प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार मन की बात में पानी बचाने, बारिश का पानी सहेजने और जल सिंचन में मितव्ययता पर देर तक बात की। उन्होंने 22 मई 2016 को आकाशवाणी के माध्यम से देश के लोगों से अपने मन की बात करते हुए इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर अपने विचार रखे। प्रधानमंत्री भी देश में व्याप्त जलसंकट से चिन्तित नजर आये। उन्होंने देश में कई जगह पानी को लेकर किये जा रहे अच्छे कामों की सराहना करते हुए देशवासियों से आग्रह किया कि अभी अच्छी बारिश आने तक चार महीनों में हम सबको पानी के लिये काम करने का समय है। हमें बारिश की हर बूँद को सहेजना है। उन्होंने इसके लिये सुविचारित योजना और तकनीकी के इस्तेमाल पर भी जोर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बात की शुरुआत ही गर्मी के लगातार बढ़ने और उससे हम पर हो रहे प्रभाव से की। इस जरूरी और सामयिक चिन्ता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गर्मी बढ़ती ही चली जा रही है। आशा करते थे, कुछ कमी आएगी, लेकिन अनुभव आया कि गर्मी बढ़ती ही जा रही है।
बीच में ये भी खबर आ गई कि शायद मानसून एक सप्ताह विलम्ब कर जाएगा, तो चिन्ता और बढ़ गई। करीब-करीब देश का अधिकतम हिस्सा गर्मी की भीषण आग का अनुभव कर रहा है। पारा आसमान को छू रहा है। पशु हो, पक्षी हो, इंसान हो, हर कोई परेशान है। पर्यावरण के कारण ही तो ये समस्याएँ बढ़ती चली जा रही हैं। जंगल कम होते गए, पेड़ कटते गए और एक प्रकार से मानव जाति ने ही प्रकृति का विनाश करके स्वयं के विनाश का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
उन्होंने पर्यावरण और पानी बचाने के काम को हम सबका दायित्व बताया और कहा कि 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है। पूरे विश्व में पर्यावरण के लिये चर्चाएँ होती हैं, चिन्ता होती है। इस बार यूनाइटेड नेशंस ने विश्व पर्यावरण दिवस पर ‘जीरो टोलरेंस फॉर इलीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड’ इसको विषय रखा है। इसकी तो चर्चा होगी ही होगी, लेकिन हमें तो पेड़-पौधों की भी चर्चा करनी है, पानी की भी चर्चा करनी है, हमारे जंगल कैसे बढ़ें। क्योंकि आपने देखा होगा।
पिछले दिनों उत्तराखण्ड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर - हिमालय की गोद में, जंगलों में जो आग लगी; आग का मूल कारण ये ही था कि सूखे पत्ते और कहीं थोड़ी सी भी लापरवाही बरती जाये, तो बहुत बड़ी आग में फैल जाती है और इसलिये जंगलों को बचाना, पानी को बचाना - ये हम सबका दायित्व बन जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पिछले दिनों मुझे जिन राज्यों में अधिक सूखे की स्थिति है, ऐसे 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विस्तार से बातचीत करने का अवसर मिला। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा - वैसे तो सरकार की जैसे परम्परा रही है, मैं सभी सूखा प्रभावित राज्यों की एक मीटिंग कर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया।
मैंने हर राज्य के साथ अलग मीटिंग की। एक- एक राज्य के साथ करीब-करीब दो-दो, ढाई-ढाई घंटे बिताए। राज्यों को क्या कहना है, उनको बारीकी से सुना। आम तौर पर सरकार में, भारत सरकार से कितने पैसे गए और कितनों का खर्च हुआ - इससे ज्यादा बारीकी से बात नहीं होती है।
उन्होंने इसके लिये समुचित योजना बनाने और तकनीकी के इस्तेमाल पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमारे भारत सरकार के भी अधिकारियों के लिये भी आश्चर्य था कि कई राज्यों ने बहुत ही उत्तम प्रयास किये हैं, पानी के सम्बन्ध में, पर्यावरण के सम्बन्ध में, सूखे की स्थिति को निपटने के लिये, पशुओं के लिये, असरग्रस्त मानवों के लिये और एक प्रकार से पूरे देश के हर कोने में, किसी भी दल की सरकार क्यों न हो, ये अनुभव आया कि इस समस्या की, लम्बी अवधि की परिस्थिति से, निपटने के लिये स्थायी उपाय क्या हों, कायमी उपचार क्या हो, उस पर भी ध्यान था। एक प्रकार से मेरे लिये वो लर्निंग एक्सपीरिएंस भी था और मैंने तो मेरे नीति आयोग को कहा है कि जो बेस्ट प्रेक्टिसेस हैं, उनको सभी राज्यों में कैसे लिया जाये, उस पर भी कोई काम होना चाहिए।
