पहली राष्ट्रीय बाढ़ नीति

इस नीति में कुल मिला कर पिछले लगभग 100 वर्षों से चली आ रही बहस का तर्पण कर दिया गया था। तटबंध जो अब तक आँख की किरकिरी थे उनकी जगह पलकों पर बनने लगी। अब तक जो कुछ भी चिन्तन चल रहा था वह बाढ़ को जल-निकासी की समस्या के रूप में देखता था। सभी सम्बद्ध पक्षों को इस बात का इन्तजार रहता था कि बाढें आयें और जितना जल्दी हो सके चली जायें मगर अब जो कुछ भी प्रस्तावित हो रहा था उसके अनुसार बाढ़ आने ही नहीं दी जायेगी।

राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार तत्कालीन केन्द्रीय योजना और सिंचाई मंत्री गुलजारी लाल नन्दा ने 3 सितम्बर 1954 को लोकसभा में बाढ़ से पैदा हुई समस्याओं और उनके निदान के स्वरूप पर एक वक्तव्य दिया जिसे सम्भवतः बाढ़ नीति सम्बन्धी स्वतंत्र भारत का पहला वक्तव्य कहा जा सकता है जबकि 1953 तथा 1954 की प्रचण्ड बाढ़ों ने काफी चिन्ताजनक परिस्थिति पैदा कर दी थी। नन्दा ने अपने बयान में कहा था कि ‘‘बहरहाल, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की सुरक्षा का इतना अधिक महत्त्व है कि हमें उन तरीकों को चुनना पड़ेगा जो उद्देश्य को प्राप्त करने के साथ-साथ शीघ्रतापूर्वक अपनाये जा सकें। इन अर्थों में एक कार्यक्रम को अपनाने पर विचार किया जा रहा है। यह तीन चरणों में विभाजित है।

(क) तात्कालिक-


पहला चरण 2 वर्षों की अवधि तक का होगा। इस अवधि को गहन अन्वेषणों और आँकड़े एकत्रित करने में लगाया जायेगा। बाढ़ नियंत्रण के लिए अल्पकालीन उपायों के लिए विस्तृत योजनायें बनाई जायेंगी तथा अभिकल्पों एवं अनुमानों को तैयार किया जायगा। निवेशों, स्परों और यहाँ तक कि तटबन्धों के निर्माण के उपाय चुने हुये स्थलों में तत्काल लागू किये जायेंगे।

(ख) अल्पावधिक-


दूसरे चरण के दौरान, जो दूसरे वर्ष से आरंभ होकर 6 वें अथवा 7वें वर्ष तक का होगा, तटबन्धों और चैनेल सुधारों जैसे बाढ़ नियंत्रण के उपाय किये जायेंगे। इस प्रकार की सुरक्षा को इस समय बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में बृहत भाग पर लागू किया जायगा।

(ग) दीर्घकालिक-


तीसरा चरण, जहाँ आवश्यक हो, कुछ नदियों की सहायक नदियों पर भंडारण जलाशयों तथा अतिरिक्त तटबन्धों के निर्माण जैसे चुने हुये दीर्घावधि उपायों से सम्बन्धित होगा। इनमें तीन से पाँच वर्ष का और समय लग सकता है।

किसी एक उपाय में बाढ़ों की समस्या का कोई पूर्ण समाधान नहीं मिल सकता। यदि कोई उचित हल ढूँढ़ना है तो प्रत्येक मामले पर इसके गुणावगुणों के आधार पर विचार करना पड़ेगा तथा कोई एक उपाय अथवा अनेकों उपाय के एक समूह को अपनाना पड़ेगा।”

इस तरह से 7 वर्ष के अन्दर सभी अल्पावधिक और तात्कालिक काम पूरे कर लिए जाने का प्रस्ताव था। यह कितना व्यावहारिक था इस पर एक टिप्पणी लोकसभा में एन. वी. गाडगिल ने की थी। (11 सितम्बर 1954)। उनका कहना था कि, “...मैं अपने मित्र नन्दा जी की आशावादिता से सहमत नहीं हूँ कि वह सात साल के अन्दर बाढ़ समस्या से निबट लेंगे। अगर हम दोनों जि़न्दा रहते हैं तो मैं उन्हें चौदह साल के बाद जरूर बधाई दूँगा कि हमने इस दिशा में एक अच्छा खासा काम कर लिया है।”

इस प्रकार 1954 में शुरू हुए बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम में आने वाले 14-15 वर्षों में प्रभावी रूप से बाढ़ पर काबू पा लेने का इरादा जाहिर निर्मली के निकट कोसी परियोजना का शिलान्यास स्थल किया गया था। इस नीति के पालन करने के ध्येय से क्रेन्द्र तथा राज्य सरकारों की तरफ से आँकड़ों के संकलन की दिशा में काफी काम किया गया, कई तटबंध बनाये गये तथा चैनेल सुधार और नगर रक्षा का काम भी हाथ में लिया गया और पूरा किया गया। परन्तु 1954 की बाढ़ नीति सम्बन्धी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के दो वर्ष के अन्दर ही 27 जुलाई 1956 को गुलजारी लाल नन्दा द्वारा जो बयान लोकसभा में दिया गया था उसकी भाषा थोड़ी नर्म हो गई थी जब यह कहा गया कि “...अंत में मैं विनम्रतापूर्वक यह बताना चाहूँगा कि हाँलाकि बाढ़ों से प्रति वर्ष उत्तरोत्तर अधिकाधिक सुरक्षा प्राप्त हो जाएगी, लेकिन हम आने वाले वर्षों में यह आशा नहीं कर सकते कि हम बाढ़ के खतरों से पूर्णतया सुरक्षित होकर भाग्यशाली स्थिति में आ जायेंगे। हमें एक सीमा तक बाढ़ों के साथ जीवन निर्वाह करना सीखना होगा। ...तथापि हम बाढ़ों को अधिक रोकने में समर्थ होंगे और बाढ़ों से होने वाली क्षति और तबाही से अपने आप को बचाने के लिए सभी सम्भव उपाय करेंगे।”

इस नीति में कुल मिला कर पिछले लगभग 100 वर्षों से चली आ रही बहस का तर्पण कर दिया गया था। तटबंध जो अब तक आँख की किरकिरी थे उनकी जगह पलकों पर बनने लगी। अब तक जो कुछ भी चिन्तन चल रहा था वह बाढ़ को जल-निकासी की समस्या के रूप में देखता था। सभी सम्बद्ध पक्षों को इस बात का इन्तजार रहता था कि बाढें आयें और जितना जल्दी हो सके चली जायें मगर अब जो कुछ भी प्रस्तावित हो रहा था उसके अनुसार बाढ़ आने ही नहीं दी जायेगी। उसे या तो नई तकनीक के तहत बड़े बाँध बना कर रोक दिया जायेगा या फिर तटबंध बना कर उनके बाहर के इलाकों को सुरक्षित रखा जायेगा।

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Post By: tridmin
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