भारत की सबसे बड़ी नदी तो गंगा है, लेकिन यमुना का जो वैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है, वह किसी भी बड़ी और जीवन्त नदी से कम नहीं है। यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री ग्लेशियर से हुआ है। इलाहाबाद में इसका गंगा से संगम होता है, जिससे इसका पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व और भी बढ़ गया है। इसकी कुल लम्बाई 1376 किलोमीटर है।
यह भारत के सात राज्यों से गुजरती है। इसकी बारह सहायक नदियाँ हैं- बेतवा, गिरि, टोंस, असान, सोम, छोटी यमुना, हिण्डन, चम्बल, काली, सिन्ध, केन और बेतवा। इस नदी से छब्बीस नाले निकाले गए हैं और सात नहरें भी इसी से निकली हैं। इस पर छह बैराज और बाँध भी बनाए गए हैं।
यमुना सांस्कृतिक और सामाजिक-रूप से सबसे प्रमुख नदियों में स्थान रखती है, लेकिन पिछले तीस-चालीस वर्षों या कहें आजादी के बाद से ही विभिन्न तरीके से इसे प्रदूषित और संकुचित करके रखा गया है। आज यह देश की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में शामिल है।
जो भारतीय समाज कभी यमुना में स्नान करने मात्र से खुद को धन्य और मोक्ष का भागी समझता था, उसी ने विकास की दौड़ में इसे हर तरह से प्रदूषित कर दिया है। दिल्ली में इसका पानी जहरीला हो गया है। यमुना का जल न तो दिल्ली वासियों के लिये किसी उपयोग का रह गया है और न कोई जानवर या पक्षी ही इससे अपनी प्यास बुझा सकता है।
दिल्ली की यमुना में एक-दो तरह के नहीं, बल्कि इसमें पोटैशियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, बायोमाइड्स जैसे जहरीले रसायनों के कारण पिछले पच्चीस सालों में चाल गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। पहले स्थिति यह थी कि अरावली से छोटी-छोटी अट्ठारह नदियाँ पूरी दिल्ली को काटते हुए यमुना में आकर मिलती थीं। इस लिये दिल्ली का इतिहास कई बार बदला।
कहने का मतलब जो नदी इतिहास बदलने की क्षमता रखती थी वह आज खुद इतिहास बनती जा रही है। जो यमुना दिल्ली की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज वह खुद जीवन माँग रही है। इसका पानी राजस्थान के करौली, अलवर और जयपुर से आता था। वह उन अनेक छोटी-छोटी नदियों का पानी था, जो गाँव वाले बड़ी श्रद्धा के साथ यमुना में बहने देते थे।
यमुना का जल दूसरी नदियों की तुलना में यमुनोत्री ग्लेशियर में अधिक साफ और उपयोगी है, लेकिन दिल्ली में उसका रूप खत्म होकर जहरीला गन्दा और बदबूदार हो गया है। इसकी वजह से इस पानी का इस्तेमाल करने वाले जानवर या पक्षी तमाम बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यमुना में कोई भी जलचर अब नहीं रह गया है। अगर कुछ दिखता है तो जलकुम्भी और गन्दे वस्त्र, कबाड़, पॉलीथिन और सड़े हुए जानवर।
दिल्ली यमुना के किनारे अन्न, फल या सब्जी पहले जैसे तो नहीं उगाई जा रही है, लेकिन जो भी उगता है वह तमाम बीमारियों को बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक यमुना के किनारे की फसल, फल या सब्जी खाने से कैंसर, हृदयघात, त्वचा के रोग, लकवा, मलेरिया और दूसरी तमाम खतरनाक बीमारियाँ हो रही हैं। यही हाल दूसरे शहरों का भी है। कानपुर, इलाहाबाद, आगरा में भी शहर के नाले और औद्योगिक कचरे यमुना में गिराए जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय राज्य सरकारों को आदेश दे चुके हैं। कि यमुना में औद्योगिक कचरा गिरने पर तत्काल रोक लगाई जाए।
