आज देश में जहां एक ओर शहरों को ‘‘स्मार्ट सिटी’’ और गांवों को ‘‘स्मार्ट गांव’’ बनाया जा रहा है, तो वहीं देश के करीब एक लाख गांव विकास की मुख्यधारा से दूर हैं। यहां लोगों के पास जीवनयापन तक के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं। ये लोग पीने के पानी से लेकर भोजन और बिजली तक के लिए मोहताज हैं। रोजगार के अभाव में बच्चें शिक्षा से वंचित हैं। नेता और मंत्री तो दूर गांव में अभी सड़क तक नहीं पहुंची है। पेयजल की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण कई गांवों के लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। विकास की पहुंच से दूर होने के कारण कोई इस गांव में शादी नहीं करता है, जिस कारण गांव में आखिरी शादी 22 साल पहले हुई थी। इन एक लाख गांवों पर न तो कभी दिल्ली के वातानुकुलित दफ्तरों में बैठकर योजनाएं तैयार करने वाली सरकार की नजर गई और न ही लाखों रुपये वेतन लेने वाले प्रशासनिक अधिकारियों की। नजीतजन विश्वगुरु बनने का सपना देख रहे भारत देश में इन गांवों के लोग दयनीय परिस्थिति में जिंदगी जी रहे हैं। इन्हीं गांव में से एक राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर चंबल नदी के किनारे बसा लगभग 350 की आबादी वाला ‘राजघाट’ है। राजघाट कोई स्वघोषित गांव नहीं बल्कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वुसंधरा राजे सिंधिया के गृहक्षेत्र धौलपुर की नगर परिषद के वार्ड 15 का हिस्सा है। ताज्जुब की बात ये है कि इस गांव की तरफ कभी विकास की नजर नहीं पड़ी, लेकिन एक युवा डाॅक्टर के प्रयासों ने गांव को बिजली से रोशन कर दिया और लोग को साफ पानी मिला।
राजस्थान के धौलपुर निवासी अश्विनी पाराशर वर्ष 2016 में जयपुर के सवाई मानसिंग मेडिकल काॅलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे। हर हिंदुस्तानी की तरह घर जाकर दीपावली मनाने का मन किया, तो छुट्टियों में घर आ गये, लेकिन इस बार दीवापली पर अन्य वर्षों से कुछ अलग ही करने का मन कर रहा था। कुछ ऐसा जिसे करके दिल को सुकून मिले, तो दोस्तों के साथ उन गरीब परिवारों के साथ दीपावली मनाने का निर्णय लिया, जिनके आंगन से दीपावली की रोशनी कोसो दूर थी। अश्विनी ने दोस्तों के साथ मिलकर पैसे इकट्ठे किये, कुछ मिठाइयां, कपड़े, पटाखे और किताबे साथ लीं और चली दिए राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर बसे राजघाट गांव की तरफ। गांव की पहुंच सड़क से काफी दूर होने के कारण ये लोग कच्चे रास्तों को पार करते हुए राजघाट पहुंचे, लेकिन यहां लोगों की स्थिति सभी की कल्पना से परे थी। ग्रामीणों को जैसे ही मिठाइयां और कपड़े आदि बांटने शुरू किए तो, छीना झपटी शुरू हो गई। अश्विनी ने जब गांव का मुआयना कर लोगों से बात की तो पता चला कि गांव में बिजली और पानी की कोई सुविधा नहीं है। पेयजल के लिए सभी ग्रामीण चंबल नदी के पानी पर ही निर्भर हैं, जिसमें अधिकतर समय जानवरों और इंसानों की लाशें बहकर आती है। हालाकि गांव में एक हैंडपंप है, लेकिन उसमे खारा पानी आता है, जिसे पीने के उपयोग में नहीं लाया जा सकता। पानी का कोई विकल्प न होने के कारण ग्रामीण लाश को हटाकर पीने का पानी भरने को मजबूर हैं। घड़ियाल अभयारण्य इलाका होने के कारण नदी के किनारे से थोड़ी दूर जाकर पानी भरने में खतरा रहता है। गांव के कई युवा घडियाल और मगरमच्छों का शिकार बन चुके