कुछ राज्यों ने, खास करके आन्ध्र ने, गुजरात ने तकनीकी का भरपूर उपयोग किया है। मैं चाहूँगा कि आगे नीति आयोग के द्वारा राज्यों के जो विशेष सफल प्रयास हैं, उसको हम और राज्यों में भी पहुँचाएँ। ऐसी समस्याओं के समाधान में जन-भागीदारी एक बहुत बड़ा सफलता का आधार होती है और उसमें अगर समुचित योजनाबद्ध हो, उचित तकनीकी का उपयोग हो और समय-सीमा में व्यवस्थाओं को पूर्ण करने का प्रयास किया जाये; उत्तम परिणाम मिल सकते हैं, ऐसा मेरा विश्वास है।
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि सूखे से निपटने के लिये जल संवर्द्धन ही समुचित निदान है। उन्होंने कहा कि सूखा प्रबन्धन को ले करके, जल संवर्द्धन को ले करके, बूँद-बूँद पानी बचाने के लिये, क्योंकि मैं हमेशा मानता हूँ, पानी - ये परमात्मा का प्रसाद है। जैसे हम मन्दिर में जाते हैं, कोई प्रसाद दे और थोड़ा सा भी प्रसाद गिर जाता है, तो मन में क्षोभ होता है। उसको उठा लेते हैं और पाँच बार परमात्मा से माफी माँगते हैं। ये पानी भी परमात्मा का प्रसाद है। एक बूँद भी बर्बाद हो, तो हमें पीड़ा होनी चाहिए।
खेती में पानी बचाने और कम पानी से खेती करने की तकनीकों के इस्तेमाल पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जल-संचय का भी उतना ही महत्त्व है, जल-संरक्षण का भी उतना ही महत्त्व है, जल-सिंचन का भी उतना ही महत्त्व है और इसीलिये तो पर ड्रॉप- मोर क्रॉप,माइक्रो- एरिगेशन, कम-से-कम पानी से होने वाली फसल। अब तो खुशी की बात है कि कई राज्यों में हमारे गन्ने के किसान भी माइक्रो एरिगेशन का उपयोग कर रहे हैं, कोई ड्रिप एरिगेशन का उपयोग कर रहा है, कोई स्प्रिंकलर का कर रहा है।
मैं राज्यों के साथ बैठा, तो कुछ राज्यों ने धान के लिये भी, चावल की जो खेती करते हैं, उन्होंने भी सफलतापूर्वक ड्रिप एरिगेशन का प्रयोग किया है और उसके कारण उनकी पैदावार भी ज्यादा हुई, पानी भी बचा और मजदूरी भी कम हुई। इन राज्यों से मैंने जब सुना, तो बहुत से राज्य ऐसे हैं कि जिन्होंने बहुत बड़े-बड़े टारगेट लिये हैं, खास करके महाराष्ट्र, आन्ध्र और गुजरात। तीन राज्यों ने ड्रिप एरिगेशन में बहुत बड़ा काम किया है और उनकी तो कोशिश है कि हर वर्ष दो-दो,तीन-तीन लाख हेक्टेयर माइक्रो एरिगेशन में जुड़ते जाएँ। ये अभियान अगर सभी राज्यों में चल पड़ा, तो खेती को भी बहुत लाभ होगा, पानी का भी संचय होगा।
उन्होंने विभिन्न प्रदेशों में पानी को लेकर किये जा रहे सकारात्मक और नवाचारी प्रयासों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे तेलंगाना के भाइयों ने ‘मिशन भागीरथी’ के द्वारा गोदावरी और कृष्णा नदी के पानी का बहुत ही उत्तम उपयोग करने का प्रयास किया है। आन्ध्र प्रदेश ने ‘नीरू प्रगति मिशन’ उसमें भी तकीनीकी का उपयोग, ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग का प्रयास। महाराष्ट्र ने जो जन-आन्दोलन खड़ा किया है, उसमें लोग पसीना भी बहा रहे हैं, पैसे भी दे रहे हैं। ‘जलयुक्त शिविर अभियान’ - सचमुच में ये आन्दोलन महाराष्ट्र को भविष्य के संकट से बचाने के लिये बहुत काम आएगा, ऐसा मैं अनुभव करता हूँ। छत्तीसगढ़ ने ‘लोकसुराज - जलसुराज अभियान’ चलाया है।
