प्रदेश सरकार ने प्राचीन बावड़ियों को घोषित किया स्मारक

Chanderi step well
Chanderi step well

चंदेरी की बावड़ियों को मिलेगी नई जिन्दगी


चंदेरी की बावड़ीधार। प्रदेश के चार जिले के 26 प्राचीन पुरातत्वीय स्मारक स्थल और अवशेषों को राज्य संरक्षित घोषित किया गया है। संस्कृति विभाग द्वारा जारी अधिसूचना में सर्वाधिक 21 स्मारक अशोकनगर जिले के शामिल हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है जबकि पेयजल के स्रोतों को इस तरह का महत्त्व मिल रहा है। अगस्त 2015 में यह घोषणा लोगों को यह सोचने के बारे मजबूर कर रही है कि बावड़ियों का भी अपना महत्त्व है।

अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित तपा बावड़ी, पांडे बावड़ी, चंदाई बावड़ी, अकोल बावड़ी को स्मारक का दर्जा दिया गया है। चंदेरी की राजा बावड़ी, सिंचाई विभाग परिसर में सती छत्री, खासियाँ की तलैय्या, चंदेरी धुवया तालाब, चंदेरी में अठखम्मा, मुरादपुर की झलारी बावड़ी, प्राणपुर की जनाजन और गचउ बावड़ी, सराय में हजीरा (लाल बावड़ी), हलनपुर की मचला बावड़ी, सिंहपुर चाल्पा में राजमती बावड़ी, ग्राम मुरादपुर की छोटी बत्तीसी बावड़ी और फूटी बावड़ी संरक्षक स्मारक घोषित किया गया है।

इंदौर जिले के महू तहसील के ग्राम खुर्द छोटी जाम में बावड़ी क्रमांक एक एवं दो को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। इन बावड़ियों को स्मारक घोषित करने से इनकी सुरक्षा तो होगी ही। साथ ही लोग इनकी वास्तुकला को भी निहार सकेंगे। इस तरह यह महत्त्वपूर्ण कदम है। चंदेरी एक ऐसा शहर है जहाँ पर पुरातत्त्व महत्त्व की कई धरोहर है। उनमें भी बड़ी संख्या में जलस्रोत हैं। ऐसे में चंदेरी की बावड़ियों को सुरक्षित करना महत्त्वपूर्ण कदम है।

 

और भी है महत्त्वपूर्ण बावड़ियाँ


प्रदेश में पहली बार बड़ी संख्या में बावड़ियों को सुरक्षित करने के लिये विशेष पहल की गई है। मप्र सरकार के पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्राचीन बावड़ियों को पृथक से धरोहर मानना बड़ी बात है। इसकी वजह यह है कि अब तक जो भी महल या किला संरक्षित किया जाता था उसके अन्दर की बावड़ियाँ ही संरक्षित की जाती थी।

यह पहला ऐसा मौका है जबकि बावड़ियों को संरक्षित किया गया है। 100 वर्ष तक पुरानी बावड़ियाँ भी आज अस्तित्व में हैं। जरूरी है इन्हें बचाने की। वजह यह है कि जब तक भूजल को अधिक गहराई से नहीं लाया जा रहा था तब तक हालात सामान्य बने हुए थे। नलकूप खनन की परम्परा ने बुरे हाल कर दिये। कभी स्वच्छ पानी के लिये नलकूप खोदे जाते थे। लेकिन अब हालात विपरीत है।

 

 

 

संरक्षण के लिये मिलेगी राशि


संरक्षण के लिये बावड़ियों पर रकम खर्च होगी। पुरातत्त्व विभाग द्वारा इसके लिये जल्द ही राशि भी जारी की जाएगी। प्रदेश में इस तरह की स्थिति बनना अच्छी बात है क्योंकि जलस्रोतों के प्रति सरकार का संवेदनशील होना इस बात का प्रमाण है कि आगामी भविष्य में भी व्यवस्थाएँ बेहतर बनी रहेंगी।

 

 

 

 

Path Alias

/articles/paradaesa-sarakaara-nae-paraacaina-baavadaiyaon-kao-ghaosaita-kaiyaa-samaaraka

Post By: RuralWater
×