पंचायत में बजट की व्यवस्था

पाठकों की मांग पर पंचायती राजकाज पेज हम फिर शुरू कर रहे हैं। इस बार हम उन विषयों पर तकनीकी सुझावों और जानकारी को आप तक पहुंचाएंगे, जिन पर पंचायती राज व्यवस्था से जुड़े लोगों और जनप्रतिनिधियों के अनुभव हमें प्राप्त होंगे। इस बार कई लोगों ने पंचायतों में बजट की व्यवस्था को लेकर अपनी जिज्ञासा हम तक पहुंचाई है। कई मुखिया ने अपना अनुभव साझा करते हुए यह जानना चाहा कि पंचायत सरकारें अपना बजट कैसे बना सकती हैं? इसकी प्रक्रिया क्या है? किन-किन विषयों में पंचायत सरकारों को बजट बनाने का अधिकार है और किन विषयों को राज्य सरकार ने अपने पास सुरक्षित रखा है? पंचायतों के पास अभी आय के स्रोत नहीं के बराबर हैं। इससे ग्रामसभाएं बजट बनाने को लेकर उत्साही नहीं हैं। हम यहां इस विषय पर विशेषज्ञ के सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं।

प्राकृतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर किसी भी देश के लिए एक वित्तीय वर्ष के लिए एक निश्चित अवधि तय की जाती है। हमारे देश में भी वित्तीय वर्ष की अवधि पहली अप्रैल से 31 मार्च तय की गई है। उल्लेखनीय है कि इस अवधि को सर्वप्रथम 1867 में अपनाया गया था। इसके पूर्व यह अवधि पहली मई ये 30 अप्रैल तक होती थी। 1967 में प्रशासनिक जांच आयोग ने वित्तीय वर्ष के अवधि की शुरुआत पहली अप्रैल के स्थान पर पहली नवंबर को करने का सुझाव दिया था, लेकिन कुछ कठिनाइयों के कारण सरकार ने इसे स्वीकार नहीं कर पाई। 73वें संविधान संशोधन के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायत राज में प्रारंभिक स्तर की संस्था ग्राम पंचायत एक महत्वपूर्ण संस्था है। इसका मुख्य कारण यह है कि अधिकांश कार्यकलापों के लिए निर्णय लेने के पहले ग्राम पंचायत की सहमति आवश्यक होता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विकास और जन कल्याण से संबंधित अनेक केंद्र एवं राज्य प्रायोजित योजनाएं एवं कार्यक्रम ग्राम पंचायत में क्रियान्वित हो रही है। जिसके लिए व्यय का प्रावधान केंद्र एवं राज्य सरकार अपने बजट में करती है। केंद्र एवं राज्य सरकार की तरह ही पंचायती संस्थाओं को भी अपना बजट बनाने का प्रावधान है।

बजट क्या है


बजट एक वित्तीय योजना है जिसमें गत वर्ष की आय-व्यय की वास्तविक स्थिति, चालू वर्ष में आय-व्यय का संशोधित आकलन तथा अगामी वर्ष के आर्थिक-सामाजिक कार्यक्रम एवं आय-व्यय घटान-बढ़ाने के लिए प्रस्तावों का विवरण होता है। इस प्रकार बजट वह अस्त्र है, जिसके द्वारा सरकार या संस्थाओं के कार्य पर नियंत्रण रखा जा सकता है।

पंचायत बजट क्या है


पंचायतों के लिए बजट उसके एक वित्तीय वर्ष के कार्यक्रम का दस्तावेज होता है। पंचायत का कोई भी व्यय बिना बजट के अनुमोदन के नहीं हो सकता है। इस प्रकार बजट पंचायतों के लिए एक ऐसा प्रस्ताव होता है जिसमें एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न मदों पर होने वाले व्यय तथा वित्त उपलब्ध कराने वाले साधनों की विवरणी होती है। अतएव पंचायत के सभी कार्यों एवं प्राप्तियों का आकलन बजट में किया जाता है।

पंचायत के लिए बजट क्यों आवश्यक है


प्रत्येक पंचायत को प्रभावशाली रूप में काम करने तथा अपने दायित्वों एवं कर्तव्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधन की जरूरत होती है। पंचायत को उन आवश्यक संसाधन को एकत्र करने के लिए एक प्रक्रिया के माध्यम से इजाजत लेती है और वह प्रक्रिया बजट होता है। इस प्रकार संसाधन को जुटाने एवं अपने व्ययों को पूरा करने के लिए पंचायत को बजट तैयार करना आवश्यक होता है।

