प्रधानमंत्री को भाया देवास का गोरवा


इन्दौर से करीब 60 किमी दूर देवास जिले में आगरा–मुम्बई मार्ग से थोड़ी सी दूरी पर है यह छोटा-सा गाँव। सड़क से गाँव की ओर आते हुए ही हमें इसके पानीदार होने का सबूत मिलने लगा। जैसे–जैसे हम गाँव की ओर बढ़ रहे थे, वैसे–वैसे खेतों पर बने तालाब हमारे स्वागत में इस भीषण गर्मी के दौर में भी नीला–हरा पानी समेटे शीतलता का आभास करा रहे थे। अब यहाँ घर–घर पानी, खेत–खेत तालाब हैं। मध्य प्रदेश के एक गाँव गोरवा में पानी बचाने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इतना भाया कि उन्होंने इसका जिक्र रविवार को रेडियो से मन की बात सुनाते हुए किया। उन्होंने पानी बचाने के लिये गोरवा को आदर्श बताया तथा देश के अन्य गाँवों को भी ऐसी कोशिशें करने के लिये प्रेरित भी किया। उन्होंने इस गाँव की तारीफ करते हुए कहा कि गोरवा ग्राम पंचायत ने पानी को बचाने और जमीन में जलस्तर कम होने से रोकने के लिये कई तालाब बनवाए हैं। ये हमारे लिये एक उदाहरण है, जिससे जल संकट से निपटा जा सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को मन की बात में कहा कि जहाँ एक ओर देश भर में कई गाँवों में पानी की किल्लत के कारण जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया वहीं दूसरी ओर गोरवा गाँव में लोगों ने समझदारी का परिचय देते हुए पानी को ज्यादा-से-ज्यादा इकट्ठा करने के लिये विशेष तकनीक अपनाई है।

इस तकनीक को अपनाने से कृषि उत्पादन में भी 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। अपने गाँव में पानी बचाकर यह गाँव पानीदार तो बना ही, अब देश भर के लिये रोल मॉडल भी बन गया है। आखिर ऐसा क्या हुआ है गोरवा में तो आइए चलते हैं पानीदार गाँव गोरवा और जानते हैं वहाँ की हकीकत।

इन्दौर से करीब 60 किमी दूर देवास जिले में आगरा–मुम्बई मार्ग से थोड़ी सी दूरी पर है यह छोटा-सा गाँव। सड़क से गाँव की ओर आते हुए ही हमें इसके पानीदार होने का सबूत मिलने लगा। जैसे–जैसे हम गाँव की ओर बढ़ रहे थे, वैसे–वैसे खेतों पर बने तालाब हमारे स्वागत में इस भीषण गर्मी के दौर में भी नीला–हरा पानी समेटे शीतलता का आभास करा रहे थे।

अब यहाँ घर–घर पानी, खेत–खेत तालाब हैं। हमारे साथ चल रहे इलाके के बुजुर्ग शिवजीराम पटेल ने बताया कि आज से करीब 10 साल पहले तक यह भी आम गाँवों की तरह ही था और जल संकट यहाँ की भी आम बात थी। किसान ट्यूबवेल खुदवाकर तंग आ चुके थे लेकिन जमीन में पानी नीचे और नीचे जा रहा था। किसान खेती छोड़कर देवास की फैक्टरियों में मजदूरी करने को बेबस थे। कुछ किसानों ने तो खेती बेचने का भी मन बना लिया था। बार–बार ट्यूबवेल खुदवाने से उनकी माली हालत भी बिगड़ती जा रही थी। खेती में पानी नहीं मिलने से किसान तो परेशान थे ही, गर्मी के दिनों में गाँव के लोगों को पीने के पानी की भी किल्लत होने लगी थी।

Dewas Visit -Swatantra Mishra Ji- 26 Oct 2014कृषि अधिकारी मोहम्मद अब्बास बताते हैं कि इन्हीं भीषण जल संकट के दिनों देवास में जिला कलेक्टर के रूप में पदस्थ हुए उमाकांत उमराव। थोड़े ही दिनों में उन्होंने देखा कि पूरे जिले में पानी को लेकर हालत बहुत बुरी है। मालवा के जिन गाँवों में कभी डग–डग नीर की कहावत कही जाती थी, वहीं अब किसानों के खेतों को पानी भी नहीं है। उन्होंने गाँव–गाँव जाकर देखा तो पता लगा कि जमीन का पानी धीरे–धीरे गहरा होता जा रहा है। ट्यूबवेल बैठने लगे हैं। जलस्तर गहरा होता जा रहा है। अभियांत्रिकी की पढ़ाई कर चुके उमराव को लगा कि पानी के लिये फौरी तौर पर कोई काम करने से नहीं चलने वाला। इसके लिये कुछ बुनियादी काम करना पड़ेगा ताकि जमीन में लगातार कम होते जा रहे जलस्तर को और गहरा होने से बचाया जा सके। इसी जद्दोजहद से तलाश शुरू हुई और बात रुकी तालाबों पर। तालाब हर दृष्टि से हितकारी लगे। पहल शुरू हुई कि कुछ खेतों के छोटे से हिस्से पर किसान खुद अपने लिये खेत तालाब बनाएँ। इससे उन्हें खेती के लिये पानी भी मिलेगा और जलस्तर भी बढ़ेगा।

