पंचायतों को ही करना है अब सारा काम

झारखंड सरकार का पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, भारत सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय का एक हिस्सा है। इसका मुख्य काम राज्य के नागरिकों खासकर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराना और साफ-सफाई की व्यवस्था बनाए रखना है। इसके लिए कई योजनाएं हैं। वैसे तो विभाग का पूरा प्रशासनिक एवं वित्तीय नियंत्रण राज्य सरकार के पास है। लेकिन, योजनाओं का कार्यान्वयन भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत होता है।

संविधान की 11वीं अनुसूची के 29 विषय में पेयजल एवं स्वच्छता भी शामिल है और इस पर त्रिस्तरीय पंचायतों को अधिकार दिया गया है। संविधान की धारा 243 जी, के प्रावधानों के तहत पांच जुलाई 2013 को राज्य सरकार ने विभाग का अधिकार ग्राम पंचायतों को सौंप दिया है। इस लिहाज से गांव में पेयजल एवं सफाई की व्यवस्था बनाने के लिए अब सारा काम ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद को ही करना है। विभाग इसमें सिर्फ तकनीकी सहयोग प्रदान करेगा। आइए एक नजर डालते हैं विभाग की योजनाओं और पंचायतों की भूमिका पर।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम


राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजलापूर्ति कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) का शुभारंभ वर्ष 2009 में हुआ है। यह कार्यक्रम राजीव गांधी ग्रामीण जलापूर्ति मिशन का हिस्सा है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में नागरिकों को पेयजल यानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कम से कम 40 लीटर पीने का पानी उपलब्ध कराना है। इसके तहत चापानल का अधिष्ठापन किया जाता है। पेजयल की गुणवत्ता की जांच की जाती है। जिन गांवों में चापानल का पानी दूषित है या जहां पर चापानल पेयजल आपूर्ति करने में सक्षम नहीं हैं, वहां पर पाइप के जरिए नागरिकों को पानी मुहैया कराया जाता है।

एनआरडीडब्ल्यूपी के तहत स्वीकृत योजनाओं में झारखंड को 50 प्रतिशत की राशि केंद्र सरकार से मिलती है, जबकि 50 प्रतिशत की राशि राज्य सरकार अपने कोष से देती है। कार्यक्रम के तहत योजना का स्थल एवं लाभुक का चयन ग्रामसभा करती है। बल्कि पाइप जलापूर्ति योजना के संचालन का पूरा भार ग्राम सभा की स्थाई समिति ‘ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति’ पर है। इसलिए इसमें पंचायतों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

ऐसे होता है योजना का चयन


राज्य सरकार से प्रदत्त अधिकारों के तहत किसी गांव में पाइप जलापूर्ति योजना के लिए योजना की आवश्यकता एवं उसके फायदे का प्रस्ताव वहां की ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति (वीडब्ल्यूएससी) अपने जिले के जिला जल एवं स्वच्छता समिति (डीडब्ल्यूएससी) के सचिव को सौंपती है। जिला जल एवं स्वच्छता समिति के सचिव पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता होते हैं। वीडब्ल्यूएससी से प्रस्ताव मिलने के बाद कार्यपालक अभियंता अपने सहायक एवं कनीय अभियंता के जरिए उस गांव का सर्वे कराते हैं और प्राक्कलन तैयार कर उसकी तकनीक एवं प्रशासनिक स्वीकृति दिलाते हैं।

यदि 10 लाख रुपए की योजना होगी तो इसकी प्रशासनिक स्वीकृति ग्राम पंचायत देगी और कार्यान्वयन ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति करेगी। जिन योजनाओं का कार्यक्षेत्र दो या दो से अधिक ग्राम पंचायत और लागत 10 लाख रुपए से अधिक होगी, उसकी प्रशासनिक स्वीकृति एवं कार्यान्वयन पंचायत समिति के जरिए होगा। इसी तरह जिन पाइप जलापूर्ति योजना का कार्य क्षेत्र दो या दो से अधिक प्रखंड और लागत 25 लाख से अधिक होगी, उसके कार्यान्वयन का अधिकार जिला परिषद को दिया गया है।