बजट से पंचायत को क्या लाभ है


बजट से पंचायत को निम्नवत लाभ होता है :

1. पंचायतों को आर्थिक नीतियों को पालन करने में सहूलियत होती है।
2. उनका आर्थिक स्थिति आसानी से मालूम हो जाता है।
3. पंचायत में संभावित आर्थिक विकास का अनुमान भी बजट से लगाया जा सकता है।
4. पिछले वर्ष में प्राप्त आय एवं किए गए व्यय का वास्तविक स्थिति का पता चलता है।
5. अगामी वर्ष में प्राप्त होने वाले आय एवं होने वाले व्यय का अनुमान लग जाता है।
6. पंचायत में कार्यान्वित योजनाओं एवं कार्यक्रमों का प्रगति मालूम होता है।
7. कर लगाने में सहूलियत होती है।
8. पंचायत को अपना कार्य करने में सहयोग मिलता है।
9. पंचायतों को अपना राजस्व जुटाने में आसानी हो जाता है।
10. आय-व्यय घटाने एवं बढ़ाने में सहयोग मिलता है।

इस प्रकार बजट से पंचायत को आर्थिक विकास की प्रगति को आसानी से देखा जा सकता है।

बजट किस अवधि के लिए बनाया जाता है।


प्राकृतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर किसी भी देश के लिए एक वित्तीय वर्ष के लिए एक निश्चित अवधि तय की जाती है। हमारे देश में भी वित्तीय वर्ष की अवधि पहली अप्रैल से 31 मार्च तय की गई है। उल्लेखनीय है कि इस अवधि को सर्वप्रथम 1867 में अपनाया गया था। इसके पूर्व यह अवधि पहली मई ये 30 अप्रैल तक होती थी। 1967 में प्रशासनिक जांच आयोग ने वित्तीय वर्ष के अवधि की शुरुआत पहली अप्रैल के स्थान पर पहली नवंबर को करने का सुझाव दिया था, लेकिन कुछ कठिनाइयों के कारण सरकार ने इसे स्वीकार नहीं कर पाई। फलत: वर्तमान में वित्तीय वर्ष पहली अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि ही प्रचलन में है तथा इसी अवधि के लिए बजट बनाने का प्रावधान है और बनाया जाता है।

बजट के घटक या अवयव


सामान्यत: किसी भी बजट के दो मुख्य घटक होते है, पहला प्राप्तियां और दूसरा व्यय। पंचायत तैयार किए जानेवाले बजट का भी ये मुख्य घटक होते है।

(अ) प्राप्तियां - यह बजट का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होता है। इसमें एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले आय को रखा जाता है। उल्लेखनीय है कि पंचायतों को वर्तमान में अपना कोई आय का स्रोत नहीं है, उन्हें केंद्र या राज्य सरकार द्वारा फंड प्राप्त हो रहे है। वर्तमान में पंचायत को चार स्रोतों से वित्तीय सहायता प्राप्त हो रहे हैं।

1. पिछड़ा क्षेत्र अनुदान फंड (बीआरजीएफ)
2. तेरहवीं वित आयोग
3. चर्तुथ राज्य वित आयोग
4. मनरेगा।

बजट के प्राप्तियां पक्ष को दो भागों में विभाजित किया जाता है : एक राजस्व प्राप्तियां एवं दूसरा पूंजीगतप्राप्तियां।

राजस्व प्राप्तियां : इसमें वैसे आय के स्रोत को शामिल किया जाता है, जिसके संबंध में कोई भुगतान नहीं करना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि राजस्व प्राप्तियों से पंचायत के देयताओं में न तो वृद्धि होती है न ही परिसंपत्तियों में कमी आती है। इसी कारण राजस्व प्राप्तियों को आर्थिक क्रियाओं का प्रतिफल माना जाता है। इसके भी दो भाग होते है। पहला कर आय तथा दूसरा गैर कर आय। कर आय में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर से प्राप्त आय का प्रदर्शित किया जाता है, जबकि गैर कर आय में सेवाओं के बदले में लगाए गए कर एवं शुल्क को सम्मिलित किया जाता है।

