प्रगति और कछुए की चाल

नेपाल में कोसी बांध बनाने की मंजूरी देने वाली भारत सरकार कैसे हो सकती है? इस समय तो वह ज्यादा से ज्यादा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की तैयारी के लिए दफ्तर खोलने के लिए होने वाले खर्चे को मंजूरी दे सकती है क्योंकि दोनों देशों के बीच अभी इतने के लिए ही सहमति बनी है। वैसे भी 30 करोड़ रुपये में कौन सा बांध बनने वाला है? यह सारी बातें बिहार के बाढ़ पीड़ितों को खिलौने देकर बहलाने जैसी हैं और उनके जख्म पर नमक छिड़कने का काम करती है। आज से करीब पन्द्रह साल पहले, 1991 में, भारत सरकार और नेपाल सरकार के बीच कोसी नदी पर प्रस्तावित सप्तकोसी बांध के निर्माण के विभिन्न आयामों के अध्ययन और अनुसंधान के लिए एक समझौता हुआ था। विशेषज्ञों की एक संयुक्त समिति को यह जिम्मा दिया गया था कि वह इस निर्माण से होने वाले फायदों को निर्धारित करने तथा अध्ययन/अनुसंधान के तौर तरीकों की व्याख्या करें। नेपाल सरकार ने भारत सरकार को 1993 में एक प्राथमिक रिपोर्ट मुहैया करवाई जिसके आधार पर 1996-97 में एक संयुक्त विशेषज्ञ समिति का गठन हुआ।6 विशेषज्ञों की इस समिति की एक बैठक में बिहार सरकार के एक प्रतिनिधि को एक बार बैठने का मौका दिया गया। तब यह उम्मीद की गई थी कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को तैयार करने की दिशा में अब जल्दी ही प्रगति होगी। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में सरकार ने अपनी हताशा व्यक्त करते हुये लिखा कि, “... बार बार प्रयास के बावजूद भी जनवरी 1997 को सम्पन्न बैठक में निर्णय पर कोई प्रगति नहीं हो पाई है।’’

इस मुद्दे पर एक बार फिर 16 अक्टूबर 1998 को भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय में बात चीत हुई और तब यह आशा की गई कि जल्दी ही कोसी हाई डैम के निर्माण की दिशा में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के उद्देश्य से एक दफ्तर शीघ्र ही खोला जायेगा। लोकसभा में दिया गया केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री अर्जुन चरण सेठी का बयान इस दिशा में एक नया कदम था क्योंकि अब कर्मचारियों की संख्या का निर्धारण हो चुका था। दुर्भाग्यवश मात्रा इतना सा फैसला लेने में दोनों देशों की सरकारों को 12 वर्ष का समय लग गया। जहाँ तक राज्य सरकार का सवाल है वह इसी बात पर बगलें बजा-बजा कर खुश थी कि उसकी भी विशेषज्ञों की संयुक्त समिति की मीटिंग में रसाई हो गई है और इसी बहाने कभी-कभार उसके नुमाइन्दों को काठमाण्डू घूमने का मौका मिल जाता है। बिहार सरकार इसके अलावा कुछ कर भी नहीं सकती है। 2004 में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और वहाँ भी बिहार की सत्तासीन पार्टियों की मदद से एक मित्रा सरकार बनी।

नये जल-संसाधन राज्य मंत्री जय प्रकाश नारायण यादव ने 20 जुलाई 2004 को दिल्ली में बयान दिया कि उसी दिन विशेषज्ञों और मंत्रालय के अधिकारियों की एक मीटिंग में नेपाल में बनने वाले कोसी हाई डैम परियोजना का प्रारंभिक आकलन किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि केन्द्र ने नेपाल में बड़े बांध बनाने की योजना को मंजूरी दे दी है और इसके लिए नेपाल में योजना का स्थल कार्यालय खोलने के लिए 30 करोड़ रुपयों की मंजूरी भी केन्द्र सरकार ने दे दी है। अगर मंत्री से ऐसा बयान सचमुच दिया है तो उनसे पूछा जाना चाहिये था कि नेपाल में कोसी बांध बनाने की मंजूरी देने वाली भारत सरकार कैसे हो सकती है? इस समय तो वह ज्यादा से ज्यादा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की तैयारी के लिए दफ्तर खोलने के लिए होने वाले खर्चे को मंजूरी दे सकती है क्योंकि दोनों देशों के बीच अभी इतने के लिए ही सहमति बनी है। वैसे भी 30 करोड़ रुपये में कौन सा बांध बनने वाला है? यह सारी बातें बिहार के बाढ़ पीड़ितों को खिलौने देकर बहलाने जैसी हैं और उनके जख्म पर नमक छिड़कने का काम करती है। 2004 की बाढ़ के समय नेपाल में दफ्तर खोलने की बात को मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से बार-बार दुहराया।

दरअसल भारत और नेपाल के स्तर पर जब दोनों देशों के बीच में वार्ताएँ चलती हैं तब नेपाल की तरफ से कुछ अनसुलझे पहलू सामने आते हैं जो कि पानी से संबंधित सारी साझा योजनाओं में समान हैं और वह यहाँ नीचे दिये गये हैं-

(क) बांधों से पैदा होने वाली बिजली का खरीदार भारत होगा और वह उस की (नेपाल द्वारा प्रस्तावित - लेखक) कीमत को कबूल नहीं करता,
(ख) बांध बना कर पानी को नियमित करने से कुछ फायदे होंगे जो कि नेपाली गाँवों को डुबाने के बाद ही मिल पायेंगे। इस मुद्दे से बचा नहीं जा सकता और इस की व्याख्या होनी बाकी है,
(ग) अनचाहे विस्थापन और जीविका के स्रोतों की जल-समाधि की क्षतिपूर्ति।

एक समय था जब इस तरह के मसले सरकारी स्तर पर तय हो जाया करते थे। अब विस्थापित होने वाले लोग झूठी तसल्लियों का मतलब बखूबी समझते हैं और अपनी लड़ाई भी लड़ना जानते हैं।

योजनाएं चाहे जैसी बनें मगर एक बार अगर फिर संसाधनों की बात करें तो पटना विश्वविद्यालय के वाटर रिसोर्स डेवलपमेन्ट सेन्टर में 2 मार्च 2002 को आयोजित एक कार्यशाला में बिहार के जल संसाधन सचिव ने अपने भाषण में बताया कि जहाँ तक संसाधनों की उपलब्धता का सवाल है, बराहक्षेत्र में कोसी पर हाई डैम आने वाले 50-60 वर्षों में भी नहीं बनने वाला है। सचिव महोदय राजनीतिज्ञ नहीं थे अतः मुमकिन है वि वह सच बोल रहे हों।

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Post By: tridmin
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