पोर्टल पर लिखा सच: आर एस एस की धमकी झूठ

hindon river in crisis
hindon river in crisis

नजफगढ़, महरौली, जसोला, गाजीपुर समेत तमाम ग्रामीण इलाकों का पानी खींचकर पानी का व्यापार चलता है। टैंकरों से पानी बेचा जाता है। बोर से निकाले पानी को ठंडे केन व बोतलों में भरकर बेचा जाता है। कई जगह तो सीधे जलबोर्ड की पाइपों में ही आर ओ व मोटर लगा कर गंगाजल भरकर बेचा जा रहा है। यह भी सच है कि लोग बिलिंग व जलबोर्ड के भ्रष्टाचार से परेशान हैं। क्या इन सारी परेशानियों से निजात पाने का रास्ता सिर्फ निजीकरण ही है?

हिंदी वाटर पोर्टल पर लिखा सच हुआ। पोर्टल पर लिखे एक लेख ने बीती जनवरी में ही यह खबर दे दी थी दिल्ली का पानी मार्च के बाद निजी कंपनियों के हवाले करने की तैयारियां शुरू हो गईं हैं। आखिरकार अप्रैल की अंतिम तारीखों में दिल्ली की जलापूर्ति तीन कंपानियों को सौंपे जाने के निर्णय ले ही लिया गया। लेकिन दिल्ली के पानी के निजीकरण के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को दी गई धमकी सच नहीं हुई। जो भाजपा और कम्युनिस्ट दिल्ली में पानी की कीमतों के विरोध में धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं उन्होने भी निर्णय का असल मौका आने पर चुप्पी साध ली है। दिल्ली में पानी के निजीकरण के खिलाफ बड़ी-बड़ी बहस करने वाला कई विद्वान, वकील और पानी के नामी लड़ाके रहते हैं। लेकिन कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं दी। आर टी आई के कार्यकर्ताओं का भी दिल्ली में बहुत जोर है। लेकिन सुनाई नहीं दिया कि किसी ने जानने की कोशिश की हो कि इन शर्तों पर जलापूर्ति कंपनियों को सौंपी जायेगी। उपभोक्ता के हितों की सुरक्षा के क्या पुख्ता इंतजाम किए गये हैं। सब ओर चुप्पी है। यह चुप्पी भी कुछ कहती है।

उल्लेखनीय है कि आर्गेनाइजर’ के नवंबर-2011 अंक में आर एस एस के हवाले से छपी धमकी में कहा गया था कि यदि दिल्ली के पानी का निजीकरण किया गया, तो दिल्ली में दंगे हो सकते हैं। आर एस एस ने बोलीविया में पानी के निजीकरण पर हुए दंगों का उदाहरण देते हुए यह कहा था। अब इसे आर एस एस की धमकी माने या आशंका दोनों ही झूठ साबित हुईं।

पैसे की खुमारी में चूर दिल्ली -


आर एस एस के लोग शायद यह भूल गये थे कि दिल्ली एक परजीवी शहर है। अपने खाना-पानी-आबोहवा-बिजली जीवन जीने की हर जरूरी चीज के लिए वह दूसरे राज्यों पर निर्भर है। अब चूंकि दिल्ली के पास पैसा है। अतः वह निश्चिंत है कि उसे जो चाहिए, वह पैसे से खरीद लेगा। इसीलिए दिल्ली खुमारी में रहती है। प्रमाण है कि नलों में पानी चाहे काला आये, चाहे पीला, चाहे आये या न आये। पानी की कीमतें चाहे कितनी ही जेबकाटू हो जायें; बिल चाहे सही बने या गलत; बिल जमा कराने में चाहे आधा दिन होम हो जाये कुछेक राजनैतिक धरने-प्रदशनों को छोड़ दें, तो इसके खिलाफ दिल्ली में आज तक कोई बड़ा जनउभार नजर नहीं आया।

जलमंत्री बयान के प्राइवेट लिंक?-


दिलचस्प है कि जब केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने दिल्ली के भूजल के बुरी तरह प्रदूषित होने की कड़वी सच्चाई सामने रखी, तब विधानसभा के विपक्ष नेता विजयकुमार मल्होत्रा बहुत चौंके। कुछ-कुछ तिलमिलाये भी। लेकिन वे इसके प्राइवेट लिंक ढूंढ सके। हालांकि पवन कुमार बंसल की छवि ऐसे व्यक्ति की नहीं है कि वह जानबूझकर निजी कंपनियों के पक्ष में इशारा करें। लेकिन मतलब निकालने वाले उनके इस बयान का यह मतलब के लिए स्वतंत्र तो हैं ही कि जलसंसाधन मंत्री भूजल खराब का डर दिखाकर कंपनियों के फायदे का माहौल बना रहे हैं। इसका निहितार्थ यह निकाला जा सकता है कि दिल्ली में मुफ्त पानी का अभी एक ही स्रोत है- भूजल। लोगों को इससे दूर करने का यही रास्ता है कि उन्हें डराया जाये। कहा जाये कि भूजल खराब है; इसीलिए सार्वजनिक हैंडपम्प हटा दिए जायें। बोर से भरकर टैंकरों द्वारा बेचा जा रहा पानी पीने योग्य नहीं है। हर व्यक्ति सप्लाई का ही पानी पीये। जहां सप्लाई नहीं, वहां लोग केन खरीदकर पीयें। ऐसे हर इलाके को जल्द से जल्द सप्लाई पाइपों से जोड़ दिया जाये। इससे कंपनियों के खाते में उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ जायेगी, साथ ही कंपनियों की कमाई भी।