दिल्ली यमुना के किनारे अन्न, फल या सब्जी पहले जैसे तो नहीं उगाई जा रही है, लेकिन जो भी उगता है वह तमाम बीमारियों को बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक यमुना के किनारे की फसल, फल या सब्जी खाने से कैंसर, हृदयघात, त्वचा के रोग, लकवा, मलेरिया और दूसरी तमाम खतरनाक बीमारियाँ हो रही हैं। यही हाल दूसरे शहरों का भी है। कानपुर, इलाहाबाद, आगरा में भी शहर के नाले और औद्योगिक कचरे यमुना में गिराए जाते हैं।हजारों, करोड़ों रुपए प्रदूषित नदियों को साफ करने के लिये और औद्योगिक कचरा और शहर के गन्दे नालों को पुनर्शोधित करने के लिए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।
कई एजेंसियाँ यमुना से किसी-न-किसी रूप से जुड़ी हैं। इनमें केन्द्रीय जल आयोग, दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, पर्यावरण विभाग, भूमि एवं भवन विभाग, सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण विभाग, नगर विकास विभाग, पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय, नगर विकास एवं जल संसाधन मन्त्रालय, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, ऊपरी यमुना नदी बोर्ड और दिल्ली विकास प्राधिकरण वगैरह। दिल्ली की यमुना को स्वच्छ करने के लिए केन्द्र और दिल्ली सरकार ने भी बहुत प्रयास किए, लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से इसे साफ-सुथरी नदी का रूप नहीं दिया जा सका।
दरअसल, हमारी जीवनशैली ही इस तरह की हो गई है कि हम सब कुछ अपने स्वार्थ के हिसाब से करते हैं। यमुना में बड़ी तादाद में मैला बहाने, मूर्तियों का विसर्जन करने, पॉलीथिन डालने जैसी आदतों ने भी इसे काफी नुकसान पहुँचाया है। जिस यमुना को हम अपने सांस्कृतिक महापुरुषों, ऋषियों-मुनियों और पूर्वजों से जोड़ने में गर्व का अनुभव करते रहे हैं, क्या कारण है हम इस रिश्ते को भी भुला बैठे और इसे हर तरह से प्रदूषित करने में ही अपनी भलाई मानने लगे हैं।
आज जरूरत है सामूहिक संकल्प की। केवल सरकारी प्रयासों से इसके जहरीलेपन और प्रदूषण को नहीं खत्म किया जा सकता है बल्कि सभी तरह के लोगों का इसमें पूरा सहयोग चाहिए।
ईमेल : akhilesh.aryendu@gmail.com
यह भारत के सात राज्यों से गुजरती है। इसकी बारह सहायक नदियाँ हैं- बेतवा, गिरि, टोंस, असान, सोम, छोटी यमुना, हिण्डन, चम्बल, काली, सिन्ध, केन और बेतवा। इस नदी से छब्बीस नाले निकाले गए हैं और सात नहरें भी इसी से निकली हैं। इस पर छह बैराज और बाँध भी बनाए गए हैं।
यमुना सांस्कृतिक और सामाजिक-रूप से सबसे प्रमुख नदियों में स्थान रखती है, लेकिन पिछले तीस-चालीस वर्षों या कहें आजादी के बाद से ही विभिन्न तरीके से इसे प्रदूषित और संकुचित करके रखा गया है। आज यह देश की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में शामिल है।
जो भारतीय समाज कभी यमुना में स्नान करने मात्र से खुद को धन्य और मोक्ष का भागी समझता था, उसी ने विकास की दौड़ में इसे हर तरह से प्रदूषित कर दिया है। दिल्ली में इसका पानी जहरीला हो गया है। यमुना का जल न तो दिल्ली वासियों के लिये किसी उपयोग का रह गया है और न कोई जानवर या पक्षी ही इससे अपनी प्यास बुझा सकता है।
दिल्ली की यमुना में एक-दो तरह के नहीं, बल्कि इसमें पोटैशियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, बायोमाइड्स जैसे जहरीले रसायनों के कारण पिछले पच्चीस सालों में चाल गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। पहले स्थिति यह थी कि अरावली से छोटी-छोटी अट्ठारह नदियाँ पूरी दिल्ली को काटते हुए यमुना में आकर मिलती थीं। इस लिये दिल्ली का इतिहास कई बार बदला।