संविधान के अनुच्छेद 40 में भी पंचायतों के शक्तियां एवं अधिकार का उल्लेख है तथा इसके लिए राज्य को निर्देशित किया गया है कि वे इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएंगे। 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों को अधिकाधिक सशक्त बनाने के लिए संविधान में प्रावधान किया गया है। इस संशोधन के तहत पंचायतों को 29 कार्य सौपें गए हैं तथा उसे संविधान के अनुच्छेद 243 (छ) में अंकित किया गया है। उल्लेखनीय है कि उन सभी कार्यों को संविधान के 11 वीं अनुसूची में रखा गया है।पंचायतों को कर से प्राप्त आय - 73वें संविधान संशोधन के तहत ग्राम पंचायत को कर लगाने की शक्तियां दी गई है। बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के धारा 27 में भी करारोपण का प्रावधान है। इस एक्ट के तहत पंचायत को होल्डिंग कर, संपत्ति कर (सभी आवासीय एवं वाणिज्यिक संपत्तियों पर), व्यावसायों एवं व्यापारों पर कर, जल कर, प्रकाश शुल्क, स्वच्छता शुल्क आदि लगाने एवं वसूलने की शक्तियां दी गयी है, लेकिन यह भी अधिनियमित किया गया है कि कर का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में पंचायत को टैक्स लगाने का अधिकार नहीं मिल पाया है। इस संबंध में सरकार द्वारा नियमावली नहीं बनाई गई है जिस कारण कर लगाने का अधिकार व्यावहारिक रूप धारण नहीं कर सका है।

पूंजीगत प्राप्तियां : इसमें वैसे प्राप्तियों को शामिल किया जाता है, जिससे पंचायत की देयताओं में बढ़ोतरी होती है तथा परिसंपत्तियों में कमी आती है, जैसे ऋण की वापसी, निवेश से प्राप्त आय आदि। उल्लेखनीय है कि ग्राम पंचायत हाट, बाजार, मेला आदि से राजस्व की उगाही कर सकते है लेकिन अभी यह प्रावधान व्यावहारिक रूप में नहीं है।

(ब) व्यय - बजट का दूसरा प्रमुख पक्ष व्यय होता है। इसमें वैसे सभी व्ययों को शामिल किया जाता है, जो पंचायत द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न योजनाओं, कार्यक्रमों एवं सेवाओं पर व्यय किया जाता है। इसे लोक व्यय भी कहा जाता है। बजट के व्यय पक्ष को दो भागों में बांटा जाता है। पहला राजस्व व्यय एवं दूसरा पूंजीगत व्यय।

संवैधानिक प्रावधान क्या है


संविधान के अनुच्छेद 40 में भी पंचायतों के शक्तियां एवं अधिकार का उल्लेख है तथा इसके लिए राज्य को निर्देशित किया गया है कि वे इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएंगे। 73वें संविधान संशोधन (24 अप्रैल 1993) द्वारा पंचायतों को अधिकाधिक सशक्त बनाने के लिए संविधान में प्रावधान किया गया है। इस संशोधन के तहत पंचायतों को 29 कार्य सौपें गए हैं तथा उसे संविधान के अनुच्छेद 243 (छ) में अंकित किया गया है। उल्लेखनीय है कि उन सभी कार्यों को संविधान के 11 वीं अनुसूची में रखा गया है। पंचायतों को सौपें गए 29 कार्यों में से वार्षिक बजट बनाना एक मुख्य कार्य है। ग्राम पंचायत द्वारा बनाए जाने वाले वार्षिक बजट पर विचार-विमर्श कर सिफारिश करना ग्राम सभा का कार्य निर्धारित किया गया है। ग्राम सभा में वार्षिक लेखा-जोखा, वार्षिक बजट एवं गत वर्ष का विभिन्न कार्यक्रमों पर किए गए व्यय पर चर्चा ग्राम सभा में करने का प्रावधान है।

बिहार पंचायती राज एक्ट


2006 के तहत प्रावधान बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के धारा 29 में ग्राम पंचायत के बजट तैयार करने का प्रावधान है। इस धारा में उल्लेखित किया गया है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत अपना वार्षिक बजट अर्थात आय-व्यय का वार्षिक बजट तैयार करेगी और उसे ग्राम सभा के बैठक में अनुमोदित कराएगी। उल्लेखनीय है कि वार्षिक बजट के अनुमोदन के लिए बैठक में 50 प्रतिशत सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए। अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि बजट और लेखा नियमावली के गठन होने तक बिहार ग्राम पंचायत लेखा नियमावली 1949 के तहत अगले वित्तीय वर्ष के लिए फार्म संख्या छह में पंचायत का प्राक्कलन तैयार किया जाएगा तथा बजट प्रतिवर्ष 15 फरवरी तक अनुमोदित कराया जाएगा। इसी तरह एक्ट के धारा 57 में पंचायत समिति तथा धारा 84 में जिला परिषद के लिए बजट बनाने का प्रावधान है।