तैयार रहिए! कि कीमतें कई गुना बढ़ेंगी-


बात निजीकरण तक नहीं रुकने वाली। यह रास्ता पानी के व्यावसायीकरण की ओर जाता है। उल्लेखनीय है कि यह कोई एक दिन में लिया गया निर्णय नहीं है। इसकी तैयारी एक साल पहले ही शुरू कर दी गई थी दिल्ली की सरकार ने 28 मई, 2011 को ही दिल्ली में जल नियामक आयोग गठित करने के संकेत दे दिए थे। तभी तय हो गया था कि दिल्ली जलबोर्ड जलापूर्ति का निजीकरण करेगा। जनवरी, 2012 में ही दिल्ली जलबोर्ड ने पुराने दस्तावेजों को ठिकाने लगाने का काम शुरू कर दिया था। बिल में प्रतिवर्ष 10 फीसदी वृद्धि का कायदा बनाकर निजी को फायदा पहले ही सुनिश्चित कर ही दिया गया था। दिल्ली में बिजली का निजीकरण करने से पहले भी यही कुछ किया गया था। पानी बिजली से ज्यादा जरूरी है। कंपनियां, पानी के लिए कुछ भी कीमत अदा करने की मजबूरी का फायदा नहीं उठायेंगी; इस बात की गारंटी कौन दे सकता है?

अब निजी हाथों को सौंपने के निर्णय के साथ ही दिल्ली जल बोर्ड का मुखिया बदल दिया गया है। जलनीति बनाने का काम शुरू हो गया है। दिखावे के लिए कहा जा रहा है कि यह सब कवायद इसलिए है, ताकि दिल्लीवालों को 24 घंटे पानी दिया जा सके। ऐसा प्रति व्याक्ति खपत में कमी व पानी के पुर्नउपयोग व पुर्नचक्रीकरण के जरिए करने का दावा किया जा रहा है। इस सबके नाम पर बहुत संभव हैं कि जल्द ही जलशोधन के सभी सरकारी संयंत्र भी इन्हीं कंपनियों को सौंप दिए जायें। सार्वजनिक नल खत्म होंगे। झगड़े बढेंगे ही। कीमतें कई गुना हो जायेंगी। बिना पैसा पानी नहीं मिलेगा। धीरे-धीरे कंपनियों की सुविधानुसार और रास्ते साफ किए जायेंगे। नतीजा यह होगा कि बिना अनुमति बोरवेल-ट्यूबवेल लगाने वालों से अभी ही पुलिसवाले आकर घूस वसूलते ही हैं; हो सकता है कि बहुत जल्द आपको भूजल की निकासी पर भी आधिकारिक रूप से शुल्क देना पड़े। सुना है कि चेहरे-मोहरे से स्वयं को सामाजिक कार्यकर्ता दिखाने की कोशिश करने वाले एक सांसद ने फैक्ट्री लगाकर जैसे दिल्ली के बिजली मीटरों को डिजिटल बनाया था, वैसे ही अब पानी के मीटरों की गति बढ़ाने का काम भी शुरू कर दिया है। मीटर बदलने का एक न्यायिक आदेश लेकर झपटमार ठीक दोपहरी में घर खटखटाने लगे हैं। नियमन की आड़ में यह झपटमारी आगे और बढ़ेगी।

क्या कोई और रास्ता नहीं?


यह सच है कि अभी दिल्ली जलापूर्ति का 40 प्रतिशत पानी पाइपों में रिसकर बर्बाद होता है। मीटर रीडर की मिलीभगत से कितने ही कनेक्शन बिना मीटर चलते हैं। नजफगढ़, महरौली, जसोला, गाजीपुर समेत तमाम ग्रामीण इलाकों का पानी खींचकर पानी का व्यापार चलता है। टैंकरों से पानी बेचा जाता है। बोर से निकाले पानी को ठंडे केन व बोतलों में भरकर बेचा जाता है। कई जगह तो सीधे जलबोर्ड की पाइपों में ही आर ओ व मोटर लगा कर गंगाजल भरकर बेचा जा रहा है। यह भी सच है कि लोग बिलिंग व जलबोर्ड के भ्रष्टाचार से परेशान हैं। क्या इन सारी परेशानियों से निजात पाने का रास्ता सिर्फ निजीकरण ही है? क्या दिल्ली जलबोर्ड अकर्मण्य हो गया है? नहीं। दिल्ली में जलापूर्ति की स्थिति ऐसी भी नहीं है कि सब कुछ नियंत्रण से बाहर हो गया हो। लेकिन चूंकि कर्जदाता विदेशी एजेंसियां कहती हैं कि हालात नियंत्रण से बाहर है। सरकारी विभागों के बस का कुछ नहीं है। अतः दिल्ली जलबोर्ड ने भी अपने पर लगे अकर्मण्यता के लांछन को सहर्ष स्वीकार कर निजीकरण का रास्ता खोल दिया है।

अच्छा होता कि अमेरिकापरस्ती के लिए अक्सर बदनाम होती रही हमारी सरकारें अमेरिका से एक अच्छी बात सीख पाती। अमेरिका में जलापूर्ति तकनीकी, वित्तीय और प्रशासनिक समस्त अधिकारों के साथ भूजल जनसंगठनों के नियंत्रण में है। सरकार नहीं, तो कम से कम जनता ही पानीदार बनकर दिखाये। दिल्ली की जलनीति का मसौदा आने वाला है। हस्तक्षेप करें और उसे पानी, पर्यावरण और प्रकृति के समस्त प्राणियों के अनुकूल बनायें।

जय हो!
दिल्ली दिलवालों की, पानी पैसेवालों का।
पैसा दो, पानी लो। नहीं तो प्यासे मरो।


Path Alias

/articles/paoratala-para-laikhaa-saca-ara-esa-esa-kai-dhamakai-jhauutha

Post By: Hindi
Topic
×