पराधीनता की बेड़ियों में कोई नहीं जकड़ा रहना चाहता चाहे वो मनुष्य हो या फिर जीव-जंतु और प्रकृति

आजाद रहना वन, नदी, पर्वत, पंछी और वन्यजीवों का प्राकृतिक अधिकार है,Pc-Wikipedia
आजाद रहना वन, नदी, पर्वत, पंछी और वन्यजीवों का प्राकृतिक अधिकार है,Pc-Wikipedia

स्वतंत्रता किस मनुष्य अथवा जीव को प्रिय नहीं? जग में भला कौन ऐसा मानव होगा जो चाहेगा कि वो आजीवन परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा रहे? आजादी के लिये ही देश-दुनिया के असंख्य लोग अपने प्राण बलिदान कर दिये। पराधीनता की बेड़ियों में कोई नहीं जकड़ा रहना चाहता चाहे वो मनुष्य हो या फिर जीव-जंतु और प्रकृति। हम मनुष्यों की ही भांति पशु-पंछी और प्रकृति के सभी वन्यजीव भी स्वच्छंद रहना चाहते हैं। यहाँ तक कि पहाड़, नदी और जंगलों को भी आजादी पसंद है। नदियाँ निर्बाध रूप से बहना चाहती हैं, जंगल स्वतंत्र और गतिशील रहना चाहते हैं तथा पंछी खुले आसमान में जीवनपर्यंत स्वच्छंद उड़ान भरने की चेष्टा करते हैं। आजाद रहना वन, नदी, पर्वत, पंछी और वन्यजीवों का प्राकृतिक अधिकार है। 

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश के जंगल, नदी, पहाड़, तालाब, वन्यप्राणी, पक्षी आदि भी अभी आजाद हैं या नहीं? ये बेहद गौर करने लायक प्रश्न है जिस पर पूरे मान समुदाय को चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। आज भी तोंते, उल्लू, मोर जैसे कई पक्षी हमारे द्वारा बनाये गये पिंजड़ो में कैद हैं। देश के हजारों-लाखों तालाबों पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के नवीनतम आकड़ों के मुताबिक हमारे देश में 24 लाख से भी ज्यादा जल निकाय हैं और इन सभी जल स्रोतों में 38,496 अर्थात् 1.6 फीसदी जल संसाधनों पर मानव द्वारा अतिक्रमण किया गया है। देश में मौजूद कुल जल स्रोतों में सबसे ज्यादा अतिक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों में है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक जलनिकायों पर इंसानों का कब्जा है। उत्तर प्रदेश में 15 हजार से भी ज्यादा जल स्रोत मानवीय अतिक्रमण के शिकार हैं। देश की हजारों हेक्टेयर वन भूमि पर वन-माफियाओं का कब्जा है। एक रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली के 384.38 हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जा है। सैकड़ों नदियों में अवैध खनन के लिए ठीकेदारों और भू-माफियाओं ने अवैध कब्जा कर रखा है। उत्तर में हिमालय से लेकर मध्य भारत के तथा दक्षिण तक अनेकों ऊंचे-ऊंचे पहाड़ भी अब इंसानों की गिरफ्त में हैं। भारत भूमि की पावन वसुंधरा के हर प्राकृतिक संसाधनों को हड़पने की होड़ लगी है। प्रकृति के हर हिस्से में इंसानों की दखलंदाजी बढ़ती ही जा रही है। कोई भी प्राकृतिक संसाधन ऐसा नहीं जो आज लालची मानव जाति के कब्जे में ना हो। 

वन्यजीवों एवं जैवविविधता के संरक्षण हेतु हमारे देश में सैकड़ों राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य, बर्ड सेंचुरी जैसे संरक्षित क्षेत्र बनाये गये हैं लेकिन इनमें भी अतिक्रमण जारी है जिसके चलते वन्यजीव आबाद नहीं है। भ्रष्ट नेताओं और घूसखोर अफसरों ने मिलीभगत से नदियों को कब्जा कर अवैध खनन को बढ़ा रखा है और दुष्परिणाम स्वरूप नदियों का प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया है। यानी की नदियों की प्राकृतिक आजादी नदियों से छीन ली गयी है जो उन्हें कुदरत ने प्रदान की थी। व्यापक पैमाने पर बाघों, हिरणों, हाथियों, उल्लू आदि जीव जंतुओं की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के जंगलों से तस्करी की जा रही है। खाल मांस के लिए बाघों को बंदी बनाकर उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं। हाथीदांत के व्यापार के लिए शिकारियों द्वारा हाथियों को गिरफ्त कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। अंधविश्वास और मिथकों के चलते रेड सैंड बोआ जिसे हम दोमुंहा सांप के नाम से जानते हैं उसकी धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त की जा रही है। किसानों का मित्र कहा जाने वाला ये अत्यंत सीधा-सादा दोमुंहा नामक विषहीन सांप भ्रांतियों की जकड़न में चीन आदि देशों में बेचा जा रहा है। इससे भी दयनीय हालत भारतीय नाग जिसे हमारी संस्कृति में भगवान शिव का प्रतीक मानकर पूजा जाता है सपेरों द्वारा उसे आज भी गुलाम बनाकर रखा जाता है। इंडियन कॉमन कोबरा अर्थात् भारतीय नाग को सपेरे पकड़कर उसका दांत तोड़ देते हैं और उसे जबरन दूध पिलाने की निरर्थक कोशिश करते हैं जबकि वैज्ञानिक सच्चाई ये है कि सांप एक मांसाहारी जीव है जो कि दूध नहीं पीता। नाग को कैद कर उसके शिकार करने, प्रजनन करने और प्रकृति में स्वच्छंद विचरण करने की आज़ादी इन सपेरों ने छीन रखी है। सपेरों के कैद में भूखे-प्यासे ये नाग जैसे सरीसृप प्राणी दम तोड़ देते हैं। आज भी देश के कई हिस्सों में बंदरों को गुलाम बनाकर इंसान पैसों की लालच में उन पर अत्याचार करता है। 

