पिंडर को अविरल बहने दो

pindar river
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पिंडर नदीपिंडर नदी विकास चाहिये विनाश नहीं, हमने बांध रोका है जनसुनवाई धोखा है, पिंडर को अविरल बहने दो, जैसे नारों के साथ अल्मोड़ा-ग्वालदम रोड के नीचे पिंडर नदी के किनारे कुलसारी मैदान में लोग उतर रहे थे। यहां उत्तराखंड के चमोली जिले में पिंडर नदी पर प्रस्तावित देवसारी जल-विद्युत परियोजना (252 मेगावाट) पर उत्तराखण्ड राज्य पर्यावरण संरक्षण एवम् प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जन सुनवाई का आयोजन किया गया था। देखने में पंडाल किसी बड़ी शादी के आयोजन जैसा दिखता था।देवाल संघर्ष समिति, माटू जनसंगठन, नवयुवक मंगलदल, देवसारी आदि के बैनरों के साथ अन्य क्षेत्रों से भी लोग पहुंचे थे। परन्तु लोगों से बात करने के बजाय सभी अधिकारी वहां से चले गये। इस पर कुछ लोगों ने पंडाल की सारी कुर्सियां हटा दी और मंच भी अव्यवस्थित कर दिया। संगठनों के लोग पंडाल के बाहर आकर बैठ गये और देखते-देखते वहां एक सभा शुरू हो गई।

इस सभा में क्षेत्र के सारे जनप्रतिनिधियों व जनसंगठनों के लोगों ने एक स्वर में कहा कि हमें बांध नहीं चाहिए। जन सुनवाई का समय 11 से 2 बजे तक था। परंतु दोपहर 2 बजे तक जब कोई नतीजा नहीं निकला और कोई भी अधिकारी पंडाल के बाहर में बैठे जन-समुदाय तक नहीं पहुंचा तो हम पंडाल के अंदर गये। हमने वहां बैठे उत्तराखण्ड राज्य पर्यावरण संरक्षण एवम् प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों से पूछा कि आपने जन सुनवाई के बारे में क्या निर्णय लिया? इस पर प्रत्युत्तर में अधिकारी श्री वी. के. जोशी ने कहा कि हम जनसुनवाई निरस्त होने का पत्र तैयार कर रहे हैं। ऐसा निर्णय उत्तराखंड में पहली बार लिया जा रहा था। इससे पहले भी बोर्ड ने लोगों के विरोध और बहिष्कार के बावजूद जनसुनवाई को शाब्दिक अर्थों में सही बताते हुये कार्यवाही पूरी की थी। धौलीगंगा पर लाता-तपोवन, भागीरथी नदी पर पाला-मनेरी, कोटली भेल के संबंध में जन सुनवाई इसके उदाहरण हैं।

हमने बोर्ड के अधिकारियों एवं जनसुनवाई पैनल के दूसरे सदस्य सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट को धन्यवाद दिया और उन्हें एक कागज पकड़ाया जिस पर वो तर्क लिखे थे जिनके आधार पर हम बांध का विरोध कर रहे थे। उन्हें बताया गया कि पांच अक्टूबर को क्षेत्र के तमाम जन प्रतिनिधियों/जनसंगठनों के द्वारा पत्र लिखकर सरकार को सूचित कर दिया गया था कि हम इस बांध का विरोध कर रहे हैं।यह जन सुनवाई प्रभावित क्षेत्र से दूर रखी गई थी। इस कारण प्रभावित जनता उस जगह तक नहीं पहुंच सकी थी। इतना ही नहीं हमने बोर्ड के अधिकारी वी. के. जोशी को भी फोन के द्वारा जानकारी दी थी कि इस जनसुनवाई को परियोजना स्थल से दूर रखना सतलुज जल-विद्युत निगम की चाल है, ताकि प्रभावित लोगों को इसकी जानकारी न हो पाये और वो यहां विरोध के लिए न आ सकें।जब इस परियोजना के बारे में लोगो को जानकारी नहीं है और लोगों को इस परियोजना का सामाजिक-आर्थिक सर्वे नहीं करने दिया है तो फिर पर्यावरण प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्ट कैसे पूरी की गई? बिना सही व पूरे सर्वे और बिना सही आंकड़ों के बनाई गई पर्यावरण प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्ट पर जनसुनवाई होना गैरकानूनी है। यह 14 सितम्बर 2006 को जारी केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मंत्रालय की अधिसूचना के खिलाफ है।