यह काम इतना आसान नहीं था, किसानों की कई शंकाएँ थीं और अपने पूर्वाग्रह भी। कोई किसान भला कैसे विश्वास कर लेता प्रशासन की बात पर। लेकिन कुछ प्रगतिशील किसान आगे आये और काम शुरू हुआ। गोरवा में सबसे पहले कुछ किसानों ने अपने खेतों पर ही कुछ हिस्से में तालाब बनाए। इससे जलस्तर बढ़ा और उन्हें आसानी से पानी मिला। इससे उत्साहित अधिकांश किसानों ने तालाब बनाना शुरू किया। देखते-ही-देखते लगातार घाटे में जा रही खेती यहाँ के किसानों के लिये फायदे का सौदा बन गई।

यहाँ के किसानों ने ट्यूबवेल की सांकेतिक अर्थी निकालकर प्राकृतिक तालाबों पर अपनी निर्भरता कायम कर ली। खेती में उत्पादन का नया इतिहास रचा। तत्कालीन जिला कलेक्टर उमाकांत उमराव तो जिलाधीश नहीं जलाधीश कहलाने लगे। अब उन्होंने इस गाँव की सफलता से उत्साहित होकर इसे पूरे जिले के गाँवों में अमल करने की योजना बनाई। वे बैशाख की गर्मी और चिलचिलाती धूप में खेतों पर घूमते, लोगों को प्रेरित करते, उनकी शंकाओं का समाधान करते, सरकारी अमले को प्रोत्साहित करते।

लोग अपने बीच इस तरह किसी कलेक्टर को पहली बार देखते हुए अभिभूत हो जाते, लोग जुड़ते गए कारवाँ बनता गया, इस तरह धीरे–धीरे इस मुहिम ने जन-आन्दोलन का रूप ले लिया। जिले में सात हजार से ज्यादा रेवा सागर तालाब बन गए। दूर-दूर से लोग इस चमत्कार को देखने आने लगे।

उमाकांत उमरावरेवासागर खेत तालाबों को साकार करने वाले तत्कालीन जिला कलेक्टर उमाकांत उमराव भी इनकी सार्थकता से अभिभूत हैं। वे बताते हैं कि इसी दौरान वर्ष 2006 में जिले में रेवा सागर योजना भागीरथ किसानों के साथ प्रारम्भ की गई। जिले में इन तालाबों से 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई क्षमता निर्मित हुई है। गाँवों में आर्थिक बदलाव भी साफ नजर आ रहा है। बड़ा फायदा पारिस्थितिकी तंत्र में हुआ, हरियाली और पर्यावरण सुधार के साथ पशु-पक्षियों और वन्य प्राणियों की तादाद बढ़ी।

20 साल बाद फिर प्रवासी पक्षी जैसे साइबेरियन क्रेन दिखने लगे हैं। रेवा सागर सबसे सस्ता, टिकाऊ और परम्परागत मॉडल है, जो पानी से खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, जैव विविधता और पर्यावरण के समग्र सन्दर्भों से जुड़ी समस्याओं का समाधान करता है। अब वे देशभर में घूम कर किसानों को इनके फायदे बता रहे हैं। वे कहते हैं कि पानी को सहेजना और उसका विवेकपूर्ण उपयोग हम सबकी साझा जिम्मेदारी है और यह सबके हित में भी है। गाँव के किसान मुरारीलाल बताते हैं कि पहले पहल तो हमें भी विश्वास नहीं था कि खेत तालाब इस तरह उपयोगी साबित होंगे लेकिन आज इनके परिणाम सबके सामने हैं। अब तो यह इलाका ही रेवा सागर तालाबों के लिये पहचाना जाने लगा है। तालाबों को नाम दिया गया रेवा सागर। रेवा यानी नर्मदा तो नर्मदा का सागर। इसी तरह इसे बनाने वाले किसान को नाम दिया गया भागीरथ किसान। भागीरथ ने कठोर मेहनत कर गंगा नदी को जमीन पर उतारा था तो ठीक उसी तर्ज पर यहाँ किसानों ने भी भागीरथ बनकर अपने खेतों पर रेवा सागर को उतारा।

Biodiversity Conservation and Bhagirath Krishak Abhiyanगोरवा के सरपंच बताते हैं कि उनके गाँव के तालाबों की बात दूर प्रदेशों में पहुँची तो वहाँ से भी किसान इन्हें देखने आये। बीते दिनों महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित लातूर और परभणी जिले के किसानों ने भी उनके यहाँ आकर इन्हें देखा परखा। अब तो महाराष्ट्र के भी इन दो जिलों में सैकड़ों तालाब बन रहे हैं। इससे बड़ी खुशी होती है। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय भूजल परिषद ने गाँव और इलाके में बने तालाबों का व्यापक अध्ययन किया और इसे पाँच बार राष्ट्रीय स्तर पर गाँवों को पुरस्कार भी मिले। गोरवा की तत्कालीन सरपंच ने भी दिल्ली जाकर पुरस्कार लिया।

राजस्वकर्मी बहादुर पटेल बताते हैं कि रेवासागर को देश और प्रदेश में रोल मॉडल माना जा चुका है। इन्हें नवाचारी जल संरचनाओं के लिये अन्तरराष्ट्रीय ख्याति का यूएनए अवार्ड मिला है। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने विशेष तौर पर यूएन-वाटर बेस्ट प्रेक्टीसेस अवार्ड दिया है। इसके लिये विश्व के 5 महाद्वीपों के 17 देशों से प्रतिस्पर्धा में देवास के काम को चुना गया। यानी अब यह नवाचार दुनियाभर के लिये रोल मॉडल बन गया है।

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