पंचायत के बजट में निम्नवत मुख्य होते है-

1. इसमें विगत वर्ष के वास्तविक आय और व्यय का पुनरावलोकन होता है।
2. वर्तमान वर्ष के लिए आय और व्यय का प्राक्कलन होता है।
3. अगामी वर्ष के लिए आवश्यकताओं के पूरा करने का प्रावधान होता है।

उल्लेखनीय है कि बजट प्राक्कलन में राजस्व व्यय, पूंजी व्यय और ऋण पर होने वाले व्यय को अलग-अलग प्रदर्शित किया जाता है।

बजट बनाना एक तकनीक है


बजट बनाने के लिए ग्रामसभा को तकनीकी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। बजट को दो भागों में बांटना चाहिए। पहला राजस्व व्यय और दूसरा पूंजीगत व्यय।

राजस्व व्यय : चालू व्ययों को पूरा करने के लिए किए जाने वाले व्यय तथा विकास कार्यों पर होने वाले व्यय को राजस्व व्यय में शामिल किया जाता है। इसमें पंचायत द्वारा निम्नवत मद पर किए गए व्यय को शामिल किया जाना चाहिए-

1. सरकारी सेवाओं पर होने व्यय।
2. सब्सिडी पर व्यय।
3. ब्याज पर किया गया व्यय।
4. सामाजिक एवं सामूहिक सेवाओं पर किया गया व्यय।
5. कृषि एवं सिंचाई पर व्यय।
6. विद्युत पर व्यय।
7. सूखाराधन एवं बाढ़ नियंत्रण आदि पर व्यय।
8. मनरेगा योजना के तहत इन कार्यों पर किए गए व्यय को राजस्व व्यय में सम्मिलित करना चाहिए।
9. जल सरंक्षण एवं जल संचय से संबंधित योजना।
10. सूखा से बचाव के लिए किया गए वनारोपण।
11. सिंचाई के लिए सूक्ष्म और लघु सिंचाई परियोजना सहित नहर निर्माण।
12. तालाब निर्माण।
13. भूमि विकास।
14. परंपरागत जल निकायों का जीर्णोंद्धार।
15. बाढ़ नियंत्रण एवं सुरक्षा परियोजनाएं।
16. कृषि से संबंधित कार्य जैसे एनइडीपी कंपोस्टिंग, वर्मी कंपोस्टिंग, जैव खाद आदि।
17. पशुधन संबंधी कार्य यथा मुर्गीपालन शेल्टर, बकरी शेल्टर, मवेशयों के लिए फर्श निर्माण, यूरीन टैंक एवं नाद का निर्माण आदि।
18. मत्स्य पालन संबंधी कार्य।

वर्तमान में ये सभी कार्य पंचायतों द्वारा किए जा रहे हैं। इसलिए बजट बनाते समय उन पर किए गए व्यय को राजस्व व्यय में दिखाया जाना चाहिए।

पूंजीगत व्यय - इसमें वैसे व्यय को सम्मिलित किया जाता है, जिससे कोई नयी परिसंपत्ति सृजित होती है तथा उसका लाभ कई वर्षों तक मिलता है। वर्तमान में पंचायत में बीआरजीएफ, मनरेगा, तेरहवीं वित एवं चर्तुथ राज्य वित आयोग के तहत स्थायी परिसंपतियों के सृजन के उद्देश्य से बड़े पैमाने पर कार्य कराए जा रहे हैं यथा। ये कार्य है-

1. आंगनबाड़ी केंद्र भवनों का निर्माण।
2. पंचायत सरकार भवनों एवं मनरेगा भवनों का निर्माण।
3. प्रखंड-सह-अंचल कार्यालय एवं आवासीय भनवनों का निर्माण तथा उनका रख-रखाव का कार्य।
4. खेल मैदानों का निर्माण।
5. व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालय, विद्यालयी शौचालय, आंगनबाड़ी शौचालय का निर्माण।