हैं। स्वास्थ्य सुविधा और राशन की दुकान तो दूर सर्व शिक्षा अभियान और शिक्षा के अधिकार के नाम पर गांव में कक्षा एक से कक्षा पांच तक का एक ही सरकारी स्कूल है, जिसमें केवल एक ही कमरा और एक ही शिक्षक की तैनाती है। कक्षा एक से पांच तक की क्लास भी एक ही कमरे में एक ही समय पर संचालित होती है। गांव के अति पिछड़ेपन के कारण कोई यहां शादी के लिए रिश्ता नहीं करता था। जिस कारण गांव को कुंवारा गाव कहा जाने लगा था। रोजगार के अभाव में अधिकांश ग्रामीण शराब की लत का श्किार हो गए थे। बिजली और साफ पानी क्या होता है ये तो ग्रामीण भूल ही चुके थे।
अश्विनी पाराशर ने ग्रामीणों की ये दशा देखी को वें काफी व्याकुल हो गये थे। उन्होंने गांव की स्थिति को बंदलने का संकल्प लिया और जिले के प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क किया। सरकारी दफ्तरो के सैंकड़ों चक्कर काटने के बाद उनके हाथ केवल निराशा ही लगी। इसके बाद ‘‘जीने का अधिकार’’ का ज़िक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा। प्रधानमंत्री कार्यालय से जवाब आया और जनवरी 2017 में धौलपुर कलेक्टर सूची त्यागी, एसपी राजेश सिंह, एसडीएम मनीष फौजदार व विद्युल-पेयजल विभाग के के अभियंताओं समेत 15 अधिकारियों की टीम राजघाट पहुंची। यह पहली दफा था कि इतनी संख्या में अधिकारियों का काफिला राजघाट पहुंचा था। अधिकारियों ने बिजली, पानी आदि की सुविधा उपलब्ध कराने के कई आश्वासन ग्रामीणों को दिए, लेकिन वें सभी केवल आश्वासनों तक ही सीमित रह गये। अश्विनी ने सोशल मीडिया पर ‘‘राजघाट बचाओ’’ अभियान शुरू किया, जिसे काफी समर्थन मिला। अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने क्राउड फंडिंग के माध्यम से पैसे जुटाने शुरू किए। अश्विनी और उनकी टीम ने ठान लिया था कि सरकार और अधिकारी कुछ करें या न करें, लेकिन वें इस गांव की सूरत जरूर बदलेंगे। उनके दृढ़ निश्चय और लगन का ही नतीजा था कि कई एनजीओ, उद्योगपति और एनआरआई अभियान में साथ आए और उनकी फंडिंग की बदौलत पूरी गांव में सोलर लाईंटे लगवा दी गई। बिजली पहले उन घरों को दी गई, जिनकी बेटियों पांचवी के बाद पढ़ने बाहर जाती थीं, ताकि अन्य परिवार भी इससे अपनी बेटियों को पढ़ने भेजें। 26 जनवरी 2018 तक सभी घरों में वाॅटर फिल्टर सिस्टम लगवा दिए गए और जिस गांव में अश्विनी और उनकी टीम पानी पीने से तक डरती थी, वहां फिल्टर सिस्टम लगने के बाद उन्होंने गांव में पहली बार पानी पीया।
सरकार और अधिकारियो की कार्यप्रणाली से परेशान होकर अश्विनी ने ‘‘जीने का अधिकार’’ को मुद्दा बनाते हुए हाईकोर्ट में पीआईएल डाली। हाईकोर्ट ने राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव और जिला कलेक्टर को नोटिस जारी किया। इसके बाद पूरा महकमा हरकत में आया और 5 मई 2019 तक पूरी गांव को बिजली मिल गई। सभी घरों में पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पेयजल लाइन बिछाई गई हैं। अब धीरे-धीरे गांव विकास की मुख्यधारा से जुड़ रहा है। जिस कारण कुंवारा गांव कहे जाने वाले राजघाट में 22 साल बाद पहली बार शादी हुई, जिससे गांव की रौनक लौट आई। आज अश्विनी के साथ 250 से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं। हालांकि अश्विनी के इस पूरे कार्य ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
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