मध्य प्रदेश ने ‘बलराम तालाब योजना’ -करीब-करीब 22 हजार तालाब। ये छोटे आँकड़े नही हैं। इस पर काम चल रहा है। उनका ‘कपिलधारा कूप योजना’। उत्तर प्रदेश से ‘मुख्यमंत्री जल बचाओ अभियान’। कर्नाटक में ‘कल्याणी योजना’ के रूप में कुओं को फिर से जीवित करने की दिशा में काम आरम्भ किया है। राजस्थान और गुजरात जहाँ अधिक पुराने जमाने की बावड़ियाँ हैं, उनको जलमन्दिर के रूप में पुनर्जीवित करने का एक बड़ा अभियान चलाया है।
राजस्थान ने ‘मुख्यमंत्री जल-स्वावलम्बन अभियान’ चलाया है। झारखण्ड वैसे तो जंगली इलाका है, लेकिन कुछ इलाके हैं, जहाँ पानी की दिक्कत है। उन्होंने ‘चेकडैम’ का बहुत बड़ा अभियान चलाया है। उन्होंने पानी रोकने की दिशा में प्रयास चलाया है। कुछ राज्यों ने नदियों में ही छोटे-छोटे बाँध बना करके दस-दस, बीस-बीस किलोमीटर पानी रोकने की दिशा में अभियान चलाया है। ये बहुत ही सुखद अनुभव है।
बारिश के पानी को सहेजने और इसकी बूँद–बूँद को थामने के लिये उन्होंने सभी देशवासियों से आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैं देशवासियों को भी कहता हूँ कि ये जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर - हम तय करें, पानी की एक बूँद भी बर्बाद नहीं होने देंगे। अभी से प्रबन्ध करें, पानी बचाने की जगह क्या हो सकती है, पानी रोकने की जगह क्या हो सकती है।
ईश्वर तो हमारी जरूरत के हिसाब से पानी देता ही है, प्रकृति हमारी आवश्यकता की पूर्ति करती ही है, लेकिन हम अगर बहुत पानी देख करके बेपरवाह हो जाएँ और जब पानी का मौसम समाप्त हो जाये, तो बिना पानी परेशान रहें, ये कैसे चल सकता है? और ये कोई पानी मतलब सिर्फ किसानों का विषय नहीं है जी! ये गाँव, गरीब, मजदूर, किसान, शहरी, ग्रामीण, अमीर-गरीब - हर किसी से जुड़ा हुआ विषय है और इसलिये बारिश का मौसम आ रहा है, तो पानी ये हमारी प्राथमिकता रहे और इस बार जब हम दीवाली मनाएँ, तो इस बात का आनन्द भी लें कि हमने कितना पानी बचाया, कितना पानी रोका। आप देखिए, हमारी खुशियाँ अनेक गुना बढ़ जाएँगी।
उन्होंने आगे कहा कि पानी में वो ताकत है, हम कितने ही थक करके आये हों, मुँह पर थोड़ा-सा भी पानी छिड़कते हैं, तो कितने फ्रेश हो जाते हैं। हम कितने ही थक गए हों, लेकिन विशाल सरोवर देखें या सागर का पानी देखें, तो कैसी विराटता का अनुभव होता है। ये कैसा अनमोल खजाना है परमात्मा का दिया हुआ। जरा मन से उसके साथ जुड़ जाएँ, उसका संरक्षण करें, पानी का संवर्द्धन करें, जल-संचय भी करें, जल-सिंचन को भी आधुनिक बनाएँ। इस बात को मैं आज बड़े आग्रह से कह रहा हूँ। ये मौसम जाने नहीं देना है।
आने वाले चार महीने बूँद-बूँद पानी के लिये ‘जल बचाओ अभियान’ के रूप में परिवर्तित करना है और ये सिर्फ सरकारों का नहीं, राजनेताओं का नहीं, ये जन-सामान्य का काम है। मीडिया ने पिछले दिनों पानी की मुसीबत का विस्तार से वृत्तान्त दिया। मैं आशा करता हूँ कि मीडिया पानी बचाने की दिशा में लोगों का मार्गदर्शन करे, अभियान चलाए और पानी के संकट से हमेशा की मुक्ति के लिये मीडिया भी भागीदार बने, मैं उनको भी निमंत्रित करता हूँ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह अपील रंग ला रही है। लोग गम्भीरता से उनके मन की बात को सुनते हैं और इसे अमल में लाने की भी कोशिश करते हैं। खासतौर पर गाँवों में। गोरवा की सरपंच रानी विजयेन्द्र पटेल बताती हैं कि लोग इसे कितनी शिद्दत से सुनते हैं, इसे साबित होता है कि जब पिछली बार उन्होंने मन की बात में हमारे गाँव गोरवा में पानी के काम को सराहा तो कई लोग और दूर–दूर से किसान हमारे यहाँ आये और यहाँ बने तालाबों को देखा समझा।
इस बार पंचायत के पास बड़ा रेडियो रखकर गाँव भर के लोगों ने इसे सुना। दूसरे प्रदेशों के जिन मॉडलों की उन्होंने चर्चा की है। ग्रामीण अब उस दिशा में भी सोचने लगे हैं। खेती की नई तकनीकों के लिये भी वे अब अपने इलाके के कृषि अधिकारियों से बात करेंगे।
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