भौतिक सुखों की अंधी होड़ में मनुष्य जंगलों को निर्दयतापूर्वक उजाड़ रहा है। जो जंगल सरकारी कब्जे अर्थात् सरकार के संरक्षण में होना चाहिए वो माफियाओं के कब्जे में है। सड़क, हाइवे, मेट्रो जैसे बुनियादी ढांचे के विकास के लिए महुआ, गूलर, पीपल, साखू, जामुन, बरगद जैसे विशालकाय जीवनदायी वृक्ष भी अंधाधुंध तरीके से काट दिए जा रहे हैं। इन वृक्षों में अनगिनत प्रकार के खुबसूरत रंग बिरंगे पक्षी अपने घोंसले बनाते हैं और अपनी सुरक्षा के लिए उन पर आश्रित रहते हैं लेकिन जिस तरह से उनके आशियानों को उजाड़ कर उनकी नैसर्गिक स्वतंत्रता छीनी जा रही है वो बेहद चिंताजनक बात है। बाघों के संरक्षण के लिए बने देश के टाइगर रिजर्व के कई हिस्सों में मानव द्वारा अनुचित हस्तक्षेप जारी है।

आज का ये औद्योगिक मनुष्य पूरी प्रकृति को कैद करने के लिए आतुर है। खनिज संसाधनों की लालसा में मनुष्य पहाड़ों और पठारों के पारिस्थितिकीय ढांचे को बिगाड़ कर उनकी पारिस्थितिकीय आजादी का हनन कर रहा है। यही कारण है कि केदारनाथ और जोशीमठ जैसी मानव जनित आपदाएं अब तबाही मचा रहीं हैं। हमारे देश में वन्यप्राणियों की सुरक्षा के लिए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जैसा सख्त कानून बनाया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत शामिल हजारों जीव प्रजातियों को विशेष रूप से संरक्षित श्रेणी में रखा गया है। ये एक बाध्यकारी कानून है जिसके तहत इस अधिनियम में विशेष संरक्षण का दर्जा प्राप्त जीव-जंतुओं की तस्करी एवं शिकार पर सख्त दण्ड, कारावास और जुर्माने का प्राविधान है।  लेकिन इन कानूनी नियमों कायदों की धज्जियाँ उड़ाकर भू-माफिया और शिकारी वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नुकसान पहुंचा रहे हैं तथा उनकी आजादी छीनकर उन पर ब्रिटिश आतताइयों की भांति अत्याचार कर रहे हैं। इससे यही स्पष्ट होता है कि ये भू-माफिया, शिकारी, रिश्वतखोर अफसर उन ब्रिटिश कुकर्मियों की भांति ही वन्यजीवों पर अत्याचार कर रहे हैं।

हर साल 15 अगस्त को हम सभी भारतवासी खुशी-खुशी आजादी का पर्व मनाते हैं जो कि हमारे लिये बेहद गर्व एवं खुशी की बात है। जाहिर है इसी दिन हमारे हिंद देश को वर्षों की यातना और पीड़ा से मुक्ति मिली थी लेकिन आज इस पर्व पर हमें उन जीव-जंतुओं के बारे में भी सोचना होगा जो अभी भी इंसान की कैद में घुट घुट कर दम तोड़ रहे हैं। हमें भी खुद की तरह उनके कैदी जीवन की पीड़ा की अनुभूति करनी होगी। हमें जंगलों को आजाद करना होगा। पक्षियों को पिंजड़ो से आजाद कर उनको खुले आसमान में स्वच्छंद उड़ने के लिए मुक्त कर देना होगा। कछुओं को पालने के बजाए उन्हें बहती नदियों की पावन धारा में स्वतंत्रतापूर्वक गोते लगाने के लिए उन्हें बंदी जीवन से छुटकारा दिलाने की जरूरत है। सपेरों को चाहिए कि वो सांपो को आजाद कर उन्हें स्वतंत्र जीवन जीने दें और सांप पकड़ने के व्यवसाय को त्यागकर रोजगार के अन्य विकल्पों की तलाश करें। बहना ही नदी का धर्म है अतः नदियों पर बांध बनाने के बजाए उनके पारिस्थितिकीय तंत्र को गतिशील बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए। हम इंसानों की इतनी हैशियत नहीं कि प्रकृति को हम कैद रख सकें। प्रकृति हरदम आजाद है अतः प्रकृति के जिन प्राणियों और संसाधनों को हमने कैद कर रखा है उन्हें भी आजाद कर देना चाहिए वरना प्रकृति अपना हिसाब बेहतर तरीके से करना जानती है।  धरती के हर जीव को मनुष्य की ही भांति स्वतंत्रतापूर्वक जीने का हक है। प्रकृति के किसी भी अंग से उसकी आजादी छीनना प्रकृति के कानून के खिलाफ है। ध्यान रहे कि जितने भी कैदी वन्यजीव अपने प्राणों की आहुति देंगे उतना ही मानव को खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

स्रोत- कार्यक्षेत्र - पर्यावरण शोधकर्ता, विन्ध्य इकोलॉजी एण्ड नेचुरल हिस्ट्री फांउडेशन, उत्तर प्रदेश
पता : तहसील - कोरांव पिन कोड - 212306,जिला- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, संपर्क- 8303926914

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