इतना ही नहीं योजना का कार्यान्वयन पूरा होने के बाद इसका संचालन भी पंचायतों को ही करना है। ग्राम पंचायत के अंतर्गत जिस गांव में मिनी पाइप जलापूर्ति योजना है या होगी, वहां पर उसका संचालन ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति करेगी। इस संबंध में राज्य सरकार ने 20 सितंबर 2013 को आदेश जारी किया है। इस आदेश के तहत ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति को पेयजल की आपूर्ति के लिए जल संयोजन एवं जल शुल्क की वसूली, पंप ऑपरेटर की नियुक्ति एवं उसका भुगतान, बिजली बिल का भुगतान, जरूरी रसायन की खरीदारी एवं भुगतान, जमा राशि के उपयोग और शिकायत दर्ज करने एवं उसके निवारण का अधिकार दिया गया है। इसी प्रकार दो या दो से अधिक ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाली पाइप जलापूर्ति योजना का संचालन बहुपंचायत जल एवं स्वच्छता समिति करेगी, जिसमें संबंधित ग्राम पंचायत के सभी मुखिया, उपमुखिया एवं 50 प्रतिशत जल सहिया सदस्य होते हैं।

जल जांच की व्यवस्था


जल गुणवत्ता की जांच का दायित्व भी ग्राम पंचायत पर है। वर्तमान में लगभग सभी जल सहिया को जल जांच का प्रशिक्षण दिया गया है। एक फिल्ड टेस्ट किट उपलब्ध कराया गया है। इस किट में जरूरी रसायन एवं उपकरण हैं। ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद जल सहिया से समन्वय स्थापित कर उन क्षेत्रों को चिह्नित कर सकती है, जहां पर चापानल या कुआं का पानी दूषित है। फिर वहां के लिए वैकल्पिक योजना बना सकती है।

चापानल की मरम्मत


केंद्र एवं राज्य सरकार की योजना के तहत गांवों में जितने भी चापानल का अधिष्ठापन किया गया है, उसकी मरम्मत एवं रख-रखाव का दायित्व राज्य सरकार का है। पहले यह काम जिलों में विभाग का प्रमंडलीय कार्यालय करता था। लेकिन, अधिकार हस्तांतरण के बाद इसका पूरा पैसा गांवों को दिया जा रहा है। पहले चरण में प्रति चापानल 258 रु पए की दर से हर गांव को पैसा दिया गया।

हालांकि सरकार ने अपनी सुविधा के लिए इसमें थोड़ा संशोधन कर दिया। अब चापानल मरम्मत का पैसा सभी गांवों को न देकर हरेक ग्राम पंचायत के मुख्यालय गांव की जल एवं स्वच्छता समिति के खाते में दिया जा रहा है। सरकार ने ग्राम पंचायत के मुखिया को यह अधिकार दिया है कि वह पंचायत मुख्यालय गांव की जल सहिया से मिलकर राशि की निकासी करे और पूरे ग्राम पंचायत क्षेत्र में जितने चापानल हैं, उसकी मरम्मत कराए।

पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल, देवघर के कार्यपालक अभियंता तपेश्वर चौधरी के मुताबिक दूसरे चरण में उनके प्रमंडल अंतर्गत हरेक ग्राम पंचायत को 22 हजार रुपए चापानल की मरम्मत के लिए दिया गया है। इस राशि से यह जरूरी नहीं कि सभी चापानल की मरम्मत हो जाए। यदि ग्राम पंचायत के खराब पड़े 20 में से आठ चापानल की ही मरम्मत इस पैसे से होती है तो ग्राम पंचायत फिलहाल आठ का काम कराए। बाकी के लिए फिर पैसा मांगें।

शॉकपिट का निर्माण


चापानल लंबे समय तक पानी देता रहे, इसके लिए अब हर चापानल पर एक शॉकपिट बनाया जा रहा है। इस योजना का नाम ही शॉकपिट निर्माण योजना इसके तहत राज्य सरकार ग्राम पंचायतों को राशि उपलब्ध कराती है। पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल, देवघर के कार्यपालक अभियंता तपेश्वर चौधरी के मुताबिक नए एवं विशेष मरम्मत के तहत अधिष्ठापित चापानल के लिए प्रति चापानल 14 हजार रुपए की राशि शॉकपिट निर्माण के लिए दी जाएगी।

इसका कार्यान्वयन भी ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के जरिए होना है। संविधान से मिले अधिकार के तहत ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद को अपनेअ पने क्षेत्र में स्वच्छता की व्यवस्था भी बनानी है। स्वच्छता के सात आयाम हैं। इसमें पीने के पानी की देखरेख, बेकार पानी की सही निकासी, मानव मल का सुरक्षित निपटान, कूड़े एवं गोबर का सुरक्षित निपटान, घर एवं खान-पान की स्वच्छता और व्यक्तिगत स्वच्छता शामिल है। इससे निबटने के लिए वर्तमान में भारत एवं केंद्र सरकार की संयुक्त योजना निर्मल भारत अभियान है।

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Post By: pankajbagwan
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