतु जेपी कमेटी गठित की, जिसकी रिपोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को सख्त हिदायत दी कि तीर्थन नदी का स्वच्छ पानी मछली संरक्षण के अनुकूल है, इसलिए किसी भी व्यक्ति को तीर्थन नदी के स्वच्छ पानी से छेड़छाड़ की इजाजत नहीं दी जाए। इसके बावजूद तीर्थन नदी पर पनविद्युत परियोजना को मंजूरी प्रदान की जाए, तो चिंताजनक बात है। दूसरी तरफ यदि तीर्थन नदी पर पनविद्युत परियोजना को मंजूरी दी गई, तो ट्राउट मछली संरक्षण समाप्त होगा व साथ में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क क्षेत्रों से छेड़छाड़ होगी, जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए खतरनाक है, वहीं ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क वर्ल्ड हेरिटेज बनने जा रहा है। यूनेस्को ने पिछले साल इस क्षेत्र को इसके लिए नामित किया था। अब भारत सरकार ने इसका प्रपोजल बनाकर यूनेस्को भेजा है। ऐसे में इस क्षेत्र से पर्यावरण खिलवाड़ कतई बर्दाश्त नहीं होगा।

(लेखक, सैंज जिला कुल्लू से स्वतंत्र लेखक हैं)
 

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