कहने का मतलब जो नदी इतिहास बदलने की क्षमता रखती थी वह आज खुद इतिहास बनती जा रही है। जो यमुना दिल्ली की जीवनरेखा मानी जाती थी, आज वह खुद जीवन माँग रही है। इसका पानी राजस्थान के करौली, अलवर और जयपुर से आता था। वह उन अनेक छोटी-छोटी नदियों का पानी था, जो गाँव वाले बड़ी श्रद्धा के साथ यमुना में बहने देते थे।
यमुना का जल दूसरी नदियों की तुलना में यमुनोत्री ग्लेशियर में अधिक साफ और उपयोगी है, लेकिन दिल्ली में उसका रूप खत्म होकर जहरीला गन्दा और बदबूदार हो गया है। इसकी वजह से इस पानी का इस्तेमाल करने वाले जानवर या पक्षी तमाम बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यमुना में कोई भी जलचर अब नहीं रह गया है। अगर कुछ दिखता है तो जलकुम्भी और गन्दे वस्त्र, कबाड़, पॉलीथिन और सड़े हुए जानवर।
दिल्ली यमुना के किनारे अन्न, फल या सब्जी पहले जैसे तो नहीं उगाई जा रही है, लेकिन जो भी उगता है वह तमाम बीमारियों को बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक यमुना के किनारे की फसल, फल या सब्जी खाने से कैंसर, हृदयघात, त्वचा के रोग, लकवा, मलेरिया और दूसरी तमाम खतरनाक बीमारियाँ हो रही हैं। यही हाल दूसरे शहरों का भी है। कानपुर, इलाहाबाद, आगरा में भी शहर के नाले और औद्योगिक कचरे यमुना में गिराए जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय राज्य सरकारों को आदेश दे चुके हैं। कि यमुना में औद्योगिक कचरा गिरने पर तत्काल रोक लगाई जाए।
दिल्ली यमुना के किनारे अन्न, फल या सब्जी पहले जैसे तो नहीं उगाई जा रही है, लेकिन जो भी उगता है वह तमाम बीमारियों को बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक यमुना के किनारे की फसल, फल या सब्जी खाने से कैंसर, हृदयघात, त्वचा के रोग, लकवा, मलेरिया और दूसरी तमाम खतरनाक बीमारियाँ हो रही हैं। यही हाल दूसरे शहरों का भी है। कानपुर, इलाहाबाद, आगरा में भी शहर के नाले और औद्योगिक कचरे यमुना में गिराए जाते हैं।हजारों, करोड़ों रुपए प्रदूषित नदियों को साफ करने के लिये और औद्योगिक कचरा और शहर के गन्दे नालों को पुनर्शोधित करने के लिए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा।
कई एजेंसियाँ यमुना से किसी-न-किसी रूप से जुड़ी हैं। इनमें केन्द्रीय जल आयोग, दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, पर्यावरण विभाग, भूमि एवं भवन विभाग, सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण विभाग, नगर विकास विभाग, पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय, नगर विकास एवं जल संसाधन मन्त्रालय, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, ऊपरी यमुना नदी बोर्ड और दिल्ली विकास प्राधिकरण वगैरह। दिल्ली की यमुना को स्वच्छ करने के लिए केन्द्र और दिल्ली सरकार ने भी बहुत प्रयास किए, लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से इसे साफ-सुथरी नदी का रूप नहीं दिया जा सका।
दरअसल, हमारी जीवनशैली ही इस तरह की हो गई है कि हम सब कुछ अपने स्वार्थ के हिसाब से करते हैं। यमुना में बड़ी तादाद में मैला बहाने, मूर्तियों का विसर्जन करने, पॉलीथिन डालने जैसी आदतों ने भी इसे काफी नुकसान पहुँचाया है। जिस यमुना को हम अपने सांस्कृतिक महापुरुषों, ऋषियों-मुनियों और पूर्वजों से जोड़ने में गर्व का अनुभव करते रहे हैं, क्या कारण है हम इस रिश्ते को भी भुला बैठे और इसे हर तरह से प्रदूषित करने में ही अपनी भलाई मानने लगे हैं।
आज जरूरत है सामूहिक संकल्प की। केवल सरकारी प्रयासों से इसके जहरीलेपन और प्रदूषण को नहीं खत्म किया जा सकता है बल्कि सभी तरह के लोगों का इसमें पूरा सहयोग चाहिए।
ईमेल : akhilesh.aryendu@gmail.com
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Post By: RuralWater