संगम किनारे भी सिकुड़ने लगीं यमुना
इलाहाबाद में गंगा को यमुना से नया जीवन मिलता है। त्रिवेणी संगम से गंगा अपनी सहोदरा यमुना का जल लेकर बंगाल की खाड़ी के लिये बढ़ती हैं। यदि जलस्तर में गिरावट का मौजूदा दौर जारी रहा तो आगामी मई, जून में हालात और बिगड़ना तय है। वैसे जलस्तर में इस कमी के लिये बिजली प्लांटों के बड़े-बड़े पम्प भी जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। पानी की कमी से तराई क्षेत्र में होने वाले फसलों पर भी संकट मँडरा रहा है।
इलाहाबाद। अब कालिन्दी का मन भी संगमनगरी से रुठ रहा है। सदानीरा यमुना में इस बार मार्च में जब पहली बार पुराने पुल के समीप रेत का टीला नजर आया तो लोग चौंके थे, अब अरैल की तरफ भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है। बीच नदी में रेत का दायरा बढ़ता जा रहा है। यमुना में यह बदलाव अचम्भे का सबब है। सन्त समाज इसे सरकारों की नाकामी का नतीजा मान रहा है और सिंचाई विभाग मानसून के सहारे है।इस बार मार्च से ही गर्मी पड़ रही है। अप्रैल में तो अधिकतम पारा 45 डिग्री सेल्सियस पार कर चुका है। मार्च में पुराने यमुना पुल के समीप रेत के छोटे टीले नजर आये थे। इसे खतरे की घंटी माना गया, लेकिन जिम्मेदारों के कान पर जूँ नहीं रेंगी। अप्रैल के दूसरे पखवारे में जलस्तर और कम हो गया। संगम से थोड़ा पहले गऊघाट में महाशिवरात्रि के बाद से आठ फीट पानी कम होने की पुष्टि तो सिंचाई विभाग के इंजीनियर ही कर रहे हैं। अभी अरैल और महेवा गाँव के सामने जो स्थिति है, वह चिन्ता बढ़ा रही है। अरैल गाँव और ऐतिहासिक किले के ठीक सामने बीच नदी में रेत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। नदी किनारे रहने वाले कह रहे हैं कि यमुना का पाट यहाँ इतना चौड़ा कभी नहीं था।
इलाहाबाद में गंगा को यमुना से नया जीवन मिलता है। त्रिवेणी संगम से गंगा अपनी सहोदरा यमुना का जल लेकर बंगाल की खाड़ी के लिये बढ़ती हैं। यदि जलस्तर में गिरावट का मौजूदा दौर जारी रहा तो आगामी मई, जून में हालात और बिगड़ना तय है। वैसे जलस्तर में इस कमी के लिये बिजली प्लांटों के बड़े-बड़े पम्प भी जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। पानी की कमी से तराई क्षेत्र में होने वाले फसलों पर भी संकट मँडरा रहा है।
दिल्ली और आगरा में ही नई जिंदगी देनी होगी
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महन्त नरेंद्र गिरि इस हालात के लिये कहीं-न-कहीं शासन की उपेक्षा को जिम्मेदार बताते हैं। कहा कि दिल्ली और आगरा में ही यमुना को नई जिन्दगी देनी होगी, तभी इलाहाबाद में भी उनका स्वरूप बेहतर होगा। समय रहते सार्थक पहल नहीं हुई तो आने वाले सालों में गंगा की तरह यमुना की दशा भी हो जाएगी।
सहायक नदियों में पानी की कमी का भी असर
सिंचाई विभाग के अधिशाषी अभियन्ता मनोज सिंह स्वीकार करते हैं कि सहायक नदियों में पानी की कमी, तालाबों के सूखने का असर यमुना पर हुआ है। कहा कि माघ मेले के समापन के बाद नियमित तौर पर जलस्तर की मानिटरिंग नहीं हो रही है, लेकिन उम्मीद है कि जून मध्य तक मानसून सक्रिय होने के बाद स्थिति सुधर जाएगी।
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Post By: RuralWater