अतएव इन कार्यों पर होने वाले व्यय को बजट बनाते समय पूंजीगत व्यय के अंतर्गत शामिल किए जाने चाहिए। इसके अलावा बजट के अंतर्गत व्ययों को आयोजना एवं गैर आयोजना व्यय में बांटा जा सकता है, जिसमें इन्हें शामिल किया जाना चाहिए।

आयोजना व्यय : कर्मचारियों का वेतन, पेंशन एवं भत्ता, कार्यालय पर किए गए व्यय, सामाजिक-आर्थिक एवं कल्याण से संबंधित योजनाओं पर किया गया व्यय।

गैर आयोजना व्यय : ब्याज की अदायगी, न्यायालय से संबंधित व्यय, प्राकृतिक आपदा के अवधि में किया गया व्यय।

बजट के प्रकार


बजट निम्नवत प्रकार के हो सकते हैं।

पारंपरिक बजट : बजट के प्रारंभिक स्वरूप को पारंपरिक बजट कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी व्ययों पर नियंत्रण करना होता है। विकास का स्वरूप क्या हो इसका उल्लेख नहीं रहता है। इस कारण वर्तमान इस प्रकार के बजट प्रचलन में नहीं है।

पंचायतों को बजट बनाते समय इन स्वरूपों में से अंतिम दो स्वरूपों को अपनाया जा सकता है। इससे पंचायत को विकास कार्यों से संबंधित रणनीति बनाने में सहूलियत होगी। उल्लेखनीय है कि बजट वर्तमान योजनाओं के नवीनीकरण और समीक्षा का मौका देता है ताकि सही दिशा में व्यय हो सके। अतएव पंचायतों को भी विकासात्मक स्वरूप को अपनाना चाहिए। निष्पादन बजट : जब कार्य या परिणाम या लक्ष्यों को प्राप्ति के आधार पर बजट बनाया जाता है ,तो उसे निष्पादन बजट कहा जाता है। इसमें आय-व्यय के लेखा-जोखा होने के साथ कार्य निष्पादन के मूल्यांकन का आधार बनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि प्रथम हूपर आयोग ने सर्वप्रथम 1949 में इस प्रकार के बजट की अनुशंसा की थी।

पूंजी बजट : इस प्रकार के बजट में केवल पूंजीगत प्राप्तियों एवं व्ययों को ही शामिल किया जाता है।

आउटकम बजट : इस प्रकार के बजट में भौतिक लक्ष्यों का निर्धारण गुणवत्ता को ध्यान में रख कर किया जाता है। कार्य निष्पादन हेतु निर्धारित राशि को सही समय, सही गुणवत्ता तथा सही मात्रा में उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है, उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के बजट सबसे पहले 2005 में बना था।

शून्य आधारित बजट : ऐसे बजट में प्रस्तावित व्ययों के प्रत्येक मदों को एक नई मद मानकर प्रदर्शित किया जाता है। अर्थात प्रत्येक मद को शून्य मान कर उसे मूल्यांकित किया जाता है तथा सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का मूल्यांकन या समीक्षा गहनता से की जाती है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार के बजट की शुरुआत सर्वप्रथम 1986-87 के बजट से किया गया था।

जेंडर बजट : जब बजट को लिंग विशेष के आधार पर तैयार किया जाता है, तो उसे जेंडर बजट कहा जाता है। सामान्यत: इस प्रकार के बजट में महिलाओं के लिए अलग से रणनीति तैयार किया जाता है। उनके विकास, कल्याण और सशक्तीकरण से संबंधित योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लिए एक निश्चित धन राशि की व्यवस्था की जाती है।

पंचायतों को बजट बनाते समय इन स्वरूपों में से अंतिम दो स्वरूपों को अपनाया जा सकता है। इससे पंचायत को विकास कार्यों से संबंधित रणनीति बनाने में सहूलियत होगी। उल्लेखनीय है कि बजट वर्तमान योजनाओं के नवीनीकरण और समीक्षा का मौका देता है ताकि सही दिशा में व्यय हो सके। अतएव पंचायतों को भी विकासात्मक स्वरूप को अपनाना चाहिए।

बजट का दृष्टिकोण स्पष्ट कर देना चाहिए त्रकर लगाने और वसूली के लिए नीति निर्धारित होनी चाहिए। हालांकि अभी कर का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है।