पिंडर नदी घाटी बहुत शांत, सुंदर व सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध है। यहां के स्वच्छ पर्यावरण में लोग आंनद से रहते हैं। इस परियोजना के अंतर्गत बनने वाले इस बांध और इसके बाद बनने वाले बांधों से यह नदी समाप्त हो जायेगी जो सदियों से घाटी को पाल रही है।बांध प्रभावितों को आज भी पर्यावरण प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्ट आदि की जानकारी नहीं है। परियोजना के कागजात अंग्रेजी में हैं जिसे यहां की जनता पढ़ नहीं सकती। इस कारण उन्हें असलियत का पता ही नहीं चलता। जिला मुख्यालय गोपेश्वर में है जो कि देवाल/पैठानी से 108/90 किमी दूर है। जहां जाने में दो दिन का समय और सैकड़ों रुपये की आवश्यकता होती है। आखिर दूरस्थ इलाकों मे रहने वाले ग्रामीण इन कागजो को कैसे पढ़ें जो अंग्रेजी में होते हैं? इसका पूरा-पूरा फायदा निगम ने उठाया है।

आखिर सतलुज जल-विद्युत निगम ने जहां लाखों रुपये जनसुनवाई के लिए खर्च किए वहीं उसका बहुत थोड़ा सा हिस्सा कागजातों को हिन्दी में अनुवाद करवाने के लिए भी हो सकता था। लेकिन उसने नहीं किया। क्यों? क्योंकि पूरी जानकारी लोगो को हिन्दी में देने से सरकार डर रही थी। इस कारण डर रही थी कि लोग सच्चाई जानेंगे तो बांध का विरोध और जोरदार तरीके से करेंगे।

कागताज इसलिए भी छुपाये गये क्योंकि उनको सामने लाने से पूरे देश को मालूम पड़ जायेगा कि जनता के विरोध के बावजूद भी कैसे ये गलत रिपोर्टे बनाई गईं हैं। रिपोर्टे बनाने वाली वाप्कोस संस्था पहले ही अनेक बांधों की गलत-सलत पर्यावरण प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्ट बनाने के लिये बदनाम रही है। बांध के दुष्प्रभावों को छिपाकर बांध के पक्ष में कागजात तैयार करती रही है जबकि उसे पूरी तरह निष्पक्ष होकर ये रिपोर्ट बनानी चाहिये थीं। इस कारण कई मुकदमें उन बांधों पर चल रहे हैं।

अक्तूबर के शुरु में माटू जनसंगठन ने वहां के क्षेत्रों में जाकर जनसुनवाई की सही जानकारी दी। उसके पहले क्षेत्र की जनता को पता नहीं था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्ट क्या होती है?

पिंडर नदी घाटी बहुत शांत, सुंदर व सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध है। यहां के स्वच्छ पर्यावरण में लोग आंनद से रहते हैं। इस परियोजना के अंतर्गत बनने वाले इस बांध और इसके बाद बनने वाले बांधों से यह नदी समाप्त हो जायेगी जो सदियों से घाटी को पाल रही है। इतना ही नहीं पिंडर नदी से लोगों का सांस्कृतिक रिश्ता है। इसके पूर्व में कैल नदी पर बने चमोली हाइड्रो प्रोजेक्ट के कारण लगभग सूख सी गई कैल नदी और उसमें परियोजना का बहता प्रदूषण एक दु:स्वप्न है।

यहां त्रिवेणी में ब्रह्मकपाली है जो कि एक बड़ी शिला के रूप में यहां विद्यमान है। कैल व पिंडर नदी ब्रह्मकपाली को छूती हुई बहती हैं। हिमालय से नन्दा घुघटी की गुप्त धाराएं निकलती हैं। इनमें से एक धारा जिसे कैल नदी कहते हैं कलुवा विनायक में जा मिलती है। कलुवा विनायक को लोग काली का रूप मानते हैं। एक दूसरी धारा पिण्डारी ग्लेशियर से निकलती है। इसी वजह से इस नदी को पिण्डेश्वरी गंगा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यह ग्लेश्यिर मां भगवती के पिण्ड से प्रकट हुआ था। ये दोनों नदियां देवाल में तिनुड़ा गांव के निकट मिल जाती हैं। यहां पर गुप्त सरस्वती छोटी धारा के रूप में इनसे मिलती है। जिस कारण यह स्थान त्रिवेणी नाम से विख्यात है।

इन दोनों नदियों का धार्मिक इतिहास रहा है। केवल इन नदियों का ही क्यों, उत्तरांचल के हर गांव का एक इतिहास है। बांध को स्वीकृति देने का मतलब है यहां की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को नष्ट करना। बांध बनने से यहां के वन काटे जायेंगे। इस क्षेत्र में सतावर, दारू हल्दी, लता कस्तूरी, कपूर, कचरी, तिमुर, सीवाई, पीपरमेन्ट, पोदीना, शालम, मिश्री, वन प्याज, बला, अति बला, शंखपुष्पी, इन्द्राणी, काघजंघा, गरुण पंजा आदि अनेक प्रकार की बहुमूल्य जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। अगर यहां बांध बनता है तो ये औषधियां नष्ट हो जायेंगी। इस परियोजना से अनेक पशु-पक्षी, एक कोशकीय एवं बहुकोशकीय जीव नष्ट हो जायेंगे। सरकार को चाहिये कि क्षेत्र की जनता और जन्तुओं के हित को देखते हुए इस परियोजना को तत्काल बंद कर दे।

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