पलकमती सर्वे के दौरान मनोज के अनुभव

कहते हैं कि जल ही जीवन है लेकिन हम इस पर विचार नहीं करते क्योंकि पलकमती नदी के सर्वे के दौरान ग्रामीण लोगों से मिलने और उनसे बात करने में लगा कि जो व्यक्ति वन क्षेत्र में निवास करते वह पूरी तरह से नदी के जल पर निर्भर हैं, लेकिन अपने गांव के किनारे से बहने वाली नदी का आज जो हाल है उसके बारे में जरा सा ध्यान नहीं है। वहीं एक तरफ अगर हमने मैदानी क्षेत्र वाले ग्रामीण व्यक्तियों से नदी के बारे में जानकारी ली और उनके मन में नदी को बचाने का विचार तो हैं, लेकिन उन्हें सही दिशा और मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है, किंतु जब तक उनको कोई मंच नहीं मिल जाता वह कुछ नहीं कर सकते।

जब हमने सर्वे के दौरान किसी बुजुर्ग व्यक्ति से बात की तो उनके द्वारा बताया गया कि-पहले नदी में इतनी रेत रहती थी कि हमें नदी की रेत पार करने में समय लग जाता था लेकिन अब नदी में रेत शेष नहीं हैं। रेत की जगह पत्थर और काँटे रह गये हैं। वह बात तो अब एक अच्छे सपने की तरह रह गई है। सर्वे के दौरान हमें जीव-जंतु और वनस्पति के नाम सुनने को मिले जो कभी नदी में और नदी के किनारे रहते थे जो हमने कभी नहीं देखे। हमने तो उनके नाम सुन लिए लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी शायद उनके नाम भी नहीं सुन पायें इस बात पर हम सबको विचार करना चाहिए।

जिस तरह हमारी मां पालती हैं और पढ़ा-लिखा, खिला-पिला कर बड़ा करती हैं। इनकी बहुत सी आशाएं हमसे जुड़ी होती हैं कि हमारा बच्चा बड़ा होकर हमारा सहारा बनेगा और हम उनका सहारा बनते हैं, उसी प्रकार हमारी नदी (मां) ने हमसे बहुत सी उम्मीद जोड़ी होंगी की- मैं जिनके लिए पीने के लिए पानी, खेती के लिए पानी और रोज़गार देती हूं वह मुझे भी कुछ देंगे- लेकिन हमने उन्हें क्या दिया? इस पर विचार करना होगा। हमने नदी को ही गंदी नाली, कचरा, काँटे, मिट्टी, गंदगी से भर दिया है। उस नदी मां पर क्या बीत रही होगी? अगर अभी हमने अपने कदम नहीं बढ़ाए तो एक दिन सब खत्म हो जाएगा और रह जाएगा एक सुंदर सपना। जो नदी हमारे शहर, गांव की सुंदरता को बढ़ती हैं और जीव-जंतु, जानवरों और वनस्पति को पालती हैं वह एक नाली के समान बन जाएगी।

इस पर बहुत जल्दी विचार करने कि आवश्यकता है तथा उस विचार को परिलक्षित करने की आवश्यकता है वरना पलकमती सूखने बर्बाद होने के साथ ही इसका प्रतिकूल प्रभाव नर्मदा नदी पर भी पड़ेगा-इसलिए इस पर गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता हैं।

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