कुपोषण से जूझते दक्षिण-एशिया के देशों के लिये हावर्ड विश्वविद्यालय की हाल की रिपोर्ट खासी चिन्ता बढ़ाने वाली है जिसमें जलवायु परिवर्तन की वजह से खाद्य पदार्थों के घटते उत्पादन के अलावा भोजन के पोषक तत्व भी बुरी तरह प्रभावित होने की चेतावनी दी गई है। दूसरी तरफ, विश्व बैंक का अध्ययन कहता है कि सस्ती और कम या पोषण-रहित प्रचलित भोजन सामग्री, पोषण तत्वों से भरपूर, लेकिन महंगी भोजन सामग्री के मुकाबले बाजार से गायब हो रही है। कुपोषण की महामारी से निपटते हमारे देश के लिये यह एक नया संकट है।
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन सहित बढ़ती महंगाई ने हमारे भोजन से पोषक- पदार्थ कम कर दिये हैं। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने से पर्यावरण सम्बन्धित नुकसान तो हो ही रहे हैं, हमारे दिन-प्रतिदिन के भोज्य-पदार्थों में पोषक-तत्वों की भी कमी हो रही है। बढ़ती महंगाई ने फल, सब्जियों सहित मांस जैसे ज्यादा पोषक तत्वों को हमारी थाली से बाहर कर दिया है।
यह देखना ज्यादा दिलचस्प हो सकता है कि इन भोज्य-पदार्थों की महंगाई कम पोषक-तत्वों वाले खाद्य-पदार्थों जैसे-तेल, चीनी आदि की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी है। ऐसी स्थिति में हम कम पोषक-तत्वों वाले हानिकारक खाद्य-पदार्थ अपना लेते हैं। खाद्य-पदार्थों में पोषक-पदार्थों की कमी का सवाल एक गम्भीर लोकतांत्रिक सवाल है।
हावर्ड विश्वविद्यालय के ‘टी.एच.चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन ने हमारे भोजन से पोषक-तत्वों का अपहरण कर लिया है। इस तरह ग्लोबल वार्मिंग से हमारे सामने खाद्य-सुरक्षा के लिये दोहरा खतरा पैदा हो गया है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से खाद्य-सुरक्षा पहले से ही खतरे में है।
कई अन्तरराष्ट्रीय अध्ययनों में इन खतरों की वजह से कृषि- उत्पादन घटने की सम्भावना व्यक्त की गई है, लेकिन ‘हावर्ड रिपोर्ट’ जिस नए खतरे की तरफ संकेत कर रही है उसे गम्भीरता से समझने की जरूरत है। यह रिपोर्ट कह रही है कि कार्बन उत्सर्जन से भोजन में पोषक-तत्वों की कमी हो रही है, इसकी वजह से गेहूँ, चावल, सहित तमाम फसलों में पोषक तत्व घट रहे हैं।
इस अध्ययन में पाया गया है कि जहाँ-जहाँ अधिक कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी में फसलें उगाई गईं, वहाँ-वहाँ फसलों में जिंक, आयरन और प्रोटीन की कमी पाई गई। वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के माध्यम से इस तथ्य की पुष्टि भी की है। दरअसल हमारे खाद्य पदार्थों में 68 फीसदी जिंक, 81 फीसदी आयरन और 63 फीसदी प्रोटीन की आपूर्ति पेड़-पौधों से ही होती है।
दुनिया भर में तकरीबन डेढ़ अरब लोग आयरन की कमी से जूझ रहे हैं जिनके लिये यह खतरा और भी गहरा हो सकता है। यही नहीं वर्ष 2050 तक दुनिया में तकरीबन 18 करोड़ लोग जिंक और 12-13 करोड़ लोग प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होंगे। जरूरी पोषक-तत्व उचित मात्रा में नहीं मिल पाने की वजह से शरीर कुपोषण का शिकार हो जाता है। नतीजे में कम उम्र में ही हड्डियों से जुड़े रोग, आँखों की रोशनी कम हो जाना, रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटना जैसी परेशानियाँ पैदा हो जाती हैं।
चूँकि भारत में कुपोषण की दर पहले से ही ज्यादा है, इसलिये कार्बन उत्सर्जन की बढ़ोत्तरी हमारे यहाँ सर्वाधिक दुष्प्रभाव डाल सकती है। इसी तरह अन्य एशियाई देशों, अफ्रीका और मध्य-पूर्व के देशों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड से पौधों के विकास में मदद तो मिलती है, किन्तु इससे पौधों में पोषक तत्वों की मात्रा का स्तर घट जाता है।
उधर, विश्व बैंक ने अपने एक अध्ययन में दक्षिण-एशिया में पोषक खाद्य पदार्थों की लागत पर निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि महंगाई की मार से बचते हुए हम अक्सर कम पोषक और हानिकारक खाद्य-पदार्थ स्वीकार कर लेते हैं।
भारत सहित सभी छः दक्षिण एशियाई देशों पर किये गए उक्त अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादातर पोषक खाद्य-पदार्थ मौसमी होते हैं और अधिक टिकाऊ भी नहीं होते। इनकी कीमतें भी स्थानीय स्तर के उत्पादन और स्थानीय स्तर के बाजार पर ही निर्भर करती हैं।
अधिक पोषक खाद्य-पदार्थों की तुलना में कम पोषक खाद्य-पदार्थों, जैसे-गेहूँ, चावल, चीनी और तेल आदि की कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर रहती हैं। ऐसी स्थिति में पोषक-पदार्थों की कीमतों में आया उछाल अल्प आय-वर्ग के लोगों की खुराक में असन्तुलन पैदा कर देता है। दक्षिण-एशिया में कुपोषण की समस्या सबसे भयानक है। दुनिया के सबसे ज्यादा बच्चे दक्षिण-एशिया में ही कुपोषित हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 36 फीसदी बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं, तो 16 फीसदी बच्चे मोटापे से जूझ रहे हैं।
इस परिस्थिति से निपटने के लिये ‘फूड, सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इण्डिया’ की ओर से दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इनके मुताबिक छः तरह के खाद्य-पदार्थों में पोषक-तत्वों का मिलाया जाना अगली एक जनवरी से अनिवार्यतः लागू किया जाएगा। पूरे देश में लागू की जा रही इस व्यवस्था के तहत नमक, तेल, दूध, आटा, मैदा, और चावल को शामिल किया गया है।
‘फूड, सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (फोर्टिफिकेशन इन फूड) रेग्यूलेशन-2016’ के अन्तर्गत नोटिफिकेशन जारी करते हुए कहा गया है कि नमक में आयोडीन और आयरन, तेल व दूध में विटामिन ए और डी तथा आटे, मैदा व चावल में आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 अनिवार्यतः मिलाने ही होंगे। विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के मद्देनजर भी भारत भविष्य में कुछ और खाद्य-पदार्थां में पोषक-पदार्थों को मिलाना अनिवार्य कर सकता है। आखिर कुपोषण का सवाल जीवन से जुड़ा है?
श्री राजकुमार कुम्भज वरिष्ठ कवि एवं लेखक हैं।
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