बजट का दृष्टिकोण स्पष्ट कर देना चाहिए


1. कर लगाने और वसूली के लिए नीति निर्धारित होनी चाहिए। हालांकि अभी कर का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है।
2. प्राथमिकताओं को सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। इसके लिए आम जनता की आवश्यकता को ध्यान में रखना चाहिए।
3. बजट में सामाजिक-आर्थिक प्रक्षेत्र के अनुसार व्यय का प्रावधान करना चाहिए यथा कृषि, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि।
4. संविधान द्वारा प्रदत्त 29 विषयों को ध्यान में रखना चाहिए।
5. बजट का प्राक्कलन तैयार करते हेतु किसी लेखा या बजट के जानकार से अवगत हो लें।
6. संसाधन के मद्देनजर ही अगामी वर्षों के लिए आवश्यकताओं को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए।
7. ग्राम सभा में बजट पर अवश्य चर्चा की जाए।

पंचायत बजट का प्रभाव


पंचायत द्वारा निर्मित किए जाने वाले बजट का प्रभाव निश्चित रूप से पंचायत के आर्थिक विकास एवं उनके आर्थिक क्रियाओं पर पड़ता है। विकासात्मक कार्यों पर किए गए व्यय आम जनता को प्रभावित करती है। पंचायत के बजट से सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों को बनाने में मदद मिलेगी। सरकार पंचायत बजट के आधार पर अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा सुनिश्चित कर सकती है। पंचायतों में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक विषमता को दूर करने तथा त्वरित गति से विकास को भी बजट प्रभावित करता है। इससे पंचायतों में सामाजिक-आर्थिकस्थायित्व आएगा।

बजट निर्माण में पंचायत के समक्ष चुनौतियां


1. ग्राम पंचायत को अपना बजट बनाने, उस पर चर्चा करने तथा उसे अनुमोदित करने के लिए प्रावधान है। वे अपना आय-व्यय का वाक आकलन कर सकती है। लेकिन पंचायत को बजट निर्माण के समक्ष कई चुनौतियां है, जिसके कारण यह व्यावहारिक रूप में अमल में नहीं है।
2. पंचायतों को कोई अपना आय का स्रोत नहीं है।
3. टैक्स लगाने एवं वसूलने के संबंध में नियमावली नहीं बनने से उन्हे इसे संबंध में अधिकार प्राप्त नहीं हो पाई है।
4. पंचायतों में राजस्व उगाही का साधन यथा हाट, बाजार, मेला वाहन स्टैंड आदि सीमित है, जिसके कारण आय को वे नहीं बढ़ा सकते है।
5. पंचायतों के पास वैसे कर्मियों की कमी है, जिनसे बजट का निर्माण कराया जा सके। हालांकि सरकार इस दिशा में प्रयासरत है।
बजट की तैयारी ऐसे करेंवर्तमान में पंचायतों द्वारा वार्षिक कार्य योजना तैयार किया जाता है तथा उसे ग्राम सभा से अनुमोदित कराया जाता है। अनुमोदित वार्षिक कार्य योजना के अनुरूप ही पंचायतों द्वारा कार्यों को क्रियान्वित किया जाता है। पंचायतों द्वारा बनाया जाए, यह व्यवहार में नहीं है। फिर भी सरकार द्वारा इस संबंध में नियमावलियां बनाई जाती है, तो पंचायतों को वार्षिक बजट बनाते समय निम्नवत को ध्यान में रखना चाहिए।

बजट का निर्माण निर्धारित तिथि को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि बजट प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी तक ग्राम सभा से अनुमोदित हो जानी चाहिए। गत वर्ष की प्राप्तियों (राजस्व एवं पूंजीगत) एवं व्ययों (राजस्व एवं पूंजीगत) का वास्तविक आंकड़े को संकलित कर लेना चाहिए।

चूंकि बजट में आय और व्यय बजट वर्ष के लिए अनुमानित होते है। अतएव बजट तैयार करने से पूर्व ही वर्षवार आय- व्यय को तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए विगत वर्षों के आंकड़ों को ध्यान में रखना चाहिए।

गत वर्ष के अंकेक्षण प्रतिवेदनों में अंकित आंकड़ों को दृष्टिगत रखना चाहिए, क्योंकि अंकेक्षण प्रतिवेदन पंचायत के वित्तीय स्थिति को प्रकट करता है। वर्षवार सभी लेन-देन की विवरणी बना लेनी चाहिए।

(लेखक डीआरडीए, सीतामढ़ी में लेखा पदाधिकारी हैं)

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